Tuesday 3 January 2012

अलविदा डॉ. श्रीधरन दिल्ली आपको कभी भूल नहीं सकती

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 3rd  January 2012
अनिल नरेन्द्र
राजधानी में यातायात की तस्वीर बदलने और मेट्रो परियोजनाओं को समय से पहले पूरा कर देने की नई संस्कृति को जन्म देने वाले मेट्रोमैन डॉ. ई. श्रीधरन शनिवार को दिल्ली मेट्रो रेल निगम के प्रबंध निदेशक पद से सेवानिवृत्त हो गए। दिल्ली मेट्रो की नींव पड़ने के दिन से ही इसे ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए रात-दिन एक करने वाले 79 वर्षीय डॉ. श्रीधरन ने शनिवार को एक लम्बा और अत्यंत महत्वपूर्ण यात्रा तय करते हुए श्री मंगू सिंह को अपनी कुर्सी सम्भाल दी। श्रीधरन के नेतृत्व में 2002 में एक बार पटरी पर आने के बाद मेट्रो ने पीछे मुड़ नहीं देखा और दिल्ली के बाद गुड़गांव, नोएडा और गाजियाबाद के लोगों को भी मेट्रो की सौगात मिली। 14 अक्तूबर 2011 को श्रीधरन के उत्तराधिकारी के लिए जिन छह लोगों को मेट्रो मुख्यालय में साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था, उनमें से तीन सदस्यीय चयन समिति ने डीएमआरसी के निदेशक (निर्माण) मंगू सिंह के नाम पर मुहर लगाई थी। डीएमआरसी में ही निदेशक (निर्माण) पद पर काम करने वाले मंगू सिंह ने अपने कैरियर की शुरुआत बतौर सिविल इंजीनियर की थी। उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले मंगू सिंह ने रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में 1979 में पढ़ाई की और 1981 में संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ इंजीनियरिंग के लिए चुने गए। कोलकाता मेट्रो के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले श्री मंगू सिंह के लिए दिल्ली मेट्रो के प्रमुख की नियुक्ति एक चुनौती होगी। श्रीधरन जैसे परफैक्टनिस्ट का उत्तराधिकारी बनना आसान नहीं होगा। श्रीधरन शांति से अपने काम में लगे रहते थे। उनका स्वभाव काम ज्यादा ड्रामा कम का था। यही वजह थी कि दिल्ली में इतना बड़ा मेट्रो नेटवर्प बना और दिल्लीवासियों को इसका पता भी नहीं चला। मुझे नहीं लगता कि पूरे शहर में एक भी दिन ट्रैफिक कहीं बन्द हुआ हो। ट्रैफिक भी चलता रहा, निर्माण कार्य भी। इतनी अच्छी प्लानिंग थी कि सब एंगलों का अध्ययन करके ही निर्माण कार्य शुरू होता। दिल्ली की मेट्रो आज सारी दुनिया में मशहूर हो चुकी है। जब भी कोई विदेशी मेहमान भारत यात्रा पर आता है उसकी कोशिश होती है कि वह मेट्रो में जरूर सफर करे। यह एक ऐसा अनुभव है जो भारत के अन्दर दूसरे शहरों से आने वाले लोग करना चाहते हैं। मेट्रो की सफलता ने श्रीधरन को मेट्रोमैन बना दिया। श्रीधरन के नेतृत्व में दिल्ली मेट्रो की सभी परियोजनाओं का काम समय से पहले पूरा होने का रिकार्ड है। 1963 में आए एक तूफान में रामेश्ववरम को तमिलनाडु से जोड़ने वाला पवन सेतु टूट गया था। इसे ठीक करने के लिए रेलवे ने छह महीने का समय दिया था लेकिन श्रीधरन ने केवल 46 दिनों में ही यह काम पूरा कर दिया और उसी दिन से श्रीधरन का नाम सुर्खियों में आ गया। श्रीधरन 1995 में दिल्ली मेट्रो में आए और महज 16 सालों में दिल्ली के यातायात की पूरी तस्वीर ही बदल डाली। उनके कार्य के लिए 2005 में फ्रांस की सरकार ने वहां का सर्वोच्च नागरिक सम्मान नाईट ऑफ द लिजों ऑफ ऑनर से सम्मानित किया। भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों के लिए वर्ष 1963 में रेलवे मिनिस्टर अवार्ड, 2011 में पद्मश्री और 2005 में पद्मविभूषण से नवाजा। हम श्री मंगू सिंह का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह दिल्ली मेट्रो का सारा काम उसी सुचारू रूप से चलाते रहेंगे जैसे श्रीधरन ने किया। श्रीधरन अपनी अमिट छाप छोड़ गए हैं, जब-जब दिल्ली मेट्रो की बात होगी श्रीधरन को याद किया जाएगा।
Anil Narendra, Daily Pratap, Delhi Metro Rail Corporatio, E. Sridharan, Vir Arjun

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