Friday, 20 January 2012

पंजाब में कांटे की टक्कर में तीसरे मोर्चे की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20th January  2012
अनिल नरेन्द्र
पंजाब के उप मुख्यमंत्री व शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने फजिल्का मे एक मीटिंग को संबोधित करते हुए वर्परों व नेताओं को हिदायत दी कि वे अकाली-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवारों का पूरा समर्थन करें। गठबंधन के उम्मीदवारों का समर्थन न करने वालों को पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा। वे रविवार को फजिल्का में भाजपा उम्मीदवार व परिवहन मंत्री सुरजीत के समर्थन में रैली को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने साथ ही आजाद पत्याशियों को भी चेतावनी दी और कहा कि जो आजाद पत्याशी वर्परों को धमकाएंगे उनसे पंजाब पुलिस व मैं खुद निपटना जानता हूं। बादल ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह डे ड्रीम सिड्रोंम (दिन में सपने देखना) से पीड़ित हैं। इसलिए वह शिअद-भाजपा को 33 सीटें तक सीमित करने और कांग्रेस के खाते में 75 सीटें आने का दावा कर रहे हैं। लगता है कि कैप्टन को दिन में सपने देखने की बीमारी है। उन्होंने कहा कि 2002 में पंजाब में जब कांग्रेस की लहर थी तब भी अकाली-भाजपा गठबंधन को 48 सीटें मिली थी, अब तो हालात बिल्कुल उल्टे हैं।
पंजाब के मतदाता 30 जनवरी को 117 विधानसभा सीटों के लिए मतदान करेंगे लेकिन कौन सी पार्टी या गठबंधन सरकार बनाएगी, इस बाबत न तो सत्तारूढ़ शिरोमणी अकाली दल-भाजपा गठबंधन आश्वस्त है और न ही कांग्रेस। पचास साल पहले 1966 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद से पंजाब सूबे की आवाम ने किसी भी राजनीतिक दल को लगातार दूसरी बार जिताकर पंजाब में शासन की कमान नहीं सौंपी है। पंजाब का राजनीतिक माहौल उसके पड़ोसी हरियाणा से मेल नहीं खाता क्योंकि हरियाणा आया राम-गया राम के कारण पूरे मुल्क में बदनाम हो चुका है। वहां सरकार बनाने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त का माहौल नहीं है। चाहे कांग्रेस हो या अकाली गठबंधन हो। कुछ लोगों का कहना है कि इस बार पंजाब में अकालियों की चुनावी नैया भाजपा के भरोसे है। राज्य में भाजपा की हालत काफी पतली है। अगर पार्टी पिछली बार की तुलना में आधी सीटें भी जीत पाने में कामयाब रहती है तो अकाली गठबंधन की सरकार बन सकती है। वैसे राज्य में भ्रष्टाचार, कालाधन या लोकपाल चुनावी मुद्दा नहीं बन पाए हैं। नवीनतम आकलन के मुताबिक कांग्रेस के साथ अकाली-भाजपा गठबंधन की कांटे की टक्कर है। अगर भाजपा को 10 सीटें भी हासिल हो गई तो गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में जा सकता है। पिछली बार भाजपा को 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस बार एक अन्य फैक्टर तीसरा मोर्चा भी होगा जिसे साझा मोर्चा का नाम दिया गया है। अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए पंजाब के पूर्व वित्तमंत्री मनपीत बादल एक ऐसी राजनीतिक शख्सियत बन गए हैं, जिन्हें वे अनचाहे अपने कंधों पर लादे अपना-अपना राजनीतिक समीकरण बना रहे हैं। मनपीत बादल पकाश सिंह बादल के भतीजे हैं और सुखबीर के चचेरे भाई, उन्हें अक्टूबर 2010 में वित्तमंत्री व शिरोमणी अकाली दल से बर्खास्त कर दिया गया तो उन्होंने अपनी पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब का गठन किया और तब से वह चुनावी रणनीति में लगे हुए हैं। इस साझा मोर्चे मे पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब, वामपंथी दल व कुछ छोटे दल शामिल हैं। साझा मोर्चे ने सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है और कई सीटों पर मजबूत उम्मीदवार भी उतारे हैं। गौरतलब है कि पंजाब में अभी तक न तो बहुजन समाज पार्टी व न ही वामपंथी मुख्य राजनीतिक दलों का खेल बिगाड़ सके। बसपा के जनक कांशीराम पंजाब के ही थे और यहां दलितों की आबादी करीब 30 पतिशत है। बहरहाल, माकपा और भाकपा भी साझा मोर्चे में हैं। साझा मोर्चा आगामी चुनाव में क्या भूमिका निभाता है इसका पता तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे लेकिन कांग्रेस, अकाली-भाजपा गठबंधन की कांटे की टक्कर में कुछ भी हो सकता है, हो सकता है कि तीसरा मोर्चा किंगमेकर की भूमिका में आ जाए?
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