न न करते हुए भी आखिरकार भारतीय जनता पार्टी की फायर ब्रैंड नेता सुश्री उमा भारती उत्तर पदेश विधानसभा चुनावों में पूंद ही गईं। इससे भाजपा में उनके पुनर्वास की पकिया भी पूरी हो गई। यूं तो पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उमा को 6 साल के बनवास के बाद पिछले जून में पार्टी में शामिल किया था पर सही मायने में उमा की राजनीति में री एंट्री बुंदेलखंड में महोबा जिले की चरखारी विधानसभा सीट पर अपना नामांकन करने से हुई है। उमा भारती मूल रूप से बुंदेलखंड की ही रहने वाली हैं। लेकिन उनका क्षेत्र मध्य पदेश रहा है। चरखारी क्षेत्र लोध बाहुल्य है, सुश्री उमा भारती भी लोध जाती की हैं। उमा भारती को भाजपा में शामिल करने के पीछे नितिन गडकरी की यह उम्मीद थी कि वह कल्याण सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद पार्टी का पुनर्गठन कर जिताएंगी। उमा भारती हमेशा विवाद का केन्द्र रही हैं। उमा पार्टी में लौर्टी, तो चर्चाएं शुरू हो गईं कि क्या पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाएंगी? नब्बे के दशक जैसा सियासी जलवा पाने की जुगत में जुटी भाजपा पिछड़ों कार्ड के बहाने फिर हिंदुत्व का डंका बजाने की तैयारी में है। मुस्लिम आरक्षण का विरोध और उमा भारती को आगे कर पिछड़े वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने अपने चुनावी एक्शन प्लान का काम शुरू कर दिया है। चुनावी मुद्दे की तलाश में भटक रही भाजपा का काम कांग्रेस ने कुछ हद तक आसान कर दिया है। केन्द्र सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे से 4.5 फीसदी कोटा धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों को देने के फैसले में भाजपा को चुनावी फायदा नजर आया। सो पार्टी ने लाइन ऑफ एक्शन ही बदल डाला। भ्रष्टाचार, कुशासन और महंगाई, ब्लैक मनी जैसे मसले को पीछे कर मुस्लिम आरक्षण के विरोध को ही मुख्य मुद्दा बना लिया। इतना ही नहीं पिछड़ों की हमदर्दी लेने की जल्दबाजी में एनआरएचएम घोटाले में आरोपी मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को गले लगा लिया। कुशवाहा पकरण गले की फांस बनता दिखा तो मध्य पदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को चुनाव मैदान में उतारा। पिछड़ों के हित बचाने के लिए मुस्लिम विरोध के ट्रैक पर लौटती भाजपा ने शुकवार से पूरे पदेश में विधानसभा क्षेत्र स्तर पर सत्ता परिवर्तन पदयात्राएं निकालनी शुरू कर दी हैं। पिछड़ों को लुभाने के लिए वर्ष 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू कर अति पिछड़ों को ओबीसी कोटा में कोटा देने का दाव भी नहीं चल पाया। 1996 में 174 सीटें जीतने वाली भाजपा 2002 में 88 सीटों पर ही सिमट गई थी। कल्याण सिंह की वजह से लोध वोट बैंक भाजपा के साथ लम्बे समय तक जुड़ा रहा है। पदेश में यह वोट बैंक चार से छह फीसदी माना जाता है। बुंदेलखंड में तो इस वोट बैंक की हिस्सेदारी 9 फीसदी तक मानी जा रही है। 2007 में तो भाजपा बुंदेलखंड से अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। मंदिर आंदोलन के दौरान उमा ने बुंदेलखंड की धरती पर कमल को खिलाने के लिए जमकर मेहनत की थी। सो गांव-गांव में उनका नेटवर्प कायम है। लंबे समय तक गंगा अभियान जैसे गैर राजनीतिक आंदोलनों में अपनी ऊर्जा लगाती आईं उमा एक बार फिर आकामक चुनावी मुद्रा में नजर आने लगी हैं। दो दिन पहले तो उनके निशाने पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आ गए। दरअसल बुंदेलखंड के चुनाव मैदान में उमा जोर-शोर से उतरीं, तो राहुल ने उनको निशाना बनाया था। एक सभा में उन्होंने उमा पर कटाक्ष करते हुए कह दिया कि मध्य पदेश से भागकर आईं एक नेता अचानक आपके बीच मसीहा बनने की कोशिश कर रहीं हैं। जब आप तकलीफ में थे तब साथ देने के लिए अपेले कांग्रेस ही आई थी। राहुल के इस कटाक्ष का जोरदार जवाब अपने चिर-परिचित स्टाइल में उमा ने यूं दिया ः उनकी मां तो इटली से आई हैं फिर भी यहां के लोगों ने उन्हें स्वीकार कर लिया। जबकि वे तो पड़ोसी पदेश से ही आई हैं। ऐसे में राहुल कुछ बोलने से पहले कुछ सोच-समझ लिया करें तो अच्छा है। इसमें कोई शक नहीं कि उमा भारती के मैदान में कूदने से कांग्रेस में हलचल है। कांग्रेस ने अकेले बुंदेलखंड में ही 19 में से 10 सीटें जीतने पर उम्मीद लगाई हुई है। उमा भारती के आने से जहां कांग्रेस का समीकरण बदल सकता है वहीं धीरे-धीरे पार्टी फिर हिंदुत्व पर आ सकती है। उमा भारती का पयास होगा कि एक बार फिर उत्तर पदेश में वोटों का धार्मिक लाइन पर धुवीकरण हो जाए।
Anil Narendra, BJP, Daily Pratap, Elections, State Elections, Uma Bharti, Uttar Pradesh, Vir Arjun
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