Tuesday, 9 July 2024

भाजपा में हार को लेकर सिर फुटव्वल


भाजपा के अंदर लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी के अंदर सिर फुटव्वल व जवाबदेही को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है। जवाबदेही को लेकर ताजा केस राजस्थान के कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे का है। उन्होंने इस्तीफा देते हुए कहा कि मैंने वचन दिया था कि अगर पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं जीती तो मैं मंत्रिपद से इस्तीफा दे दूंगा। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले ऐलान कर दिया था कि दौसा सीट पर भाजपा उम्मीदवार कन्हैया लाल मीणा की हार हुई तो वे मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। अपने उसी वचन को निभाया है। पर असल वजह भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी मानी जा रही है। पिछले साल दिसम्बर में भाजपा आलाकमान ने एक नए चेहरे भजन लाल शर्मा को सूबे में सूबे की सत्ता सौंपी थी। इसके बाद दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे का असंतुष्ट होना स्वाभाविक था। लोकसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा को अपनी सत्ता होने के बावजूद झटका लगा है। पच्चीस सीटों से घटकर पार्टी चौदह सीटों पर सिमट गई। रही किरोड़ी लाल मीणा की बात तो वे लगातार असंतुष्ट दिख रहे थे। भजन लाल शर्मा मंत्रिमंडल में उनके कद और अनुभव के मुताबिक विभाग नहीं मिला। छह बार विधानसभा, दो बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा के सदस्य रहे हैं किरोड़ी लाल मीणा। उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेने की बात से भाजपा के अंदर विवाद को तेज कर दिया है। उत्तर प्रदेश में बहुत दिनों से हार की जिम्मेदारी को लेकर भाजपा के अंदर घमासान मच हुआ है। केन्द्राrय नेतृत्व चाहता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में हार की जिम्मेदारी लें। लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विरोधियों के बजाए अपनों के ही निशाने पर आ गए हैं। हारे हुए भाजपा उम्मीदवार कभी तो अपने दल के नेताओं को हार का कारण बता रहे हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का कारण जहां केंद्र योगी जी पर थोपना चाहता है वहीं योगी के समर्थक कह रहे हैं कि न केवल टिकटे केंद्रीय नेताओं ने बांटी बल्कि सारा चुनाव अभियान गृहमंत्री अमित शाह ने चलाया। इसलिए अगर उत्तर प्रदेश में अपेक्षा के हिसाब से परिणाम नहीं आए तो इसके लिए योगी जिम्मेदार नहीं अमित शाह जिम्मेदार हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि योगी को केंद्रीय नेतृत्व पद से हटाना चाहता है। पर अभी तक योगी जी टिके हुए हैं। जो विधायक हार गए वह अपनी ही पार्टी के नेताओं पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने उन्हें हराया। प्रत्याशियों, क्षेत्रीय पार्टी विधायकों और संगठन के स्थानीय पदाधिकारियों के बीच शीत युद्ध की बात भी सामने आई है। सभी एक-दूसरे के सिर पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि स्थानीय संगठन और पदाधिकारियों ने जहां सांसद-विधायक की आपसी जंग और जनता में सांसद विरोधी लहर को प्रमुख कारण बता रहे हैं, वहीं संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर जमीनी कार्यकर्ताओं की शिथिलता जैसे कारण भी सामने आए हैं। हार के लिए अधिकारियों के सिर पर भी ठीकरा फोड़ा जा रहा है और कहा जा रहा है कि अधिकारियों ने जानबूझकर गड़बड़ी की, असहयोग किया और विपक्ष का साथ दिया। तमाम क्षेत्रों में तो लोगों ने कहा कि अधिकारियों की मनमानी और स्थानीय पदाधिकारियों की अपेक्षा के चलते जनता के बीच उनका प्रभाव कम हुआ, इस वजह से भी जनता ने उसे नकार दिया। किरोड़ी लाल मीणा ने तो हार की जिम्मेदारी ले ली पर बाकी राज्यों में हार का जिम्मेदार कौन है।

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