Tuesday, 2 July 2024
सवाल तीन नए आपराधिक कानूनों का
एक जुलाई से लागू हुए तीन अहम कानून भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023 पर कुछ विपक्षी नेताओं को ऐतराज है और उन्होंने इन्हें टालने की बात कही है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बाद अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर हड़बड़ी में पारित तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन को टालने का आग्रह किया है। ये तीनों कानून एक जुलाई से लागू हो गए हैं। वहीं कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी कहा कि तीनों विधेयकों को बिना किसी सूचना करे चर्चा के संसद में जल्दबाजी में पारित कर दिया गया। नई लोकसभा में उन्हें लागू होने से पहले उनकी जांच की अनुमति दी जानी चाहिए। ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र में तीनों कानूनों के आसन्न कार्यान्वयन को लेकर गंभीर चिंता जताई है, ममता ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम से भी मुलाकात की जो विधेयकों की जांच करने वाली संसद की स्थायी समिति का हिस्सा थे, और उनसे इस मुद्दे पर चर्चा की। टीएमसी सांसद डेरेकओ ब्रायन, प्रमुख नेता एनआर एंगलो और चिदम्बरम ने तीनों विधेययकों पर अपनी रिपोर्ट में असहमति जताई थी। ममता ने कहा कि ये तीनों विधेयक लोकसभा में ऐसे समय में पारित हुए जब 146 सांसद सदन से निलंबित थे। ममता ने लिखा आपकी पिछली सरकार ने इन तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को एकतरफा और बिना बहस के पारित कर दिया था। उस दिन लोकसभा के लगभग 100 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था और दोनों सदनों के कुल 146 सांसदों को संसद से बाहर निकाल दिया गया था। उन्होंने कहा लोकतंत्र के उस काले दौर में विधेयकों को तानाशाहीपूर्ण तरीके से पारित किया गया। ममता ने कहा मैं अब आपके कार्यालय से आग्रह करती हूं कि कम से कम कार्यान्वयन की तारीख आगे बढ़ाने पर विचार करेंगे। इसके दो कारण हैं ः नैतिक और व्यावहारिक। उन्होंने कहा कि इन महत्वपूर्ण विधायी बदलावों पर नए सिरे से विचार-विमर्श होना चाहिए और जांच के लिए नवनिर्वाचित संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए। मनीष तिवारी ने कहा कि इन तीनों विधेयकों के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। उधर इन तीन कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने इसके अमल पर रोक की मांग की है। उन्होंने अनुरोध किया कि एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर कानूनों की व्यावहारिकता परखी जाए। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकार्ड सिद्धार्थ की ओर से अर्जी और अंजलि पटेल और छाया मिश्रा की अर्जी में कहा गया है कि नए कानूनों का टाइटल ठीक नहीं है। नए कानून का जो नाम रखा गया है वह स्पष्ट नहीं है साथ ही कानून की धाराओं में विरोधाभास है, याचिका में कहा गया है कि संगठित अपराध की परिभाषा में कहा गया है कि आप संगठित गिरोह की हरकत से नागरिकों में यह आमतौर पर फीलिंग हो कि उन्हें असुरक्षा हो रही है तो यह अपराध बनेगा। असुरक्षा की भावना वाली बात स्पष्टता के साथ परिभाषित नहीं है। साथ ही कहा गया है कि भारतीय न्याय संहिता में गैंग को परिभाषित नहीं किया गया और इन कानूनों से पुलिस के हाथों में बहुत ताकत आ जाएगी जिसका जनता के खिलाफ दुरुपयोग हो सकता है। देखें, सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल देता है या नहीं?
-अनिल नरेन्द्र
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