सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में विधायिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों की एक नई बहस शुरू कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट संसद एवं विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता के बारे में स्पीकर के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। इस संबंध में स्पीकर का फैसला अंतिम नहीं माना जाएगा। न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायमूर्ति सीरिक जोसेफ की बैंच ने कर्नाटक के भाजपा एवं निर्दलीय विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के आदेश को गलत करार देते हुए बुधवार को इसके कारण बताए। हालांकि कोर्ट गत वर्ष के 13 मई को ही इस संबंध में फैसला सुना चुका था। अब विस्तार से जारी फैसले में कोर्ट ने कहा है कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची में सदस्यों की अयोग्यता के बारे में अर्द्ध न्यायिक प्राधिकरण की तरह फैसला करता है। ऐसे में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उसके अंतिम आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकता है। अब यह कानूनन तय हो चुका है कि स्पीकर का अंतिम आदेश संविधान में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को मिले अधिकारों पर रोक नहीं लगाता। सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 एवं 136 और हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत स्पीकर के आदेश की समीक्षा कर सकते हैं। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को इन अनुच्छेदों में विशेष शक्तियां मिली हुई हैं। कोर्ट ने कहा कि निर्दलीय विधायकों को सरकार से समर्थन वापस लेने और किसी और को समर्थन देने के आधार पर दल-बदल कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। कानून में उनके समर्थन देने या वापस लेने पर कोई रोक नहीं है। सत्ताधारी दल को समर्थन देने या उसकी बैठकों, रैलियों में निर्दलीयों के भाग लेने से यह साबित नहीं होता कि वे उस राजनीतिक दल में शामिल हो गए हैं। इसलिए उनके महज सरकार में शामिल होने या मंत्री बनने से उसके राजनीतिक दल ज्वाइन करना साबित नहीं होता। कोर्ट ने पक्षकारों की उन दलीलों को ठुकरा दिया जिनमें कहा गया था कि किसी सदस्य की अयोग्यता के बारे में स्पीकर का फैसला संवैधानिक प्रावधानों में अंतिम फैसला माना जाता है। कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक के स्पीकर का विधायकों का अयोग्य ठहराने का आदेश दुर्भावनापूर्ण था। तथ्यों को देखने से पता चलता है कि स्पीकर सिर्प फ्लोर टेस्ट के पहले विधायकों को अयोग्य ठहराना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इतनी जल्दबाजी में कार्यवाही की जिससे विधायकों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निश्चित रूप से स्पीकर के अधिकारों पर टकराव पैदा करेगा। बेशक इसमें कोई सन्देह नहीं कि स्पीकर सत्तारूढ़ दल से संबंध रखता है और उसके प्रति उसकी हमदर्दी भी होती है और अक्सर फ्लोर टेस्ट से पहले वह सत्तारूढ़ दल की मुसीबत कम करने के लिए कुछ विधायकों को अयोग्य करार देकर वोट देने से वंचित रखते हैं पर वही स्पीकर कहेंगे कि सदन पे अन्दर की कार्यवाही और उससे संबंधित सभी मामलों में वह अंतिम पॉवर है। विधायिका व न्यायपालिका का इस मुद्दे पर टकराव होना स्वाभाविक ही है। चूंकि मामला अदालत और स्पीकर का है इसलिए इस पर और टिप्पणी नहीं की जा सकती।
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