Friday 20 January 2012

गुजरात हाई कोर्ट ने लोकायुक्त मामले में दिया मोदी को झटका

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 21th January  2012
अनिल नरेन्द्र
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोकायुक्त मामले में निश्चित रूप से गुजरात हाई कोर्ट के ताजा फैसले से झटका लगा है। गुजरात हाई कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त के पद पर की गई नियुक्ति को पूरी तरह संवैधानिक और कानूनी तौर पर जायज ठहराया है। लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर मोदी सरकार के टालमटोल के बाद राज्यपाल कमला बेनीवाल ने पिछले साल 25 अगस्त को सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरए मेहता को लोकायुक्त नियुक्त कर दिया था। गुजरात में नवम्बर 2003 से लोकायुक्त पद खाली पड़ा था। राज्यपाल ने जस्टिस मेहता को लोकायुक्त कानून-1986 की उपधारा-3 के विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया। 26 अगस्त को गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की। तीन महीने पहले हाई कोर्ट ने विभाजित निर्णय दिया था। बुधवार को तीसरे न्यायाधीश वीएम सहाय की अदालत ने मतभेद के बिंदुओं पर सुनवाई के बाद राज्यपाल के फैसले को सही ठहराया। दोनों पक्षों के वकीलों की राय अपने-अपने हिसाब से थी। अकील कुरैशी का कहना था कि लोकायुक्त की नियुक्ति सही और संविधान सम्मत है। जबकि सोनिया बेन गोकार्णा का कहना था कि मेहता को लोकायुक्त नियुक्त करने का फैसला असंवैधानिक है। अब मामला सुपीम कोर्ट में पहुंच गया है। गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दे दी है। यह अच्छा हुआ कि यह मामला सुपीम कोर्ट पहुंच गया। पिछले साल पूरे समय देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए लोकपाल कानून की मांग गूंजती रही। इस शोरगुल के बीच लोगों को याद नहीं रहा कि कई राज्यों में भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए लोकायुक्त नामक एक संस्था पहले से ही वजूद में है। हमने गत दिनों यह भी देखा कि लोकायुक्त क्या-क्या कर सकते हैं। उत्तर पदेश में लोकायुक्त ने मायावती सरकार के नाक में दम कर रखा है और परिणामस्वरूप कई मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाने पर मायावती मजबूर हुईं। यह बात दीगर है कि राज्यों में लोकायुक्तों का वजूद और उनके अधिकार वहां की सरकारों के रहमोकरम पर हैं। कई राज्यों ने तो इतने हंगामे के बावजूद लोकायुक्तों को अब तक जरूरी नहीं समझा और कुछ राज्यों ने समय की नजाकत देखते हुए इस पद को बनाया तो लेकिन अपने हिसाब से कारगर करते हुए। उम्मीद की जा सकती है कि सुपीम कोर्ट के फैसले से लोकायुक्तों के मामले में पूरे देश में एकरूपता आएगी और पार्टियों को केंद्र बनाम राज्य की आड़ में राजनीति करने का भी मौका नहीं मिलेगा। गुजरात का नमूना आखें खोलने के लिए काफी है। गुजरात बेशक अपने उद्योग-धंधों के लिए सबसे माकूल राज्य के लिए पचार करता रहे पर कटु सत्य तो यह भी है कि राज्य पिछले आठ वर्षों से लोकायुक्त के बिना ही चल रहा था। वहां के राज्यपाल और मुख्यमंत्री की खुन्नस के बारे में सभी जानते हैं। वैसे भी पिछले कुछ समय से लगता है कि नरेन्द्र मोदी में थोड़ा अहंकार आ गया है। यह झटका उनके लिए भी अच्छा है। अब वह थोड़ा जमीन पर उतरेंगे। मोदी सरकार कह रही है कि राज्यपाल ने राज्य मंत्रिमंडल के अनुमोदन के बिना लोकायुक्त बना कर राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप किया है जबकि 2-1 से आए गुजरात हाई कोर्ट के फैसले में मुख्यमंत्री की कार्यशैली की बखियां उधेड़ी गई हैं। फैसले में मोदी की आलोचना में यह भी कहा गया है कि वह राज्य में लोकायुक्त कानून में बदलाव लाकर चीफ जस्टिस को ही नियुक्ति पकिया से हटाना चाहते थे। सच्चाई क्या है यह तो सुपीम कोर्ट के फैसले के बाद ही पता चलेगी लेकिन आंशिक रूप से अभी दोनों पक्ष सही लग रहे हैं। बेशक राज्यपाल केन्द्र के पतिनिधी हैं इसलिए अपनी मनमर्जी राज्य की निर्वाचित सरकार पर नहीं थोप सकते। मोदी को उन राज्यों से समर्थन मिल सकता है जहां गैर कांग्रेसी सरकारें हैं पर आज की तारीख में भ्रष्टाचार रोकने की किसी भी पकिया को रोकने का पयास जनता को नहीं भाएगा। मोदी की लड़ाई राजनीतिक है, अधिकार क्षेत्र के अतिकमण का है, वह भ्रष्टाचार रोकने के खिलाफ नहीं दिखना चाहिए। विचित्र यह भी है कि जो भाजपा सशक्त लोकपाल की वकालत करती नजर आती है और जिसने संबंधित विधेयक में एक संशोधन यह भी सुझाया था कि लोकपाल के चयन में केन्द्र सरकार की भूमिका कम की जाए, वह इस बात को लेकर नाराज रहीं कि गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार की मर्जी से क्यों नहीं की गई। क्या पार्टी यह चाहती है कि लोकायुक्त कौन हो और उसके अधिकार क्या हों इसका निर्णय राज्य सरकारों की इच्छा पर छोड़ दिया जाए? फिर क्या ऐसी व्यवस्था भ्रष्टाचार को रोकने में पभावी साबित हो सकती है?
Anil Narendra, Daily Pratap, Gujarat, Lokayukta, Narender Modi, Vir Arjun

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