कुछ माह पहले नासिक की एक सभा में अन्ना हजारे ने कहा था कि वह गांधी जी के विचारों में भरोसा करते हैं, लेकिन लोगों को गांधी के रास्ते में चलकर न समझाया जा सके तो शिवाजी का मार्ग अपनाने में संकोच नहीं करना चाहिए। जन लोकपाल मुद्दे पर सरकार से बार-बार मिले धोखे के बाद अब अन्ना खुद भी शिवाजी के रास्ते पर चलने की तैयारी करते दिख रहे हैं। तभी तो उन्होंने हिंसा का समर्थन करते हुए कहा है कि जब भ्रष्टाचार बर्दाश्त करने में आम आदमी की क्षमता जवाब दे जाती है तो उसके पास थप्पड़ मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। अन्ना ने मंगलवार रात अपने गांव रालेगण सिद्धि में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बनी फिल्म `गली-गली चोर है' के बाद यह विवादित टिप्पणी की। यह पहली बार नहीं जब अन्ना ने थप्पड़ पर टिप्पणी की हो। कुछ सप्ताह पहले दिल्ली में कृषि मंत्री शरद पवार को एक व्यक्ति द्वारा थप्पड़ मारे जाने की सूचना जब अन्ना को दी गई थी तो उन्होंने विनोदभाव से पूछा था, `सिर्प एक ही थप्पड़।' अन्ना के इस बयान की काफी आलोचना हुई थी और उनके विरोधियों द्वारा उन्हें छद्म गांधीवाद और हिंसा का समर्थक करार दिया गया था। अन्ना के ताजा बयान की राजनीतिक दलों में प्रतिक्रिया होनी लाजिमी थी। कांग्रेस महासचिव की टिप्पणी थी ः यह हिंसक बयान संघ की संगत का नतीजा है। उनके इस बयान के बाद मेरे मन में उनके प्रति सम्मान घटा है। मैं उन्हें एक गांधीवादी के तौर पर देखता हूं लेकिन वह जिस तरह से हिंसा की बात करते रहे हैं उससे उनका सम्मान कम हुआ है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह कहते हैं कि मैं उनसे सहमत नहीं हूं। एक स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में मर्यादाओं का अतिक्रमण करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन का समर्थन करता हूं लेकिन आंदोलन में मर्यादाओं का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। समाजवादी पार्टी के महासचिव आजम खान का कहना था कि अन्ना का लोकतंत्र में भरोसा नहीं है। जब कमांडर ही हिंसा की बात करता है तो टीम क्या करेगी? अन्ना अपने रास्ते से भटक गए हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर टीम अन्ना की अत्याधिक सक्रियता और राजनीतिक दलों पर की जा रही टीका-टिप्पणी अब लोगों के गले कम उतर रही है। आमजन के अलावा राजनीतिक दलों को भी टीम अन्ना का रवैया रास नहीं आ रहा है। कुछ माह पहले तक दिल्ली में अपने अनशन के दौरान देशभर में समर्थन मिलने से उत्साहित टीम अन्ना की अत्याधिक सक्रियता और आए दिन की अवांछित टिप्पणियों से टीम अन्ना को लेकर अब ज्यादा गम्भीर नजर नहीं आ रही है। राजनीतिक दलों को बार-बार चिट्ठी लिखने और तमाम सवालों पर कैफियत तलब करने की रणनीति की अब प्रतिक्रिया होने लगी है। यह इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में कहीं ऐसा न हो कि लोकपाल जैसे मुद्दे पर टीम अन्ना अलग-थलग पड़ जाए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पता चल जाएगा कि जनता में अन्ना के आंदोलन का क्या असर हुआ है? अगर ऐसे परिणाम आते हैं जिनसे यह लगता है कि अन्ना की बातों का ज्यादा असर जनता पर नहीं पड़ा तो अन्ना का आगे का रास्ता मुश्किल हो जाएगा और अगर यह लगा कि भ्रष्टाचार एक मुद्दा बना है तो निश्चित तौर पर लोकपाल बनाने का रास्ता आसान हो जाएगा पर हिंसात्मक बात करना अन्ना को शोभा नहीं देती।
Anil Narendra, Anna Hazare, Corruption, Daily Pratap, Vir Arjun
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