Sunday 6 November 2011

महंगाई धीमी मौत की तरह है, सरकारें हाथ नहीं झाड़ सकतीं



Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 6th November 2011
अनिल नरेन्द्र
ताजा पेट्रोल कीमतों में वृद्धि का चौतरफा विरोध होना स्वाभाविक ही है। जनता का गुस्सा खुले विद्रोह का रूप ले सकता है। भाजपा ने तो जनता से खुला विद्रोह करने की अपील तक कर दी है। भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि देश की जनता पहले से ही 12.21 फीसदी की मुद्रास्फीति का सामना कर रही है, ऐसे में पेट्रोल के दामों का बढ़ना जनता पर दोहरी मार की तरह है। अब वक्त आ गया है कि जनता इस भ्रष्ट और असंवेदनशील सरकार को उखाड़ फेंके। मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ इस देश की जनता से आह्वान करता हूं कि वह सरकार के इस मनमानेपन के खिलाफ विद्रोह करे। विद्रोह कई तरह का होता है जैसे असहयोग करना, जनता अगर कर देना बन्द कर दे तो भी वह एक तरह का विद्रोह होगा। सरकार के इस फैसले से यूपीए गठबंधन के घटक भी नाराज हैं। यूपीए में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने तो संकेतों में समर्थन वापसी की धमकी तक दे दी है। शुक्रवार को तृणमूल संसदीय दल की कोलकाता में इमरजेंसी मीटिंग हुई। ममता बनर्जी ने कहा कि हमारे नेता केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के हक में हैं। लेकिन कोई भी फैसला प्रधानमंत्री के विदेश से लौटने के बाद ही लिया जाएगा। उधर खबर है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक तरह से पेट्रोल कीमतों में बढ़ोतरी को उचित ठहरा दिया है। फ्रांस में उन्होंने कहा कि बाजार को अपने हिसाब से चलने दिया जाना चाहिए। तेल की कीमतों को और नियंत्रण मुक्त किए जाने की जरूरत है। डीएमके, एनसीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने भी पेट्रोल के दाम का विरोध किया है। उधर इंडियन ऑयल कारपोरेशन के चेयरमैन ने कहा कि अगर सरकार निर्देश दे तो हम बढ़ोतरी को वापस लेने पर राजी हैं।
पेट्रो पदार्थों की कीमतों पर मनमोहन सरकार का हमेशा एक ही जवाब रहा है कि हम इसमें कुछ नहीं कर सकते और यह फैसला तेल कम्पनियों को करना है। यह कहकर सरकार अपना पलड़ा झाड़ लेती है पर पेट्रोल की कीमतों में बार-बार बढ़ोतरी पर केरल हाई कोर्ट ने शुक्रवार को सख्त रुख अपनाया। उसने कहा कि सरकारें इस मामले पर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती हैं। इसके विरोध के लिए राजनीतिक दलों का इंतजार करने के बजाय देश के लोगों को खुद सामने आना चाहिए। अदालत ने इंडियन ऑयल कारपोरेशन और रिलायंस पेट्रोलियम को अपनी बैलेंसशीट और तिमाही रिपोर्ट तीन सप्ताह में पेश करने का निर्देश दिया। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए एक्टिंग चीफ जस्टिस सीएन रामचन्द्रन और जस्टिस पीएस गोपीनाथ ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि पिछले एक साल में तेल के दाम 40 फीसदी से ज्यादा बढ़ गए हैं। इससे आम आदमी को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। महंगाई धीमी मौत की तरह है। राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं। उपभोक्ता विरोध नहीं कर पा रहे हैं। बार-बार की बढ़ोतरी में उन्हें एडजस्ट करना पड़ रहा है। अदालत ने कहा कि इस बढ़ोतरी से टू-व्हीलर और छोटी कार चलाने वाले व्यक्ति प्रभावित होते हैं, अमीर लोग नहीं क्योंकि वे डीजल की महंगी कारों में चलते हैं। राज्य सरकार के वकील ने तर्प दिया कि यह याचिका राजनीति से प्रेरित है। इस पर कोर्ट ने यह कहते हुए कि राजनीति में भी जनहित जुड़ा होता है, याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली। हालांकि अदालत का कहना था कि तेल उत्पादों के दाम तय करने का अधिकार केंद्र सरकार का पॉलिसी मैटर है। पेट्रोल की मौजूदा बढ़ोतरी पर हम दखल नहीं दे सकते। पेट्रोल के दाम में बढ़ोतरी राष्ट्रीय मुद्दा है। हम इस पर स्टे नहीं लगा सकते।
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