Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 25th November 2011
अनिल नरेन्द्र
संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होते ही पहले दिन से सियासी गर्मी की आंच गरमाने लगी है। सत्र की शुरुआत महंगाई और गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के बहिष्कार से हुई। बुधवार को लोकसभा में वामदलों के नोटिस पर महंगाई पर होने वाली बहस में भी सदन का पारा गरम रहेगा। बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी दलों के स्थगन प्रस्ताव की चर्चाओं के बीच वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने स्वीकार किया कि उम्मीद के मुताबिक परिणाम हासिल नहीं हो सके। उन्होंने जैसी उनकी अब आदत-सी बन गई महंगाई का ठीकरा मांग एवं आपूर्ति में असंतुलन, डालर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट व अन्य अंतर्राष्ट्रीय कारणों को छोड़ दिया। उन्होंने उम्मीद जताई कि मुद्रास्फीति की दर मार्च 2012 के अन्त तक 6-7 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। प्रणब दा के बयान से विपक्ष भड़क उठा। पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने मुखर्जी के बयान को आंकड़ों का जाल और जनता को दिग्भ्रमित करने वाला बताते हुए चेतावनी दे डाली कि अगर महंगाई का यही हाल रहा तो लोग जल्द हिंसा पर उतर आएंगे। एनडीए ने सदन के पहले दिन ही यह संकेत भी दे दिया कि वह गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का बहिष्कार के अपने फैसले पर पूरी तरह अमल करेंगे। हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने गृहमंत्री को बचाने का पूरा प्रयास किया। मनमोहन सिंह ने कहा, जहां तक गृहमंत्री के बहिष्कार की बात है मुझे उम्मीद है कि राजनीतिक दल इस तरह के किसी कदम से बचेंगे, क्योंकि गृहमंत्री के बहिष्कार की कोई वजह नजर नहीं आती। दूसरी ओर राजग द्वारा चिदम्बरम के बहिष्कार को पूरी तरह से जायज बताते हुए भाजपा ने कहा कि यह विपक्ष का लोकतांत्रिक अधिकार है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में प्रधानमंत्री के नाम लिखे वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के नोट के सार्वजनिक होने के मद्देनजर ऐसा किया जाना स्वाभाविक कदम है। भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू ने संवाददाताओं से कहा कि कांग्रेस पूर्व में जॉर्ज फर्नांडीस के साथ ऐसा कर चुकी है जब निर्दोष जॉर्ज को उन्होंने छह महीने तक बोलने नहीं दिया था। अब यह विदित है कि अगर चिदम्बरम ने पहल की होती तो यह घोटाला रोका जा सकता था। चिदम्बरम को भाजपा 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उतना ही जिम्मेदार मानती है, जितना ए. राजा को। भाजपा का कहना है कि जब चिदम्बरम वित्तमंत्री थे उस वक्त राजा जो भी कर रहे थे उन सभी के बारे में न सिर्प चिदम्बरम को जानकारी थी बल्कि उन्होंने राजा का समर्थन भी किया। उन्होंने राजा के उठाए कदमों को अपनी सहमति दी। अगर वह चाहते तो उसी वक्त ही इस घोटाले को होने से रोक सकते थे। भाजपा ने अपने आरोपों का आधार वित्त मंत्रालय के इस साल प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे उस नोट को भी बनाया है जो इस साल 25 मार्च को भेजा गया था। इस नोट से साफ हो जाता है कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन नीलामी की बजाय `पहले आओ पहले पाओ' की नीति पर बनाने के लिए भी वित्तमंत्री के रूप में चिदम्बरम ने ही अपनी मंजूरी दी थी। यही नहीं, राजा ने बाकायदा चिदम्बरम को इस बारे में पत्र भी लिखा और बैठक भी की थी। ऐसे में चिदम्बरम इस घोटाले के लिए उतने ही जिम्मेदार हैं, जितने कि राजा। दरअसल चिदम्बरम का बहिष्कार करके राजग ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। सरकार और चिदम्बरम के लिए एक एम्बैरिसिंग स्थिति हो गई है। वहीं चिदम्बरम को पसंद न करने वाली टीम अन्ना के लोग, बाबा रामदेव और तमिलनाडु की सीएम जयललिता तक भी एक मैसेज गया है। बहिष्कार का टाइमिंग मानना पड़ेगा कि अच्छा है। जनता पार्टी के अध्यक्षडॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की अपील पर यह मामला कोर्ट में है। चिदम्बरम की लोकसभा सीट भी खतरे में है। क्योंकि उनके चुनाव के खिलाफ एक याचिका का फैसला कभी भी आ सकता है। डॉ. स्वामी की डिमांड पर सीबीआई को 2जी से जुड़े कागजात भी देने पड़े हैं। स्वामी दावा कर रहे हैं कि चिदम्बरम को पूरी जानकारी थी और वह इसे दस्तावेजों के साथ साबित भी कर सकते हैं। एनडीए ने सिर्प दबाव ही नहीं बनाया बल्कि एक सियासी मैसेज भी दिया है। बाबा रामदेव और उनके साथ रामलीला मैदान में बैठे लोगों पर पुलिस कार्रवाई के पीछे गृहमंत्री के आदेश माने जा रहे थे। रामदेव समर्थकों की तरह टीम अन्ना के भी काफी लोग मानते हैं कि अन्ना और साथियों की गिरफ्तारी और उसके बाद मामले को उलझाने में गृहमंत्री और मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल का मेन रोल था। उधर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता तो अपने ही राज्य में चिदम्बरम को एक आंख नहीं भातीं। यह भी गौरतलब है कि गत रविवार को जयललिता की पहल पर अन्नाद्रमुक के थंबुदुरई रामलीला मैदान में लाल कृष्ण आडवाणी की रैली में आए थे। इसके एक दिन बाद चिदम्बरम के बहिष्कार का फैसला हो गया। जयललिता सम्भव है कि भविष्य में एनडीए के साथ जुड़ जाएं। कुल मिलाकर भाजपा को लगता है कि उनकी बहिष्कार की नीति सही दिशा में सही कदम है।
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