Thursday 25 July 2024
जम्मू में क्यों हो रहे सफल आतंकी?
करीब 20 सालों तक शांत रहे जम्मू में आखिर ऐसा क्या हो गया है कि करीब तीन साल से वहां ताबड़तोड़ आतंकी हमले हो रहे हैं? घात लगाकर सिर्फ सुरक्षा बलों को ही नहीं बल्कि आम नागfिरकों को भी निशाने पर लिया जा रहा है। 84 दिनों में 10 से ज्यादा आतंकी हमलों में 12 जवानों की शहादत हो चुकी हैं। आए दिन आतंकी हमले हो रहे हैं और हमारे जवान शहीद होते जा रहे हैं। ढाई महीने में सुरक्षा बलों के 13 सैनिकों से ज्यादा शहीद हो चुके हैं। जबकि गिनती के तीन से पांच-छह आतंकी मारे जा चुके हैं। जम्मू संभाग में आतंकवाद के खात्मे को कश्मीर मॉडल अपनाने की जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की घोषणा कई सवाल खड़े करने लगी है। इसमें यक्ष प्रश्न यह सामने आ रहा है कि आखिर जम्मू संभाग में आतंकवाद को फिर से पनपने ही क्यों दिया गया? क्यों जम्मू की सुरक्षा को दांव पर लगाते हुए सैनिकों को वहां से हटाया गया? और सबसे बड़ा सवाल आखिर आतंकवाद को कुचलने का कश्मीर मॉडल है क्या? जम्मू संभाग के लगभग प्रत्येक जिले को तीन सालों से निशाना बना रहे आतंकियों से निपटने का अब आतंकवाद से जड़ से उखाड़ने की जो तैयारियां की गई हैं उनमें सबसे प्रमुख कश्मीर मॉडल है। यह सबसे बड़ा सीक्रेट है जिसके प्रति किसी को कोई जानकारी नहीं है कि आखिर यह मॉडल क्या है? यह शब्द उपराज्यपाल ने पहली बार इस्तेमाल करके सबको चौंका दिया है। हालांकि केन्द्र सरकार के निर्देशों पर सभी सुरक्षाबलों ने संयुक्त राय से अब जम्मू संभाग में आतंकवादियों पर प्रहार करने को हजारों जवानों खासकर स्पेशल फोर्स के गुरिल्ला वार में निपुण सैनिकों को तैनात करना आरंभ कर दिया है, लेकिन इन जवानों की तैनाती उस संख्या को पूरा नहीं कर पाएंगी जो जून 2021 के उपरांत जम्मू संभाग से हटाकर चीन से निपटने को लद्दाख सेक्टर में भेज दिया गया था। रक्षा सूत्रों ने इस बात को माना है कि पाकिस्तान ने इसी परिस्थिति का लाभ उठाया है और उसने अपने यहां ताजा प्रशिक्षित आतंकियों का जम्मू संभाग को निशाना बनाने के निर्देश देते हुए उन्हें भारी संख्या में इस ओर धकेला है। स्थिति तो यह है कि पिछले तीन सालों में कितने आतंकी जम्मू संभाग में घुसे हैं वह संख्या 300 को भी पार कर जाती है। आतंकी जिस तरह से वारदात कर भागने में सफल हो रहे हैं। उससे ह्यूमन इंटेलिजेंस पर सवाल खड़े हो रहे हैं, विदेशी आतंकी इलाके में है और वारदात कर रहे हैं लेकिन उनकी जानकारी क्यों नहीं मिल पा रही है? लेफ्टिनेंट जनरल कुलकर्णी कहते हैं कि मैंने खुद डोडा एरिया में कमांड किया है। किसी भी आपरेशन के लिए लोकल सोर्स बेहद अहम होता है। लोकल ही हमारे आंख-कान होते हैं। वे बताते हैं कि कहीं कोई संदिग्ध व्यक्ति दिख रहा है या कोई संदिग्ध हरकत कर रहा है, यह जानकारी लोकल से ही मिलती है। वह कहते हैं कि ह्यूमन इंटेलिजेंस पर ध्यान देने की जरूरत है। वह यह भी सवाल उठाते है कि ह्यूमन इंटेलिजेंस बेस कैसे खत्म हो गया जबकि इतने सद्भावना के कार्यक्रम चलाते हैं। वह कहते हैं कि ह्यूमन इंटेलिजेंस के लिए लगातार प्रयास किए जाने चाहिए। जानकारी के लिए तीन सालों में आतंकी जम्मू संभाग में 52 सुरक्षाकर्मियों की जान ले चुके हैं और यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
-अनिल नरेन्द्र
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