Tuesday 30 July 2024

खनिजों पर कर लगाने का विधायकी अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने खनिज अधिकारों से जुड़े 35 सालों के विवाद को खत्म करते हुए ऐतिहासिक फैसले में कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कोई कर नहीं है। संविधान के तहत राज्यों के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायकी अधिकार है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 8ः1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया। इससे झारखंड और ओडिशा जैसे खनिज समृद्ध राज्यों को राहत मिलेगी। इन राज्यों ने केंद्र की ओर से खदानों और खनिजों पर अब तक लगाए गए हजारों करोड़ रुपए के करों की वसूली पर कोर्ट से फैसला करने का आग्रह किया था। केंद्रीय संविधान पीठ ने माना कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार है और खान व खनिज (विकास व विनियमन) अधिनियम, 1957 राज्यों को ऐसी शक्ति को सीमित नहीं करता। सीजेआई के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने बहुमत का फैसला दिया वहीं, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि रॉयल्टी कर या वसूली की प्रवृत्ति वाली होती है और केन्द्र के पास इसे लगाने का अधिकार है। केन्द्र और राज्यों के बीच करों के बंटवारे को लेकर कई बार विवाद हो चुका है। केन्द्राrय कर प्रणाली जीएसटी लागू होने के बाद भी कुछ चीजों पर करों और उपकरों के बंटवारे को लेकर सवाल उठते रहे हैं। खनिजों के स्वामित्व का प्रश्न भी उनमें से एक है। केंद्र सरकार ने खनिजों पर कर और उपकर लगाना शुरू किया तो कुछ कंपनियों और राज्य सरकारों ने इन पर सवाल उठाए। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने अब स्पष्ट कर दिया है कि खनिजों पर राज्य सरकारों का हक होता है। वे उनका पट्टा देने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके लिए किए गए करार के एवज में वे जो शुल्क प्राप्त करती है, उसे कर नहीं कहा जा सकता। वह रॉयल्टी की श्रेणी में आती है। रॉयल्टी को कर नहीं कहा जा सकता। इस फैसले से खासकर ओडिशा और झारखंड को बड़ी राहत मिली है। दरअसल यह मामला इसलिए उलझा हुआ था कि संविधान में केंद्र को खदानों के आवंटन से संबंधित सीमाएं तय करने का अधिकार केन्द्र सरकार को दिया गया है। मगर जमीन, भवन आदि पर शुल्क लगाने का अधिकार राज्य सरकारों को है। इसलिए केन्द्र सरकार खनिजों पर कर लगाने लगी थी। अब सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि खनिज राज्य सरकार की संपदा है। इसलिए वह उसके पट्टे की कीमत तय कर सकती है। अगर खनिजों पर भी केन्द्र सरकार कर वसूलने लगेगी तो राज्यों को अपनी विकास योजनाओं के लिए धन जुटाना मुश्किल हो जाएगा। राज्य सरकारें सभी व्ययों तथा कर निर्धारण की जिम्मेदारी निभाती हैं। राज्यों और केन्द्र के दरम्यान कई बार खींचतान की स्थिति उत्पन्न होती है। खासकर जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार होती है। उन्हें केन्द्र की नीतियों या आर्थिक मदद को लेकर सहयोगपूर्ण रवैये न रखने जैसी शिकायतें आम हैं। ओडिशा और झारखंड प्रमुख खनिज उत्पादक राज्य हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही। इसलिए अदालत का यह फैसला उनके विकास में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

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