पाकिस्तान की आवाम ने थोड़ी राहत की सांस जरूर ली होगी। तेजी से चलता घटनाकम थोड़ा थमा है। जरदारी सरकार का जिस तरह से पाक सेना व पाकिस्तान सुपीम कोर्ट से टकराव हो रहा था उससे तो लग रहा था कि किसी समय भी कुछ हो सकता है। पर सभी पक्षों ने थोड़ा संयम बरता और एक खतरनाक स्थिति फिलहाल टल गई। कितने दिन टली है यह कुछ नहीं कहा जा सकता। पर हां सुपीम कोर्ट की अगली तारीख 24 जनवरी तक तो मामला जरूर टला है। 24 तारीख को मेमोगेट पकरण पर सुनवाई होगी। इस मामले में सरकार और सेना एक बार फिर आमने-सामने होंगी। फिलहाल हम यह कह सकते हैं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की जीत हुई, आवाम की जीत हुई। हमें पाक पधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने पाक जनरलों और सुपीम कोर्ट दोनों पे सामने बहादुरी से अपना स्टैंड रखा और अपने पत्ते अच्छे से खेले। इतना तय है कि पाक आवाम सेना का शासन किसी भी कीमत पर बर्दाश्त करने को अब तैयार नहीं। जहां तक पाक में स्थायित्व का सवाल है शायद सिर्प अल्लाह ही इसका जवाब दे सकता है। 2012 और 2013 कई मायनों में पाकिस्तान के लिए दो बहुत महत्वपूर्ण साल साबित हो सकते हैं। इसी दौरान अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज का हटना है। इसके बाद अफगानिस्तान में क्या होगा इसका सीधा असर पाकिस्तान और हिन्दुस्तान पर पड़ेगा। 2013 में ही मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद इफ्तिखार चौधरी की रिटायरमेंट होगी। मार्च 2013 में संसद के 5 साल पूरे होंगे। फिर सितम्बर 2012 में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का पांच साल का कार्यकाल पूरा होगा। नवंबर 2013 में सेना पमुख जनरल अशफाक कयानी की नौकरी की अवधि में 3 साल की एक्सटेंशन पूरी हो जाएगी। 2012की शुरुआत भी हंगामी अंदाज में हुई है। आईएसआई चीफ अहमद सुजा पाशा का कार्यकाल इसी मार्च को पूरा हो रहा है और खबर आ चुकी है कि उन्हें कोई एक्सटेंशन नहीं दिया जाएगा। फिर पाकिस्तान में 3 साल बाद मार्च का महीना इसलिए अहमियत रखता है कि इसमें सीनेट (राज्य सभा का समकक्ष) की आधी सीटें खाली हो जाएंगी। सीनेट में राजनीतिक समीकरण बदलेंगे। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का पाकिस्तान लौटना अधर में पड़ गया है। कभी खबर आती है कि वह लौट रहे हैं और कभी खबर आती है कि फिलहाल वे नहीं आ रहे हैं। हालांकि पाक संसद के चुनाव अगले साल मार्च में होने हैं पर इमरान खान और नवाज शरीफ को चुनाव कराने की जल्दी लगी हुई है। उन्हें लगता है कि निकट भविष्य में अगर चुनाव हो जाते हैं तो उन्हें सत्ता के करीब आने में मदद मिलेगी। पाकिस्तान के पधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी गत गुरुवार को जब सुपीम कोर्ट पहुंचे तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि मैं जुडशियरी का पूरा सम्मान करता हूं। लेकिन आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे फिर खोलने से हाथ खड़े करता हूं क्योंकि संविधान के तहत राष्ट्रपति को पूरी छूट मिली हुई है। यह जवाब उन्होंने सात जजों की बैंच द्वारा पूछे गए इस सवाल में कि राष्ट्रपति जरदारी पर स्विट्जरलैंड में मनी लांड्रिंग का मामला फिर से खोलने के लिए पत्र लिखने के अदालती आदेशों का पालन क्यों नहीं हुआ? गिलानी के वकील एतजाज एहसान ने कहा कि स्विस गवर्नमेंट को लेटर लिखने के लिए कोर्ट को पाकिस्तान सरकार पर दबाव नहीं डालना चाहिए क्योंकि इसका मजाक बनता है। स्विस पशासन का कहना है कि विएना संधि के मुताबिक राष्ट्रपति को इससे छूट मिली हुई है। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार ने कभी स्विस पशासन से संपर्प साधा है? जवाब दाखिल करने के लिए गिलानी को कोर्ट ने एक महीने का वक्त दिया है। उल्लेखनीय है कि पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और उनकी दिवंगत पत्नी व पूर्व पधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को साल 2003 में स्विट्जरलैंड की एक अदालत ने करोड़ों डॉलर की हेराफेरी का दोषी पाया था। यह मामला तब का है जब बेनजीर भुट्टो पधानमंत्री थीं। बाद में इन दोनों ने स्विट्जरलैंड में इस निर्णय के विरुद्ध अपील की थी। उसके बाद 2008 में पाकिस्तानी सरकार के निवेदन पर स्विट्जरलैंड ने ये जांच बंद कर दी थी। साल 2008 में बेनजीर भुट्टो के खिलाफ हजारों ऐसे मामले बंद कर दिए गए थे, जिसकी वजह से वे चुनाव में भाग लेने के लिए पाकिस्तान आ पाई थी। इसके कुछ दिन बाद उनकी हत्या कर दी गई। 2009 में पाकिस्तान के सुपीम कोर्ट ने इन मामलों को बंद करने के आदेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया था और तब से दोनों सरकार और सुपीम कोर्ट में तनाव चल रहा है। भ्रष्टाचार और पशासन के आरोपों के बीच पिछले तीन सालों से राष्ट्रपति जरदारी की कुर्सी डगमगा रही है। यह कहना बहुत मुश्किल है कि उनकी यह कुर्सी कितने और समय के लिए सुरक्षित है। पर फिलहाल कुछ समय की मोहलत जरूर मिल गई है।
Anil Narendra, Daily Pratap, Pakistan, Vir Arjun
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