Tuesday, 30 July 2024

अग्निवीरों को तोहफे का स्वागत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को द्रास (कारगिल) में कहा कि अग्निपथ योजना को सेना द्वारा किए गए आवश्यक सुधारों का एक उदाहरण है और विपक्ष पर सशस्त्र बलों में औसत आयु वर्ग को युवा रखने के उद्देश्य से शुरू की गई इस भर्ती प्रक्रिया पर राजनीति करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा अग्निपथ का लक्ष्य सेनाओं को युवा बनाना है, अग्निपथ का लक्ष्य सेनाओं को युद्ध के लिए निरंतर योग्य बनाए रखना है। उन्होंने कहा दुर्भाग्य से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस तरह के संवेदनशील मुद्दों को कुछ लोगों ने राजनीति का विषय बना लिया है। विपक्ष का सबसे बड़ा एतराज इस बात पर है कि यह अग्निपथ योजना अग्निवीरों के लिए सिर्फ 4 साल के लिए है। इनमें से कुछ को रेग्यूलर सेना में शामिल कर लिया जाएगा बाकी को रिटायर कर दिया जाएगा। वह रिटायर होने के बाद बाकी जिन्दगी क्या करेंगे? अब अच्छी खबर आई है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि देश की सेवा करके लौटने वाले अग्निवीरों को उत्तर प्रदेश पुलिस और पीएसी में महत्व दिया जाएगा। इसी के साथ छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों ने भी घोषणा की कि उनकी सरकार पुलिस आरक्षक, वनरक्षक और अन्य पदों की भर्ती में राज्य के अग्निवीरों को आरक्षण देगी। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अग्निवीरों के रूप में देश को प्रशिक्षित और अनुशासित युवा सैनिक मिलेंगे। अग्निवीर योजना जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी और युवा अपनी सेवा के बाद वापस आएंगे तो हम उत्तर प्रदेश पुलिस और पीएसी बल में इनके समायोजन की सुविधा को महत्व देंगे। वहीं ओडिशा सरकार ने शुक्रवार को राज्य की सेवाओं में अग्निवीरों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण और उम्र में पांच साल छूट की घोषणा की है। मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी ने शनिवार को यह घोषणा की। उन्होंने कहा हमारे राज्य बलों द्वारा प्रशिक्षित अग्निवीर विभिन्न सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में राष्ट्र की सेवा करने के लिए योग्य हैं। उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर लौटने वाले अग्निवीरों के लिए भी सरकारी सेवाओं में आरक्षण की व्यवस्था करने का प्रावधान कर रही है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में जरूरी होने पर अधिनियम भी लाया जाएगा। जिससे अनुशासित और कौशल से भरपूर सैनिकों की सेवाएं सरकार को प्राप्त हों। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शुक्रवार को घोषणा की कि उनका सरकार पुलिस और सशस्त्र बलों की भर्ती में अग्निवीरों को आरक्षण प्रदान करेंगे। यादव ने कहा प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा के अनुसार मध्य प्रदेश सरकार ने पुलिस और सशस्त्र बलों में अग्निवीरों को आरक्षण देने का फैसला किया है। इसी तरह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने घोषणा की कि उनकी सरकार पुलिस आरक्षक, वन रक्षक और अन्य पदों की भर्ती में राज्य के अग्निवीरों को आरक्षण देगी। विधानसभा परिसर में बात करते हुए साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य के अग्निवीर जब भारतीय सेना में अपनी सेवा के बाद वापस आएंगे तब छत्तीसगढ़ सरकार इन नौजवानों को पुलिस सेवा में आरक्षक, वन सेवा में वनरक्षक और जेल प्रहरी इत्यादि पदों पर प्राथमिकता के आधार पर समायोजन की सुविधा देगी। हम इन योजनाओं का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि इन्हें आगे बढ़ाया जाएगा और तमाम अग्निवीरों को एडजस्ट किया जाएगा। -अनिल नरेन्द्र

खनिजों पर कर लगाने का विधायकी अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने खनिज अधिकारों से जुड़े 35 सालों के विवाद को खत्म करते हुए ऐतिहासिक फैसले में कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कोई कर नहीं है। संविधान के तहत राज्यों के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायकी अधिकार है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 8ः1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया। इससे झारखंड और ओडिशा जैसे खनिज समृद्ध राज्यों को राहत मिलेगी। इन राज्यों ने केंद्र की ओर से खदानों और खनिजों पर अब तक लगाए गए हजारों करोड़ रुपए के करों की वसूली पर कोर्ट से फैसला करने का आग्रह किया था। केंद्रीय संविधान पीठ ने माना कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार है और खान व खनिज (विकास व विनियमन) अधिनियम, 1957 राज्यों को ऐसी शक्ति को सीमित नहीं करता। सीजेआई के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने बहुमत का फैसला दिया वहीं, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि रॉयल्टी कर या वसूली की प्रवृत्ति वाली होती है और केन्द्र के पास इसे लगाने का अधिकार है। केन्द्र और राज्यों के बीच करों के बंटवारे को लेकर कई बार विवाद हो चुका है। केन्द्राrय कर प्रणाली जीएसटी लागू होने के बाद भी कुछ चीजों पर करों और उपकरों के बंटवारे को लेकर सवाल उठते रहे हैं। खनिजों के स्वामित्व का प्रश्न भी उनमें से एक है। केंद्र सरकार ने खनिजों पर कर और उपकर लगाना शुरू किया तो कुछ कंपनियों और राज्य सरकारों ने इन पर सवाल उठाए। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने अब स्पष्ट कर दिया है कि खनिजों पर राज्य सरकारों का हक होता है। वे उनका पट्टा देने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके लिए किए गए करार के एवज में वे जो शुल्क प्राप्त करती है, उसे कर नहीं कहा जा सकता। वह रॉयल्टी की श्रेणी में आती है। रॉयल्टी को कर नहीं कहा जा सकता। इस फैसले से खासकर ओडिशा और झारखंड को बड़ी राहत मिली है। दरअसल यह मामला इसलिए उलझा हुआ था कि संविधान में केंद्र को खदानों के आवंटन से संबंधित सीमाएं तय करने का अधिकार केन्द्र सरकार को दिया गया है। मगर जमीन, भवन आदि पर शुल्क लगाने का अधिकार राज्य सरकारों को है। इसलिए केन्द्र सरकार खनिजों पर कर लगाने लगी थी। अब सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि खनिज राज्य सरकार की संपदा है। इसलिए वह उसके पट्टे की कीमत तय कर सकती है। अगर खनिजों पर भी केन्द्र सरकार कर वसूलने लगेगी तो राज्यों को अपनी विकास योजनाओं के लिए धन जुटाना मुश्किल हो जाएगा। राज्य सरकारें सभी व्ययों तथा कर निर्धारण की जिम्मेदारी निभाती हैं। राज्यों और केन्द्र के दरम्यान कई बार खींचतान की स्थिति उत्पन्न होती है। खासकर जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार होती है। उन्हें केन्द्र की नीतियों या आर्थिक मदद को लेकर सहयोगपूर्ण रवैये न रखने जैसी शिकायतें आम हैं। ओडिशा और झारखंड प्रमुख खनिज उत्पादक राज्य हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही। इसलिए अदालत का यह फैसला उनके विकास में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

Saturday, 27 July 2024

संघ की गतिविधियों में शामिल हो सकेंगे

लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में बढ़ी दूरियां और अंदरूनी खटपट और बयानबाजी पर केन्द्र सरकार ने मरहम लगाने की कोशिश की है। केन्द्र ने आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियें में भाग लेने पर लगे 58 साल पुराने सरकारी आदेश को वापस ले लिया है। सरकार के इस फैसले पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू होना स्वाभाविक ही था। इस फैसले को भाजपा की भविष्य की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें उसे अपने राजनीतिक अभियान में संघ के पूर्ण सहयोगी की ज्यादा जरूरत है। राजनीतिक दृष्टि से यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से भाजपा और आरएसएस में दूरी बन रही थी और परोक्ष रूप से एक दूसरे पर तंज कसे जा रहे थे। लोकसभा चुनाव में भी आरएसएस की तरफ से भाजपा के लिए पूरी ताकत से काम न करने का मुद्दा भी उठा था, जिसका काफी नुकसान भाजपा को हुआ था। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का संघ पर दिया बयान भी संघ को रास नहीं आया था। संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेडकर ने कहा, इस फैसले से देश की लोकतांत्रिक प्रणाली मजबूत होगी। सरकार का ताजा फैसला उचित है। संघ पिछले 99 वर्षों से राष्ट्र निर्माण एवं समाज की सेवा में सक्रिय है। राष्ट्रीय सुरक्षा एकता, अखंडता और प्राकृतिक आपदा के समय में समाज को साथ लेकर चलने में संघ का योगदान रहा है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सोमवार को प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में शामिल होने पर लगी रोक हटाकर इन कर्मचारियों को विचारधारा के आधार पर विभाजित करना चाहते हैं। सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक वाले 1966 के आदेश को बदल दिया है। खरगे ने एक्स पर पोस्ट किया कि 1947 में आज ही के दिन भारत ने अपना राष्ट्रीय ध्वज अपनाया था। आरएसएस ने तिरंगे का विरोध किया था और सरदार पटेल ने उन्हें इसके खिलाफ चेतावनी भी दी थी। 4 फरवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 58 साल बाद सरकारी कर्मचारियों पर संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर 1966 में लगा प्रतिबंध हटा दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 10 वर्षों में भाजपा ने सभी संवैधानिक और स्वामंत संस्थाओं पर संस्थागत रूप से कब्जा करने के लिए आरएसएस का उपयोग किया है, प्रतिबंध हटाकर सरकारी दफ्तरों में लोकसेवकों के निष्पक्षता और संविधान के सर्वोच्चता के भाव के लिए चुनौती होगा। उन्होंने दावा किया कि सरकार संभवत ऐसे कदम उठा रही है क्योंकि जनता ने उसके संविधान बदलने की कुटिल मंशा को चुनाव में परास्त कर दिया। यह भी कहा जा रहा कि आगामी विधानसभा चुनावों में संघ के कार्यकर्ताओं को खुलकर भाजपा का समर्थन करने हेतु यह कदम उठाया जा रहा है। संघ को नाराज करने का खामियाजा तो भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों से देख ही लिया है। घटती लोकप्रियता को अब संघ का ही सहारा है। -अनिल नरेन्द्र

मोदी की मजबूरी, कुर्सी बचाओ बजट

अबकी बार 400 पार का नारा फ्लाप होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस साल का बजट आंध्र और बिहार का नारा चरितार्थ होते हुए दिखाई पड़ रहा है। एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में मोदी सरकार ने आंध्र प्रदेश और बिहार पर विशेष रूप से मेहरबानी की और दोनों ही राज्यों को सरकार चलाने में सहयोग देने के लिए बम्बर गिफ्ट दिए गए हैं। एक तरीके से देखा जाए तो चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की बैसाखियों पर चल रही सरकार ने दोनों के लिए अपने बजट के खजाने खोल दिए हैं। मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में देखा जाए तो पीएम मोदी की मजबूरी यह है कि आंध्र और बिहार उनकी गठबंधन सरकार चलाने के लिए बेहद जरूरी है। इस मजबूरी की साफ झलक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में साफ दिखाई पड़ रही है। बजट के जरिए मोदी सरकार ने एक तरफ अपने अहम सहयोगियों टीडीपी और जेडीयू को साधे रखने का दांव चल दिया। इसके लिए दोनों राज्यों के लिए मोटे पैकेज का ऐलान किया गया है। वहीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बजट पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। राहुल ने आरोप लगाया कि सरकार ने कुर्सी बचाओ बजट पेश किया है जिसमें भारतीय जनता पार्टी को खुश करने के लिए दूसरे राज्यों की कीमत पर खोखले वादे किए गए हैं। उन्होंने यह दावा भी किया कि यह बजट कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र और पिछले कुछ बजट की नकल है। सहयोगियों को बुरा करने के लिए अन्य राज्यों की कीमत पर उनसे खोखले वादे किए गए। अपने मित्रों को खुश किया गया। एए को लाभ दिया गया। आप समझ ही गए होंगे कि एए का मतलब क्या है? मोदी जी के दो उद्योगपति मित्र। आम भारतीय को कोई राहत भी नहीं दी गई। उन्होंने आरोप लगाया, कांग्रेस का घोषणा पत्र और पिछले कुछ बजट का कापी पेस्ट किया गया है। वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केन्द्राrय बजट में आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए की गई घोषणाओं को सरकार बचाने का प्रयास करार दिया और आरोप लगाया कि सरकार ने किसानें और नौजवानों के साथ पूरे देश की अनदेखी की है। उन्होंने यह भी कहा कि देश का नौजवान आधी-अधूरी नहीं, बल्कि पक्की नौकरी चाहता है। यादव ने सवाल किया कि यूपी जो प्रधानमंत्री देता है, क्या वहां के किसानों के लिए भी कुछ ब़ड़े फैसले है? तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने कहा कि बजट में पश्चिम बंगाल के लिए कुछ भी नहीं है और यह भारत के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए पेश किया गया बजट है। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने यह दावा भी किया कि यह कुर्सी बचाऊ बजट है। यह बजट का उद्देश्यभर (प्रधानमंत्री) नरेन्द्र मोदी की स्थिति को बचाना है। यह राजग के लिए बजट है, भारत के लिए नहीं। झारखंड मुक्ति मोर्चा की सांसद महुआ मांझी ने कहा कि इस बजट में आदिवासियों के रोजगार के लिए, उनके पलायन रोकने के लिए और आदिवासी महिलाओं की तस्करी को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया गया। शिव सेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि इस बजट को प्रधानमंत्री सरकार बचाओ योजना कहा जाना चाहिए। इस बजट में महाराष्ट्र के लिए कुछ भी नहीं है। कुल मिलाकर तमाम विपक्ष के खिलाफ खड़ा दिखाई दिया।

Thursday, 25 July 2024

जम्मू में क्यों हो रहे सफल आतंकी?

करीब 20 सालों तक शांत रहे जम्मू में आखिर ऐसा क्या हो गया है कि करीब तीन साल से वहां ताबड़तोड़ आतंकी हमले हो रहे हैं? घात लगाकर सिर्फ सुरक्षा बलों को ही नहीं बल्कि आम नागfिरकों को भी निशाने पर लिया जा रहा है। 84 दिनों में 10 से ज्यादा आतंकी हमलों में 12 जवानों की शहादत हो चुकी हैं। आए दिन आतंकी हमले हो रहे हैं और हमारे जवान शहीद होते जा रहे हैं। ढाई महीने में सुरक्षा बलों के 13 सैनिकों से ज्यादा शहीद हो चुके हैं। जबकि गिनती के तीन से पांच-छह आतंकी मारे जा चुके हैं। जम्मू संभाग में आतंकवाद के खात्मे को कश्मीर मॉडल अपनाने की जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की घोषणा कई सवाल खड़े करने लगी है। इसमें यक्ष प्रश्न यह सामने आ रहा है कि आखिर जम्मू संभाग में आतंकवाद को फिर से पनपने ही क्यों दिया गया? क्यों जम्मू की सुरक्षा को दांव पर लगाते हुए सैनिकों को वहां से हटाया गया? और सबसे बड़ा सवाल आखिर आतंकवाद को कुचलने का कश्मीर मॉडल है क्या? जम्मू संभाग के लगभग प्रत्येक जिले को तीन सालों से निशाना बना रहे आतंकियों से निपटने का अब आतंकवाद से जड़ से उखाड़ने की जो तैयारियां की गई हैं उनमें सबसे प्रमुख कश्मीर मॉडल है। यह सबसे बड़ा सीक्रेट है जिसके प्रति किसी को कोई जानकारी नहीं है कि आखिर यह मॉडल क्या है? यह शब्द उपराज्यपाल ने पहली बार इस्तेमाल करके सबको चौंका दिया है। हालांकि केन्द्र सरकार के निर्देशों पर सभी सुरक्षाबलों ने संयुक्त राय से अब जम्मू संभाग में आतंकवादियों पर प्रहार करने को हजारों जवानों खासकर स्पेशल फोर्स के गुरिल्ला वार में निपुण सैनिकों को तैनात करना आरंभ कर दिया है, लेकिन इन जवानों की तैनाती उस संख्या को पूरा नहीं कर पाएंगी जो जून 2021 के उपरांत जम्मू संभाग से हटाकर चीन से निपटने को लद्दाख सेक्टर में भेज दिया गया था। रक्षा सूत्रों ने इस बात को माना है कि पाकिस्तान ने इसी परिस्थिति का लाभ उठाया है और उसने अपने यहां ताजा प्रशिक्षित आतंकियों का जम्मू संभाग को निशाना बनाने के निर्देश देते हुए उन्हें भारी संख्या में इस ओर धकेला है। स्थिति तो यह है कि पिछले तीन सालों में कितने आतंकी जम्मू संभाग में घुसे हैं वह संख्या 300 को भी पार कर जाती है। आतंकी जिस तरह से वारदात कर भागने में सफल हो रहे हैं। उससे ह्यूमन इंटेलिजेंस पर सवाल खड़े हो रहे हैं, विदेशी आतंकी इलाके में है और वारदात कर रहे हैं लेकिन उनकी जानकारी क्यों नहीं मिल पा रही है? लेफ्टिनेंट जनरल कुलकर्णी कहते हैं कि मैंने खुद डोडा एरिया में कमांड किया है। किसी भी आपरेशन के लिए लोकल सोर्स बेहद अहम होता है। लोकल ही हमारे आंख-कान होते हैं। वे बताते हैं कि कहीं कोई संदिग्ध व्यक्ति दिख रहा है या कोई संदिग्ध हरकत कर रहा है, यह जानकारी लोकल से ही मिलती है। वह कहते हैं कि ह्यूमन इंटेलिजेंस पर ध्यान देने की जरूरत है। वह यह भी सवाल उठाते है कि ह्यूमन इंटेलिजेंस बेस कैसे खत्म हो गया जबकि इतने सद्भावना के कार्यक्रम चलाते हैं। वह कहते हैं कि ह्यूमन इंटेलिजेंस के लिए लगातार प्रयास किए जाने चाहिए। जानकारी के लिए तीन सालों में आतंकी जम्मू संभाग में 52 सुरक्षाकर्मियों की जान ले चुके हैं और यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। -अनिल नरेन्द्र

पवार भ्रष्टाचार के सरगना, उद्धव औरंगजेब फैन क्लब प्रमुख

जैसे-जैसे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं राजनीतिक दलों के स्वर तीखे होते जा रहे हैं। हाल ही के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जहां 2019 में राज्य की 23 सीटें जीती थीं, वहीं 2024 में घटकर यह नौ रह गई हैं। इससे भाजपा नेतृत्व बौखला गया और अब पूरी कसरत आगामी विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने पर लगा दी है। नेताओं के स्वर न केवल तीखे होते जा रहे हैं बल्कि मर्यादाओं को लांघने वाले होते जा रहे हैं। प्रतिद्वंद्वियों पर हमले होते रहते हैं पर भाषा मर्यादित होनी चाहिए। रविवार को केन्द्राrय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्षी नेताओं और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार पर तीखा हमला किया और उन्हें देश में भ्रष्टाचार का सरगना करार दिया। पुणे में भाजपा के राज्य सम्मेलन में शाह ने शिवसेना (उद्धव) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को औरंगजेब फैन क्लब का प्रमुख करार दिया और कहा कि वे 1993 के मुंबई श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन के लिए क्षमादान मांगने वालों लोगों के साथ बैठे हैं। शाह ने कहा कि भाजपा नीत महायुति महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 2014 और 2019 के चुनावों से बेहतर प्रदर्शन करेगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने पुणे में कहा कि शरद पवार ने भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाया। शिवसेना (उद्धव) प्रमुख पर निशाना साधते हुए अमित शाह ने कहा कि उद्धव ठाकरे उन लोगों के साथ बैठे हैं, जिन्होंने 1993 के मुंबई सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन के लिए क्षमादान मांगा था। उन्होंने कहा कि औरंगजेब फैन क्लब क्या है? जो (26/11) के आतंकी हमले के दोषी अजमल कसाब को बिरयानी खिलाते हैं, जो याकूब मेमन के लिए क्षमादान मांगते हैं, जो विवादित इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक को शांति दूत पुरस्कार देते हैं और जो (प्रतिबंधित इस्लामी संगठन) पीएफआई का समर्थन करते हैं। उद्धव ठाकरे को इन लोगों के साथ बैठने में शर्म आनी चाहिए। विपक्षी नेताओं ने अमित शाह जी को याद दिलाया कि उनकी पार्टी सबसे भ्रष्ट लोगों को अपनी वाशिंग मशीन में डालकर साफ सुथरा कर देती है। जैसे अजित पवार पर खुद प्रधानमंत्री ने 70,000 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने वीडियो में कहा था कि अजित पवार चक्की पिसिंग, चक्की पिसिंग करेंगे, जिन्होंने छग्गन भुजबल को अपनी पार्टी में मिलाया, जिन्होंने प्रफुल्ल पटेल जिस पर भ्रष्टाचार के कई आरोप थे उनको पार्टी में मिलाया, वह आज भ्रष्टाचार की बात कर रहे हैं। शरद पवार ने दो-तीन दिन पहले कहा था कि इस साल के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उनका गठबंधन (एनसीपी-उद्धव ठाकरे गुट और कांग्रेस) मिलकर 200 से ऊपर सीट जीतने जा रही है। दूसरी और महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन महायुति में आपसी फूट चर्म पर है। अजित पवार गुट के कई नेता वापस शरद पवार की शरण में आ गए हैं। रहा सवाल उद्धव का तो उनके साथ महाराष्ट्र की जनता है क्योंकि वह यह मानती है कि शिंदे ने उनके साथ विश्वासघात किया है और वह उन्हें गद्दार मानती है। भाजपा पूरा जोर लगा रही है ताकि आगामी होने वाले विधानसभा में पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर सके।

Tuesday, 23 July 2024

10 सीटें... 30 मंत्रियों की तैनाती


लोकसभा चुनाव में निराशाजनक नतीजों से सबक लेते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनावों के लिए 30 मंत्रियों को प्रभारी बनाया है। सीएम योगी ने बुधवार को इन मंत्रियों के साथ मंथन किया और सभी सीटें जीतने का लक्ष्य दिया। यह उपचुनाव विधायकों के लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बनने और अन्य कारणों से होने है। अभी इनमें से 5 सीटें राजग तो 5 सीटें सपा के पास हैं। अब भाजपा के सामने यहां बेहतर प्रदर्शन कर संगठन को लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान की हताशा से उभारना एक बड़ी चुनौती है तो सीटों के समीकरण उतने ही जटिल हैं। उत्तर प्रदेश के फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां, मीरापुर, मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी और कुंदरकी के विधायक सांसद बने हैं। यह नौ सीटें इस तरह रिक्त हुई और दसवीं सीट शीशामऊ सपा के विधायक इरफान सोलंकी की आपराधिक मुकदमें में सदस्यता रद्द होने के कारण हुई है। इस सीटों पर उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई है लेकिन इनके लिए तैयारी मुख्य विपक्षी दलों सपा-कांग्रेस के साथ सत्तारुढ़ भाजपा ने भी शुरू कर दी है। सपा ने लोकसभा चुनाव में तो आशातीत प्रदर्शन किया लेकिन अब उपचुनाव में प्रदर्शन दोहराकर यह साबित करने की चुनौती है कि लोकसभा में जो नतीजे आए उसका ठोस आधार भी है। जबकि भाजपा के पास उपचुनावों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को ऊर्जावान करने का मौका है। मैनपुरी की करहल सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव विधायक थे। यह सीट सपा का अभेद्य दुर्ग मानी जाती है। फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आने वाली मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। अयोध्या में भाजपा को परास्त करने वाले अवधेश प्रसाद की इस सीट पर भाजपा को बल दिखाना पड़ेगा। भाजपा ने इस सीट को जीतने के उद्देश्य से प्रभारी मंत्री (कैबिनेट) सूर्य प्रताप शाही, प्रभारी (राज्यमंत्री) मयंकेश्वर सिंह, प्रभारी (राज्यमंत्री), गिरीश यादव और प्रभारी (राज्यमंत्री) सतीश शर्मा को जिम्मेदारी सौंपी है। वहीं कानपुर की शीशामऊ सीट पर मुस्लिम आबादी अधिक है। प्रयागराज की फूलपुर, अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीट पर भाजपा के लिए लड़ाई थोड़ी आसान लगती है। मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट व मिर्जापुर की मझवां में भी सामाजिक समीकरण साधने होंगे। इन विधानसभा उपचुनावों में भाजपा की तो प्रतिष्ठा दांव पर है पर साथ-साथ इसमें योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। विश्लेषकों का कहना है कि यह योगी का लिटमस टेस्ट है। उन्हें इस बार टिकटे बांटने से लेकर पूरा चुनाव अभियान चलाने की खुली छूट दी गई है। अगर भाजपा इन उपचुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती तो दिल्ली की गुजरात लॉबी को योगी को हटाने का अवसर मिल जाएगा। उधर कांग्रेस ने तय किया है कि लोकसभा चुनाव की तरह इन उपचुनावों में भी सपा के साथ गठबंधन में लड़ेंगे। गठबंधन को प्रदेश की 80 सीटों में से 43 सीटें मिली थीं, जिसमें से 37 सीटें सपा और 6 कांग्रेस को मिली थी। योगी ने प्रभारियों से कहा है कि आप सप्ताह में कम से कम दो दिन उसी क्षेत्र में रात्रि प्रवास करेंगे। बूथ स्तर पर संवाद कर उनकी समस्याओं का निस्तारण करने के भी निर्देश दिए गए हैं। लगता है कि बाबा ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है।

-अनिल नरेन्द्र

पहले अतिमानव, फिर भगवान बनना चाहते हैं


झारखंड के गुमला में ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघ चालक मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि लोग मनुष्य से अतिमानव, फिर भगवान बनना चाहते हैं। जिसमें मानवता नहीं है, वह इंसान नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रगति का कोई अंत ही नहीं है। लोग अतिमानव बनना चाहते हैं, लेकिन वे यहीं नहीं रूकते। वे देवता बनना चाहते हैं, फिर भगवान, भगवान से विश्वस्वरूप बनना चाहते हैं, कोई नहीं जानता कि इससे बड़ा कुछ भी था नहीं। विकास का कोई अंत नहीं है। हमें यह सोचना चाहिए कि हमेशा और अधिक की गुजाइंश होती है। बाहर के विकास और अंदर के विकास का कोई अंत नहीं है। उन्होंने कहा कि आत्मविकास करते समय एक मनुष्य सुपरमैन बनना चाहता है, इसके बाद वह देवता और फिर भगवान बनना चाहता है और विश्वरूप की भी आकांक्षा रखता है। लेकिन वहां से आगे भी कुछ है क्या, यह कोई नहीं जानता है। संघ प्रमुख ने कहा कि कुछ लोगों में मनुष्य होने के बावजूद मानवीय गुणों का आभाव होता है। उन्हें सबसे पहले अपने अंदर इन गुणों को विकसित करना चाहिए। वे गुरुवार को गुमला के बिशनपुर में विकास भारती संस्था में आयोजित ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। भागवत ने कहा कि विकास का अंत नहीं है। देश में नए-नए आयाम स्थापित करने की जरूरत है, मगर मूल स्वभाव बरकरार रखना चाहिए। देश के जनजातीय समाज का अपेक्षित विकास नहीं हुआ है। वे आज भी अभावों से घिरे हैं। वहां काम की जरूरत है। अन्यथा जिनके पास प्रभाव है। वे इस समाज के आभाव को दूर कर उनका पूरा स्वभाव ही बदल देंगे। इनका इशारा धर्मांतरण की ओर था। भागवत ने यह भी कहा कि जहां तपस्या है। वहां परिणाम है, सोच-समझ कर दिया गया कार्य रंग लाता है। भागवत ने कहा कि आदिवासी समाज के स्वभाव और उसकी विचारधारा को बदला जा रहा है, जिनके पास प्रभाव है। वह जनजातीय समाज का सम्मान दूर करने के नाम पर यह कर रहे हैं। संघ प्रमुख का इशारा फिर धर्मांतरण की ओर था। भागवत ने कहा कि आजकल तथाकथित प्रगतिशील लोग समाज को कुछ देने में विश्वास करते हैं, जो भारतीय संस्कृति में निहित है। उन्होंने कहा सनातन संस्कृति और धर्म राजमहलों से नहीं बल्कि साक्ष्यों और जंगलों से आई है। बदलते समय के साथ हमारे कपड़े तो बदल सकते हैं लेकिन हमारा स्वभाव कभी नहीं बदलेगा। बदलते समय में अपने काम और सेवाओं को जारी रखने के लिए हमें नए तौर और तरीके अपनाने होंगे। जो लोग अपने स्वभाव को बरकरार रखते हैं, उन्हें विकसित कहा जाता है। भागवत ने कहा कि सभी को समाज के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी पिछड़े हुए हैं और उनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम किए जाने की जरूरत है। सर संघ चालक मोहन भागवत बार-बार नसीहतें दे रहे हैं। आखिर ये नसीहतें किसके लिए हैं? किसको चेताने का काम कर रहे हैं? क्या वह कहना चाह रहे हैं कि अपने तौर तरीकों को बदलो नहीं तो पूरी लुटिया डूब जाएगी। आप तो डूबोगे ही साथ पार्टी और संघ को भी ले डूबोगे।

Saturday, 20 July 2024

बिहार को मिले विशेष दर्जा


बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग पिछले कई वर्षों से एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक मुद्दा बनी हुई है। केंद्रीय बजट के करीब आने के साथ, एक बार फिर से यह मांग जोर पकड़ने लगी है। नीतीश कुमार के करीबी मंत्री विजय कुमार चौधरी ने इस मांग को अपनी पार्टी और एनडीए घटक दलों के सुर में सुर मिलाते हुए मजबूती से उठाया है। इससे पहले एनडीए में शामिल चिराग पासवान और जीतनराम मांझी ने भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की वकालत कर चुके हैं। कुछ दिन पहले दिल्ली में हुई जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की कार्यकारिणी की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि केन्द्र से बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा या विशेष पैकेज की मांग की जाएगी। जद ए की नेता नीरज कुमार ने बताया कि कार्यकारिणी में दो महत्वपूर्ण प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किए गए। पहला राजनीतिक और दूसरा संगठनात्मक। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यसभा में पार्टी के दल के नेता संजय झा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार बिहार को एक विशेष पैकेज देने के विकल्प पर भी विचार कर सकती है। कार्यकारी अध्यक्ष पद पर अपनी नियुक्ति के बाद संजय झा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार पर हमेशा ध्यान देते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि बिहार को विशेष दर्जा या पैकेज देने की मांग पूरी होगी। जद यू यह भी तय कि या कि राज्य सरकार जाति आधारित गबला पर आरक्षण के हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। साथ ही मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार के विकास के लिए विशेष पैकेज के लिए केन्द्र पर दबाव डालेंगे। स्पेशल कैटिगरी वाले राज्यों को केन्द्र से ज्यादा वित्तीय मदद मिलती है। इन राज्यों में केंद्रीय योजनाओं के लिए 90 प्रतिशत फंड केंद्र देता है। और 10 प्रतिशत फंड ही राज्य को देना होता है। दूसरे राज्यों में यह रेशियो 60ः40 का होता है। विशेष दर्जे वाले राज्यों को कुछ प्रोजेक्स में अलग से भी मदद मिलती है। 14वें फाइनेंस कमीशन ने सोशल कैटिगरी लिस्ट में और राज्यों को न जोड़ने की सलाह दी थी। इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट के सीनियर इकानिमिस्ट डॉ. सारथी आचार्य कहते हैं, बिहार में पिछले 3 दशकों से गवर्नेस ठीक नहीं है। जब तक गर्वनेस ठीक नहीं होगा, स्पेशल स्टेटस देने पर स्पेशल पैकेज देने से बात ही बनने वाली आंध्र प्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व हैदराबाद से मिलता था और वह हाथ से चला गया। लिहाजा उसे स्पेशल स्टेटस की जरूरत है। वरिष्ठ अर्थशास्त्रों अभिजीत मुखोपाध्याय का कहना है, स्पेशल इकनॉमिक्स डेवलपमेंट के पैमाने पर बिहार, बंगाल व ओडिशा की मांग जायज है, आंध्र पिछड़ा नहीं है। विभाजन के बाद तेलंगाना को मदद की जरूरत ज्यादा है। केन्द्र पर अधिक वित्तीय बोझ नहीं आएगा क्योंकि टैक्स रेवेन्यू रफ्तार से बढ़ रहा है। ऐसे में जो राज्य पिछड़ रहा हो, उसकी मदद की जिम्मेदारी केंद्र की है क्योंकि वह सबका अभिभारक है।

-अनिल नरेन्द्र

योगी पर बढ़ते वार क्या संकेत दे रहे हैं


लोकसभा चुनावों में शर्मनाक प्रदर्शन के बाद उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विरोधियों के हमले तेज हो गए हैं। बीते कई सालों से नेतृत्व परिवर्तन की आस लगाए बैठे भाजपा के एक फंडे को (केंद्र के इशारे पर) ये एक सुनहरे मौके की तरह दिख रहा है और वो मत चूको चौहान की तर्ज पर चौतरफा वार की मुद्रा में है। हालांकि योगी आदित्यनाथ न तो शिवराज सिंह चौहान की तरह है और न ही वसुंधरा राजे की तरह जो छुप कर बैठकर हमले झेलते हैं। योगी खेमे की ओर से इसका भरपूर मुकाबला किया जा रहा है और लोकसभा चुनावों में हार का ठीकरा केन्द्राrय नेतृत्व पर फोड़ा जा रहा है। हाल में संपन्न हुई प्रदेश भाजपा की कार्य समिति की बैठक से पहले और उसके दौरान दोनों धड़ो के एक-दूसरे पर हमले तेज होते दिखे। योगी विरोधी खेमे को मजबूती प्रदेश में सहयोगी दलों से भी मिल रही है जो योगी पर वार का कोई मौका फोड़ते नहीं दिख रहे हैं। हार के बाद भाजपा ने सीटवार समीक्षा की और हारे प्रत्याशियों सहित कार्यकर्ताओं से बात कर रिपार्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कई अन्य कारणों के अलारा भीतरघात प्रशासन के भाजपा कार्यकर्ताओं की अनदेखी, बेलगाम नौकरसाही सहित कई कारण योगी के खिलाफ बताए गए। हालांकि प्रत्याशियों के चयन, रणनीति में कमजोरी भर कार्यकर्ताओं में उत्साह की कभी को भी कारण बताया गया है। रिपोर्ट के आ जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश में किसी ने हार की जिम्मेदारी नहीं ली है और न ही आगे बढ़कर इस्तीफे की ही पेशकश की है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी, प्रदेश प्रत्याशी धर्मपाल से लेकर सभी आला अधिकारी सहित मुख्यमंत्री अपनी जगह काम कर रहे हैं और हार का ठीकरा दूसरे के सर फोड़ने की कवायद में जुटे हैं। यूपी में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद योगी अपनों के वार से घिर गए हैं। भाजपा और एनडीए सहयोगी दल सवाल उठा रहे हैं। लोकसभा चुनावों में जिस तरह से अमित शाह ने कमान संभाली और हार के बाद जिस तरह से योगी खेमे उन्हें जिम्मेदार ठहराने की कवायद में जुटा है। उससे भी रिश्ते में खटास बढ़ती जा रही है। कहा तो यह जा रहा है कि योगी को रास्ते से हटाने के लिए सारी कवायद की जा रही है ताकि मोदी बाद कौन का रास्ता साफ हो? यह संयोग नहीं कि अमित शाह के करीबी माने जाने वाले मुख्यमंत्री योगी से असहज रिश्ते रखने वाले दोनों उपमुख्यमंत्री हो या सहयोगी दलों के संजय निषाद, ओम प्रकाश राजभर हो अथवा हाल ही सपा से आकर व उपचुनाव हारकर भी मंत्री बनाए गए दारा सिंह चौहान हो, इन सभी से गर्मजोशी से अमित शाह से मिलते हुए तस्वीरें अक्सर प्रसारित होती है। भाजपा के खराब प्रदर्शन पर डिप्टी सीएम कैशर मौर्य ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा संगठन सरकार से बड़ा होता है। मैं उपमुख्यमंत्री बाद में हूं पहले कार्यकर्ता हूं। केशव के इस बयान को योगी को संदेश देने से भी जोड़कर देखा जा सकता है। सीट कम आने के बाद योगी और मौर्य में द]िरयां बढ़ गई हैं। वह किसी भी बैठक में शामिल नहीं हो रहे थे। केशव मौर्य को अमित साह का करीबी माना जाता है। जिस तरह से योगी पर हमले हो रहे हैं उससे तो यही लगता है कि केंद्र अब उन्हें हटाना चाहता है। देखना यह है कि विधानसभा के दस उपचुनाव से पहले हटाते हैं या बाद में?

Thursday, 18 July 2024

संविधान हत्या दिवस पर आमने-सामने

केंद्र सरकार द्वारा 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में अधिसूचना जारी करने के बाद सियासी तकरार तेज होना स्वाभाविक ही थी। एक ओर भाजपा नेताओं ने इसके जरिए कांग्रेस पर निशाना साधा वहीं कांग्रेस ने इस पर पलटवार करते हुए केन्द्र के इस कदम को सुर्खियां बटोरने की कवायद करार दिया। विपक्ष के कुछ अन्य दलों ने भी इस पर सवाल उठाए। भाजपा ने गत शुक्रवार को कहा कि हर साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाना लोगों को कांग्रेस की तानाशाही मानसिकता के खिलाफ लड़ने वालों के बलिदान और शहादत की याद दिलाएगा। भाजपा की यह प्रतिक्रिया केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने के सरकार के फैसले की घोषणा के बाद आई है। भाजपा प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि 25 जून 1975 वह काला दिन था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तानाशाही मानसिकता ने संविधान में निहित लोकतंत्र की हत्या करके देश पर आपातकाल थोप दिया था। उन्होंने कहा कि यह दिवस हमारे सभी महापुरुषों के त्याग और बलिदान का स्मरण कराएगा जो कांग्रेस की तानाशाही के शिकार हुए थे। वहीं कांग्रेस ने केन्द्र सरकार के इस फैसले को सुर्खियां बटोरने की कवायद करार देते हुए पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में वर्ष 2014-2024 के दौरान देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है, पार्टी का दावा है कि 4 जून 2024 का दिन इतिहास में मोदी मुक्त दिवस के रूप में दर्ज होगा। पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री एक बार फिर हेडलाइन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने शनिवार को केंद्र सरकार और भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि इसमें आश्चर्य की क्या बात है कि संविधान और लोकतंत्र की हत्या करने वाले लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार करने वाले लोग संविधान हत्या दिवस मनाएंगे। प्रियंका ने एक्स पर कहा कि भारत की महान जनता ने ऐतिहासिक लड़ाई लड़कर अपनी आजादी और अपने संविधान हासिल किया है। जिन्होंने संविधान बनाया, जिनकी संविधान में आस्था है, वे ही संविधान की रक्षा करेंगे। उन्होंने कहा कि उन्होंने (भाजपा) अपने फैसलों और कृत्यों से बार-बार संविधान और लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार किया, वे नकारात्मक राजनीति वाला संविधान हत्या दिवस मनाएंगे ही। इसमें आश्चर्य कैसा? पार्टी का कहना है कि 4 जून 2024 का दिन इतिहास में मोदी मुक्त दिवस के तौर पर याद किया जाएगा। उन्होंने व्यक्तिगत राजनीतिक और नैतिक हार सुनिश्चित किए जाने से पहले दस वर्षों तक अघोषित आपातकाल लगाया था। पार्टी ने याद कराया कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ने अबकी बार 400 पार का नारा दिया था। उन्हीं के सांसदों, नेताओं ने कहा था कि हमें 400 सीटें इसलिए चाहिए कि हम संविधान बदलना चाहते हैं। वही लोग आज संविधान हत्या दिवस मनाने का ढिंढोरा पीट रहे हैं। अगर संविधान बचाना ही था तो संविधान हत्या दिवस की जगह इसे संविधान रक्षा दिवस या संविधान बचाओ दिवस का नाम देना शायद बेहतर होता। संविधान हत्या दिवस हमारी राय में ठीक नहीं है। -अनिल नरेन्द्र

अयोध्या के बाद बद्रीनाथ हार

13 सीटों के उपचुनाव परिणाम में भाजपा को उत्तराखंड की बद्रीनाथ विधानसभा सीट न जीत पाना भाजपा के लिए कड़ा संदेश है। इससे पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा अयोध्या (फैजाबाद) हार गई थी। हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 303 से घटकर 240 रह गई थी। सबसे चौंकाने वाला निर्णय फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने दिया जब यहां से भाजपा उम्मीदवार हार गए थे। यह दुनियाभर में चर्चा का विषय बनी। इसी तरह अब भाजपा ने उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट भी गंवा दी। अयोध्या और बद्रीनाथ भगवान विष्णु के स्वरूप हैं। दोनों सीटें हारने के बाद भाजपा के हिन्दुत्व के एजेंडे को भारी धक्का लगा है। दरअसल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बद्रीनाथ विधानसभा सीट कांग्रेस ने ही जीती थी, लेकिन कांग्रेस के विधायक राजेन्द्र सिंह भंडारी को भाजपा द्वारा तोड़ लिया गया था। पार्टी ने उन्हें ही उम्मीदवार बनाया लेकिन बद्रीनाथ सीट की जनता ने दलबदल को स्वीकार नहीं किया और उधर फिर से कांग्रेस पर ही विश्वास जताया। कह सकते हैं कि कांग्रेस ने अपनी सीट वापस ले ली और यहां हारी नहीं है। इसी तरह उत्तराखंड की मंगलौर सीट भी बसपा के पास थी जो अब कांग्रेस ने जीत ली है। इसलिए कहने को कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में भाजपा को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। लेकिन अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से देशभर में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश जो की गई थी उसका कोई असर जनता में नहीं हुआ। यह चुनावी मुद्दा बन ही नहीं सका। आधे अधूरे मंदिर का निर्माण करवाकर चुनावी लाभ उठाने की भाजपा की रणनीति औंधे मुंह गिरी और अब रही सही कसर बद्रीनाथ में हार के साथ पूरी हो गई। इससे राहुल गांधी की उस बात को बल मिलता है कि हिन्दुत्व पर भाजपा का कोई ठेका नहीं है। अगर हिन्दुत्व का दिन रात ढिंढोरा पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी अयोध्या और बद्रीनाथ नहीं जीत सकी तो इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है। उत्तराखंड की दोनों सीटों पर मिली हार भाजपा दिग्गजों के लिए बड़ा सबक दे गई है। पार्टी के रणनीतिकार यदि अभी नहीं चेते तो भविष्य में उसके लिए चुनाव दर चुनाव की राह कठिन हो सकती है। काडर के बजाए बाहर से आए नेताओं पर दांव लगाने से कार्यकर्ताओं में असंतोष को भाजपा नेतृत्व भांप नहीं पाया। इसी वजह से बद्रीनाथ में करारी हार का सामना करना पड़ा। आमतौर पर जब भी लोकसभा या फिर विधानसभा उपचुनाव होते हैं तो अधिकतरों पर जनता का झुकाव सत्तापक्ष की तरफ रहता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि हर कोई चाहता है कि उनका जनप्रतिनिधि सत्तापक्ष का होगा तो क्षेत्र में विकास कार्य भी होंगे। उत्तराखंड में इससे पहले 15 उपचुनाव हो चुके हैं, जिनमें 14 बार सत्तापक्ष की जीत हुई थी। भाजपा सरकार और उसके संगठन दोनों इस उपचुनाव में जीत तय मानकर चल रहे थे। पर वे जनता के मन को ठीक से टटोल नहीं पाए। तीन महीने पहले जब लोकसभा चुनाव पर मतदान हुआ था तो बद्रीनाथ से भाजपा प्रत्याशी ने 8254 मतों से बढ़त बनाई थी। इतनी कम अवधि में जनता के मिजाज ने कैसे करवट बदला कि विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी को मार खानी पड़ी। यह भगवान शिव और भगवान विष्णु का संदेश तो नहीं है?

Tuesday, 16 July 2024

संघः किसानों, युवा व आमजन हितैषी हो बजट

मनरेगा में 200 दिन रोजगार पर क्या बात बनेगी? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने केन्द्राrय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दिए किसान-मजदूरों को लेकर यह सुझाव आरएसएस से संबंधित संस्थाओं जैसे भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, लघु उद्योग भारती और स्वदेशी जागरण मंच के प्रतिनिधियों एवं अन्य पदाधिकारियों ने पिछले दो सप्ताह के दौरान वित्त मंत्री को अपने सुझाव सौंपे हैं। वित्त मंत्रालय बजट से पूर्व विभिन्न क्षेत्रों एवं संगठनों के साथ चर्चा कर रहा है। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार अब पूरी तरह से सक्रिय है। नई सरकार के गठन के बाद लोकसभा और राज्यसभा के पहले सत्र की भी शुरुआत हो चुकी है। अब सभी की निगाहें आगामी केंद्रीय बजट पर है। जो 23 जुलाई को पेश किया जाना है। इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण विभिन्न संगठनों के साथ बजट पूर्व परामर्श बैठक कर रही हैं, इसी सिलसिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबंद्ध संगठनों ने वित्त मंत्री को वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में पीएम किसान सम्मान निधि के मद में आंबटन बढ़ाने सहित कई अन्य सुझाव दिए हैं। इन संगठनों ने मध्यम वर्ग को राहत देने के लिए व्यक्तिगत आय कर घटाने और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली में भी सुधार का अनुरोध किया है। इन संगठनों का यह भी कहना है कि आर्टिफिशियल इटेंलिजेंस (एआई) के कारण नौकरी गंवाने वाले लोगों को अधिक हुनरमंद बनाने के लिए बजट में रोबोट का भी प्रावधान किया जाए। आरएसएस से संबंद्ध संस्थाओं जैसे भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, लघु उद्योग भारती और स्वदेशी जागरण मंच के प्रतिनिधियों एवं अन्य पदाधिकारियों ने पिछले दो सप्ताह में वित्त मंत्री को अपने सुझाव सौंपे हैं। स्वदेशी जागरण मंच के अश्विनी महाजन ने अन्य अर्थशास्त्रियों के साथ वित्त मंत्री से 19 जून को मुलाकात में प्रोत्साहन संबंध योजना (पीएलआई) की सराहना की लेकिन यह भी कहा कि इनमें अब सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्यमों (एमएसएमई) को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस कदम से देश में रोजगार के अधिक अवसर तैयार करने में मदद मिलेगी। महाजन ने कहा कि आगामी रक्षा गलियारों में एमएसएमई क्षेत्रों के लिए भी जगह होनी चाहिए। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के सदस्यों ने कई अन्य व्यापार संघों के साथ वित्त मंत्री को अलग से ज्ञापन सौंपा। बीएमएस ने मनरेगा में कार्य दिवसों की संख्या साल में बढ़ाकर 200 दिन करने का सुझाव दिया बीएमएस ने कहा कि इस रोजगार योजना में कृषि एवं संबंद्ध गतिविधियों में होने वाले कार्य भी शामिल किए जाने चाहिए। बीएमएस ने पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का भी सुझाव दिया और केंद्र सरकार में सभी रिक्त स्थानों को भरने के लिए तेजी से कदम उठाने की मांग की। भारतीय किसान संघ ने पीएम किसान निधि की राशि 6000 रु. से बढ़ाने की मांग भी की। यह योजना वर्ष 2018-19 में शुरू की गई थी, जिसका मकसद किसानों को बढ़ती लागत से निपटने व मदद करना है। संघ ने कहा कि केंद्र का सिंचाई के मद से आबंटन बढ़ाने के साथ जलवायु परिवर्तन के दुप्रभावों को देखते हुए नदियों को जोड़ने के लिए भी रकम का प्रावधान करना चाहिए। देखना यह है कि संघ के जुड़े संगठनों के सुझावों पर वित्त मंत्री कितना क्रियान्वयन करती हैं। -अनिल नरेन्द्र

बड़े किसान आंदोलन की तैयारी

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने बृहस्पतिवार को ऐलान किया कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एनएसपी) की कानूनी गारंटी और कृषि ऋण माफी सहित अन्य लंबित मांगों को लेकर फिर से आंदोलन शुरू करेंगे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को एक ज्ञापन सौंपेंगे। वर्ष 2020-21 के किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले एसकेएम ने अपनी आम सभा की बैठक के एक दिन बाद यह घोषणा की। इस बार शायद संगठन दिल्ली कूच नहीं करेंगे। एसकेएम में अलग-अलग किसान संगठन शामिल हैं। संगठन के नेताओं ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि प्रधानमंत्री विपक्ष के नेता और राज्यसभा तथा लोकसभा के सदस्यों से मुलाकात करने तथा उन्हें किसानों की मांगों से संबंधित ज्ञापन सौपेंगे। इसके लिए 16 से 18 जुलाई के बीच का समय मांगा जाएगा। यह पूछे जाने पर कि क्या किसान फिर से दिल्ली कूच करेंगे। एसकेएम नेताओं ने कहा कि इस बार वे देशव्यापी विरोध प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, विशेष रूप से महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में जहां विधानसभा चुनाव होने हैं। उन्होंने कहा कि हर बार विरोध का एक ही तरीका इस्तेमाल करना जरूरी नहीं है। हम पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करेंगे। एसकेएम नेताओं ने दावा किया कि किसान आंदोलन का ही असर है कि हालिया लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को विभिन्न राज्यों में 159 ग्रामीण बहुल क्षेत्रों में संसदीय सीटों में हार का सामना करना पड़ा। संवाददाता सम्मेलन के बाद जारी किए गए बयान में एसकेएम ने कहा, आम सभा में भारत सरकार और कृषि विभाग के सचिव द्वारा हस्ताक्षरित नौ दिसम्बर 2021 के समझौते को लागू करने और किसानों की आजीविका को प्रभावित करने वाली अन्य प्रमुख मांगों को लेकर आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है। संगठन ने कहा कि नौ अगस्त को एसकेएम अपनी मांगों के समर्थन में देशभर में प्रदर्शन करके भारत छोड़ो दिवस को कारपोरेट भारत छोड़ो दिवस के रूप में मनाएंगे। एसकेएम ने मांग रखी है कि भारत को डब्ल्यूटीओ से बाहर आना चाहिए। एसकेएम ने यह भी कहा कि 2020-21 के विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों के सम्म्मान में दिल्ली की टिकरी और सिंधू बॉर्डर पर मेमोरियल बनाए जाने चाहिए। इन बॉर्डरों पर आंदोलनकारियों ने अपने आंदोलन के हिस्से के रूप में एक साल से अधिक समय तक डेरा डाला था। साथ ही 2021 में उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के मुआवजे के लिए भी दबाव डाला था। बुधवार को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को सिंधू बॉर्डर खोलने का आदेश दिया है। हमारा मानना है कि हम कृषि प्रधान देश हैं इसलिए किसानों की जरूरतों और मांगों की अनदेखी नहीं की जा सकती। मगर उन्हें भी इस विरोध से बचना चाहिए। अड़ियल रुख दिखाने की बजाए सरकार को भी छोटे किसानों के हितों की रक्षा में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए।

Saturday, 13 July 2024

हेमंत सोरेन और झारखंड विधानसभा चुनाव


झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और अब फिर से बने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 148 दिन जेल में रहने के बाद बाहर आए। रांची हाईकोर्ट के जज जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की सिंगल बैंच ने जमीन पर कब्जे से जुड़े मनी लाड्रिंग मामले में हेमंत सोरेन को जमानत देते हुए कहा कि तथ्यों से लगता है कि सोरेन के खिलाफ ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के सभी आरोप आधारहीन हैं। बड़गाई शांतिचार की जिस 8.86 एकड़ जमीन के मामले में ईडी ने सोरेन को गिरफ्तार किया था। उस पर कब्जे में उनकी कोई भूमिका नहीं है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि हेमंत सोरेन की अप्रत्यक्ष रूप से कोई संलिप्तता नहीं दिखती है, न ही जमीन छिपाकर रखने के मामले में प्रोसिडिंग ऑफ क्राइम (अपराध की आम) बनता है और न ही राजस्व रिकार्ड में प्रत्यक्ष रूप से उनकी संलिप्तता दर्शाता है। जेल से बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन बोलेö मुझे झूठे आरोपों में फंसाया गया था। पांच महीने जेल में काटने पड़े। पूरे देश को पता है कि मैं जेल किस लिए गया था। आखिरकार कोर्ट ने न्याय किया है। सोरेन ने कहाöकेन्द्र सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले नेताओं, समाजसेवी, लेखकों और पत्रकारों की आवाज को दबाया जा रहा है। मैंने जो काम शुरू किया है, जो युद्ध मैंने छेड़ा है, उसे पूरा करूंगा। हेमंत सोरेन ने बृहस्पतिवार को झारखंड के 13वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। पांच महीने पहले इसी राजभवन में अपना इस्तीफा सौंपने के बाद ईडी ने उन्हें गिरफ्तार किया था। हेमंत सोरेन ने सोमवार को विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान विश्वास मत हासिल कर बहुमत साबित कर दिया। विश्वास मत के दौरान उनके समर्थन में 45 विधायकों के मत पड़े। जबकि बहुमत का आंकड़ा 39 था। झारखंड विधानसभा चुनाव अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में संभव है। 10 सितम्बर के बाद कभी भी चुनाव की तिथियों की घोषणा हो सकती है। भारत निर्वाचन आयोग ने राज्य निर्वाचन कार्यालय को यह संकेत दिया है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर के साथ ही झारखंड विस का भी चुनाव कराया जाएगा। झारखंड विधानसभा के सदस्यों की संख्या 81 है। चुनाव जीतकर सांसद बनने के बाद झामुमो की जोबा माझी, नलिन सोरेन, भाजपा के मनीष जायसवाल और महतो ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। झामुमो की विधायक रहीं सीता सोरेन ने भी भाजपा में शामिल होने के बाद

इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में विधानसभा के विधायकों की वर्तमान संख्या 76 है। हेमंत सोरेन के जेल में रहते लोकसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा का शानदार प्रदर्शन रहा। उसने आदिवासी क्षेत्रों की सातों सीटें जीतीं। अब जब हेमंत सोरेन बाहर आकर मैदान में आ गए हैं तो उनका गठबंधन और मजबूती से लड़ेगा। अब तो हेमंत के साथ पूरा इंडिया गठबंधन की ताकत भी मौजूद है। हमदर्दी का भी फैक्टर उनके पक्ष में जाता है। वैसे भाजपा भी झारखंड में मजबूत है और मुकाबला तगड़ा हेने की संभावना है। देखना यह है कि हेमंत सोरेन के मैदान में आने से चुनाव में क्या फर्क पड़ता है। उनके पीछे पत्नी कल्पना ने भी मैदान खुद अच्छे से संभाला था।

-अनिल नरेन्द्र

बंद हो अग्निपथ योजना


विपक्ष अग्नि वीर यानि अग्निपथ योजना का विरोध करता रहा है। कांग्रेस सांसद व नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा में भी इस ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा की और साफ कहा कि अगर वह सत्ता में आए तो इस योजना को बंद करेंगे। चुनाव खत्म हो चुके हैं और केंद्र में एक बार फिर मोदी सरकार सत्ता में आ गई है। प्राप्त संकेतों से तो यही लगता है कि केंद्र सरकार इस योजना को खत्म करने की नहीं सोच रही है। संभव है कि इसमें कुछ संशोधन किए जाएं। राहुल ने अपने भाषणों में साफ कहा है कि हिन्दुस्तान के जवानों को मजदूरों में बदला जा रहा है। राहुल ने कहा था कि ये मोदी सरकार की योजना है, सेना की योजना नहीं। सेना भी इस योजना को मौजूदा स्वरूप में नहीं चाहती है। मीडिया में छपी खबरों के अनुसार सेना ने सिफारिश की है कि अग्निवीर अगर वीर गति को प्राप्त हो जाता है तो उसके परिवार को आजीवन के लिए पेंशन जैसी मदद की जाए। सेना ने यह भी सिफारिश की है कि 50 प्रतिशत इससे अधिक अग्निवीरों को परमानेंट किया जाए। अभी अग्निपथ योजना के तहत अधिकतम 25 प्रतिशत अग्निवीरों को ही परमानेंट करने का प्रावधान है। सेना ने करीब चार महीने तक अपनी सभी यूनिटों से अग्निपथ स्कीम और अग्निवीरों को लेकर फीड बैक लिया और पूरा सर्वे कराया। सर्वे के आधार पर अपनी सिफारिशें डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स यानि डीएमए को भेजी हैं। डीएमए प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ है। सूत्रों के मुताबिक सिफारिशों में कहा गया है कि अगर अग्निवीर वीरगति को प्राप्त होता है तो उनके परिवार का सबसिसटेंस अलाउंस (जीवन निर्वाह भत्ता) दिया जाना चाहिए। एक अधिकारी के मुताबिक यह एक तरह से पेंशन है। यह भी कहा गया है कि रक्षा के लिए काम करते हुए अग्निवीर डिस्ब्लैड (विकलांग) होते हैं तो भी एक्स ग्रेशिया आर्थिक मदद दिया जाना चाहिए। सेना ने सिफारिश की है कि हर बैच में कम से कम 50 प्रतिशत अग्निवीरों को परमामेंट किया जाना चाहिए। इसके साथ ही टेक्निकल आर्म में अग्निवीरों की अधिकतम उम्र बढ़ाने की सिफारिश की है। सूत्रों के मुताबिक सेना की तरफ से अग्निवीर का कार्यकाल चार साल से आगे बढ़ाने जैसी कोई सिफारिश नहीं की गई है। जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी मंगलवार को अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली पहुंचे तो उन्होंने कीर्ति चक्र विजेता शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की। शहीद कैप्टन की मां मंजू सिंह ने राहुल गांधी से मुलाकात के बाद कहाö हम दुखी हैं कि हमारा बेटा हम सबको छोड़कर मझधार में चला गया है। परिवार को उनकी जरूरत थी, मैं यह दर्द पूरी जिंदगी लेकर जीना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मुझे और दर्द हो ताकि मैं अपने बेटे को याद कर सकूं। शहीद अंशुमान की मां ने कहा राहुल गांधी से मुलाकात में अग्निवीर को लेकर बात हुई। दो तरह की फौज नहीं होनी चाहिए। सरकार से मैं उम्मीद करती हूं कि वह राहुल गांधी की बात सुनें और उस पर विचार करें। गौरतलब है कि अंशुमान सिंह की शादी 5 महीने पहले 10 फरवरी को हुई थी। कैप्टन 15 दिन पहले ही सियाचिन गए थे। कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत राष्ट्रपति भवन में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था जिसे उनकी पत्नी स्मृति और मां मंजू ने ग्रहण किया।

Thursday, 11 July 2024

जिस अंगुली को पकड़कर चले उसी को काट रहे हैं

जैसे-जैसे 2024 लोकसभा चुनाव के परिणामों का असर हो रहा है वैसे-वैसे अब भाजपा के अंदर बगावती सुर भी सुनाई पड़ने लगे हैं। जैसे ही परिणाम आए कि भाजपा 240 पर अटक गई असंतुष्ट नेता मुखर होते दिखाई दे रहे हैं। शायद वह इस मौके के इंतजार में थे कि केंद्र में मोदी-शाह जोड़ी थोड़ी कमजोर हो तो हल्ला बोलें। राजस्थान में उदयपुर पहुंची पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे सिंधिया ने एक ऐसा बयान दिया जिसकी सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई। सुंदर सिंह भंडारी चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से आयोजित विशिष्ट जन सम्मान समारोह और व्याख्यान माला कार्यक्रम में वसुंधरा राजे संबोधित कर रही थीं। उस दौरान उन्होंने कहा कि सुंदर सिंह भंडारी ने चुन-चुन कर लोगों को भाजपा से जोड़ा। उन्होंने एक पौधे को वृक्ष बनाया। उन्होंने संगठन को मजबूत करने का काम किया। कार्यकर्ताओं को ऊंचा उठाने का काम किया। उन्होंने कहा कि भंडारी जी ने राजस्थान में भैरो सिंह शेखावत सहित कितने ही नेताओं को आगे बढ़ने का अवसर दिया, लेकिन वफा का वह दौर अलग था। तब लोग किसी के लिए किए हुए को मानते थे, लेकिन आज तो लोग उसी अंगुली को पहले काटने का प्रयास करते हैं, जिसको पकड़कर वह चलना सीखते हैं। अब वसुंधरा के इस बयान के बाद तमाम तरह के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। चर्चा है कि राजस्थान विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से वसुंधरा राजे और पार्टी नेतृत्व के बीच तल्खी देखने को मिली थी, उसकी गांठ खुलने लगी है। चुनाव के दौरान मन में जो कसक थी, वो अब धीरे-धीरे बयानों के जरिए सामने आ रही है। कार्यक्रम में असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया भी मौजूद रहे। राजे ने कहा कि गुलाबचंद कटारिया ने चुन-चुनकर लोगों को भाजपा से जोड़ा है। कटारिया अब असम के महामहिम हैं, लेकिन वह दूर रहकर भी हम लोगों के पास हैं और ख्याल रखते हैं। दरअसल राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट को लेकर वसुंधरा राजे और गुलाबचंद कटारिया के बीच भी तल्खी की खबरे सामने आ आई थीं। इसके अलावा चुनावी नतीजों के बाद पार्टी आलाकमान ने वसुंधरा राजे को नजरदांज करके पर्चे के माध्यम से भजनलाल शर्मा को राज्य के सीएम की कुर्सी सौंप दी थी। ऐसे में दबे स्वर में ही सही भाजपा शीर्ष नेतृत्व और वसुधंरा राजे के बीच मनमुटाव की खबरे गाहे-बिगाहे सुर्खियां बनती रही हैं। अभी तो यह शुरुआत है आगे देखते रहिए होता है क्या-क्या? पूरी पार्टी के अंदर बहुत से नेताओं और कार्यकर्ताओं का नेतृत्व को लेकर असंतोष है पर भय के वातावरण से वह चुप बैठे हैं। मौका मिलते ही और कई नेताओं के विरोधी स्वर सुनने को मिल सकते हैं। -अनिल नरेन्द्र

महाराष्ट्र में होगी एनडीए की परीक्षा

लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में एनडीए को 24 सीटों का नुकसान हुआ है जिससे भाजपा, सीएम एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी में बेचैनी होना स्वाभाविक ही है। गठबंधन को डर है कि अगर लोकसभा चुनाव का ट्रैंड जारी रहा तो साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ सकता है। इसी बीच खबर तो यह भी है कि शिंदे और अजीत पवार गुट के 15-20 विधायक घर वापसी की राह तलाश रहे हैं। एनसीपी के मंत्री छगन भुजबल, एकनाथ शिंदे के मंत्री अब्दुल सत्तार ने ऐसे संकेत दिए हैं। मोदी कैबिनेट में एनसीपी को जगह न मिलने से अजीत गुट में भी असंतोष है। महाराष्ट्र में इसी वर्ष अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हैं। 2019 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन था। तब 288 सीटों में से भाजपा 105 और शिवसेना 56 सीटों पर लड़ी थी। भाजपा ने शिवसेना तोड़कर सरकार भी बना ली। शिवसेना के 56 में से 42 विधायक शिंदे और 14 ठाकरे के साथ हैं। एनसीपी के 54 में से 40 अजीत और 14 शरद पवार के साथ हैं। राजग के अंदर महायुति में खटपट चुनाव नतीजों ने बढ़ाई है। भाजपा आलाकमान पर पार्टी और आरएसएस के भीतर से दबाव है कि अजीत पवार अब बोझ बन गए हैं। भाजपा को उनसे जल्द से जल्द पीछा छुड़ा लेना चाहिए। एनसीपी तोड़कर भाजपा के साथ आए थे अजीत पवार। लोकसभा में उन्हें मिली चार सीटों में से वे सिर्फ एक सीट जीत पाए। बारामती के अपने घर में उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार अपनी ननद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले से बुरी तरह हार गईं। उधर प्रफुल्ल पटेल ने अलग भाजपा की किरकिरी कर दी। राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और जनता का मूड़ भापकर कई विधायक पाला बदल सकते हैं और सीनियर पवार के खेमे में लौटने की उम्मीद जताई जा रही है। अजीत पवार गुट के कुछ नेताओं का मानना है कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है, लेकिन अजीत पवार की महत्वाकांक्षा को देखते हुए सब कुछ सहज नहीं लगता। चुनाव से पहले वह एकनाथ शिंदे सरकार में अपना असर और दमखम दिखाने का प्रयास करेंगे जिसमें विधानसभा चुनाव में अपनी बड़ी भागीदारी को लेकर दबाव बना सकें। राज्य में जिस तरह के समीकरण केन्द्र में हैं उसे देखते हुए उद्धव ठाकरे गुट को लेकर एक संतुलित रुख भी भाजपा नेतृत्व अपना सकता है, इससे जरूरत पड़ने पर बातचीत का रास्ता खुला है। कुल मिलाकर कई तरह के घटनाक्रम की संभावना महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर लगाई जा रही है। उधर शरद पवार भी पूरी तरह सक्रिय हो चुके हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा की 10 सीट पर चुनाव लड़ा था और 8 पर जीत हासिल की थी। बारामती के एक गांव में कार्यकर्ताओं और जनता को संबोधित करते हुए सीनियर पवार ने कहा कि आप एकजुट रहें। पवार ने कहा कि अगले तीन या चार महीने में राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं। मेरी कोशिश राज्य की कमान संभालने की होगी और इसे हासिल करने के लिए हमें विधानसभा चुनाव जीतना होगा। लोकसभा के नतीजों को देखें तो 288 विस क्षेत्रों में से 150 पर इंडिया गठबंधन का वोट ज्यादा रहा। इसलिए भाजपा के सामने महाराष्ट्र जीतने की बड़ी चुनौती है।

Tuesday, 9 July 2024

होइ हैं वही जो राम रचि राखा


राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव के नतीजे को सरकार के घमंड की हार और विपक्ष की नैतिक जीत बताया। अखिलेश ने फैजाबाद (अयोध्या) में भाजपा की हार पर कहा यह भारत की सबसे बड़ी जीत है। रामचरित मानस में कहा है होइ हैं वही जो राम रचि राखा। नतीजे ने इसे चरितार्थ किया है। यह उनका फैसला है जिसकी लाठी में आवाज नहीं होती। अखिलेश ने सरकार पर हमले के लिए शेरो-शायरी का सहारा लिया। उन्होंने कहा, हुजुर-ए-वाला आज तक खामोश बैठे इस गम में, महफिल लूट ले गया कोई जबकि सजाई हमने। जुमलेबाज सरकार से जनता का भरोसा उठ गया है, पेपर लीक और अग्निपथ योजना से सरकार ने युवाओं का भरोसा तोड़ा। सत्ता में आने पर वह इस योजना को बंद करेंगे। अखिलेश ने कहा, जनता ने 400 पार का नारा लगाने वालों का घमंड तोड़ डाला। ऐसा लग रहा है कि यह चलने वाली नहीं गिरने वाली सरकार है। भाजपा को जोरदार तरीके से घेरा यूपी में। गठबंधन को भाजपा पर बढ़त बनाने को अखिलेश यादव ने अपनी जीत के रूप में पेश किया। उन्होंने कहा कि यूपी ने सकारात्मक परिणाम दिया है। भाजपा की हार को लेकर उन्होंने शायरी अंदाज में हमला बोलते हुए कहा ः आवाम ने तोड़ दिया हुकुमत का गुरूर। दरबार तो लगा है पर, बड़ा गमगीन बेनूर है, क्यों ऊपर से जुड़ा कोई तार नहीं, नीचे से कोई आधार नहीं। ऊपर से जो अटकी हुई, यह कोई सरकार नहीं, मह]िफल लूट ले गया कोई। अखिलेश ने इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन ईवीएम पर खुलकर हमला बोला। अखिलेश यादव ने कहा कि ईवीएम पर मुझे कल भी भरोसा नहीं था और आज भी नहीं। उन्होंने कहा कि अगर मैं 80 में से 80 सीटें भी जीत जाऊंगा, तब भी भरोसा नहीं है। ईवीएम का मुद्दा खत्म नहीं हुआ है। यादव ने पर्चा छोड़ मामले में कहा कि पेपर लीक क्यों हो रहे हैं? सच्चाई तो यह है कि सरकार ऐसा इसलिए कर रही है ताकि उसे युवाओं को नौकरी न देनी पड़े। उन्होंने कहा कि संविधान ही संजीवनी है और उसकी ही जीत हुई है। संविधान रक्षकों की जीत हुई है। ये चलने वाली नहीं गिरने वाली सरकार है। अखिलेश ने कहा कि चार जून लोकसभा चुनाव के परिणाम वाला दिन, देश के लिए साप्रदायिक राजनीतिक से आजादी का दिन था। सांप्रदायिक राजनीति का अंत हुआ और सामुदायिक राजनीति की शुरुआत हुई। इस चुनाव में सांप्रदायिकता राजनीति की हमेशा के लिए हार हो गई। उन्होंने कहा सकारात्मक राजनीति की जीत हुई। सपा सांसद ने कहा कि देश किसी की निजी महत्वाकांक्षा से नहीं, बल्कि जनआकांक्षा से चलेगा और अब मनमर्जी नहीं, बल्कि जनमर्जी चलेगी। उन्होंने मतदाताओं का आभार प्रकट करते हुए कहा कि आपने लोकतंत्र को एक तरफ कमजोर होने से रोका। यादव ने दावा किया कि जनता ने हुकूमत का गुरूर तोड़ दिया और अब एक हारी हुई सरकार विराजमान है। उन्होंने आरोप लगाया कि विकास के नाम पर खरबों रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है। उन्होंने सवाल किया, क्या विकास का ढिंढोरा पीटने वाले इस विनाश की जिम्मेदारी लेंगे। अब प्रदेश के मुख्य शहरों की सड़कों पर नाव चल रही है और यह सब विकास के नाम पर हुआ है।

-अनिल नरेन्द्र

भाजपा में हार को लेकर सिर फुटव्वल


भाजपा के अंदर लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी के अंदर सिर फुटव्वल व जवाबदेही को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है। जवाबदेही को लेकर ताजा केस राजस्थान के कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे का है। उन्होंने इस्तीफा देते हुए कहा कि मैंने वचन दिया था कि अगर पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं जीती तो मैं मंत्रिपद से इस्तीफा दे दूंगा। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले ऐलान कर दिया था कि दौसा सीट पर भाजपा उम्मीदवार कन्हैया लाल मीणा की हार हुई तो वे मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। अपने उसी वचन को निभाया है। पर असल वजह भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी मानी जा रही है। पिछले साल दिसम्बर में भाजपा आलाकमान ने एक नए चेहरे भजन लाल शर्मा को सूबे में सूबे की सत्ता सौंपी थी। इसके बाद दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे का असंतुष्ट होना स्वाभाविक था। लोकसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा को अपनी सत्ता होने के बावजूद झटका लगा है। पच्चीस सीटों से घटकर पार्टी चौदह सीटों पर सिमट गई। रही किरोड़ी लाल मीणा की बात तो वे लगातार असंतुष्ट दिख रहे थे। भजन लाल शर्मा मंत्रिमंडल में उनके कद और अनुभव के मुताबिक विभाग नहीं मिला। छह बार विधानसभा, दो बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा के सदस्य रहे हैं किरोड़ी लाल मीणा। उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेने की बात से भाजपा के अंदर विवाद को तेज कर दिया है। उत्तर प्रदेश में बहुत दिनों से हार की जिम्मेदारी को लेकर भाजपा के अंदर घमासान मच हुआ है। केन्द्राrय नेतृत्व चाहता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में हार की जिम्मेदारी लें। लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विरोधियों के बजाए अपनों के ही निशाने पर आ गए हैं। हारे हुए भाजपा उम्मीदवार कभी तो अपने दल के नेताओं को हार का कारण बता रहे हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का कारण जहां केंद्र योगी जी पर थोपना चाहता है वहीं योगी के समर्थक कह रहे हैं कि न केवल टिकटे केंद्रीय नेताओं ने बांटी बल्कि सारा चुनाव अभियान गृहमंत्री अमित शाह ने चलाया। इसलिए अगर उत्तर प्रदेश में अपेक्षा के हिसाब से परिणाम नहीं आए तो इसके लिए योगी जिम्मेदार नहीं अमित शाह जिम्मेदार हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि योगी को केंद्रीय नेतृत्व पद से हटाना चाहता है। पर अभी तक योगी जी टिके हुए हैं। जो विधायक हार गए वह अपनी ही पार्टी के नेताओं पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने उन्हें हराया। प्रत्याशियों, क्षेत्रीय पार्टी विधायकों और संगठन के स्थानीय पदाधिकारियों के बीच शीत युद्ध की बात भी सामने आई है। सभी एक-दूसरे के सिर पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि स्थानीय संगठन और पदाधिकारियों ने जहां सांसद-विधायक की आपसी जंग और जनता में सांसद विरोधी लहर को प्रमुख कारण बता रहे हैं, वहीं संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर जमीनी कार्यकर्ताओं की शिथिलता जैसे कारण भी सामने आए हैं। हार के लिए अधिकारियों के सिर पर भी ठीकरा फोड़ा जा रहा है और कहा जा रहा है कि अधिकारियों ने जानबूझकर गड़बड़ी की, असहयोग किया और विपक्ष का साथ दिया। तमाम क्षेत्रों में तो लोगों ने कहा कि अधिकारियों की मनमानी और स्थानीय पदाधिकारियों की अपेक्षा के चलते जनता के बीच उनका प्रभाव कम हुआ, इस वजह से भी जनता ने उसे नकार दिया। किरोड़ी लाल मीणा ने तो हार की जिम्मेदारी ले ली पर बाकी राज्यों में हार का जिम्मेदार कौन है।

Friday, 5 July 2024

राहुल गांधी के जीवन का सर्वश्रेष्ठ भाषण


लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ भाषण दिया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तेवर दिखाते हुए बिना उत्तेजित हुए हाजिर जवाबी से सरकार और प्रधानमंत्री पर तीखे प्रहार किए। धारावाहक बोलते हुए लगभग एक घंटे 42 मिनट लंबे इस भाषण में उन्होंने मोदी सरकार को धो डाला। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। सबसे पहले हम उस मुद्दे की बात करते हैं जिस पर प्रधानमंत्री और तमाम भाजपा नेता तिलमिला उठे हैं और कह रहे हैं कि राहुल गांधी ने तमाम बिंदुओं को हिंसक कहा है जो बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। भाजपा का आईटी सेल इनको उछाल रहा है और हिन्दू विरोधी अभियान चलाए हुए हैं। दरअसल राहुल गांधी ने कहा क्या था? हमारे महापुरुषों ने यह संदेश दियाö डरो मत डराओ मत। शिवजी कहते हैं ö डरो मत, डराओ मत और त्रिशूल को जमीन में गाढ़ देते हैं। दूसरी तरफ जो लोग भाजपा की ओर इशारा करते हुए अपने आपको हिन्दू कहते हैं वो 24 घंटे हिंसा-हिंसा-हिंसा... नफरत-नफरत-नफरत.... आप हिन्दू हो ही नहीं। हिन्दू धर्म में साफ लिखा है, सच का साथ देना चाहिए। राहुल ने प्रधानमंत्री की ओर इशारा करते हुए आगे कहा नरेन्द्र मोदी और आरएसएस पूरा हिन्दू समाज नहीं है। हिन्दू धर्म में साफ लिखा है कि सत्य के साथ खड़ा होना चाहिए। सत्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। अहिंसा हमारा प्रतीक है। इस पर प्रधानमंत्री खड़े हो गए। जो आमतौर पर कभी खड़े नहीं होते। बोलेö पूरे हिन्दू समाज को हिंसक कहना यह बहुत गंभीर विषय है। इस पर राहुल की हाजिर जवाबी देखिए उन्होंने कहा- नहीं-नहीं-नहीं... मैं हिन्दू समाज को हिंसक नहीं कह रहा। मोदी जी भाजपा और संघ पूरा हिन्दू समाज नहीं है। ये ठेका भाजपा का नहीं है। राहुल ने भगवान शिव की अभय मुद्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन सभी पांचों में यह मुद्रा नजर आती है। राहुल गांधी ने अयोध्या में भाजपा की हार का उल्लेख करते हुए कहा कि भगवान श्रीराम ने भाजपा को एक संदेश दिया है। उन्होंने अयोध्या से सपा सांसद अवधेश प्रसाद के साथ अपनी बातचीत का जिक्र करते हुए दावा किया, नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या से चुनाव लड़ने के लिए दो बार सर्वे कराया। सर्वे करने वालों ने साफ कह दिया कि अयोध्या से चुनाव मत लड़िएगा। अयोध्या की जनता हरा देगी। इसलिए नरेन्द्र मोदी वाराणसी चले गए और वहां से भी बचकर निकले। राहुल ने अग्निवीर योजना का मुद्दा उठाते हुए कहा- एक बारूदी सुरंग में एक अग्निवीर शहीद हुआ। मैं उसे शहीद कह रहा हूं। लेकिन भारत सरकार और नरेन्द्र मोदी उसे शहीद नहीं कहते हैं, उसे अग्निवीर कहते हैं, उसे पेंशन नहीं मिलेगी, उस मुआवजा नहीं मिलेगा न ही उसे शहीद का दर्जा मिलेगा, इस पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खड़े होकर कहाö गलत बयानी कर संसद को गुमराह करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। किसानों का मुद्दा उठाते हुए राहुल ने कहा, सरकार को इतना अहंकार हो गया कि किसानों को आतंकवादी तक कह दिया गया। हम किसान आंदोलन में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक मिनट का मौन रखना चाहते थे लेकिन आपने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वे आतंकवादी हैं। उन्हें आज तक एमएसपी की गारंटी नहीं दी गई। इस पर शिवराज सिंह चौहान ने खड़े होकर कहाö उत्पादन की लागत पर कम से कम 50 फीसदी जोड़कर एमएसपी दी जा रही है और अगर नहीं दी जा रही है तो यह सत्य]िपत करें। ये गलत बयानी कर रहे हैं। राहुल ने जातीय हिंसा भड़कने के बाद से मणिपुर का दौरा नहीं करने के लिए पीएम की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पीएम के लिए मणिपुर भारत का राज्य है ही नहीं। हमने पीएम से एक संदेश देने के लिए मणिपुर जाने का आग्रह किया। लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। राहुल गांधी ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी के कथित अनियमितताओं का उल्लेख करते हुए आरोप लगाया कि इस सरकार ने एक पेशेवर परीक्षा को व्यावसायिक परीक्षा में तब्दील कर दिया है। उनका कहना था कि अब छात्रों को नीट की परीक्षा पर विश्वास नहीं रहा और उन्हें लगता है कि इसे अमीर परिवारों के छात्रों की मदद करने के लिए तैयार किया गया है। राहुल ने पीएम मोदी पर भय का शासन चलाने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मोदी जी पिछले दस सालों से भय का शासन चला रहे हैं। भाजपा ने सभी एजेंसियों, संस्थानों और मीडिया पर कब्जा करके समाज के हर वर्ग में डर फैलाने का काम किया है। जिससे सभी सत्ता और धन के कर्ताकरण, गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों पर आक्रामकता के विचार का विरोध किया, उसे कुचल दिया गया। राहुल ने कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि भगवान से उनका सीधा संपर्क है। यह खुद प्रधानमंत्री ने कहा है। नोटबंदी पर तंज कसते हुए राहुल ने कहा, उस समय 8 बजे भगवान का सीधा संदेश आया। मोदी जी नोटबंदी कर दीजिए। उन्होंने खटाक से कर दिया। राहुल ने कहा कि गुजरात के कपड़ा व्यापारियों से उनकी बात हुई है। उन्होंने कहा कि अरबपतियों की मदद के लिए नोटबंदी और जीएसटी लाई गई। पीएम मोदी अरबपतियों के लिए काम करते हैं। हम आपको गुजरात से हटाएंगे लिखकर ले लीजिए। गुजरात में इंडिया गठबंधन एनडीए को हराने जा रहा है। राहुल अब फ्रंटफुट पर ही खेलेंगे। जिस तरह से राहुल गांधी पेश आए। ये संकेत है कि अब विपक्ष लोकसभा में चुप नहीं बैठेगा। जिस तरह से राहुल ने भाजपा पर हमला किया, प्रधानमंत्री इतना भड़क गए जैसा पहले कभी नहीं हुआ। वो दो बार खड़े हुए। अमित शाह तीन बार खड़े हुए। अंतिम बार तो उन्होंने गुस्से के लहजे में स्पीकर ओम बिरला से अनुरोध किया कि आप मानकों को नजरअंदाज करके छूट दे रहे हैं। हमारा संरक्षण करें। राजनाथ सिंह और शिवराज सिंह चौहान उठे, तमाम सांसद उठे और हंगामा किया पर राहुल बिना आपा खोए धारावाहक बोलते चले गए। राहुल गांधी के भाषण के कुछ हिस्सों को लोकसभा में रिकार्ड से बेशक हटा दिया गया हो पर लाखों लोगों ने लाइव प्रोग्राम देख लिया। जो फायदा, नुकसान होना था वह हो गया। ये विपक्ष के लिए अच्छा संकेत है कि उन्होंने राहुल गांधी को बतौर नेता प्रतिपक्ष चुना, जिसको पहले भाजपा पप्पू, पप्पू कह कर छींटाकशी करती थी। वो अब फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रहे हैं और राहुल के भाषण ने सत्तापक्ष को दिन में तारे दिखा दिए।

-अनिल नरेन्द्र

Thursday, 4 July 2024

बिहार में धड़ाधड़ गिरते पुल

बिहार में धड़ाधड़ पुल गिर रहे हैं। पुलों के ढहने का सिलसिला थम ही नहीं रहा है। बिहार में पहली बरसात में ही फिर एक पुल धड़ाम से गिर गया। ताजा मामला किशनगंज जिले में बूंद नदी पर बने पुल का सामने आया है। यह पुल 30 मीटर लंबा और 4 मीटर चौड़ा है। नदी पर बने पुल का एक पाया पानी के तेज दबाव के कारण रविवार को लगभग दो फीट तक धंस गया। यह पुल किशनगंज जिले के पिपरीथान को राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) 327 ई होते हुए बंगाल से जोड़ता है। ग्रामीण कार्य विभाग प्रमंडल-2 के सहायक अभियंता आलोक भूषण ने जांच के बाद बताया कि पुल का निर्माण वित्तीय वर्ष 2009-2010 में करीब 35 लाख रुपए की लागत से कराया गया था। बिहार में 12 दिनों में यह छठा पुल धंसा है। बिहार में बीते 18 जून को सबसे पहले अररिया जिले में सिकटी प्रखंड में एक पुल गिरा था। यह पुल अररिया के ही दो ब्लॉक सिकटी और कुर्साकांटा को जोड़ने के लिए बना था। बारिश के दबाव से बूंद नदी का जलस्तर बढ़ गया था और पुल इसका दबाव झेल नहीं पाया और उद्घाटन से पहले ही गिर गया। यह पुल अगर बन जाए तो लाखों की आबादी को फायदा होगा। बिहार में इसी साल मार्च में सुपौल में कोसी नदी के ऊपर बन रहे पुल का एक हिस्सा गिरा तथा इसमें एक मजदूर की मौत और 10 अन्य घायल हो गए थे। इसके बाद 22 जून को सिवान में गंडक नहर पर बनी पुलिया ध्वस्त हो गई। महाराजगंज और दरौंदा को जोड़ने वाली ये पुलिया 34 साल पुरानी थी। यह 20 फुट लंबी थी। गंडक नहर में पानी आया तो भरभराकर गिर गई। अच्छा यही था कि पुलिया से उस वक्त कोई गुजर नहीं रहा था। 22 जून की ही रात को पूर्वी चंपारण के घोड़ासहन प्रखंड के अमवा में निर्माणाधीन पुल गिर गया। 1.60 करोड़ की लागत से बन रहा ये पुल अमवा से चैनपुर स्टेशन जाने वाली सड़क पर बन रहा था। आलम यह था कि शाम को इस पुल के ऊपरी भाग की ढलाई हुई और रात होते-होते ये भरभराकर गिर पड़ा। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत ग्रामीण कार्य विभाग ने इस पुल का टेंडर एक निजी कंस्ट्रक्शन कंपनी को दिया था। स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि बहुत खराब निर्माण हो रहा था पुल में। स्थानीय लोग लगातार इसकी शिकायत कर रहे थे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। आखिर में पुल गिर गया। थोड़े समय के बाद 26 जून को किशनगंज जिले में मरिया नदी पर बना 13 साल पुराना पुल धंसने के बाद 28 जून को मधुबनी के झंझारपुर मंडल के मधेपुर प्रखंड में भूतही बलान नदी में निर्माणाधीन पुल का गार्डर गिर गया। 2.98 करोड़ की लागत से बन रहा ये पुल मधेपुर प्रखंड के भेजा कोसी बांध से महपतिया जाने वाली सड़क को जोड़ेगा। दिलचस्प है कि इस मामले में पुल के निर्माण का काम ही मानसून के वक्त शुरू हुआ। पुल नहीं होने से बिहार के कई इलाकों में बांस के बनाए पुल से लोग नदी पार करते हैं। एक साथ 6 पुल के क्षतिग्रस्त होने की वजह क्या है? एक रिटायर्ड अधिकारी ने बताया कि बीते 10-15 सालों में बिहार में बहुत पुल बने हैं लेकिन उनके रखरखाव में खामियां रही हैं और जो मसाला लगाया गया वह भी मानकों पर खरा नहीं उतरता। हर विभाग में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। पुल गिरेंगे नहीं तो और क्या होगा? -अनिल नरेन्द्र

क्या अवधेश डिप्टी स्पीकर बन सकते हैं

पहले लोकसभा स्पीकर को लेकर सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष में घमासान देखने को मिला। अब डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर एक और घमासान देखने को मिल सकता है। अब डिप्टी स्पीकर की पोस्ट के लिए इंडिया गठबंधन ने अपनी दावेदारी तेज करने का फैसला किया है। यह सुझाव तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी की ओर से आया है कि इंडिया गठबंधन का डिप्टी स्पीकर के पद के लिए फैजाबाद से समाजवादी पार्टी के सांसद व अयोध्या के हीरो अवधेश प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया जाए। बता दें कि अभी तक एनडीए ने डिप्टी स्पीकार के नाम की घोषणा नहीं की है। पिछली लोकसभा में कोई डिप्टी स्पीकर नहीं बनाया गया था। हालांकि परम्परा यही रही है कि स्पीकर अगर सत्तापक्ष का होता है तो डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को जाता है। पर सत्तापक्ष ने अभी तक डिप्टी स्पीकर पद के लिए अपना कोई निर्णय सार्वजनिक नहीं किया है। हो सकता है कि मोदी जी इस पद को भी अपने पास रखने या फिर अपने एनडीए के किसी सहयोगी को देना पसंद करें। इस बीच रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जो आजकल मोदी जी के मुख्य वक्ता बने हुए हैं ने ममता बनर्जी से डिप्टी स्पीकर को लेकर बातचीत की। पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि मोदी जी हर जगह राजनाथ सिंह को आगे कर रहे हैं चाहे वह स्पीकर के पद की बात हो, एनडीए की बैठक हो। अमित शाह आजकल पीछे धकेल दिए गए हैं और सारी बातचीत राजनाथ सिंह ही कर रहे हैं। बहरहाल 78 वर्षीय अवधेश प्रसाद दलित समुदाय से आते हैं और फैजाबाद जैसी महत्वपूर्ण सीट जिसमें अयोध्या भी आता है जीते हैं। पहले खबरें थीं कि कांग्रेस केरल से आठ बार के सांसद के. सुरेश को इस पद के लिए उम्मीदवार बनाना चाहते हैं। टीएमसी, एसपी और कांग्रेस में बन रही रणनीति सूत्रों के मुताबिक तृणमूल महासचिव अभिषेक बनर्जी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी पहले ही इस पर चर्चा कर चुके हैं। अन्य सहयोगी दलों से भी इस पर बात की जा सकती है। प्रतिपक्ष को लगता है कि फैजाबाद सांसद अवधेश प्रसाद एक अलग तरह के उम्मीदवार होंगे और उनकी उम्मीदवारी एक मजबूत संदेश देगी। प्रतिपक्ष के एक नेता ने कहा अवधेश प्रसाद की जीत भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे की हार का प्रतीक है, एक दलित नेता के रूप में एक सामान्य (जनरल कैटेगरी) सीट से उनकी जीत भी भारतीय इतिहास (राजनीतिक) में एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण था। सूत्रों ने कहा कि अगर सरकार संसद का पहला सत्र समाप्त होने से पहले उपसभापति की नियुक्ति के लिए कोई कदम नहीं उठाती है तो प्रतिपक्ष इस मुद्दे पर लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखेगा। अवधेश पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के काफी करीबियों में रहे हैं। 1977 में पहली बार अयोध्या जनपद की सोहावल विधानसभा से चुने गए गए थे। इसके बाद अवधेश प्रसाद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1985, 1989, 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 लगातार विधानसभा चुनाव जीतते रहे, अब देखना यह है कि मोदी जी अवधेश को स्वीकार करते हैं या नहीं? क्या वह अपना उम्मीदवार खड़ा करेंगे? एक दलित नेता को वह जो फैजाबाद (अयोध्या) से जीता हो उसका विरोध करना इतना आसान नहीं होगा। अगर करते हैं तो इसका गलत संदेश जनता में जाएगा।

Tuesday, 2 July 2024

सवाल तीन नए आपराधिक कानूनों का

एक जुलाई से लागू हुए तीन अहम कानून भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023 पर कुछ विपक्षी नेताओं को ऐतराज है और उन्होंने इन्हें टालने की बात कही है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बाद अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर हड़बड़ी में पारित तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन को टालने का आग्रह किया है। ये तीनों कानून एक जुलाई से लागू हो गए हैं। वहीं कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी कहा कि तीनों विधेयकों को बिना किसी सूचना करे चर्चा के संसद में जल्दबाजी में पारित कर दिया गया। नई लोकसभा में उन्हें लागू होने से पहले उनकी जांच की अनुमति दी जानी चाहिए। ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र में तीनों कानूनों के आसन्न कार्यान्वयन को लेकर गंभीर चिंता जताई है, ममता ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम से भी मुलाकात की जो विधेयकों की जांच करने वाली संसद की स्थायी समिति का हिस्सा थे, और उनसे इस मुद्दे पर चर्चा की। टीएमसी सांसद डेरेकओ ब्रायन, प्रमुख नेता एनआर एंगलो और चिदम्बरम ने तीनों विधेययकों पर अपनी रिपोर्ट में असहमति जताई थी। ममता ने कहा कि ये तीनों विधेयक लोकसभा में ऐसे समय में पारित हुए जब 146 सांसद सदन से निलंबित थे। ममता ने लिखा आपकी पिछली सरकार ने इन तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को एकतरफा और बिना बहस के पारित कर दिया था। उस दिन लोकसभा के लगभग 100 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था और दोनों सदनों के कुल 146 सांसदों को संसद से बाहर निकाल दिया गया था। उन्होंने कहा लोकतंत्र के उस काले दौर में विधेयकों को तानाशाहीपूर्ण तरीके से पारित किया गया। ममता ने कहा मैं अब आपके कार्यालय से आग्रह करती हूं कि कम से कम कार्यान्वयन की तारीख आगे बढ़ाने पर विचार करेंगे। इसके दो कारण हैं ः नैतिक और व्यावहारिक। उन्होंने कहा कि इन महत्वपूर्ण विधायी बदलावों पर नए सिरे से विचार-विमर्श होना चाहिए और जांच के लिए नवनिर्वाचित संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए। मनीष तिवारी ने कहा कि इन तीनों विधेयकों के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। उधर इन तीन कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने इसके अमल पर रोक की मांग की है। उन्होंने अनुरोध किया कि एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर कानूनों की व्यावहारिकता परखी जाए। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकार्ड सिद्धार्थ की ओर से अर्जी और अंजलि पटेल और छाया मिश्रा की अर्जी में कहा गया है कि नए कानूनों का टाइटल ठीक नहीं है। नए कानून का जो नाम रखा गया है वह स्पष्ट नहीं है साथ ही कानून की धाराओं में विरोधाभास है, याचिका में कहा गया है कि संगठित अपराध की परिभाषा में कहा गया है कि आप संगठित गिरोह की हरकत से नागरिकों में यह आमतौर पर फीलिंग हो कि उन्हें असुरक्षा हो रही है तो यह अपराध बनेगा। असुरक्षा की भावना वाली बात स्पष्टता के साथ परिभाषित नहीं है। साथ ही कहा गया है कि भारतीय न्याय संहिता में गैंग को परिभाषित नहीं किया गया और इन कानूनों से पुलिस के हाथों में बहुत ताकत आ जाएगी जिसका जनता के खिलाफ दुरुपयोग हो सकता है। देखें, सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल देता है या नहीं? -अनिल नरेन्द्र

अयोध्या में पहली बारिश में भ्रष्टाचार के गड्ढे

अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह बहुत जोर-शोर से किया गया था। इसे बनाने में करोड़ों रुपए का खर्च आया था। और हालत अयोध्या की यह है कि पहली बारिश में कई गड़बड़ियां और भ्रष्टाचार की पोल खुल गई। अभी मानसून आया भी नहीं अभी से अयोध्या का यह हाल हो गया है। अयोध्या के नया घाट से सहादतगंज तक बने 12.94 किलोमीटर लंबे राम पथ पर पहली बारिश के चलते 13 गड्ढे हो गए। राम पथ से ही जन्मभूमि पथ और धर्म पथ भी जुड़ा है। उसके अलावा रेलवे स्टेशन सहित कई जगहों पर जलभराव भी हो गया है। जानकारी के मुताबिक राम पथ के निर्माण पर 844 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। चौंकाने वाली बात यह है कि 22 जून 2024 की सामान्य बारिश के बाद ही राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येन्द्र दास ने मंदिर के गर्भगृह की छत से पानी टपकने की बात कही। हालांकि राम मंदिर निर्माण कार्य की देखरेख करने वाली ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने सोशल मीडिया पर राम मंदिर गर्भगृह में पानी के लीक वाले दावे को गलत ठहराया है। उन्होंने लिखा, गर्भगृह में जहां भगवान राम लला विराजमान हैं, वहां एक भी बूंद पानी छत से नहीं टपका है और न ही कहीं से पानी गर्भगृह में प्रवेश हुआ है। लेकिन बात अगर कई जगह नई बनी सड़क धंसने की हो तो अयोध्या जिले का स्थानीय प्रशासन भी मानता है कि सड़कों पर गड्ढे हो गए हैं जो नहीं होने चाहिए थे। प्रदेश की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए शहर के महापौर महंत गिरीशपंत त्रिपाठी ने माना कि इस सड़क में इंजीनियरिंग की कुछ समस्याएं थीं। इसलिए कुछ गड्ढे आए लेकिन मुझे लगता है कि वह भी नहीं आने चाहिए थे। निर्माण में कुछ तकनीकी कमियां रह गई होंगी जिसके कारण कुछ गड्ढे हो गए हैं। हो सकता है कि जल्दी बनाने के चक्कर में तकनीकी कमी रह गई हो उसके कारण शुरुआती बारिश में वो गड्ढे दिखाई पड़ रहे हैं। हम उन कमियों को दूर कर लेंगे। रामजन्म भूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र देव ने सोमवार को पुष्टि की कि शनिवार आधी रात हुई पहली बारिश में गर्भगृह में मंदिर की छत से तेजी से पानी टपक रहा था। उन्हेंने यहां तक कहा कि अगर दो दिन में व्यवस्था नहीं सुधरी तो दर्शन-पूजन बंद करना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि सुबह जब पुजारी भगवान की पूजा करने वहां गए तो देख कि फर्श पर पानी भरा हुआ है। जिसे काफी मशक्कत के बाद मंदिर परिसर से निकाला गया। मंदिर में पानी निकलाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। सबसे ज्यादा संकट अयोध्या नगर में देखने को मिला। जहां जलवान पुरा से लेकर हनुमान गढ़ी, भक्तिपथ और टेढ़ी बाजार से लेकर अंदरूनी इलाकों में भी जलभराव की स्थिति बनी हुई है, उद्घाटन से पहले हजारों करोड़ रुपए खर्च करके अयोध्या के विकास के दावे किए गए थे, लेकिन जलभराव और धंसती सड़कों ने सभी पर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि राममंदिर उद्घाटन के लिए जल्दबाजी में विकास कार्य पूरा कराने की वजह से सड़कों का निर्माण मंदिर के निर्माण मानकों के आधार पर नहीं हुआ है। शहर के एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना था कि फैजाबाद शहर अवध की राजधानी थी लेकिन दो घंटे की बारिश में अयोध्या का हाल बेहाल हो गया।