Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 30th January 2012
अनिल नरेन्द्र
ईरान बनाम पश्चिम देश लड़ाई खतरनाक दौर में आती जा रही है। यूरोपीय संघ ने अमेरिका के नेतृत्व में ईरान के तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए ब्रुसेल्स में ईरानी नेतृत्व के खिलाफ नया मोर्चा खोल दिया है। अमेरिका एशियाई देशों से भी ईरान से कच्चे तेल का आयात रोकने का आग्रह कर रहा है। इससे ईरान पर चौतरफा दबाव बन रहा है और उसकी मुद्रा कमजोर हो रही है। अमेरिकी मुहिम के जवाब में ईरान के अधिकारियों ने फारस की खाड़ी के मुहाने पर स्थित होर्मुज जलडमरू बन्द करने की धमकी दी है। ईरान की इस धमकी की वजह से विश्वभर के तेल बाजारों में चिन्ता है। हालांकि सैन्य विशेषज्ञ ईरान की जलडमरू बन्द करने की क्षमता पर साल उठा रहे हैं। लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगी पहले ही जलडमरू मध्य बन्द करने पर तीव्र कार्रवाई करने की चेतावनी दे चुके हैं। ब्रिटेन और फ्रांस के जंगी जहाजों के साथ अमेरिका का विमानवाहक पोत यूएएएस अब्राहम लिंकन बिना किसी प्रतिरोध के फारस की खाड़ी में प्रवेश कर गया। दुनिया के कुल तेल उत्पादन का आधा हिस्सा तय समुद्री मार्गों से टैंकरों द्वारा ले जाया जाता है। हालांकि फारस की खाड़ी में होर्मुज जलडमरू मध्य पर यह प्रतिबंध अस्थायी है फिर भी इस प्रतिबंध की वजह से दुनिया में ऊर्जा की लागत में काफी वृद्धि हो सकती है। ईरान ने उससे कच्चा तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को पूरी तरह अनुचित बताते हुए कहा है कि इसे जल्द ही वापस लेना पड़ेगा। ईरान ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका परमाणु कार्यक्रम ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए है और वह तमाम प्रतिबंधों के बावजूद जारी रहेगा। दूसरी ओर यूरोपीय संघ की घोषणा करते हुए फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सर्कोजी, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल और ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने एक संयुक्त बयान में कहा कि हमारा संदेश साफ है। हमारी ईरानी जनता के साथ कोई लड़ाई नहीं है। लेकिन ईरानी नेतृत्व अपने परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण प्रवृत्ति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय विश्वास बहाल करने में नाकाम रहा है। यूरोपीय नेताओं ने कहा कि हम ईरान का परमाणु हथियार हासिल करना स्वीकार नहीं करेंगे। तीनों नेताओं ने ईरान के नेतृत्व से उसकी संवेदनशील परमाणु गतिविधियां तत्काल बन्द करने और अपनी अंतर्राष्ट्रीय बाध्यताओं को पूरी तरह पालन करने का आह्वान किया।
अमेरिका को इस बात की आशंका भी है कि कहीं इस विवाद का फायदा उठाते हुए इजराइल ईरान पर हमला न कर दे। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पेंटागन सूत्रों के हवाले से बताया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, रक्षामंत्री लियोन पेनेटा और अन्य शीर्ष अधिकारियों ने इजराइली नेताओं को कई निजी संदेश भेजे हैं जिसमें हमले के गम्भीर नतीजों की चेतावनी दी गई है। ओबामा ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतात्याहू से फोन पर बात भी की है। कुछ दिन पहले तेहरान में एक कार बम विस्फोट में ईरान के एक परमाणु वैज्ञानिक की मौत हो गई थी। ईरान ने इस हमले के लिए इजराइल को जिम्मेदार ठहराया था। ईरान के एक अधिकारी ने इस हमले के फौरन बाद कहा कि दो लोगों ने एक मोटरसाइकिल पर आकर जिस तरह वाहन को मैग्नेटिक बम से अपना निशाना बनाया, वह तरीका वैसा ही है जैसा पिछले दो साल में तीन और वैज्ञानिकों को निशाना बनाने के लिए अपनाया था। ईरान की संसद में अमेरिकी मुर्दाबाद, इजराइल मुर्दाबाद के नारे तक लगे। ईरान और इन पश्चिमी देशों के बीच चल रहा तनाव सारी दुनिया के लिए खतरे का संकेत है। अगर तेल सप्लाई प्रभावित होती है तो भारत भी प्रभावित हो सकता है। ईरान का प्रयास होगा कि अगर लड़ाई की नौबत आती है तो वह इजराइल से पंगा लेना चाहेगा। दूसरी ओर अमेरिका भी इजराइल के माध्यम से ईरान पर हमला करवा सकता है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम से सबसे ज्यादा खतरा इजराइल को ही है और वह किसी भी कीमत पर ईरान को एक परमाणु सम्पन्न देश बनने से रोक सकता है। अगर इजराइल ईरान के खिलाफ किसी भी प्रकार की सैनिक कार्रवाई करता है तो सम्भव है कि मध्य पूर्व के अन्य अरब देश ईरान का साथ देने पर मजबूर हो जाएं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही डिस्टर्वड मध्य पूर्वी और डिस्टर्व हो जाएगा। अमेरिका की तो खैर यह नीति पुरानी है कि अरब देशों के तेल भंडारों पर उल्टे-सीधे बहाने बनाकर कब्जा करे। उम्मीद करते हैं कि टकराव टल जाए।
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अमेरिका को इस बात की आशंका भी है कि कहीं इस विवाद का फायदा उठाते हुए इजराइल ईरान पर हमला न कर दे। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पेंटागन सूत्रों के हवाले से बताया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, रक्षामंत्री लियोन पेनेटा और अन्य शीर्ष अधिकारियों ने इजराइली नेताओं को कई निजी संदेश भेजे हैं जिसमें हमले के गम्भीर नतीजों की चेतावनी दी गई है। ओबामा ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतात्याहू से फोन पर बात भी की है। कुछ दिन पहले तेहरान में एक कार बम विस्फोट में ईरान के एक परमाणु वैज्ञानिक की मौत हो गई थी। ईरान ने इस हमले के लिए इजराइल को जिम्मेदार ठहराया था। ईरान के एक अधिकारी ने इस हमले के फौरन बाद कहा कि दो लोगों ने एक मोटरसाइकिल पर आकर जिस तरह वाहन को मैग्नेटिक बम से अपना निशाना बनाया, वह तरीका वैसा ही है जैसा पिछले दो साल में तीन और वैज्ञानिकों को निशाना बनाने के लिए अपनाया था। ईरान की संसद में अमेरिकी मुर्दाबाद, इजराइल मुर्दाबाद के नारे तक लगे। ईरान और इन पश्चिमी देशों के बीच चल रहा तनाव सारी दुनिया के लिए खतरे का संकेत है। अगर तेल सप्लाई प्रभावित होती है तो भारत भी प्रभावित हो सकता है। ईरान का प्रयास होगा कि अगर लड़ाई की नौबत आती है तो वह इजराइल से पंगा लेना चाहेगा। दूसरी ओर अमेरिका भी इजराइल के माध्यम से ईरान पर हमला करवा सकता है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम से सबसे ज्यादा खतरा इजराइल को ही है और वह किसी भी कीमत पर ईरान को एक परमाणु सम्पन्न देश बनने से रोक सकता है। अगर इजराइल ईरान के खिलाफ किसी भी प्रकार की सैनिक कार्रवाई करता है तो सम्भव है कि मध्य पूर्व के अन्य अरब देश ईरान का साथ देने पर मजबूर हो जाएं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही डिस्टर्वड मध्य पूर्वी और डिस्टर्व हो जाएगा। अमेरिका की तो खैर यह नीति पुरानी है कि अरब देशों के तेल भंडारों पर उल्टे-सीधे बहाने बनाकर कब्जा करे। उम्मीद करते हैं कि टकराव टल जाए।
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