संयुक्त राष्ट्र संघ की वेबसाइट में दो दिन पहले भारत को बेतहाशा आबादी बढ़ाने के मामले में आगाह किया गया है। कहा गया है कि आबादी बढ़ने की रफ्तार यही बनी रही तो अगले चार दशकों में भारत बदहाली के जाल में फंस जाएगा। फिलीपींस की राजधानी मनीला में प्रतीकात्मक रूप से सात अरबवें बच्चे की पैदाइश रविवार को दर्ज की गई। पहले अनुमान लगाया गया था कि सात अरब की आबादी का यह प्रतीकात्मक बच्चा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पैदा होगा। इसके लिए गैर सरकारी संगठनों ने सात मां बनने वाली महिलाओं को चिन्हित भी किया था। इनकी निगरानी शुरू भी कर दी गई। लेकिन तय समय से कुछ सैकेंड के फासले से लखनऊ को यह गौरव नहीं मिल सका। यूएन के पर्यवेक्षकों ने यह गौरव मनीला के एक अस्पताल में जन्मे बच्चे के नाम दर्ज किया। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी वेबसाइट में आबादी के इस विस्फोट पर चिन्ता जताई है। कहा गया है कि इस तरह से शहरीकरण की रफ्तार तेज है, उससे 2050 तक आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा शहरों में बस जाएगा। ज्ञात इतिहास में पहली बार सिर्प 13 साल में आबादी एक अरब बढ़ गई है तो इसका कारण अनेक क्षेत्रों में इंसान की कामयाबियां हैं। स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल, बुनियादी चीजों की अधिक उपलब्धता तथा अप्राकृतिक मौतों में कमी के कारण आज मनुष्य का औसत जीवनकाल 68 साल है जबकि 1950 में यह महज 48 साल था। ज्यादा लोगों का मतलब खाद्यान्न, पानी और अन्य सुविधाओं की अधिक जरूरत के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग का अंदेशा भी है जिससे जलवायु परिवर्तन की चुनौती अधिक गम्भीर हो सकती है। गौरतलब है कि दुनिया का हर छठा आदमी भारतीय है। अगर दुनिया में अनाज या पानी की कमी गम्भीर रूप लेती है तो उसका सीधा असर भारत के जनजीवन एवं विकास की अपेक्षाओं पर पड़ेगा। इसलिए हमारे योजनाकारों को नई परिस्थितियों के लिए तैयार होना होगा। वैसे भी यह चुनौती अनन्त नहीं है। परिवार नियोजन संबंधी अविष्कारों तथा मानव समाज में बढ़ती जागरुकता ने जनसंख्या वृद्धि की दर घटा दी है। आज विश्व जनसंख्या प्रति वर्ष एक प्रतिशत की दर से बढ़ रही है जबकि 1960 के दशक के आखिर तक यह दर दो फीसदी थी। 1970 में दुनिया में प्रति महिला 4.45 बच्चे का जन्म होता था, जो दर अब 2.45 तक गिर चुकी है। यह आशा वास्तविक है कि प्रति महिला 2.1 बच्चे का जन्म दर का लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाएगा जिससे आबादी स्थिर हो सकती है यानि अगर निकट एवं मध्यकालीन भविष्य तक स्थितियों को सम्भाल लिया गया तो फिर मानवता के सुखद भविष्य की उम्मीदों को साकार किया जा सकता है। भारत में इस दिशा पर काम हो तो रहा है पर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। कभी-कभी यह भी देखा गया है कि धर्म फैमिली प्लानिंग का रास्ता रोक देता है। हमें इन बातों से ऊपर उठना होगा। अपने लिए न सही पर अपनी आने वाली जेनरेशनों के लिए ही सही।
Anil Narendra, Daily Pratap, Population, UNO, Vir Arjun
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