दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने आखिर अपना लोहा मनवा ही लिया। तमाम विरोधों के बावजूद दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में विभाजित करने के लिए दिल्ली सरकार के प्रस्ताव को गृह मंत्रालय ने हरी झंडी देते हुए फाइल दिल्ली सरकार को अधिकृत रूप से भेज दी है। इस विषय पर अब मंगलवार को मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर चर्चा के बाद विशेष सत्र की तारीख तय करेंगी। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा इस मामले में हो रही देरी को पिछले दिनों अपनी प्रतिष्ठा बना लेने व 10 जनपथ में इसकी शिकायत करने के बाद हालातों में गृह मंत्रालय तेजी से हरकत में आया और उसने किन्तु-परन्तु नजरंदाज करते हुए फाइल को संस्तुति के साथ लौटा दिया जिसमें अब निगम विभाजन का संशय ही नहीं समाप्त हो गया अपितु जो बादल बने थे वह भी छंट गए। बहुत जल्द अब दिल्ली में तीन नगर निगम (एमसीडी) होंगे। दिल्ली में अब एनडीएमसी और कैंट बोर्ड को मिलाकर कुल पांच निकाय होंगे। इस फैसले को दिल्ली सरकार की जीत माना जा रहा है, लेकिन केंद्र ने अपनी चलाते हुए निगम कमिश्नरों की नियुक्ति का अधिकार अपने पास रखा है। अभी तक कमिश्नर की नियुक्ति दिल्ली सरकार केंद्र की सलाह पर करती है। तीनों निगमों के लिए लोकल बॉडीज अथारिटी की बजाय स्थानीय निकाय निदेशालय की मंजूरी दी गई है। तीनों में 50 फीसदी महिलाएं होंगी। अलग-अलग मेयर, निगम कमिश्नर और स्थायी समिति अध्यक्ष होंगे। हर विधानसभा सीट में चार वार्ड और कुल वार्ड 272। नोडल एजेंसी दिल्ली सरकार का शहरी विकास विभाग बना रहेगा।
बेशक शीला जी एक राजनीतिक जंग जीत गई हैं पर बहुत से लोग मानते हैं कि इन प्रयासों का एक बड़ा कारण राजनीति ही रही है। सीएम को कभी यह बर्दाश्त नहीं रहा कि दिल्ली सरकार जो चाहे, एमसीडी उससे उलटा चले। आज एमसीडी में भाजपा का शासन है तो उलटी चाल समझ में आती है लेकिन यह उलटबाजी तब भी थी जब एमसीडी पर कांग्रेस का राज था। सीएम ने तभी तय कर लिया था कि एमसीडी को कई हिस्सों में बांटना है। एमसीडी के विभाजन के बाद अभी कई प्रशासनिक मुद्दे उठेंगे और परेशानी आएगी। एमसीडी की आय का एक बड़ा स्रोत प्रॉपर्टी टैक्स है और इसका सबसे बड़ा हिस्सा साउथ दिल्ली से आता है। नॉर्थ में भी रोहिणी और पीतमपुरा जैसे पॉश इलाके अब दूध देने वाली गाय की तरह हैं लेकिन यमुनापार यानि ईस्ट दिल्ली की नगर निगम को राजस्व का टोटा रहेगा। निगम के सैकड़ों ऐसे प्रोजेक्ट अब दिल्ली सरकार को पूरा करने होंगे। खास बात यह है कि एमसीडी स्टाफ की ट्रांसफर-पोस्टिंग की जिम्मेदारी भी अब सरकार के हाथ में होगी। पूरी दिल्ली का करीब 97 फीसदी एरिया दिल्ली नगर निगम के आधीन है। दिल्ली की अधिकांश सड़कें, फुटपाथ, स्ट्रीट लाइटें, छोटे-बड़े सैकड़ों पार्प और प्राइमरी स्कूल एमसीडी के पास हैं। इतना ही नहीं, सफाई की जिम्मेदारी भी उसी के पास है और कई फ्लाइओवर, फुटओवर ब्रिज भी उसके रखरखाव में हैं। एमसीडी के कर्मचारियों की संख्या करीब 1.5 लाख है और इस वित्त वर्ष का उसका बजट करीब 6943 करोड़ रुपये है। इतना कुछ होने के बाद भी आम जनता और सरकार का आरोप है कि एमसीडी ठीक से काम नहीं करती। करोड़ों रुपये का बजट कहां चला जाता है, इसकी किसी को परवाह नहीं है और एमसीडी की अधिकतर सड़कें टूटी क्यों रहती हैं? एमसीडी में भ्रष्टाचार व्याप्त है। क्या दिल्ली सरकार अब एमसीडी को तीन हिस्सों में बांटकर यह सुनिश्चित करेगी कि दिल्ली की जनता को राहत मिलेगी और एमसीडी की कारगुजारी में सुधार होगा। अगर ऐसा होता है तभी इसे एक प्रभावी कदम माना जाएगा नहीं तो इसे एक राजनीतिक चाल ही मानी जाएगी।
Anil Narendra, Daily Pratap, Delhi Government, MCD, Sheila Dikshit, Vir Arjun
बेशक शीला जी एक राजनीतिक जंग जीत गई हैं पर बहुत से लोग मानते हैं कि इन प्रयासों का एक बड़ा कारण राजनीति ही रही है। सीएम को कभी यह बर्दाश्त नहीं रहा कि दिल्ली सरकार जो चाहे, एमसीडी उससे उलटा चले। आज एमसीडी में भाजपा का शासन है तो उलटी चाल समझ में आती है लेकिन यह उलटबाजी तब भी थी जब एमसीडी पर कांग्रेस का राज था। सीएम ने तभी तय कर लिया था कि एमसीडी को कई हिस्सों में बांटना है। एमसीडी के विभाजन के बाद अभी कई प्रशासनिक मुद्दे उठेंगे और परेशानी आएगी। एमसीडी की आय का एक बड़ा स्रोत प्रॉपर्टी टैक्स है और इसका सबसे बड़ा हिस्सा साउथ दिल्ली से आता है। नॉर्थ में भी रोहिणी और पीतमपुरा जैसे पॉश इलाके अब दूध देने वाली गाय की तरह हैं लेकिन यमुनापार यानि ईस्ट दिल्ली की नगर निगम को राजस्व का टोटा रहेगा। निगम के सैकड़ों ऐसे प्रोजेक्ट अब दिल्ली सरकार को पूरा करने होंगे। खास बात यह है कि एमसीडी स्टाफ की ट्रांसफर-पोस्टिंग की जिम्मेदारी भी अब सरकार के हाथ में होगी। पूरी दिल्ली का करीब 97 फीसदी एरिया दिल्ली नगर निगम के आधीन है। दिल्ली की अधिकांश सड़कें, फुटपाथ, स्ट्रीट लाइटें, छोटे-बड़े सैकड़ों पार्प और प्राइमरी स्कूल एमसीडी के पास हैं। इतना ही नहीं, सफाई की जिम्मेदारी भी उसी के पास है और कई फ्लाइओवर, फुटओवर ब्रिज भी उसके रखरखाव में हैं। एमसीडी के कर्मचारियों की संख्या करीब 1.5 लाख है और इस वित्त वर्ष का उसका बजट करीब 6943 करोड़ रुपये है। इतना कुछ होने के बाद भी आम जनता और सरकार का आरोप है कि एमसीडी ठीक से काम नहीं करती। करोड़ों रुपये का बजट कहां चला जाता है, इसकी किसी को परवाह नहीं है और एमसीडी की अधिकतर सड़कें टूटी क्यों रहती हैं? एमसीडी में भ्रष्टाचार व्याप्त है। क्या दिल्ली सरकार अब एमसीडी को तीन हिस्सों में बांटकर यह सुनिश्चित करेगी कि दिल्ली की जनता को राहत मिलेगी और एमसीडी की कारगुजारी में सुधार होगा। अगर ऐसा होता है तभी इसे एक प्रभावी कदम माना जाएगा नहीं तो इसे एक राजनीतिक चाल ही मानी जाएगी।
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