चीन द्वारा शिजियांग प्रांत स्थित शहर यीवू में दो भारतीयों को रिहा कराने का प्रयास कर रहे भारतीय राजनयिक से बदसलूकी पर ज्यादा हैरानी नहीं हुई। चीन अपनी बदजुबानी, अहंकारी बर्ताव खासकर भारतीयों के साथ मशहूर है। भारत से उसको इतनी जलन है कि कभी-कभी वह इसे छिपा नहीं सकता। दरअसल वह समझता है कि एशिया में अगर उसको हर क्षेत्र में कोई चुनौती दे सकता है तो वह भारत ही है। भारत को हर महज पर वह घेरने में लगा रहता है। म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान हर भारत के पड़ोसी पर उसने अपना शिकंजा कस लिया है। अकेला भारत ही बचा है जहां उसकी धौंस का असर नहीं होता। इसलिए यीवू शहर में जो हुआ उस पर कोई खास आश्चर्य नहीं। हुआ यह कि यीवू में यूरो ग्लोबल कम्पनी का मालिक स्थानीय व्यापारियों के बकाया पैसे चुकाए ही फरार हो गया। वह यमन या पाकिस्तानी नागरिक बताया जा रहा है। स्थानीय कारोबारियों ने उस कम्पनी के दो भारतीय कर्मचारियों (दीपक रहेजा और श्याम सुन्दर अग्रवाल) को दो हफ्ते से बंधक बना रखा था। भारतीय राजनयिक 46 वर्षीय एस. बालाचन्द्रन इन्हें रिहा करवाने के लिए यीवू अदालत में गए हुए थे। कार्रवाई अदालत परिसर में जमा स्थानीय व्यापारियों (चीनी) ने उन्हें जबरन रोक लिया और बाहर नहीं जाने दिया। उन्होंने बालाचन्द्रन के राजनयिक होने की परवाह भी नहीं की और उनकी पिटाई कर दी। इतनी पिटाई की कि वह बेहोश हो गए और उनकी हालत बिगड़ गई। उन्हें फिर आनन-फानन में अस्पताल भर्ती कराया गया। सबसे दुःखद बात यह है कि राजनयिक की पिटाई पुलिस और जज की मौजूदगी में हुई। भीड़ दरअसल नहीं चाहती थी कि बालाचन्द्रन रहेजा और अग्रवाल को ले जा सके। वे उनसे खरीदी उपभोक्ता सामग्री के लिए बकाया लाखों युआन मांग रहे थे। कोर्ट ने दोनों को रिहा कर दिया, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस हिरासत में रखा है। दोनों मुंबई निवासी हैं। उनके परिजन दूतावास से सम्पर्प में हैं। यीवू में 100 से ज्यादा भारतीय व्यापारी रहते हैं। पिछले साल भारतीयों ने 15 अरब डालर की खरीददारी की थी। सुरक्षा कारणों से होटल में इन दोनों को ठहरा दिया गया है। हालांकि रहेजा और अग्रवाल की रखवाली के लिए दो सिपाही तैनात किए गए हैं लेकिन रहेजा ने फोन पर कहा कि वह अब भी चिंतित हैं। उनके होटल को स्थानीय भीड़ ने घेर रखा है। 15 दिसम्बर से बंधक बनाए गए इन दोनों भारतीयों का कहना है कि वह इस कम्पनी में नौकरी-भर करते हैं। उस कम्पनी पर स्थानीय व्यापारियों के सामान के बकाये के लिए वे जिम्मेदार नहीं ठहराए जा सकते। इन दोनों नागरिकों और हमारे एक राजनयिक के साथ हुई बदसलूकी एक बार फिर बता रही है कि चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों की राह भी कैसे खतरों से भरी है। चीनी अधिकारियों ने इस बात की भी परवाह नहीं की कि बालाचन्द्रन मधुमेह की बीमारी से ग्रस्त थे और उन्हें घंटों अदालत में बिठाए रखा गया और तब तक नहीं हटाया गया जब तक उनकी तबीयत बिगड़ने नहीं लगी। उन्हें पानी और दवा तक की छूट देने से इंकार कर दिया। भारतीय मीडिया में हंगामा मचने के बाद भारत सरकार ने इतना भर किया है कि दिल्ली में चीनी दूतावास के अधिकारी को बुलाकर विरोध जाहिर कर दिया है। उधर बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास ने उल्टा एक चेतावनी पत्र जारी करते हुए अपनी सारी जिम्मेदारी झाड़ते हुए कहा कि भारतीय व्यापारी यीवू इलाके में व्यापार करने से परहेज रखें। चीन का जिक्र आते ही पुंठा का शिकार बन जाने वाली हमारी सरकार को ध्यान रखना चाहिए था कि `विएना समझौते' के तहत राजनयिकों से कोई भी देश बदसलूकी नहीं कर सकता। कायदे से तो इस पूरे मामले को भारत सरकार को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाकर चीन को घसीटा जाना चाहिए था लेकिन व्यापार के संबंध सुधारने से ज्यादा असरदार मानने वाली हमारी सरकार यहां क्यों झिझक जाती है, हमारी समझ से बाहर है। चीन का नाम आते ही हमारी सरकार को सांप सूंघ जाता है।
Anil Narendra, China, Daily Pratap, Vir Arjun
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