कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं है जितनी मनमोहन सिंह सरकार बताने का प्रयास करती रहती है। मंदी इस हद तक आई है कि दुकानदार परेशान हैं। माल बिक ही नहीं रहा। लोगों के पास या तो फालतू पैसा नहीं है या फिर वह उसे खर्च नहीं करना चाहते और बचाकर रखना चाहते हैं। औद्योगिक प्रोडक्शन कम होती जा रही है, सरकारी कामकाज ठप-सा पड़ा है, बाहर से पैसे आना कम हो गया। कुल मिलाकर यह कहा जाए कि मनमोहन सिंह सरकार की आर्थिक हालत दिनोंदिन पतली होती जा रही है, कंगाली की कगार पर पहुंच गई है। खर्च चलाने के लिए बांड मार्केट से 40 हजार करोड़ रुपये कर्ज जुटा रही है। इसके अलावा 65 हजार करोड़ रुपये और जुटाने की योजना बनाई है। मनमोहन सिंह ने अपना खर्चा चलाने के लिए सितम्बर 2011 में 52 हजार करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन उसकी आर्थिक हालत इतनी खराब हो गई है कि खर्चा जुटाने के लिए अब 5 लाख करोड़ रुपये जुटाने की कोशिश कर रही है। इस समय देश के ऋण पर कर्ज बढ़ाए जाने से आगे लोन उठाने में कमी आ गई है। औद्योगिक लाभ में भारी कमी आने के चलते औद्योगिक उत्पादन में मंदी आ गई है। विदेशी पूंजी निवेश भी नहीं आ रही है। मनमोहन सरकार द्वारा डालर के मुकाबले रुपये की लगातार अवमूल्यन करने के बावजूद विदेशी निवेश नहीं आ रहा है। देश की अर्थव्यवस्था महंगाई व मंदी की गिरफ्त में आ चुकी है। उधर बेरोजगारी कम हेने की जगह उल्टी बढ़ती जा रही है। कागजी रोजगार दिखाने, बताने के लिए मनरेगा, सर्वशिक्षा अभियान आदि योजनाओं में विश्व बैंक से ऋण लेकर झोंका जा रहा है जो ज्यादातर घूसखोरी, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े जा रहा है, उसमें जा रहा है। अब भोजन का अधिकार योजना के चलते और भी ऋण बढ़ने वाला है। ऋण लेकर विदेशों से अनाज खरीदा जाएगा जबकि अपना अनाज सड़ रहा है। अभी दाल खरीद में शरद पवार के मंत्रालय ने 1000 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला किया है, जो कैग की रिपोर्ट में सामने आया है। इससे पहले भी शरद पवार के मंत्रालय ने आस्ट्रेलिया आदि देशों से गेहूं खरीद में घोटाला किया था। शरद पवार पर इस घोटाले का आरोप लगा लेकिन कुछ नहीं हुआ। गठबंधन धर्म की दुहाई देकर सारे घोटालों को दबा दिया जाता है, तो इस तरह जनता को राहत देने, उनका जीवन स्तर ऊंचा उठाने के नाम पर मनमोहन सरकार हर माह कुछ न कुछ नई घोषणाएं कर रही है। मनमोहन सिंह जो अपने आपको अर्थशास्त्रा कहते हैं, ने दरअसल देश का खजाना खाली कर दिया है और अब कर्ज चढ़ता जा रहा है। अगले साल आईएमएफ कर्जे की भारी किश्त लौटानी है। हमें नहीं लगता कि भारत समय से उसे लौटा सकेगा। कहीं चन्द्रशेखर के समय सोना गिरवी रखकर यह किश्त न अदा करने की नौबत आ जाए? पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा है कि मनमोहन सरकार देश को लगभग दिवालिया करके जाएगी। कुछ सामाजिक संगठनों के लोगों का भी कहना है कि मनमोहन सरकार देश की आर्थिक हालत ऐसी करके जाएगी कि इसके बाद जो सरकार आएगी उसे अपना खर्च चलाने के लिए फिर सोना गिरवी रखना पड़ सकता है।
Anil Narendra, Daily Pratap, Inflation, Manmohan Singh, Vir Arjun
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