Tuesday, 13 September 2022
नीतीश किग या किगमेकर
पिछले एक महीने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश वुमार विपक्ष के तकरीबन 10 नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं जिनमें से तकरीबन आधा दर्जन से ज्यादा मुलाकातें पिछले तीन दिनों में हुईं हैं। बिहार में एनडीए का साथ छोड़े नीतीश वुमार को अभी महीना ही हुआ है लेकिन वो बिहार में कम और दिल्ली की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी लेते दिख रहे हैं।
दिल्ली दौरे के बाद 25 सितम्बर को वो हरियाणा में एक रैली में शिरकत करेंगे। आगे उनका पािम बंगाल जाकर ममता बनजा से मिलने का कार्यंव््राम भी है। नीतीश वुमार ने खुद बताया है कि वो जल्द ही दिल्ली का दूसरा दौरा भी करेंगे जब कांग्रोस नेता सोनिया गांधी इलाज के बाद वापस भारत लौटेंगी। इन मुलाकातों और दौरों के मायने भी निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश वुमार साल 2024 में विपक्ष का प्राधानमंत्री चेहरा बनना चाहते हैं, भले ही हर मुलाकात के बाद मीडिया में बात करते हुए नीतीश वुमार कहते हैं कि पीएम बनने की उनकी कोईं ख्वाहिश नहीं है। प्राधानमंत्री पद पर नीतीश वुमार की अघोषित दावेदारी पीएम मोदी की वजह से भी है। यह कहना है जेडीयू नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद केसी त्यागी का। नीतीश के दिल्ली दौरे के मायने और मकसद के बारे में बात करने के लिए वो बीबीसी दफ्तर आए थे। नीतीश के पीएम पद की दावेदारी पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा—प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि लोहिया, जॉर्ज फर्नाडीस के बाद नीतीश वुमार ऐसे नेता हैं जो परिवारवाद से दूर हैं, जातिवाद से दूर हैं और समाजवादी आंदोलन के जनक भी हैं, यह मेरा कहना नहीं है।
यह एक महीने पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा है। इतना ही नहीं 2024 का एजेंडा खींचते हुए नरेंद्र मोदी ने लाल किले से कहा है कि अगली लड़ाईं मेरी भ्रष्टाचार और परिवारवाद के विरोध में होगी.. पीएम मोदी के इस वक्तव्य के बाद विपक्ष के पास सबसे बड़ा हथियार भ्रष्टाचार और परिवारवाद से लड़ने के लिए कोईं है तो वो नीतीश वुमार का है। नीतीश वुमार पर न तो कोईं भ्रष्टाचार का आरोप है और न ही परिवारवाद का आरोप है, वो मोदी ब्रांड ऑफ पॉलिटिक्स के मुकाबले हर तरह से फिट बैठते हैं। दरअसल पिछले दिनों जिस तरह से महाराष्ट्र में एनसीपी नेताओं पर जांच एजेंसियों की गाज गिरी है, जिस तरीके से ममता बनजा के करीबियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, दिल्ली में मनीष सिसोदिया और केजरीवाल को शराब नीति पर घेरा जा रहा है और सोनिया गांधी, राहुल गांधी ईंडी दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं.. इन सबके मुकाबले नीतीश की छवि तुलनात्मक रूप से साफ है। उन पर व्यक्तिगत तौर पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोप नहीं लगे हैं। हां, उनके विरोधी यह भी कहते हैं कि नीतीश मौका देखते ही पाला बदल लेते हैं। तमाम विपक्ष को एक मंच पर लाकर आपसी तालमेल बिठाना नीतीश के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।
——अनिल नरेन्द्र
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