Thursday, 24 November 2011

फैसला लेने में मायावती मनमोहन सिंह से कोसों आगे


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24th November 2011
अनिल नरेन्द्र
यह तो मानना ही पड़ेगा की बहन जी जो ठान लेती हैं करके दिखा देती हैं। मायावती ने महज 15 मिनट में उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव पारित कराकर यह साबित भी कर दिया। मायावती ने सोमवार को सदन में एक लाइन का प्रस्ताव रखा जिसे शोरगुल में ध्वनिमत से मंजूर कर लिया गया। विपक्ष ने बड़े लम्बे चौड़े प्लान बना रखे थे पर यह सारी प्लानिंग धरी की धरी रह गई। बहन जी ने सबसे पहले तो वित्तीय वर्ष 2012-13 के लिए लेखानुदान पारित कराया और उसके बाद विभाजन प्रस्ताव पारित करके दो दिन चलने वाली विधानसभा को 15 मिनट में ही स्थगित करवा दिया। कोई भी राजनीतिक दल यह नहीं चाह रहे थे कि विधानसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर राज्य विभाजन का प्रस्ताव आए लेकिन मायावती को राजनीतिक रूप से यह ठीक लगा और फिर उन्होंने जितने आनन-फानन कैबिनेट से यह प्रस्ताव पारित कराया उतनी ही फुर्ती में विधानसभा से भी पारित करवा लिया। बुरी तरह बिखरा हुआ विपक्ष राज्य सरकार की घेराबंदी के तमाम मंसूबों के बावजूद कुछ नहीं कर सका। सदन में कांग्रेस, सपा और भाजपा विधायकों में एकता के बजाय श्रेय लेने की होड़ लगी रही। विपक्ष की कमजोरी भांप बसपा की कमान खुद मायावती ने सम्भाली और उत्तर प्रदेश के बंटवारे का प्रस्ताव पेश कर दिया। विपक्षी दल जब तक माया की चाल भांप पाते तब तक ध्वनिमत से प्रस्ताव पास भी कर दिया गया। विपक्ष की टिप्पणियां भी पार्टी लाइन की रहीं। मुलायम सिंह यादव का कहना था कि महज 10 सैकेंड में विधानसभा में साढ़े तीन लाइन पढ़कर नए राज्यों की तकदीर नहीं लिखी जा सकती। भ्रष्टाचार और अत्याचार के सवालों से घिरी राज्य सरकार ने ध्यान बंटाने के लिए बंटवारे का पासा फेंका है। भाजपा के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि फैसला चुनावी हथकंडा है। सदन के अन्दर और बाहर यूपीए गठबंधन के घटक दलों ने मिलकर उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में बांटने के प्रस्ताव को तैयार किया था। बसपा और कांग्रेस ने अपनी-अपनी विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए यह रणनीति बनाई थी। कांग्रेस के नेता प्रमोद तिवारी का कहना है कि पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया जाना था। सपा व भाजपा ने बेल में घुसकर सदन अव्यवस्थित कर दिया। कांग्रेस चर्चा चाहती थी। बाद में एक पत्रकार ने बहन जी से पूछा कि क्या आप विधानसभा भंग करने जा रही हैं तो मायावती का जवाब था कि मेरे पास मैजोरिटी है। मैं क्यों विधानसभा भंग करूंगी। निसंदेह इस प्रस्ताव के पारित होने मात्र से उत्तर प्रदेश का विभाजन होने नहीं जा रहा है और इसे मायावती भी भलीभांति जानती होंगी, लेकिन इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि इसका राजनीतिक लाभ मायावती को ही होगा। अब वह चुनाव में इस मुद्दे को भुना सकती हैं। मायावती ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उनमें फैसले करने की हिम्मत है। वह किसी से डरती नहीं। दुर्भाग्य से इस मामले में सबसे दयनीय स्थिति मनमोहन सरकार की है। वह समाज हित में फैसला लेना तो दूर रहा, खुद अपने हित के फैसले लेने में भी नाकाम है। इस मामले में तो मायावती सरदार मनमोहन सिंह से कहीं बेहतर साबित हो रही हैं।
बसपा पर यह आरोप जरूर लग रहा है कि उसने सोमवार को सदन के संचालन में मनमानी की सारी हदें पार कर दीं और फिर भी यह दावा किया जा रहा है कि विधानसभा अध्यक्ष ने संविधान के मुताबिक फैसले लिए और नियमानुसार सदन चलाया। सब कुछ नियमानुसार नहीं था, इसकी पुष्टि तो इससे ही हो जाती है कि विपक्ष के आरोपों का जवाब सदन से बाहर दिया गया। यह पहली बार नहीं जब सत्तापक्ष ने विधानसभा संचालन मनमाने तरीके से किया हो। यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और अब उसने खतरनाक रूप ले लिया है। कुछ राज्यों में तो विधायी सदनों का संचालन केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए किया जाने लगा है। बहस के लिए तमाम मुद्दे होने के बावजूद विधानसभा सत्र छोटे होते जा रहे हैं। देखा जाए तो महज 15 मिनट में 20 करोड़ लोगों का भविष्य यूं धक्का-मुक्की में नहीं तय किया जा सकता और यह मायावती भी जानती हैं।
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