काफी जद्दोजहद, कानून दाव-पेंच और लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार गुजरात में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में हुई आगजनी के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों से जुड़े मामले में पहला फैसला आया है। मेहसाणा जिले के सरदारपुरा गांव में हुए इस दंगे में 37 लोग मारे गए थे। सरदारपुरा हत्याकांड में विशेष अदालत ने 31 आरोपियों को दोषी करार दिया है। उन्हें उम्र कैद की सजा दी गई है। दोषियों को हत्या, दंगे और हत्या के प्रयास सहित 18 धाराओं में सजा सुनाई गई। न्यायाधीश एससी श्रीवास्तव की अदालत ने अपने एक हजार पेज के फैसले में 42 आरोपियों को बरी कर दिया है। इनमें से 11 को सुबूतों के अभाव में छोड़ा गया। अन्य 31 को सन्देह का लाभ मिला। इस मामले में कुल 76 आरोपी थे इनमें एक नाबालिग है जबकि दो की मृत्यु हो चुकी है। दंग पीड़ितों की ओर से लड़ रहे प्रदेश के पूर्व महानिदेशक आरबी श्रीकुमार ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है। देश में इसके पहले सांप्रदायिक दंगों के मुकदमों के इतिहास में इतने लोगों को कभी एक साथ सजा नहीं हुई। ऐसा तो भागलपुर और बेस्ट बेकरी मामलों में भी नहीं हुआ। उच्चतम न्यायालय की ओर से नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) गोधरा दंगों के बाद के नौ मामलों की जांच कर रहा है। एसआईटी का यह पहला मामला है जिसमें फैसला आया है। एसआईटी प्रमुख आरके राघवन ने बताया कि यह संतोषजनक फैसला है। मैं इससे खुश हूं। यह मेरे अधिकारियों की कड़ी मेहनत का फल है। सरदारपुरा में हुआ दंगा गुजरात में उन नौ बड़े दंगों में शामिल है जिनमें अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया था और सुप्रीम कोर्ट ने जिनकी जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। इन दंगों की शुरुआत 27 फरवरी 2002 को गोधरा में अयोध्या से आ रही साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में कारसेवकों पर कातिलाना हमले के बाद हुई थी जिसमें 59 लोग मारे गए थे। दंगों के दाग गुजरात सरकार और विशेषकर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का पीछा नहीं छोड़ रहे। आज भी उन्हें इन दंगों के लिए हर जगह जवाब देना पड़ता है। दरअसल गोधरा और उसके बाद हुए दंगों को लेकर इतनी राजनीति हुई है कि कभी-कभी तो ऐसा लगने लगा कि शायद ही पीड़ितों को न्याय मिल सके। आरोप-प्रत्यारोप, गवाहों का मुकरना, गायब होना, गवाही का सिलसिला ऐसा चला कि असल मुद्दा तो बीच में ही दब गया। इस फैसले का एक खास पक्ष यह है कि अदालत ने हत्या, हत्या के प्रयास, दंगे और अन्य आरोपों को तो सही पाया, मगर अदालत ने आपराधिक षड्यंत्र के आरोप को खारिज कर दिया। इस फैसले के बाद एसटीएफ की क्षमता को लेकर सवाल उठने स्वाभाविक ही हैं। आपराधिक षड्यंत्र को साबित न कर पाना उसकी विफलता है। हमारा मानना है कि इस फैसले को नफा-नुकसान के रूप में आंकने के बजाय न्याय के रूप में देखना चाहिए। इस फैसले से यह तो साबित हो जाता है कि समाज में वैमनस्य और हिंसा की कोई जगह नहीं है। इससे यह भी स्पष्ट हुआ है कि न्याय में भले ही देर हो, अंधेर नहीं। समय जरूर लगा पर अंतत न्याय हुआ। उम्मीद है कि दंगों से जुड़े सभी मामलों का निपटारा जल्द होगा ताकि यह अध्याय खत्म हो।
Anil Narendra, Court, Daily Pratap, Godhra, Gujarat, Vir Arjun
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