Thursday, 17 November 2011

राहुल ने किया यूपी में शह-मात के खेल का आगाज


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 17th November 2011
अनिल नरेन्द्र
मानना पड़ेगा कि इस बार कांग्रेस के युवा महासचिव राहुल गांधी ने अपने मिशन-2012 यूपी का अभियान बहुत सोच समझकर किया है। इस बार इस अभियान के पीछे पूरा होमवर्प करके ही मैदान में कूद लगाई है। ग्रहों की स्थिति भी बदली है और शुभ समय आरम्भ हो गया है। फिर राजनीति में टोटकों का खास महत्व होता है। यह बात राहुल गांधी को भी समझ में आने लगी है। यही वजह है कि मिशन-2012 के लिए उन्होंने उस पूर्वज की सरजमीं को चुना जहां से कभी भी उनके पूर्वजों को पराजय का दंश नहीं झेलना पड़ा। फूलपुर कांग्रेस के लिए एक ऐसी सीट थी जहां से जवाहर लाल नेहरू जीवन पर्यंत न केवल जीतते रहे बल्कि उनके नाम पर कांग्रेस ने यह सीट काफी समय तक बरकरार रखी। यही नहीं, फूलपुर से ही राहुल बसपा सुपीमो और उत्तर पदेश की मुख्यमंत्री मायावती के दलित-ब्राह्मण समीकरण को पलीता लगाने का संदेश देने में कामयाब होते देखे जा सकेंगे, क्योंकि 1957 के लोकसभा चुनाव में जब यह सीट द्वि-पतिनिधित्व वाली थी तब इस सीट पर पंडित जवाहर लाल नेहरू और मसूरियादीन विजयी हुए थे। मसूरियादीन दलित बिरादरी के थे। फूलपुर को अपने अभियान के लिए चुनने का एक संदेश यह भी है कि विकास की दौड़ में उत्तर पदेश कितना पिछड़ गया। राहुल ने अपने भाषण में इस तथ्य को बखूबी उछाला। पहली बार हमने राहुल गांधी को एक एंग्री यंग मैन की छवि और तेवरों में देखा। सोमवार को यूपी की जनसभा में जिस आकामक तेवर में राहुल नजर आए उससे तय है कि विधानसभा चुनाव हंगामेदार होगा। राहुल ने मायावती सरकार को आजादी के बाद की सबसे भ्रष्ट और लुटेरी सरकार की संज्ञा दे डाली। उनके इस बयान से बहरहाल जरूर हंगामा खड़ा होगा। उन्होंने युवाओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि कब तक आप लोग महाराष्ट्र जाकर भीख मांगेंगे? कब तक दिल्ली, पंजाब में मजदूरी करोगे? आपकी मुख्यमंत्री तो यहां जेब भरने में लगी हैं। इस सरकार को अब आप उखाड़ फेंके। राहुल ने कहा कि नेता जब तक गरीब के घर जाकर गंदे कुएं का पानी नहीं पिएगा, उसका पेट खराब नहीं होगा तब तक वह गरीबों को नहीं समझ सकेगा। जो गरीबों की हालत समझता है, गुस्सा उसे ही आता है। एक समय मुलायम और माया को भी गुस्सा आता था। लेकिन अब उनका गुस्सा भर गया है। उन्हें सिर्प सत्ता की फिक है। यूपी में गरीब 20 साल बाद भी वहीं का वहीं है। बिजली उत्पादन कम हुआ है। गुंडागर्दी एवं अपराध तेजी से बढ़े हैं। सोचता हूं क्यों न सीधे लखनऊ पहुंच जाऊं और आपकी लड़ाई लड़ूं। वर्तमान मंत्री जेबें भर रहे हैं और सपा शासन से जुड़े थाने चलाते थे। संसद के शीतकालीन सत्र में सबको भोजन का अधिकार और मजबूत लोकपाल बिल लाएगी यूपीए सरकार।
राहुल गांधी ने अपनी मां सोनिया गांधी के साथ मिलकर उत्तर पदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का काम किया था, जिसके कारण लोकसभा का सर्वाधिक सीटों वाले इस पदेश में 2009 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस ने 22 सीटें जीती थीं। इस जीत को अगर विधानसभा में रूपांतरित करके देखा जाए तो कांग्रेस को आगामी चुनावों में करीब 100 सीटें जीतनी चाहिए। लेकिन राहुल की मिशन-2012 का रास्ता आसान नहीं है। बेशक जो बातें उन्होंने कही हैं वह काफी हद तक सही हैं और उनकी सराहना होनी चाहिए कि किसी ने तो कहने का साहस दिखाया पर जो पॉजीशन 2009 में सम्भव दिख रही थी वह 2011 के बीतते-बीतते असम्भव जान पड़ रही है क्योंकि मनमोहन सिंह सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में सामने आए भ्रष्टाचार के मामलों और जानलेवा महंगाई के कारण कांग्रेस के लिए अपयश बटोर रही है। राहुल का यह कहना कि आप कब तक महाराष्ट्र में भीख मांगेंगे, मेरी राय में शब्दों का सही चयन नहीं था। बेहतर होता कि वह कहते कि कब तक यूपी के युवा महाराष्ट्र में नौकरियों के लिए आकर भटकेंगे? नौकरी मांगना भीख मांगने समान नहीं है। फिर जो बात कांग्रेस को सबसे ज्यादा सताएगी वह है वहां पर लचर कांग्रेस संगठन। राहुल गांधी के धारदार भांषण पर बसपा के साथ-साथ जिस तरह अन्य राजनीतिक दलों ने भी पतिकिया व्यक्त करने में देर नहीं की, उससे यह कहा जा सकता है कि वह अपने उद्देश्य में सफल रहे। लेकिन यह कहना मुश्किल है कि कांग्रेस को इस रैली का राजनीतिक अथवा चुनावी लाभ मिल सकेगा। यदि उत्तर पदेश में कुछ भी ठीक नहीं और यहां तक कि वहां माफियाराज जैसे हालत हैं जैसा कि राहुल ने कहा तो फिर उनकी यूपी इकाई ने इसके खिलाफ कोई अभियान क्यों नहीं छेड़ा? राज्य में कांग्रेस की गतिविधियों से तो ऐसा कुछ अभास नहीं होता कि हालात इतने खराब हैं। यह सही है कि राहुल गांधी उत्तर पदेश शासन की खामियों के खिलाफ रह-रहकर आवाज उठाने के साथ-साथ दौरे भी करते रहे हैं, लेकिन उनकी अपनी पार्टी ने आम जनता के बीच उनका संदेश पहुंचाने की कोई गंभीर कोशिश शायद ही की हो। राहुल की इस रैली से बेशक राजनीतिक हलचल मची है पर एक अकेली रैली से यूपी के राजनीतिक समीकरण शायद ही बदले? शह-मात का यह खेल अभी तो शुरू हुआ है। आगे-आगे देखिए होता है क्या।
Anil Narendra, Bahujan Samaj Party, Congress, Daily Pratap, Mayawati, Rahul Gandhi, Vir Arjun

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