Thursday, 30 November 2017

विराट कोहली ने डॉन ब्रैडमैन और रिकी पोंटिंग को पछाड़ा

टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली जब भी मैदान पर उतरते हैं, क्रिकेट प्रेमी रिकार्डबुक खंगालने लगते हैं कि अब वो कौन-सा नया कीर्तिमान रचने जा रहे हैं।  भारत और श्रीलंका के बीच नागपुर में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच के तीसरे दिन विराट ने अपने करियर का पांचवां दोहरा शतक पूरा करके इतिहास रच दिया। विराट 213 रन बनाकर आउट हुए। अपनी मैराथन पारी में उन्होंने 267 गेंदों का सामना किया जिसमें 17 चौके और 2 छक्के शामिल रहे। कप्तान के रूप में 5 दोहरे शतक लगाने वाले विराट दूसरे बल्लेबाज बन गए हैं। उन्होंने इस मामले में वेस्टइंडीज के पूर्व कप्तान ब्रायन लारा की बराबरी की हैं। अपना 62वां टेस्ट मैच खेलते हुए विराट ने अपने नाम 19 शतक दर्ज किए। साल 2017 में विराट का यह चौथा शतक था। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के सभी फार्मेट को मिलाने पर 2017 में यह उनका 10वां शतक था। इस तरह वो इस साल बतौर कप्तान सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले बल्लेबाज बन गए। उनके पीछे 9 शतकों के साथ आस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान रिकी पोंटिंग हैं। पोंटिंग ने लगातार दो साल 2005 और 2006 में कप्तान के रूप में नौ-नौ शतक लगाए थे। विराट ने सुनील गावस्कर को भी पीछे छोड़ दिया। गावस्कर ने 47 टेस्टों में कप्तानी की जिसमें 11 शतक लगाए, वहीं विराट का कप्तान के रूप में यह 31वां ही टेस्ट मैच था । क्रिकेट की दुनिया के सबसे दिग्गज बल्लेबाज कहे जाने वाले सर डॉन ब्रैडमैन को भी विराट ने कप्तानी के मामले में पीछे छोड़ दिया है। वे अपने अर्ध शतकों को जिस रफ्तार से शतकों में तब्दील करते हैं उस लिहाज से वे सबसे बेहतरीन कप्तान बन चुके हैं। लगभग 7 साल बाद ऐसा हुआ जब किसी टेस्ट मैच की एक पारी में चार भारतीय बल्लेबाजों ने शतक जमाए। बतौर बल्लेबाज भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली के लिए 2017 का साल बेहद सफल रहा। पूरे करियर को देखते हुए तुलना की जाए तो इस साल उन्होंने सबसे ज्यादा शतक जड़े हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के सभी फार्मेट में आंकड़ों की बात करें तो कप्तान कोहली सबसे आगे दिखाई देते हैं। इस साल उन्होंने एक नहीं बल्कि कई करिश्माई fिरकार्ड तोड़कर अपना झंडा गाड़ा। श्रीलंका के खिलाफ साल की आखिरी सीरीज में भी वो जमकर खेले। एक साल में सबसे शानदार प्रदर्शन कर उन्होंने अभी तक के सभी भारतीय कप्तानों का भी रिकार्ड तोड़ दिया। 2312 रन बनाकर उन्होंने सौरव गांगुली के 2059 रनों का रिकार्ड तोड़ दिया। विराट कोहली की अभूतपूर्व सफलता के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है उनकी फिजिकल फिटनेस। वह इतने फिट हैं कि उन्हें इतनी लम्बी-लम्बी पारियां खेलने में कोई दिक्कत नहीं होती। इस समय दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज हैं विराट कोहली ।

-अनिल नरेन्द्र

क्या भाजपा 2014 दोहरा पाएगी?

गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए बचे चंद दिनों को भाजपा व कांग्रेस दोनों बेशकीमती मानकर रात-दिन एक कर रहे हैं। इसी हिसाब से दोनों दलों ने अपने अभियान को तेज कर fिदया है। गुजरात में क्या भाजपा के लिए 2014 दोहरा पाना आसान है? दरअसल यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस बार गुजरात के लिए 150 प्लस का टारगेट तय किया है। गुजरात विधानसभा में 182 सीटें है। सामान्य बहुमत से सरकार बनाने के लिए महज 92 सीटों की जरूरत है। भाजपा गुजरात में 1998 से लगातार सत्ता में है। 2001 में नरेन्द्र मोदी के गुजरात के सीएम बनने के बाद उनके नेतृत्व में ही पार्टी ने वहां 2002, 2007, 2012 के विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन पार्टी की जीत अधिकतम 127 सीटों तक ही गई। कांग्रेस ने जरूर 1985 में 149 सीटें जीती थीं और गुजरात में वही उसकी आखिरी जीत भी है। भाजपा की सबसे बड़ी जीत नरेन्द्र मोदी हैं। भाजपा अपने मिशन 150 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। ऐसे में पार्टी ने इस महीने से ही मोदी की 25-30 रैलियां आयोजित करने और शहरी क्षेत्र में रोड शो करने की योजना बनाई है। नरेन्द्र मोदी का आकर्षण लगातार बढ़ता जा रहा है। दिल्ली, बिहार और पंजाब के चुनावी नतीजों को अगर निकाल दें तो इस दौरान जिन भी राज्य में विधानसभा चुनाव हुए हैं, उसमें मोदी का जादू सिर चढ़कर बोला। भाजपा के पास अमित शाह जैसा रणनीतिकार भी हैं। उनकी रणनीति के मुकाबले में खड़ा हो पाना विरोधी पार्टियों के लिए बहुत मुश्किल साबित हो रहा हैं। भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का कहना है कि गुजरात की जनता में नोटबंदी और जीएसटी को लेकर गुस्सा है और यह बात साफ है कि गुजरात विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए महज एक चुनाव नहीं बल्कि चुनौती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने नोटबंदी व जीएसटी लागू होने के कारण सभी वर्गों  विशेषकर छोटे व्यापारियों को होने वाली भारी दिक्कतों की सरकार द्वारा अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए दावा किया कि नोटबंदी के फैसले को एक साल पूरा होने पर जश्न मनाना सरकार के लिए उल्टा पड़ेगा। नोटबंदी के परिणाम उल्टे निकल रहे हैं। लोगों के काम-धंधे, नोटबंदी के कारण चौपट हो गए हैं। उनकी नौकरियां जा रही हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भरुच की रैली में केंद्र की मोदी सरकार  और भाजपा पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि वोटिंग के दिन भाजपा को करंट लगेगा। भरुच राहुल के दादा फिरोज गांधी का गृह जिला भी है। यह वह इलाका है जो कभी कांग्रेस का गढ़ रहा है। रैली में राहुल ने गुजरात मॉडल पर हमला किया। उन्होंने कहा गुजरात का मॉडल उद्योगपतियों के लिए है, गरीबों के लिए नहीं। गरीबों से जमीन, बिजली, पानी लो और उद्योगपतियों को दो यही मोदी जी और विजय रूपाणी जी का गुजरात मॉडल है। राहुल की सभाओं  में भारी भीड़ आ रही है। पर सवाल यह है कि क्या यह सब कांग्रेस को वोट भी देंगे? कांग्रेस अगर मार खाती है तो भीड़ को वोटों में परिवर्तन करने में मात खाती है। माहौल होने के बावजूद भाजपा को गुजरात में हराना मुश्किल लगता है। अनुकूल स्थिति होने के बावजूद 2014 जैसा प्रदर्शन दोहरा पाने में भाजपा के लिए मुश्किल इसलिए हो सकती है कि इस दौरान गुजरात राजनीति परिदृश्य में खासा बदलाव आया है। दलितों पर शुरू हुए हमलों ने गुजरात के भीतर पूरे दलित समाज को भाजपा के मुखालिफ खड़ा कर दिया। पाटीदार और ओबीसी भी आरक्षण के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ हो गए हैं। यह दोनों भाजपा के मजबूत वोट बैंक रहे हैं। लगभग 20 साल से लगातार सरकार में रहने की वजह से भाजपा के खिलाफ एंटी एंकम्बेंसी सेक्टर में भी काम करेगा। कुल मिलाकर भाजपा के लिए 2014 दोहरा पाना आसान नहीं है।

Wednesday, 29 November 2017

मेट्रो किराया वृद्धि और घटती यात्रियों की संख्या

दिल्ली मेट्रो के किराये में बढ़ोत्तरी का असर यात्रियों की संख्या पर पड़ना निश्चित था। तमाम विरोधों के बावजूद मेट्रो ने किराया बढ़ा दिया। नतीजा यह हुआ कि मेट्रो में यात्रा करने वालों ने विकल्पों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। अधिकतर ने बसों में सफर करना बेहतर समझा। अक्तूबर में किराया बढ़ने के बाद से मेट्रो से रोजाना सफर करने वाले लोगों की संख्या में करीब तीन लाख की कमी आई है। इसका खुलासा एक आरटीआई से हुआ है। सितम्बर में रोजाना करीब 27.7 लाख यात्रियों को सफर कराने वाली मेट्रो से अक्तूबर में रोजाना औसतन 24.2 लाख लोगों ने सवारी की। हालांकि डीएमआरसी का दावा है कि यात्रियों की संख्या में आई कमी का किराया बढ़ोत्तरी से कोई सीधा संबंध नहीं है। आरटीआई से प्राप्त जानकारी के मुताबिक अक्तूबर के किराये की बढ़ोत्तरी का असर सभी लाइनों पर पड़ा है। मई के बाद मेट्रो ने यह बढ़ोत्तरी दूसरी बार की थी। मेट्रो किराये को लेकर फिर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। मेट्रो में प्रतिदिन यात्रियों की संख्या तीन लाख घटने पर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने शनिवार को तंज कसते हुए कहा कि भाड़ा बढ़ने से मेट्रो खत्म हो जाएगी। दिल्ली में आम लोगों ने मेट्रो का इस्तेमाल बंद कर दिया तो इसका क्या मतलब रह जाएगा। मेट्रो में हुई किराया वृद्धि मेट्रो को ही खत्म कर देगी। दिल्ली सरकार मेट्रो के किराये में वृद्धि के खिलाफ थी पर केंद्र ने दिल्ली सरकार की नहीं मानी। साथ ही इन बढ़ी हुई दरों को वापस लेने की भी दिल्ली सरकार ने सिफारिश की थी ताकि लोग अधिक से अधिक मेट्रो का प्रयोग कर सकें। मामले में दिल्ली सरकार की तरफ से सीधे केंद्र सरकार को कई पत्र भी भेजे गए थे। दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने दावा किया कि यात्री संख्या में कमी को पिछले माह हुए किराये वृद्धि से नहीं जोड़ा जा सकता। केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्यमंत्री ने कहा कि डीएमआरसी का किराया दुनिया में सबसे कम है। पुरी ने कहा कि वर्ष 2016 में सितम्बर से अक्तूबर तक यात्री संख्या में 1.3 लाख की कमी आई थी और उस समय किराये में कोई बदलाव नहीं हुआ था। हर वर्ष कुछ माह ऐसे होते हैं जब यात्रियों की संख्या में बढ़ोत्तरी और कमी होती है। आज दिल्ली की मेट्रो बहुत अहम बन चुकी है। प्रदूषण की मार से बचने के लिए बहुत से लोग मेट्रो का सहारा लेते हैं। चौतरफा बढ़ती महंगाई के कारण भी मेट्रो किराये में बढ़ोत्तरी जनता को चुभ रही है। बेहतर होता कि दिल्ली मेट्रो और अन्य उपाय सोचे जिससे उसका घाटा भी पूरा हो जाए और जनता पर बोझ भी न पड़े। जब तक श्रीधरन थे सब ठीक था। उनके जाने के बाद मेट्रो की कारगुजारी में कमी आई है।

-अनिल नरेन्द्र

ईवीएम की विश्वसनीयता?

उत्तर प्रदेश स्थानीय चुनावों में कथित गड़बड़ियों की शिकायतें मिलने के बाद ईवीएम मशीनों से टैम्परिंग का मामला फिर गरमा गया है। निकाय चुनावों में मेरठ और कानपुर में बुधवार को हंगामा भी हुआ था। इसी मामले को लेकर कांग्रेस ने धावा बोल दिया है। कांग्रेस ने इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में गड़बड़ी की कुछ नई शिकायतों के मद्देनजर चुनाव आयोग से भ्रम की स्थिति को खत्म करने के लिए गुजरात चुनाव में ईवीएम मशीनों की उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश से निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है। जिस किसी के भी पक्ष में बटन दबाया जाता है पर वोट भाजपा के खाते में चला जाता है। कांग्रेस ने इसको लेकर बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र सहित कुछ अन्य क्षेत्रों से हाल में ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी की शिकायतें मिली हैं। शिकायत के बाद इनमें कुछ मशीनों की जांच करने पर पता चला है कि बटन किसी भी पार्टी के चुनाव चिन्ह का दबाया लेकिन वोट कमल के निशान यानी भाजपा पर पड़ रहा था। भारतीय जनता पार्टी ईवीएम में गड़बड़ी कर चुनाव जीत रही है यह आरोप लगाया है आम आदमी पार्टी (आप) ने। आप ने कहा कि उत्तर प्रदेश में हुए नगरीय निकाय चुनाव में एक बार फिर ईवीएम में गड़बड़ी सामने आई है। इस मामले में आप ने चुनाव आयोग से ईवीएम की व्यापक जांच की मांग करते हुए श्वेत पत्र लाने की मांग की है। आप के वरिष्ठ नेता और पीएसी सदस्य आतिशी मार्लेना ने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि ईवीएम में खराबी की खबर सामने आई हो इससे पहले भी भिंड, धौलपुर और उत्तराखंड के कई इलाकों में ईवीएम टैम्परिंग की घटना सामने आ चुकी है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया लोकतंत्र की जड़ है। इसमें किसी प्रकार की टैम्परिंग हमारे लोकतंत्र की जड़ें खोदने के समान है। यह अच्छा है कि ईवीएम में वीवीपैट की सुविधा दी जा रही है। वक्त का तकाजा यह है कि चुनाव आयोग अपनी और इन ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता को बरकरार रखे। एक स्वीकार्य रास्ता यह है कि वीवीपैट पर्चियों की भी गिनती हो ताकि किसी को यह कहने का मौका न मिले कि मशीनों से छेड़छाड़ की गई है। ईवीएम की पारदर्शिता के लिए केवल वीवीपीएटी यानी मतदान के बाद निकलने वाली पर्ची ही काफी नहीं है। उसकी पूरी गिनती होनी चाहिए। निस्संदेह निर्वाचन आयोग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह हर तरह के संदेह का निवारण करे ताकि उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह न लगे।

Tuesday, 28 November 2017

मस्जिद में नमाज अदा कर रहे लोगों पर हमला

मिस्र में अब तक के सबसे भीषण आतंकी हमले में अशांत उत्तरी सिनाई क्षेत्र की एक मस्जिद में दहशतगर्दों ने जुमे की नमाज के समय कहर बरपाया। शुक्रवार को दहशतगर्दों ने पहले आईईडी से धमाका किया और फिर गोलियां बरसाईं। इस हमले में लगभग 300 लोगों के मरने की खबर है जबकि 100 से ऊपर घायल हैं। जिस किसी ने भी बचकर निकलने की कोशिश की उन्हें मार डाला गया। ऐसा बताया जा रहा है कि हमलावरों ने मस्जिद के बाहर खड़े वाहनों को आग लगा दी थी जिससे लोगों को बाहर निकलने से रोका जा सके। उन्होंने पीड़ितों की मदद करने की कोशिश कर रही एम्बुलेंस पर भी गोलियां चलाईं। आधुनिक मिस्र के इतिहास में यह अभी तक का सबसे खतरनाक चरमपंथी हमला है। अभी इस हमले की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है मगर माना जा रहा है कि इसके पीछे इस्लामिक स्टेट (आईएस) का हाथ हो सकता है। पिछले साल से वो आम लोगों को निशाना बना रहे हैं। सरकारी न्यूज एजेंसी मेना के मुताबिक हमलावरों ने अल-आरिश शहर की अल-रावदा मस्जिद को निशाना बनाया। सिनाई प्रायद्वीप 2011 से ही हिंसा की आग में जल रहा है। वहां हिंसक घटनाओं में 700 जवानों की मौत हो चुकी है। वर्ष 2014 में आतंकियों ने 31 जवानों की हत्या कर दी थी। इसके बाद आपातकाल लगाया गया था। इसी साल मई में 26 इसाइयों की हत्या कर दी गई थी। घटना के बाद मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल सीसी ने टीवी पर दिए संबोधन में इस हमले में मारे गए और जख्मी हुए लोगों के प्रति संवेदना प्रकट की। उन्होंने यह भी कहा कि इस घटना का बदला लिया जाएगा। तहरीर इंस्टीट्यूट ऑफ मिडिल ईस्ट पॉलिसी में शोधार्थी टिमोथी कैलदस मानते हैं कि इसके पीछे आईएस का हाथ हो सकता है। पिछले साल से वो आम लोगों को निशाना बना रहे हैं और खासकर इसाइयों को। उन्होंने कहाöयह एक सूफी मस्जिद थी, जिसे आईएस अपने धर्म के खिलाफ मानता है। उत्तरी सिनाई में बहुत से लोग आईएस के खिलाफ लड़ाई में सरकार की मदद भी कर रहे थे, ऐसे में हमले की एक वजह यह भी हो सकती है। इस इलाके में रहने वाले बद्दू कबायली अपने ऊपर हुए इस हमले के बाद और खुलकर सरकार की मदद कर सकते हैं। मिस्र सरकार के सामने यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। अगर इस हमले के पीछे आईएस का हाथ है तो यह चिन्ता का विषय है क्योंकि पिछले कुछ समय से आईएस ने इराक और सीरिया में अपनी पकड़ गंवाई है। हो सकता है कि इस तरह के हमले को अंजाम देकर आईएस अपने समर्थकों तक यह संदेश पहुंचाना चाह रहा हो कि वह अभी भी सक्रिय है और अपने दुश्मनों से लड़ रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

राहुल गांधी की ताजपोशी और गुजरात चुनाव

लंबे राजनीतिक इंतजार के बाद अंतत राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि राहुल का अध्यक्ष बनना तो तय ही था लेकिन इसकी दिलचस्प टाइमिंग को लेकर तमाम तरह के कयास लग रहे हैं। दो चरणों में गुजरात में होने वाले चुनाव के दौरान जब नौ दिसम्बर को पहले चरण की वोटिंग होगी तब तक राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का ऐलान हो चुका होगा। अब जब राहुल गांधी की ताजपोशी महज औपचारिकता भर रह गई है। ऐसे में राहुल का भविष्य का सफर आसान नहीं होगा। पार्टी की कमान संभालने के बाद उनके सामने पार्टी, काडर और जनता तीनों को साथ लेकर चलना होगा। देशभर में चल रही मोदी लहर और भाजपा के कांग्रेसमुक्त भारत के संकल्प से निपटना कांग्रेस के नए कर्णधार के लिए सबसे बड़ी परीक्षा होगी। पिछले तीन वर्षों में जिस तरह देश की राजनीति में विपक्ष की भूमिका सिमटती जा रही है और विशेषकर कांग्रेस के हाथ से उसके एक के बाद एक किले दरकते जा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को उसका पुराना गौरव दिलाना आसान काम नहीं होगा। 19 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद जब सोनिया गांधी के हाथ से कमान राहुल के पास आएगी तो उनके सामने विरासत, पुनर्जागरण और संघर्ष जैसे तीन बड़े सवाल होंगे। अपने गठन के बाद से कठिन दौर से गुजर रही कांग्रेस को नए सिरे से ऑक्सीजन देना राहुल के लिए कठिन चुनौती होगी। पार्टी के अंदर एक बड़े तबके का मानना है कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस अपनी परंपरागत राजनीति छोड़कर तेजी से बदलाव की ओर बढ़ेगी। पार्टी की कार्यशैली में व्यापक परिवर्तन दिखाई देंगे। ऐसे लोगों का मानना है कि राहुल न केवल पार्टी को नई धार देंगे बल्कि आक्रामक तेवर भी देंगे। राहुल गुजरात में बहुत मेहनत कर रहे हैं। उनकी सभाओं में भीड़ भी आ रही है। उनकी छवि में परिवर्तन आ रहा है। अकेले राहुल ने भाजपा को हिलाकर रख दिया है। तभी तो मोदी सरकार में पीएम सहित आधा मंत्रिमंडल गुजरात में छावनी डाले बैठा है। राहुल ने यह तो साबित कर दिया है कि वह मोर्चे पर सामने आकर लड़ना चाहते हैं और पराजय का जोखिम लेने को तैयार हैं। दरअसल अब तक राहुल की सबसे बड़ी आलोचना इसी बात को लेकर होती थी कि वे जोखिम नहीं लेना चाहते और जिम्मेदारी से भागते हैं। लेकिन गुजरात चुनाव के सिलसिले में अब तक वह कई दिन राज्य में गुजार चुके हैं और वे पूरी तरह जिम्मेदारी लेते दिख रहे हैं। राहुल ने अपनी टीम में जोश-होश का मिक्स रखा है। गुजरात चुनाव के दौरान वह पुराने गार्ड अहमद पटेल और अशोक गहलोत के सुझावों को सुन रहे हैं उन पर अमल भी कर रहे हैं। यही वजह है कि अपनी सभाओं में राहुल ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं जो जनता के मन को छूते हैं। पार्टी के अंदर राहुल को लेकर अकसर पुराने और नए नेताओं के बीच वैचारिक टकराव की खबरें आती रहती थीं, लेकिन राहुल ने खुद इस लड़ाई को समाप्त करने की पहल की है। राहुल ने गुजरात में पूरी ऊर्जा झोंकी है। तमाम ओपिनियन पोल में कांग्रेस की दोनों राज्यों (हिमाचल और गुजरात) में जीत की संभावना नहीं बताई गई है। ऐसे में सुरक्षित रास्ता निकालते हुए परिणाम से ठीक पहले अध्यक्ष बनने की औपचारिकता पूरी करने की योजना बनाई गई है। वैसे भी पिछले चार महीने के दौरान राहुल ने पार्टी के अंदर अपनी टीम को नए सिरे से गठित कर लिया और अब बस उनके अध्यक्ष बनने भर की देरी है।

Sunday, 26 November 2017

देश में मनहूस मधुमेह तेजी से बढ़ रही है

हृदय रोग के बाद मधुमेह यानी डायबिटीज तेजी से भारत में बढ़ रही है। भारत में छह करोड़ 68 लाख से ज्यादा मधुमेह रोगी हैं और सात करोड़ के करीब प्री-डायबिटिक यानी खतरे के निशान पर हैं। सबसे बड़ी चिन्ता यह है कि यह मनहूस बीमारी अब छोटे बच्चों में भी बढ़ रही है। देश में यह माना जाता है कि मधुमेह टाइप-2 बड़ों की बीमारी है और बच्चों व कम उम्र में मधुमेह टाइप-1 की बीमारी होती है, लेकिन अब खानपान और जीवनशैली में बदलाव के कारण देश में मधुमेह का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। बच्चों व कम उम्र के लोग भी मधुमेह टाइप-2 की बीमारी से पीड़ित होने लगे हैं और ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि हृदय रोगियों की बढ़ी हुई संख्या की एक प्रमुख वजह भी मधुमेह ही है। आज के मधुमेह रोगी के, कल के हृदय रोगी बनने की बहुत ज्यादा आशंका है। यूं तो इस रोग से पीड़ित लोग पूरी दुनिया में हैं लेकिन चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा मधुमेह रोगियों का देश बन चुका है। एक गैर सरकारी अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि मधुमेह रोगियों द्वारा इंजेक्शन के जरिये  लिए जाने वाली इंसुलिन की बिक्री में पिछले नौ साल में पांच गुना तथा मुंह से निगलने वाली दवाओं की खरीद में चार साल में ढाई गुना बढ़ोतरी हुई है। और भी चिन्ता की बात यह है कि अब यह रोग उम्र भी नहीं देख रहा है। युवा और किशोर तक इसकी चपेट में आ रहे हैं। मधुमेह बेशक खतरनाक बीमारी है, लेकिन खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाकर इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। टाइप-1 के मरीज को इंसुलिन लेनी पड़ती है। लेकिन टाइप-2 के मरीज खानपान, एक्सरसाइज संबंधी अनुशासन को अपनाकर अपने शुगर लेवल के स्तर पर नियंत्रण रख सकते हैं। भारतीय खाद्य परंपरा में पहले बाजरा, ज्वार, लाल चावल, भूरा चावल आदि को प्रमुखता दी जाती थी, जो मधुमेह को पनपने से रोकते थे। लेकिन हरित क्रांति का जोर सिर्फ चावल और गेहूं की पैदावार पर रहा, जोकि ग्लूकोजयुक्त भोजन है। साथ ही पश्चिमी जीवनशैली, जंक फंड तथा फास्ट फूड ने कोढ़ में खाज का काम किया है। मिलावटखोरी भी इसमें सहायक हुई है। बढ़ते शहरीकरण की वजह से आम आदमी के लिए दिन और रात बराबर हो गए हैं। इससे काम करने का रंग-ढंग बदला है। शारीरिक श्रम की प्रवृत्ति भी घटी है। इन सब वजहों ने मिलकर मधुमेह को एक व्यापक संकट बना दिया है। जरूरत तो इस बात की है कि सरकार इससे निपटने के लिए व्यापक स्तर पर कार्यक्रम तैयार करे और संजीदगी से उस पर अमल करे। बच्चों के लिए मधुमेह की दवाएं मुफ्त दी जाएं ताकि इसकी रोकथाम हो सके।

-अनिल नरेन्द्र

एक बार फिर पाकिस्तान का असली चेहरा बेनकाब हुआ

भारत सरकार ने गुरुवार को कहा कि लश्कर--तैयबा संस्थापक और नवम्बर 2008 में मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को रिहा किए जाने का फैसला पाकिस्तान के असली चेहरे को दिखाता है। गौरतलब है कि इस साल 31 जनवरी को हाफिज सईद और उसके चार साथियों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने गिरफ्तार किया था। सईद को उनके घर में ही नजरबंद रखा गया था। हाफिज सईद भारत की निगाह में तो आतंकवादी-अपराधी है ही, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने भी उसे वैश्विक आतंकवादी घोषित कर रखा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहाöहाफिज सईद की रिहाई एक बार फिर आतंकवाद जैसे घृणित अपराध के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित व्यक्ति या संस्था को सजा दिलाने में पाकिस्तान सरकार की गंभीरता में कमी की पुष्टि करती है। भारत ने यह प्रतिक्रिया लाहौर उच्च न्यायालय द्वारा बुधवार को हाफिज के खिलाफ सबूतों के अभाव में उसे 10 महीने की घर में नजरबंदी से मुक्त करने के बाद दी है। यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान ने गैर राजकीय तत्वों को संरक्षण व समर्थन देने की अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं किया है। भारत समेत पूरा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस बात से आक्रोशित है कि स्वघोषित आतंकवादी को, संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी आतंकवादी घोषित करने के बावजूद पाकिस्तान ने उसके नापाक एजेंडे को जारी रखने और खुलेआम करतूतों को अंजाम देने की अनुमति दी। ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी तंत्र घोषित आतंकवादियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रहा है। यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान ने सरकार से इतर तत्वों को संरक्षण और समर्थन देने की नीति में कोई बदलाव नहीं किया है। पाकिस्तान ने आतंकवादियों को बचाने व समर्थन करने की नीति छोड़ी नहीं है। लश्कर सरगना के वकील ने बताया कि भारत ने उसके बारे में जो सबूत पाकिस्तान सरकार को सौंपे थे वे न्यायिक समीक्षा बोर्ड के सामने दाखिल ही नहीं किए गए। बोर्ड ने इसी वजह (सबूतों के अभाव) से हाफिज की रिहाई के आदेश दे दिए। सईद लश्कर--तैयबा का चेहरा माना जाता है और इस आतंकी संगठन ने कितना कहर बरपाया है यह भारत कैसे भूल सकता है। फिर मुंबई में हुए आतंकी हमले में कुछ अमेरिकी नागरिक भी मारे गए थे। ऐसा आदमी सार्वजनिक गतिविधियों में खुलेआम हिस्सा ले यह किसी को स्वीकार्य नहीं। उधर अमेरिका ने हाफिज की रिहाई पर चिन्ता जताई है और पाकिस्तान सरकार से उसे तुरन्त गिरफ्तार करने को कहा है। अमेरिकी गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हाफिज सईद आतंकवादी हमलों के जरिये हजारों मासूमों की मौत का जिम्मेदार है। उस पर अमेरिका ने एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा हुआ है। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने उसके जमात-उद-दावा को आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है। पाकिस्तान सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे गिरफ्तार किया जाए और ढंग से मुकदमा चलाया जाए। गुरुवार आधी रात को आजाद होने के बाद सईद ने भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया। उसने कहाöमेरी तरह कश्मीर भी एक दिन आजाद होगा। अल्लाह मुझे इतनी ताकत दे कि हम कश्मीर की आजादी के लिए (भारत से) लड़ते रहें।

Saturday, 25 November 2017

ब्रह्मोस के सामने कहां है चीन और पाकिस्तान

भारत ने बुधवार को लड़ाकू विमान से ब्रह्मोस मिसाइल का सफल परीक्षण कर इतिहास रच दिया। अब तक कोई भी देश सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को किसी फाइटर जेट से लांच नहीं कर पाया है। सुखोई-30 एमकेआई से दागा गया निशाना सटीक रहा। मिसाइल ने अपने लक्ष्य को उड़ा दिया। इसके साथ ही एक और रिकार्ड बना। भारत ऐसा पहला देश बन गया है जिसके पास जमीन, समुद्र और हवा से मार करने वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। हवा से सतह पर मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल ध्वनि की गति से भी करीब तीन गुना ज्यादा तेज उड़ती है। इसके लैंड और वॉरशिप वर्जन को सेनाओं में पहले ही शामिल किया जा चुका है। भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम से तैयार हुई इस मिसाइल का जल और थल से पहले ही सफल परीक्षण किया जा चुका था, अब इसका वायु में भी सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया गया। इस तरह यह तय हो गया कि ब्रह्मोस जल, थल और वायु से छोड़ी जा सकने वाली मिसाइल बन गई है। इस क्षमता को ट्रायड कहा जाता है। ट्रायड की विश्वसनीय क्षमता इससे पहले सिर्फ अमेरिका, रूस और सीमित रूप से फ्रांस के पास मौजूद है। ब्रह्मोस को दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल माना जा रहा है। इसकी रफ्तार 2.8 मैक (ध्वनि की रफ्तार के बराबर) है। इस मिसाइल की रेंज 290 किलोमीटर है और यह 300 किलोग्राम भारी युद्धक सामग्री ले जा सकती है। यह सच है कि इस परीक्षण के बाद पाकिस्तान और चीन गश खा रहे होंगे। इस सफल परीक्षण से भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता कई गुना बढ़ गई है और जमीन तथा समुद्र से इसके सफल परीक्षणों के बाद भारत ने हवा से भी इस मिसाइल के प्रक्षेपण की क्षमता हासिल कर ली है। इस मिसाइल का वजन 3000 किलो है, लंबाई आठ मीटर, चौड़ाई 0.6 मीटर, निशाना अचूक है, इसलिए कहते हैंöदागो और भूल जाओ। ब्रह्मोस न्यूक्लियर वॉर हैड तकनीक से लैस है। दुनिया की कोई भी मिसाइल तेज गति से हमले के मामले में इसकी बराबरी नहीं कर सकती। अमेरिका की टॉय हॉक मिसाइल भी इसके आगे कमतर है। भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल को अरुणाचल प्रदेश में चीन से लगी सीमा पर तैनात किया था। सूत्रों का कहना है कि टेस्ट की सीरीज सफल होने के बाद 42 सुखोई लड़ाकू विमानों को ब्रह्मोस मिसाइल से लैस किया जाएगा। इन दोनों के कॉम्बिनेशन को अत्यंत मारक माना जा रहा है। दुश्मन के इलाके में आतंकवादियों के कैंपों, एटमी बंकरों और कमान सेंटरों को बिल्कुल सटीक तरीके से उड़ाया जा सकेगा। देश के वैज्ञानिकों पर हमें नाज है। ब्रह्मोस के सफल परीक्षण पर पूरे देश को गर्व है और हमारे पड़ोसियों के लिए दहशत है।

-अनिल नरेन्द्र

हनुमान मूर्ति को एयरलिफ्ट करना हिन्दू धर्म में मान्य नहीं

दिल्ली के करोल बाग स्थित 108 फुट लंबी हनुमान मूर्ति को हाई कोर्ट ने रिज रोड पर अतिक्रमण हटाने के लिए इसे एयरलिफ्ट करने पर विचार करने का निर्देश सरकारी एजेंसियों को दिया है। कोर्ट ने आज सुनवाई करते हुए इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 12 दिसम्बर की तारीख तय की है। झंडेवालान स्थित 108 फुट ऊंची हनुमान जी की मूर्ति साधारण नहीं है। मंदिर प्रबंधन कमेटी का कहना है कि इस मूर्ति का वजन 600 टन से ज्यादा है। इसे एयरलिफ्ट ही नहीं किया जा सकता। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या मूर्ति को तोड़ा जाएगा? कमेटी का कहना है कि किसी को भी किसी भी हालत में मूर्ति को हाथ नहीं लगाने देंगे। दूसरी ओर हनुमान जी की यह मूर्ति हाइटेक है। इस तरह की मूर्ति शायद ही देश में हो। मूर्ति के हाथ स्वचालित हैं। दोनों मुट्ठी मशीनों के माध्यम से बंद होती हैं और खुलती हैं। मूर्ति के सीने में भगवान राम एवं सीता की सोने की मूर्ति स्थापित है। इनके दर्शन हनुमान जी की मूर्ति के हाथों की मुट्ठी बंद होने के बाद होते हैं और मुट्ठी खुलने पर दोनों मूर्ति छिप जाती हैं। मंदिर के पुजारी गणेश दत्त पांडेय का कहना है कि करीब 17 साल में बनकर तैयार हुई हनुमान जी की इस 108 फुट ऊंची मूर्ति को एयरलिफ्ट होने से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। इस मूर्ति को एयरलिफ्ट कर दूसरी जगह स्थापित करने के सुझाव पर साधु-संतों ने भी कड़ी आपत्ति की है। उनका कहना है कि वह अदालत का सम्मान करते हैं, लेकिन इस प्रकार हिन्दुओं के हर मामले में हस्तक्षेप करना कतई उचित नहीं है और वह इसे स्वीकार नहीं करते। प्राचीन सिद्ध पीठ श्री कालका जी मंदिर स्थित महंत निवास परिसर में मंगलवार को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के मुद्दे पर संवाददाता सम्मेलन में निर्वाणी अखाड़े के महंत धर्मदास महाराज, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी महाराज, कालका जी पीठाधीश्वर महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत ने इस विषय पर पूछे सवालों का जवाब देते हुए कहा कि आखिर हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों पर ही सभी को आपत्ति क्यों होती है। जबकि हिन्दुओं के धार्मिक स्थान रास्तों में नहीं बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म में स्थापित मूर्ति को दूसरी जगह शिफ्ट करने की मान्यता नहीं है। इस कारण कोई भी स्थापित मूर्ति दूसरी जगह शिफ्ट नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि झंडेवालान स्थित हनुमान मूर्ति का अपना इतिहास व मान्यता है। ऐसे में उसे वहां से हटाना धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है। उन्होंने सवाल उठाया कि राजधानी में कई सड़कों पर अन्य धर्मों के धर्म स्थान बने हुए हैं। कई तो सड़क के बीच बने हुए हैं। क्या वह अतिक्रमण नहीं? अदालत को क्यों हमेशा हिन्दुओं के ही धर्म स्थलों पर अतिक्रमण नजर आता है? हमारा कहना है कि यदि हटाना ही है तो सभी को हटाया जाए। झंडेवालान स्थित हनुमान मूर्ति वाले मंदिर में कटरा स्थित वैष्णो माता की गुफा में वैष्णो माता, काली माता और सरस्वती माता की पिंडी हैं। हम उम्मीद करते हैं कि माननीय हाई कोर्ट इस पवित्र धार्मिक स्थल से कोई छेड़छाड़ की इजाजत नहीं देगा और मूर्ति को हटाने से बचेगा।

Friday, 24 November 2017

पहले कफन का बिल दो फिर मिलेगी लाश

प्राइवेट अस्पतालों की धांधलेबाजी के उदाहरण पहले भी कई बार आ चुके हैं। यह किस तरह से मरीज को लूटते हैं इसका ताजा उदाहरण फोर्टिस अस्पताल का है। द्वारका में रहने वाले जयंत ने अपनी सात साल की बच्ची को फोर्टिस अस्पताल, गुड़गांव ब्रांच में भर्ती करवाया। बच्ची को डेंगू हो गया था। उन्होंने कहा कि वह बच्ची जो बात करते हुए इस अस्पताल में एडमिट हुई थी और करीब 15 दिन बाद उसका ब्रेन 70-80 प्रतिशत तक डेड हो चुका था। दो दिन बाद अस्पताल ने ही उसे किसी ऐसे अस्पताल ले जाने को कहा जहां पिडिएट्रिक आईसीयू (पीआईसीयू) की व्यवस्था हो। इसके बाद वह 31 अगस्त की शाम अपनी सात साल की बेटी आद्या को लेकर गुड़गांव के फोर्टिस अस्पताल पहुंचे। मां दीप्ति सिंह ने बताया कि हम जब अस्पताल जा रहे थे तो हमारी बच्ची ठीक थी। शारीरिक तौर पर वह स्वस्थ लग रही थी, उसे बुखार था। हालांकि राकलैंड अस्पताल ने हमें रिपोर्ट में बता दिया था उसे डेंगू टाइप-4 है। जयंत ने बताया कि हमें पहले तो समझ नहीं आया। बाद में बिल देखने के बाद हमें पता चला कि हमारे साथ क्या हुआ है। 15 दिन का हमारा कुल बिल 15,79,322 रुपए बना। यही नहीं, बच्ची ने जो लास्ट ड्रेस पहनी थी उसका भी 900 रुपए का बिल थमा दिया गया। डेंगू का शिकार हुई बच्ची की मौत के बाद उसके परिवार को 16 लाख का बिल देना आजकल इन प्राइवेट अस्पतालों की लूट का एक उदाहरण है। अस्पताल अब एक बिजनेस बन गए हैं। कोल्ड ड्रिंक्स बनाने वाली कंपनियों के शेयर कैपिटल हैं तो अस्पतालों के भी हैं। यानी अस्पताल में इन्वेस्टर ने पैसा लगाया है और मुनाफे के लिए वह अपने प्रॉडक्ट की मार्केटिंग करते हैं। नुकसान होने की स्थिति में ओवर बिलिंग से भी नहीं डरते। इसे डाक्टर नहीं बल्कि सीईओ की गाइडलाइन से चलाया जाता है। यहां सिर्फ अस्पताल का मुनाफा मायने रखता है। एक अस्पताल के मार्केटिंग डिपार्टमेंट में काम करने वाले ने बताया कि इलाज, जांच, डाक्टरों की फीस सब सीईओ तय करते हैं। इसलिए अस्पताल अपनी मर्जी से बिल बनाते हैं। एक स्ट्रेटजी के तहत हर महीने अस्पताल की कमाई का टारगेट फिक्स किया जाता है। टारगेट पूरा हो रहा है या नहीं, उसके लिए हर महीने 20 तारीख को रिव्यू होता है। टारगेट पूरा नहीं होने पर ओवर बिलिंग का आदेश भी दिया जाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने मंगलवार को इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी और कहा कि सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेगी। नड्डा ने घटना को बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि उन्होंने स्वास्थ्य सचिव से भी मामले को देखने को कहा है। उन्होंने कहाöमैंने अस्पताल के अधिकारियों से पूछताछ की है और उनसे स्वास्थ्य मंत्रालय को विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है। डेंगू के इलाज के लिए 16 लाख के बिल जिसमें 2700 रुपए दस्तानों के भी जोड़े हुए हैं, देने वाले गुरुग्राम फोर्टिस अस्पताल की तरफ हर ओर से शक की अंगुली उठती दिख रही है। कानूनी जानकारों का कहना है कि पीड़ित परिवार का दावा अगर सही है तो वह बढ़े बिल के खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। एडवोकेट आदित्य परोलिया ने बताया कि अगर किसी अस्पताल की ओर से इलाज का बिल बढ़ाचढ़ा कर लिया गया है तो यह अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस में आएगा। अस्पताल की ओर से दी गई सर्विस में कोई खामी है तो यह सीधे-सीधे डिफेक्टिव सर्विसेज का मामला है। इन दोनों ही आरोपों के तहत पीड़ित परिवार कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। इस घटना के बाद एक बार फिर यह बहस का विषय बन गया है कि क्या प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों से ज्यादा पैसा लिया जाता है? कई प्राइवेट अस्पतालों को जमीन रियायती दर पर दी गई है, कुछ शर्तों पर दी गई है, क्या सरकार ऐसे लुटेरे अस्पतालों पर कोई अंकुश नहीं लगा सकती? निजी अस्पतालों के रूम, आईसीयू, वेंटिलेटर, लैब व जांच के चार्ज सबसे ज्यादा होते हैं। सरकार को इस पर नियंत्रण करना चाहिए। कर्नाटक सरकार ने निजी अस्पतालों को रेट सूची दी है कि कितना चार्ज लेना है। ऐसे ही हरियाणा समेत अन्य राज्यों को भी करना चाहिए। इस हिसाब से तो मध्यमवर्गीय या गरीब इन अस्पतालों में इलाज भी नहीं करवा सकते।

-अनिल नरेन्द्र

आधार जानकारियों का लीक होना?

निश्चित रूप से अगर यह जानकारी सही है कि केंद्र और राज्य सरकारों की 210 वेबसाइटों ने लोगों की आधार से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक की हैं तो यह चिन्ताजनक ही नहीं बल्कि एक तरह से विश्वास तोड़ना है। अभी तक सरकार की ओर से यह बार-बार आश्वासन दिया जाता रहा है कि आधार से जुड़ी जानकारी एकदम सुरक्षित है और इनके लीक होने का कोई खतरा नहीं है। आधार कार्ड जारी करने वाली संस्था भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी यूआईडीएआई भी यही दावा करती है। किन्तु अब इसी संस्थान ने सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी में यह भूल स्वीकार की है। यूआईडीएआई ने यह स्पष्ट किया कि उसने इस उल्लंघन पर संज्ञान लिया है और इन वेबसाइटों से जानकारियां हटवा दी हैं। संस्थान ने डाटा लीक होने के सन्दर्भ में अपने एक बयान में कहा है कि तथ्यों को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया गया है। उसने कहा कि आधार डाटा पूरी तरह से सुरक्षित है और यूआईडीएआई में डाटा न चोरी हुआ और न ही लीक हुआ है। उसने कहा कि इन वेबसाइटों पर जो डाटा सार्वजनिक किए गए हैं वे सूचना के अधिकार कानून के तहत किए गए हैं और संस्थानों की वेबसाइटों पर लाभार्थियों के नाम, पता बैंक खाता और आधार सहित दूसरी जानकारियां जारी गई हैं। ये आंकड़े तीसरे पक्ष या उपयोगकर्ताओं द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए संग्रहित डाटा हैं जो सूचना के अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक किए गए हैं। उसने फिर से इस बात पर जोर दिया है कि यूआईडीएआई की ओर से आधार के ब्यौरे को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। हम उसके इस दावे को भी स्वीकार कर लेते हैं कि यह एक व्यवस्थित तंत्र है और भविष्य में जानकारियां लीक न हों, उसके पुख्ता उपाय उसने किए हैं। किन्तु जिन लाभार्थियों के नाम-पते सहित अन्य जानकारियां सार्वजनिक हुईं उनका क्या? अगर किसी ने इसका दुरुपयोग कर ऐसे लोगों के नाम पर कुछ गोरखधंधा कर लिया तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? इसलिए यूआईडीएआई का इतना कहना पर्याप्त नहीं हो सकता कि उसने जानकारियां हटवा दी हैं और भविष्य में ऐसा नहीं होगा। केंद्र सरकार विभिन्न सामाजिक सेवा योजनाओं का लाभ उठाने के आधार को अनिवार्य करने की प्रक्रिया में है। सुप्रीम कोर्ट में आधार को अनिवार्य करने पर सुनवाई चल रही है। न्यायालय ने निजी जानकारियों को मौलिक अधिकार माना है। इस फैसले के आधार पर सार्वजनिक की गईं सूचनाएं संबंधित व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में आएगा। आधार जानकारियों का लीक होना बहुत बड़ी गलती है और इसके लिए सरकार को और सख्त नियम बनाने होंगे ताकि यह लीक न हों।

Thursday, 23 November 2017

ईरान और सउदी अरब में 36 का आंकड़ा

ईरान और सउदी अरब के बीच 36 का आंकड़ा है। ईरान और सउदी लंबे वक्त से एक-दूसरे के दुश्मन हैं। लेकिन हाल ही में इन दोनों देशों के बीच तनातनी ज्यादा बढ़ने लगी है। सुन्नी प्रमुख वाला सउदी अरब इस्लाम का जन्म स्थल है और इस्लामिक दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण जगहें में शामिल है। यह दुनिया के शुमार सबसे बड़े तेल निर्यातकों और धनी देशों में से एक है। सउदी अरब को डर है कि ईरान मध्य-पूर्व पर हावी होना चाहता है और इसलिए वह शिया नेतृत्व में बढ़ती भागीदारी और प्रभाव वाले क्षेत्र की शक्ति का विरोध करता है।  युवा एवं शfिक्तशाली क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पड़ोसी यमन में हुई विद्रोहियों के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ रहे है। सउदी का कहना है कि विद्रोहियों को ईरान से समर्थन मिल रहा है लेकिन ईरान ने इस दावे को खारिज किया है। सउदी अरब भी उसके जवाब में विद्रोह करता है और सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को हटाना चाहता है, जो ईरान का मुख्य शिया सहयोगी है। सउदी अरब के पास सबसे अच्छे हथियार से लैस फौज है जो दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है। इसके पास दो लाख से ज्यादा सैनिक हैं। ईरान 1979 में एक इस्लामिक गणराज्य बना। उस समय वहां राजतंत्र को हटाकर आयतुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में राजनीतिक ताकत ने अपनी पकड़ मजबूत की। ईरान की आठ करोड़ आबादी में शिया मुसलमान बहुसंख्यक हैं। पिछले कुछ दशकों में इराक में सद्दाम हुसैन का दौर गुजर जाने के बाद मध्य-पूर्व इलाके में ईरान ने अपना प्रभुत्व तेज कर लिया। ईरान ने इस्लामिक स्टेट (आईएस) से लड़ने में सीरिया और इराक में सुन्नी जेहादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। ईरान का यह भी मानना है कि सउदी अरब लेबनान को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है। यहां ईरान एक शिया अभियान fिहजबुल्लाह का समर्थन कर रहा है।  ईरान अमेरिका को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है। ईरान में सेना और आईआरजीसी के जवानों को मिलाकर कुल 5 लाख 34 हजार जवान मौजूद हैं। दूसरी तरफ सउदी अरब के अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ईरान विरोधी रवैए के बाद यह रिश्ते और बेहतर हुए हैं। ट्रंप प्रशासन ने कभी भी सउदी अरब में कट्टरपंथी इस्लाम की वैसी आलोचना नहीं की जैसी वे ईरान में करते हैं। रूस के संबंध सउदी अरब और ईरान दोनों के साथ हैं। उसके दोनों  ही देशों के साथ आर्थिक गठजोड़ हैं। वह इन दोनों देशों को आधुनिक हथियार बेचता है। मध्य-पूर्व में वर्चस्व की इस लड़ाई में जीत किसी होगी?

-अनिल नरेन्द्र

आतंकियों और नक्सलियों पर भारी पड़ते सुरक्षा बल

आतंकवाद भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। चाहे वह कश्मीर में जेहादियों की हो या नक्सलियों की हिंसा हो इस पर काबू पाना एक समस्या बनी हुई है। पर 2017 का साल हमारे सुरक्षा बलों के लिए अच्छा रहा है। पहले बात करते हैं जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की। कश्मीर में सेना व सुरक्षा बलों की आक्रामक रणनीति के कारण बड़े पैमाने पर आतंकियों का सफाया हो चुका है। इस साल रिकार्ड तोड़ आतंकी मारे गए हैं। कश्मीर में 15 कार्प के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जेएस संधु ने इस साल 19 नवम्बर तक 190 आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि की है। आमतौर पर बाकी सालों में यह आंकड़ा एक सौ से नीचे रहता था, लेकिन इस साल यह दो सौ से भी ऊपर चला जाएगा। सेना का कहना है कि घाटी में पाक समर्थित आतंकी संगठन लश्कर--तैयबा के शीर्ष नेतृत्व का सफाया हो गया है। इस साल जिन 190 आतंकियों को मार गिराया गया उनमें 80 स्थानीय थे और 110 विदेशी आतंकवादी थे। सुरक्षा बलों के चौतरफा दबाव के कारण कश्मीर घाटी में पत्थर बाजी की घटनाओं में भी 90 प्रतिशत की कमी आई है। पिछले वर्ष की तुलना में यह बड़ी सफलता है। इस साल मारे जाने वाले आतंकियों में से 5-6 टॉप कमांडर भी थे, जिन्हें सेना, सुरक्षा बलों और पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन में मौत के घाट उतारा गया है। दूसरी तरफ सुरक्षा बलों के कसते शिकंजे से नक्सली कमजोर पड़ते जा रहे हैं। दस राज्यों के 106 जिलों में सक्रिय नक्सलियों ने खुद माना है कि 2017 के दस महीनों में उन्हें तगड़ा झटका लगा है। इस दौरान उनके जिन 140 साथियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया है, उनमें 34 महिलाएं थीं। यह जानकारी  पीपुल्स लिब्रेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजी) के स्थापना दिवस से पहले नक्सलियों के केंद्रीय सैन्य आयोग की तरफ से जारी बयान में दी गई है। इसमें बताया गया है कि उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान दंडकारण्य (छत्तीसगढ़) में उठाना पड़ा है। वहां 98 नक्सली मारे जा चुके हैं। हालांकि 2017 में नक्सलियों से लोहा लेते हुए सुरक्षा बलों के 71 जवान भी शहीद हो गए। मारे जाने वाले नक्सलियों में उनके डिवीजन  और जोनल स्तर के नेता भी शामिल हैं। नक्सलियों के बयान में प्रभावित क्षेत्रों में चलाए जा रहे अभियान ः समाधान (2017-2022) का विशेष रूप से जिक्र है। साथ ही 2014 से लगातार सुरक्षा बलों के प्रहार की बात भी स्वीकार की गई है। बयान में कहा गया कि 2016 की तुलना में इस साल बीते 10 महीनों में सुरक्षा बलों की तरफ से हमले तेज हुए हैं। इससे बहुत नुकसान हुआ है। खासकर सुरक्षा बलों ने बड़ी संख्या में हथियार और कारतूस जब्त कर लिए हैं। सुरक्षा बलों को बधाई।

Wednesday, 22 November 2017

न कारोबार सुधरा और न ही भ्रष्टाचार खत्म हुआ

बेशक अमेरिका की वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 13 साल में पहली बार भारत की क्रेडिट रेटिंग को एक पायदान सुधारा हो पर क्या वास्तविक जमीनी स्थिति भी सुधरी है? पीएचडी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अनिल खैतान का तो कुछ और ही कहना है। भारत में कारोबार सुगमता के क्षेत्र में हालात नहीं सुधरे हैं। निचले स्तर पर अभी भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। खैतान ने कहाöसिर्फ बातें और बातें हो रही हैं, कोई काम नहीं हो रहा। जब तक सरकार जो कहती है उस पर चलती नहीं है तो यह एक बड़ी विफलता होगी। नीतियों की घोषणा तो तब की जाती है, लेकिन नीतियों की घोषणा करने के बाद उन पर अमल नहीं करना एक तरह से उनका बेकार होना है। उन्होंने यह भी कहा कि नोटबंदी के नकारात्मक प्रभाव से उबरने में कारोबार को अभी कम से कम 14 महीने लगेंगे। एक साक्षात्कार में खैतान ने कहा कि सरकार के शीर्ष नेतृत्व में अब भ्रष्टाचार नहीं  बचा है, लेकिन सरकारी तंत्र के सबसे निचले स्तर पर यह व्यापक रूप से फैला हुआ है। इससे देश का कारोबार सुगमता का माहौल खराब होता है। खैतान से पूछा गया था कि विश्व बैंक की कारोबार सुगमता रिपोर्ट में भारत की रैकिंग 30 स्थान सुधरकर 100वें स्थान पर आने के क्या वास्तव में भारत में कारोबार सुगमता का माहौल बेहतर हुआ है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, नहीं मुझे ऐसा नहीं लगता है। आप किसी बिल्डर से बात कीजिए, हालात वैसे ही हैं, भ्रष्टाचार अब दोगुना हो गया है क्योंकि अब सरकार में शीर्ष पर तो भ्रष्टाचार नहीं है, ऐसे में यदि आप भ्रष्ट नहीं होने की अपनी प्रतिबद्धता पर आक्रमक बने रहते हैं तो निचले स्तर के अधिकारी बड़े आराम से कह देते हैं कि तुम प्रधानमंत्री के पास जाकर ही अपना काम क्यों नहीं करा लेते। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर जुलाई-सितम्बर की तिमाही में 5.7 प्रतिशत से 5.9 प्रतिशत के बीच बनी रहेगी और पूरे वित्त वर्ष में यह 6-6.50 प्रतिशत के बीच रहने की संभावना है। सरकार के नोटबंदी के फैसले पर खैतान ने कहाöमेरे विचार में यह एक अच्छा कदम होता अगर सरकार पुराने 500 और 1000 के नोटों को 31 मार्च तक चलने देती और एक अप्रैल 2017 के बाद इसकी कानूनी वैधता खत्म कर देती। उन्होंने कहा कि सरकार को घोषणा करनी चाहिए थी कि हम 500 और 1000 रुपए के नोट की छपाई बंद कर रहे हैं। जो भी व्यक्ति 500 और 1000 रुपए के नोट की घोषणा करते उनसे एक समान 25 प्रतिशत की दर पर कर लिया जाएगा। इस तरह से निश्चित तौर पर काला धन वापस आ जाता।

-अनिल नरेन्द्र

17 साल बाद भारत की मानुषी ने जीता मिस वर्ल्ड का ताज

चीन के सान्या शहर में शनिवार को 67वीं मिस वर्ल्ड विजेता के आखिरी चरण में पूछे गए सवाल का मानुषी छिल्लर ने जो जवाब दिया उससे वह प्रतियोगिता जीत गईं। ज्यूरी के फाइनल राउंड में मानुषी से पूछा गया कि किस प्रोफेशन में सबसे ज्यादा वेतन मिलना चाहिए और क्यों? जवाब में उन्होंने कहाöमां को सबसे ज्यादा सम्मान मिलना चाहिए, उन्हें कैश में वेतन नहीं, बल्कि सम्मान और प्यार मिलना चाहिए और इस जवाब से ही उन्हें मिस वर्ल्ड का टाइटल मिल गया। इस प्रतियोगिता में तीन कसौटियां हैंöब्यूटी, ग्लैमर और इंटेलीजेंस। 21 साल की मेडिकल छात्रा ने दुनिया की 108 देशों की सुंदरियों को पछाड़ कर यह खिताब जीता। आत्मविश्वास और सहजता के जरिये मानुषी टॉप-40 से सीधे टॉप-15 में जगह बनाने में कामयाब रहीं। इसके बाद टॉप-10 और टॉप-5 में उनकी जगह पक्की रही। अंतिम पांच में इंग्लैंड, फ्रांस, केन्या और मैक्सिको की प्रतिभागी थीं। अंतिम तीन के चयन के बाद उनका मिस वर्ल्ड बनना करीब-करीब तय हो गया था। वहां इंडिया-इंडिया का शोर होने लगा। खिताब जीतने का ऐलान होते ही मानुषी अपने आंसुओं को छिपा नहीं सकीं। आत्मविश्वास से भरी हरियाणा के झज्जर जिले में रहने वाली मानुषी ने फाइनल से ठीक पहले कहा थाöवैसे तो मैं मेडिकल छात्रा हूं लेकिन मेरा कोई प्लान बी नहीं है। मैं अपनी जिन्दगी में किसी बात का पछतावा नहीं करना चाहती, लिहाजा यह खिताब जीतना मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मेरा हमेशा से मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने का लक्ष्य रहा है। यह मेरे परिवार और मेरे दोस्तों का भी सपना रहा है। मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने वाली मानुषी से पहले प्रियंका चोपड़ा, युक्ता मुखी, डायना हेडन, ऐश्वर्या राय बच्चन और रीता धारिया ने यह खिताब जीता था। इस जीत के साथ ही भारत ने मिस वर्ल्ड का ताज हासिल करने के मामले में वेनेजुएला (6 मिस वर्ल्ड) की बराबरी कर ली है। मिस हरियाणा रह चुकी मानुषी ने इसी साल जून में मिस इंडिया और मिस फोटोजेनिक का अवार्ड भी जीता है। मिस वर्ल्ड में जाने से पहले वह समाज सेवा से जुड़ी रही हैं। उन्होंने माहवारी के दौरान हाइजीन से संबंधित एक अभियान में करीब 5000 महिलाओं को जागरूक किया। मिस वर्ल्ड की वेबसाइट पर मानुषी की प्रोफाइल में लिखा है, मिस मानुषी छिल्लर कार्डियेक सर्जन बनना चाहती हैं और उनका इरादा ग्रामीण इलाकों में गैर-लाभकारी अस्पताल खोलने का है, ताकि गरीबों को भी बेहतर इलाज की सुविधा मुहैया हो सके। जीत के बाद मानुषी ने ट्वीट करके कहाöनिरंतर प्यार, मदद और प्रार्थनाओं के लिए आप सभी का शुक्रिया, यह खिताब भारत के लिए है। बधाई मानुषी।

Tuesday, 21 November 2017

चीन में बढ़ता भ्रष्टाचार

कौन कहता है कि चीन में भ्रष्टाचार नहीं है? पिछले कुछ दिनों से चीन में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाजें उठनी शुरू हो गई हैं। इस अभियान से जुड़े सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य यांग शिआओडू का कहना है कि यदि इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो चीन का अंजाम भी सोवियत संघ जैसा हो सकता है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में विफलता मिलती है, तो वह देश के लिए घातक होगा। चीन के सरकारी अखबार पीपुल्स डेली में लिखे संपादकीय लेख में उन्होंने यह बात कही है। महाशक्ति माना जाने वाला सोवियत संघ 1991 में 15 देशों में विभाजित हो गया था। शिआओडू को सेंट्रल कमीशन फॉर डिसिप्लिन एब्शन के डिप्टी सेक्रेटरी से पदोन्नत करके पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाया गया है। उनको भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में शामिल देश का दूसरे नम्बर का शीर्ष अधिकारी माना जाता है। पोलित ब्यूरो के सदस्यों का देश की सत्ता पर पूरा नियंत्रण होता है। शिआओडू ने अपने लेख में पिछली सरकार की कड़ी आलोचना भी की है। उन्होंने कहा कि पिछले शासनकाल में भ्रष्टाचार इस हद तक बढ़ गया था कि पार्टी का नेतृत्व कमजोर पड़ गया। सरकार ने भ्रष्टाचार को बढ़ने दिया। कार्रवाई करने में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। शिआओडू से पहले एंटी करप्शन प्रमुख झाओ लेजी ने चीनी अखबार पीपुल्स डेली के संपादकीय में भ्रष्टाचार को लेकर भी इसी तरह का लेख लिखा था। लेजी को वांग किशान की जगह एंटी-करप्शन का नया प्रमुख बनाया गया है। लेख में शिआओडू ने कहा कि अगर चीन में भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया गया तो देश का स्वरूप ही बदल जाएगा और यह बर्बाद हो जाएगा। अगर समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो भविष्य में देश के लोगों का सोवियत संघ की तरह हश्र होगा। शिआओडू ने कहा कि राष्ट्रपति शी चिनपिंग भी अपने पूर्ववर्तियों की तरह मानते हैं कि अगर सत्ता पर पकड़ ढीली हुई तो देश में उथल-पुथल मच सकती है। इससे देश बिखर भी सकता है। इसी वजह से सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा अपने कैडर से सोवियत संघ के विघटन का अध्ययन करने को कहती है। उन्होंने संकेत दिया कि शी चिनपिंग के दाहिने हाथ माने जाने वाले वांग किशान के जाने के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कमजोर नहीं होगी। पिछले महीने पार्टी में हुए बदलाव से पहले वांग को चीन का दूसरा सबसे शक्तिशाली नेता माना जाता था। उनको पिछले महीने ही एंटी-करप्शन के प्रमुख पद से हटाया गया था। शिआओडू ने कहा कि राष्ट्रपति शी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई में काफी सफलता पाई है।

-अनिल नरेन्द्र

पद्मावती की रिलीज पर संकट के बादल

बॉलीवुड के निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली की एक सौ अस्सी करोड़ रुपए की लागत से बनी महत्वाकांक्षी और बहुचर्चित फिल्म पद्मावती को लेकर उभरा विवाद जिस तरह चल रहा है उससे फिल्म का तय समय पर रिलीज होना मुश्किल लग रहा है। फिल्म रिलीज होने से पहले ही विवादों में घिर गई है। फिल्म को एक दिसम्बर को रिलीज करने की योजना थी लेकिन अभी तक इसे सेंसर बोर्ड के पास नहीं भेजा गया है। यह फिल्म तभी विवादों में आ गई थी जब राजस्थान में उसकी शूटिंग के समय सेट पर करणी सेना ने तोड़-फोड़ करके अपनी मंशा जाहिर कर दी थी। करणी सेना और अखिल भारतीय क्षत्रिय युवा महासभा की आपत्ति इस बात पर है कि भंसाली ने पद्मावती के चरित्र को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है। शूटिंग के टाइम जब तोड़-फोड़ हुई तो संजय लीला भंसाली ने नाराज लोगों को यह आश्वासन दिया था कि फिल्म में कुछ भी प्रचलित मान्यताओं के विपरीत नहीं होगा, लेकिन जब फिल्म पद्मावती का ट्रेलर आया तो लोगों को यही लगा कि उन्हें दिए गए आश्वासन को पूरा नहीं किया गया। जिस तरह यह समझना कठिन है कि पद्मावती के मान-सम्मान को लेकर चिंतित लोग फिल्म की विषयवस्तु आने और उसे देखे बिना इस नतीजे पर कैसे पहुंच गए कि उनका चित्रण सही तरह से नहीं किया गया है उसी तरह यह भी फिल्मकारों की ओर से इस काल्पनिक अंदेशे को दूर करने में तत्परता का परिचय क्यों नहीं दिया? ऐसा भी लगता है कि कुछ लोग ऐसे हैं जिनको दिलचस्पी इस विवाद को तूल देने में है। क्या इसलिए कि हंगामा होता रहे और मुफ्त का प्रचार मिलता रहे? ऐसे सवाल इसलिए भी उभरे हैं क्योंकि फिल्म निर्माता सेंसर बोर्ड की हां या न का इंतजार किए और यहां तक कि उसे सही तरह फिल्म की प्रति सौंपे बगैर कुछ चुनिन्दा लोगों को फिल्म दिखाना पसंद करते हैं, लेकिन इनमें वे लोग शामिल नहीं होते जो सबसे ज्यादा आपत्ति प्रकट कर रहे होते हैं? आखिर सेंसर बोर्ड से पहले फिल्म को मीडिया के  चुनिन्दा लोगों को दिखाने और उनके जरिये जनता को संदेश देने का क्या मतलब निकाला जाए। फिल्म निर्माता के रवैये पर सेंसर बोर्ड की आपत्ति सर्वथा उचित है। राजस्थान और साथ ही देश के अन्य हिस्सों में आज पद्मावती का विरोध हो रहा है। बेशक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान होना चाहिए लेकिन इसी के साथ किसी को कला और रचनात्मकता के नाम पर धार्मिक सांस्कृतिक प्रसंगों एवं मान्यताओं के निरादर की अनुमति भी नहीं दी जा सकती। कुछ लोग पूरे विवाद को इसमें उलझाने का प्रयास कर रहे हैं कि इतिहास में पद्मावती का पात्र मिलता ही नहीं। महत्वपूर्ण यह नहीं कि पद्मावती थी या नहीं? महत्वपूर्ण यह है कि फिल्म में क्या आपने पद्मावती का चरित्र वैसा ही दिखाया है जैसी मान्यता है? निस्संदेह मिथ्या धारणाओं को तोड़ने का काम किया जा सकता है, लेकिन ऐसा करते समय लोगों को जानबूझ कर उद्वेलित-आक्रोशित करने का कोई मतलब नहीं। आमतौर पर ऐतिहासिक फिल्में हूबहू तथ्यों पर आधारित नहीं होतीं। फिल्म को मनोरंजक बनाने के लिए निर्माता-निर्देशक मसाले का तड़का लगाकर पेश करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि इतिहास को ऐसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाए कि किसी समुदाय की भावना आहत हो। भारत जैसे संकीर्ण और जातीय श्रेष्ठता पर गुमान करने वाले समाज में फिल्म निर्माताओं को खासतौर पर एहतियात बरतने की समझ होनी चाहिए। लेकिन संजय लीला भंसाली और दीपिका के खिलाफ जिस तरह का फतवा जारी किया गया है, उसकी भर्त्सना होनी चाहिए। किसी भी सभ्य और आधुनिक समाज में विरोध का यह तरीका स्वीकार्य नहीं। जो लोग भी शक्ति प्रदर्शन करने के साथ मनमानी कर रहे हैं वे न तो अपना भला कर रहे हैं और न ही समाज का। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कोई फिल्म प्रदर्शन के योग्य है या नहीं, इसे तय करने का अधिकार केवल सेंसर बोर्ड का है और यह काम उसे ही करने दिया जाना चाहिए।

Sunday, 19 November 2017

मुझे भगवान ही सत्ता से हटा सकते हैं?

2008 के चुनाव के वक्त जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे ने कहा था कि उन्हें भगवान ही सत्ता से हटा सकता है। उन्हीं मुगाबे का मंगलवार देर रात सेना ने तख्तापलट कर दिया। वे घर में अब नजरबंद हैं। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि दुनिया के सबसे उम्रदराज शासक मुगाबे का यह हश्र होगा। जिस देश पर वे 37 सालों से एकछत्र राज करते आ रहे थे वहां की सेना ने उन्हें नजरबंद कर दिया। जिम्बाब्वे पर अब वहां की सेना का राज है और राजधानी हरारे की सड़कों पर सेना के टैंक तैनात हैं। अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे की आजादी में बड़ी भूमिका निभाने वाले रॉबर्ट मुगाबे आज अगर अपने ही महल में नजरबंद हैं तो इसके लिए काफी हद तक वह खुद जिम्मेदार तो हैं ही, उनका यह हश्र नायक से खलनायक बने दुनिया की कई ऐसी ही दूसरी शख्सियतों की याद दिलाता है। स्थिति यह है कि आज जिम्बाब्वे के ज्यादातर लोग मुगाबे को उनके तानाशाही तौर-तरीकों के लिए ही जानते हैं। मुगाबे और जिम्बाब्वे के इस राजनीतिक संकट के लिए मुगाबे की पत्नी ग्रेसी को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है। इसकी शुरुआत एक हफ्ते पहले ही हुई थी। जब रॉबर्ट ने अपनी पार्टी जून-पीएफ के दूसरे बड़े नेता उपराष्ट्रपति इमर्सन, मनंगावा को बर्खास्त कर दिया था। दरअसल दिसम्बर में जून-पीएफ की सालाना कांग्रेस होने वाली थी। इसमें मुगाबे पत्नी ग्रेसी को उपराष्ट्रपति बनाने की घोषणा करने वाले थे। जिसे लेकर इमर्सन और पार्टी नेता सहमत नहीं थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुगाबे की 37 साल से चली आ रही सत्ता के अंत की पटकथा खुद ग्रेसी मुगाबे ने तैयार की। जुलाई 2018 में जिम्बाब्वे में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। इसे लेकर पिछले कुछ समय से देश में चर्चा शुरू हो गई थी कि 93 साल के रॉबर्ट मुगाबे का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा। मुगाबे के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थे उपराष्ट्रपति इमर्सन मनंगावा लेकिन मुगाबे अपनी पत्नी ग्रेसी को कमान सौंपना चाहते थे। यह इमर्सन को कैसे रास आ सकता था? इस नाराजगी और सेना द्वारा तख्तापलट के बीच क्या रिश्ता है और कैसे यह समीकरण बना इसकी कहानी कुछ दिनों में सामने आ जाएगी। यह भी सही है कि मुगाबे लंबे समय तक पश्चिमी देशों की निगाह में खटकते रहे हैं। पश्चिमी दुनिया उन्हें एक निरंकुश शासक के रूप में देखती आई है जिसने अर्थव्यवस्था को बर्बादी की राह पर धकेला और सत्ता में बने रहने के लिए बेहिचक हिंसा का सहारा लिया। यही वजह है कि सैन्य तख्ता पलट जैसी घटनाओं पर तीखी प्रतिक्रिया देने वाले पश्चिमी देश फिलहाल खामोश हैं। क्या राष्ट्रपति पद का अगला चुनाव जोकि अगले साल होना है अपने निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक होगा, कहा नहीं जा सकता।

-अनिल नरेन्द्र

डिजिटल की बजाय प्रिंट मीडिया पर ज्यादा भरोसा

नेटवर्क में बंधी दुनिया में सबसे अहम करेंसी हैöभरोसा। मुख्यधारा मीडिया यानी अखबारों पर आज भी यह बात खरी उतरती है। डेटा रिसर्च करने वाली संस्था केंटर की ट्रस्ट इन न्यूज विषय पर हुई नई ग्लोबल रिसर्च का कहना है कि अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस और ब्राजील के लोग जहां डिजिटल मीडिया का रुख कर रहे हैं, वहां भी ज्यादा भरोसा अखबारों पर ही किया जा रहा है। यह स्टडी इन चार देशों के आठ हजार रीडर्स से बात करके तैयार की गई है। स्टडी के मुख्य बिन्दु कहते हैं कि सोशल मीडिया पर लोग खबरों को लेकर अपना ओपिनियन देते हैं। दोस्तों को कमेंट्स करते हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सोशल मीडिया पर खबरों का कंजक्शन कैसा भी हो, फेक न्यूज का मुद्दा आते ही वह लोगों का भरोसा तोड़ देता है। सर्वे में 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि फेक न्यूज के चलते वे सोशल मीडिया पर आने वाली राजनीतिक व चुनावी खबरों पर ज्यादा भरोसा नहीं करते। रिसर्च कहती है कि ब्रिटेन में जो एडल्टर्स ये कहते हैं कि वे वेबसाइट पर आने वाले विज्ञापनों पर गौर करते हैं। उनके मुकाबले 65 प्रतिशत ज्यादा लोग अखबारों में आने वाले विज्ञापनों पर ध्यान देते हैं। ऑनलाइन मीडिया के मुकाबले अखबारों को अपनी ओर ध्यान खींचने का एक ही साधन रह गया है और वह है भरोसा। स्टडी कहती है कि आर्थिक फायदे और आपसी भरोसे के बीच एक लकीर खींचने के लिए अखबारों की खबरों की विश्वसनीयता ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। इसे इस तरह समझिए कि 29 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले साल ऑनलाइन खबर पढ़ने के लिए पैसा दिया। लेकिन जब बात भरोसेमंद न्यूजपेपर ब्रांड की आई तो यह आंकड़ा बढ़कर 42 प्रतिशत हो गया। इसी तरह 40 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने पहली बार कोई अखबार खरीदा है, लेकिन जब भरोसेमंद न्यूजपेपर ब्रांड के बारे में पूछा गया तो 56 प्रतिशत लोगों ने कहा कि हां, उन्होंने वह अखबार खरीदा है। रिपोर्ट के मुताबिक इन दिनों एक ही पहलू पर गौर किया जाता है कि मीडिया के साथ जितना टाइम स्पेंट होगा, उसे विज्ञापन भी उतने ही मिलेंगे। लेकिन जो मीडिया खुद को भरोसेमंद मीडिया के तौर पर पेश करना चाहता है उसे भरोसे पर ज्यादा ध्यान देना होगा। आज के दौर में ट्रेडिशनल न्यूज ब्रांड्स इस बात को लेकर चितिंत हैं कि रीडर के लिए उनकी निर्भरता सोशल मीडिया पर बढ़ती जा रही है। लेकिन सोशल मीडिया पर खबरें पढ़ने वाले करीब दो-तिहाई लोग कहते हैं कि वे इस बात पर भी गौर करते हैं कि वे जो कंटेट पढ़ना चाहते हैं, वह उन्हें किस न्यूज आर्गेनाइजेशन से मिल रहा है। आज भी लोगों का प्रिंट मीडिया पर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के मुकाबले ज्यादा भरोसा है।

Saturday, 18 November 2017

डोनाल्ड ट्रंप ने एशिया दौरे से क्या हासिल किया?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एशिया के पांच देशों के दौरे से कूटनीतिक पर्यवेक्षक उनके रवैये को समझने में उलझे हुए हैं। इस इलाके में ऐसे लोग हो सकते हैं जो ट्रंप के दौरे से हुए बड़े फायदे की बात पर यकीन रखते हों लेकिन यह जरूरी नहीं है अमेरिका को भी इसका कुछ लाभ हो। इसमें कोई दो राय नहीं कि ट्रंप जहां कहीं भी गए, वहां उनका स्वागत किसी राजा की तरह हुआ। बेशक ट्रंप को अपनी तारीफ अच्छी लगती हो, खासकर घरेलू मोर्चे पर हो रही आलोचनाओं के मद्देनजर। विदेशी जमीन पर अगर ट्रंप का शाही स्वागत किया जाता है तो वे विनम्र मेहमान की तरह पेश आते हैं। मानवाधिकार और लोकतंत्र जैसे असहज करने वाले मुद्दों से ट्रंप किनारा कर चुके हैं। जब उत्तर कोरिया ने राष्ट्रपति ट्रंप को बूढ़ा व सठियाया हुआ कहकर बार-बार मजाक उड़ाया तो ट्रंप ने जवाब में किम जोंग उन को नाटा और मोटा कहा। ऐसा लग रहा था के एशिया के जिन देशों के दौरे पर ट्रंप गए उनके नेताओं ने सादगी और भलमनसाहत से मेजबानी की। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कहा कि गोल्फ खेलने के लिए ट्रंप उनके पसंदीदा साथी हैं। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने ट्रंप से कहा कि वे अमेरिका को पहले से महान बना रहे हैं। यहां तक कि सोल की नेशनल असेंबली में मून ने ट्रंप को विश्व नेता कहकर परिचय कराया, हर्नोई में स्वागत समारोह के बाद ट्रंप वियतनाम के राष्ट्रपति के बगल में खड़े हुए। लेकिन उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और ब्लॉगरों की गिरफ्तारी पर कुछ नहीं कहा। बीजिंग में वे राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ खड़े हुए और उन्होंने आलोचना में एक शब्द नहीं कहा। हालांकि चीन का दौरा ट्रंप के लिए थोड़ा अलग जरूर रहा। चीन में शी जिनपिंग ट्रंप की तारीफ नहीं कर रहे थे। बल्कि वहां इसका उलटा हो रहा था। चीन में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ कि ट्रंप की तारीफ के बदले तारीफ मिली हो। बीजिंग में इसका कोई मौका भी नहीं था कि उन्हें विश्व नेता कहकर बुलाया जाए। जानकारों के मुताबिक ट्रंप यह समझते हैं कि चीन के साथ उलझने के खराब नतीजे हो सकते हैं। लेकिन इन दोनों नेताओं के चेहरों पर जो मुस्कुराहट दिखी उसके पीछे तगड़ी सौदेबाजी चल रही थी। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ट्रंप ने साउथ चाइना सी के मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश की है। हालांकि साउथ चाइना सी के मुद्दे पर अमेरिका ने अभी कोई स्टैंड नहीं लिया है। लेकिन वो बिना किसी रोकटोक के आने-जाने के अधिकार का समर्थन करता है। चीन को छोड़कर बाकी देशों ने ट्रंप का जोरदार स्वागत किया।

-अनिल नरेन्द्र

नोटबंदी के बाद तीन गुना बढ़ा है साइबर क्राइम

बैंक कार्ड और ई-वॉलेट के इस्तेमाल के दौरान होने वाली वित्तीय धोखाधड़ी को रोकने के लिए सरकार ने इन साइबर क्राइम को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की बात कही है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को बैंक कार्ड और
-वॉलेट में धोखाधड़ी रोकने के लिए सर्विलांस बढ़ाने और कानूनी ढांचा तैयार करने पर जोर दिया। बैठक में गृहमंत्री को जानकारी दी गई कि साइबर क्राइम को लेकर भी कदम उठाए जा रहे हैं जिससे इनकी जवाबदेही और जिम्मेदारी तय की जा सके। पिछले तीन सालों में 1,44,496 साइबर हमले के मामले सामने आए हैं। 2016-17 में 23,902 करोड़ रुपए के धोखाधड़ी के 4851 केस सामने आए हैं। नोटबंदी के बाद डिजिटल लेनदेन के साथ साइबर अपराध में तीन गुना बढ़ोत्तरी हुई है। भारतीय वाणिज्य उद्योग मंडल (एसोचैम) के अलावा नोएडा के साइबर अपराध अन्वेषण केंद्र के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। साइबर अपराध विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में अभी साइबर क्राइम से निपटने के लिए संसाधन और आम जनता में इसकी जागरुकता की बेहद कमी है। ऐसे में डिजिटल इंडिया का सपना साकार करना है तो संसाधन के साथ आम जनता में जागरुकता को बढ़ाना बेहद जरूरी है। नोटबंदी के बाद डेबिट/क्रेडिट कार्ड से ट्रांजेक्शन में तेजी आई है। इसी का फायदा साइबर अपराधियों ने उठाया। उन्होंने डेबिट/क्रेडिट कार्ड क्लोनिंग और अपग्रेडेशन के नाम पर जानकारी एकत्र कर ठगी को अंजाम दिया है। कुछ मामलों में इन क्रिमिनलों का साथ बैंक कर्मचारियों ने भी दिया है। कुछ मामले ऐसे हैं जो बिना बैंक की मिलीभगत से संभव ही नहीं हो सकते। साइबर अपराध अन्वेषण केंद्र के आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं। 2015 में 560 साइबर क्राइम। 2016 में यह बढ़कर 639 हो गए और 2017 में यह तीन गुना बढ़कर 1803 तक पहुंच गए। डेबिट/क्रेडिट कार्ड से जुड़े अपराधों का यह ब्यौरा है। 2015 में 378, 2016 में 139 और 2017 में 659। आंकड़े साबित करते हैं कि नोटबंदी के बाद साइबर क्रिमिनल्स ने हमारे कमजोर सिस्टम का फायदा उठाते हुए इनमें तीन गुना बढ़ोत्तरी कर ली है। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि देशभर में साइबर क्राइम से निपटने के लिए संसाधन और पुलिस प्रशिक्षण की बढ़ोत्तरी हो। जैसे डिजिटल इंडिया की दिशा में देश बढ़ रहा है वहीं दुख से कहना पड़ता है कि जनता को धोखाधड़ी से लूटने वालों पर कोई लगाम नहीं लग रही है। जनता की गाढ़ी कमाई मिनटों में साफ हो जाती है और उसकी भरपायी करने को कोई भी बैंक व अन्य पूरा करने से साफ बच जाते हैं।

Friday, 17 November 2017

धोनी की आलोचना करने वाले पहले अपना करियर देखें

महेंद्र सिंह धोनी का टीम इंडिया के टी-20 के स्क्वॉड में  बने रहने पर खूब चर्चा हो रही है। पूर्व भारतीय कुछ क्रिकेटरों ने जिनमें अजीत आगरकर भी शामिल हैं, ने धोनी के टी-20 के भविष्य पर सवाल उठाए हैं। कई पूर्व खिलाड़ियों यहां तक कि वीवीएस लक्ष्मण ने भी धोनी के
टी-20 करियर पर सवाल खड़े किए हैं। कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धोनी ने टी-20 से संन्यास लेने को लेकर उठे सवाल और आलोचनाओं को उसी शांत और स्थिर आवाज से खारिज करते हुए कहा कि हर किसी के जीवन के बारे में अपनी राय होती है। हालांकि दो बार विश्व कप विजेता टीम के कप्तान 36 वर्षीय धोनी इन आलोचनाओं से जरा भी परेशान नहीं दिखते। धोनी ने युवा भारतीय टीम के कप्तान के तौर पर 2007 में शुरुआती विश्व टी-20 कप और 2011 वन डे विश्व कप जीता। वहीं टीम के मौजूदा कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्राr धोनी के पक्ष में खड़े हो गए हैं। 2019 के वर्ल्ड कप तक उन्हें टीम के लिए जरूरी मानते हैं। कोहली ने तो यहां तक कह दिया है कि धोनी की उम्र 35 वर्ष से ज्यादा है, इसलिए उन पर सवाल उठ रहे हैं जबकि टीम के लिए अभी भी उनका परफार्मेंस अच्छा है। कप्तान की बात काफी हद तक सही भी है, क्योकिं अंतर्राष्ट्रीय टी-20 मुकाबले में पिछले तीन साल में धोनी का औसत और स्ट्राइक रेट उनके करियर के शुरुआती नौ वर्ष के मुकाबले बेहतर है। हालांकि यह भी सही है कि धोनी अब पहले की तरह आते ही ताबड़तोड़ बल्लेबाजी नहीं कर पाते, जिसकी टी-20 में जरूरत होती है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि बैटिंग आर्डर में उनकी जगह तय नहीं है। यह भी सच है कि धोनी अब आते ही बड़े शॉट नहीं लगा पाते। न्यूजीलैंड के खिलाफ वन डे और टी-20 सीरीज से पहले आस्ट्रेलिया के खिलाफ मुकाबलों में भी ऐसा देखने को मिला है। 100 से ज्यादा की स्ट्राइक रेट से पहले धोनी औसतन 23 गेंदें खेलते हैं। हालांकि अंत तक टिके रहे तो उनका स्ट्राइक रेट 125 से ज्यादा होता है। लेकिन टी-20 में अधिकांश बार यह जरूरी होता है कि आते ही बल्लेबाज लंबे शॉट खेले। धोनी ने पिछले तीन साल में 33 टी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में 140 से ज्यादा का स्ट्राइक रेट से रन बनाए। इससे पहले 2006 से 2014 के बीच उन्होंने केवल 2010 में इससे ज्यादा की स्ट्राइक रेट से रन बनाए थे। टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्राr ने कहा कि धोनी पर टिप्पणी करने से पहले लोगों को अपने करियर को देखना चाहिए। इस पूर्व कप्तान में काफी क्रिकेट बचा है और यह टीम की जिम्मेदारी है कि वह इस खिलाड़ी का समर्थन करे। उन्होंने कहा कि विकेट के पीछे और बल्ले से क्षमता, समझदारी में धोनी से बेहतर कोई नहीं है।


-अनिल नरेन्द्र

चित्रकूट की हार भाजपा के लिए वेकअप कॉल

मध्यप्रदेश की चित्रकूट विधानसभा सीट पर कांग्रेस की जीत भाजपा के लिए एक झटका है। कांग्रेस प्रत्याशी नीलांशु चतुर्वेदी ने भाजपा के शंकर दयाल त्रिपाठी को 14 हजार 133 वोटों से हराया। तीन उपचुनावों में कांग्रेस की लगातार दूसरी और सबसे बड़ी जीत है। इसी साल अटेर में हेमंत कटारे 857 मतों से जीते थे। 2013 में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी विजयी रहे थे। 1956 में प्रदेश के गठन के बाद से चित्रकूट कांग्रेस का गढ़ रहा है। यह सीट 61 सालों में तीन बार ही कांग्रेस के हाथ से निकली है। 1977 में जनता पार्टी से रामानंद सिंह जीते थे। इसके बाद एक बार बसपा से गणेश बारी विधायक रहे। इसके बाद 2008 में गहरवार ने यह सीट जीती थी। चित्रकूट विधानसभा उपचुनावों के नतीजों ने 2018 में भाजपा के 200 पार के लक्ष्य को चुनौती दी है। भाजपा सरकार के कार्यकाल में 2003 के बाद कांग्रेस को चित्रकूट में यह अब तक के सबसे ज्यादा वोटों की जीत मिली है। इसके अलावा क्षेत्र के जातिवाद समीकरणों ने भी कांग्रेस का साथ दिया। ब्राह्मण वोट दोनों उम्मीदवारों के बीच बंटे लेकिन दलित व आदिवासी का कांग्रेस की तरफ ज्यादा झुकाव रहा। रही-सही कसर क्षत्रियों ने पूरी कर दी। चित्रकूट के पिछले दो चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने क्रमश सुरेंद्र सिंह गहिरवार और प्रेम सिंह को उम्मीदवार बनाया था। हालांकि चित्रकूट सीट पहले भी कांग्रेस के पास थी इसलिए इसे भाजपा की कोई बड़ी हार नहीं मानना चाहिए। पर जिस तरह यह सीट दोनों पार्टियों के लिए नाक का सवाल बन चुकी थी उसे देखते हुए भाजपा को खासी निराशा जरूर हुई होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तीन दिन तक चित्रकूट में डेरा जमाए हुए थे, वहीं उत्तर प्रदेश से सटी इस विधानसभा में प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी जमकर चुनाव प्रचार किया। चुनाव नतीजों के बाद स्थानीय लोगों ने खुलकर कहा कि वे शिवराज सिंह चौहान सरकार से संतुष्ट नहीं हैं। वे बदलाव चाहते हैं। उन्होंने भाजपा को भी महज वादे करने और नारे देने वाली पार्टी बताया। बेशक केंद्र सरकार अब भी यह साबित करने में जुटी हो कि नोटबंदी और जीएसटी देश के विकास और भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए आवश्यक कदम है, पर सच्चाई यह है कि इन दोनों फैसलों के चलते लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। लोगों के काम-धंधे मंद हो चुके हैं। जनता की नाराजगी स्पष्ट दिख रही है पर भाजपा अगर इस नाराजगी पर ध्यान नहीं देती तो उसे और मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। यह शिवराज सिंह चौहान के लिए वेकअप कॉल भी है।

Thursday, 16 November 2017

उत्तर कोरिया भीतर से कैसा है?

दुनिया में अगर कोई मुल्क सबसे बड़े बंद दरवाजे के पीछे जीता है तो वो है उत्तर कोरिया। बाहरी दुनिया से उसका संपर्क  ना के बराबर ही है। वहां के आम लोग बाहर नहीं जा सकते और बाहर के लोग आसानी से अंदर दाखिल नहीं हो सकते। लेकिन कुछ लोग खतरों से खेलकर उत्तर कोरिया से भागने में सफल होते हैं। ऐसे ही कुछ लोगों ने बीबीसी को बताया कि उत्तर कोरिया में जीवन कैसा है। वो बाहरी दुनिया से कितना अलग है और उत्तर कोरिया की कौन-सी बात उन्हें आज भी याद आती है। उत्तर कोरिया से भाग निकलने वाली एक महिला ने बताया-बचपन से ही हमारा ब्रेन वॉश किया जाता है कि अमेरिकी भेड़िया होते हैं। मैं काफी वक्त तक यही सोचती थी कि अमेरिका में रहने वाले सभी लोग खतरनाक, दानव और पीली आंखों वाले होते हैं। एक दूसरी महिला ने बताया कि उसे बहुत समय तक लगता रहा कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया में रहने वालों की छाती पर घने बाल होते हैं। वहां रह चुके एक युवक ने बताया, उत्तर कोरिया में हर हफ्ते रेगुलर क्रिटिक के नाम से एक आयोजन हुआ करता था। जिसमें खुद के झांकने को कहा जाता था और साथ ही दूसरे के गलत व्यवहार की जानकारी भी देनी होती थी। उत्तर कोरिया के बारे में कोई एक बात जो आप दूसरों को बताना चाहते हैं के जवाब में एक महिला कहती हैं कि सभी के अंदर एक ही तरह का दिल और जज्बात होते हैं। मैं चाहती हूं कि बाकी लोग हमें भी अपनी ही तरह का समझें। एक युवक ने कहा कि जब हमें ठंड लगती है तो हम कोट पहन लेते हैं। इसी तरह जब हम अकेले होते हैं तो हमें प्यार चाहिए। एक अन्य युवक ने कहा ः उत्तर कोरिया के लोगें को आजादी के लिए लड़ना पड़ता है और वे इस आजादी को बड़ी शिद्दत से चाहते हैं। मैं चाहता हूं कि लोग इस बात को हमेशा याद रखें। उत्तर कोरिया में किम जोंग का शासन है। इस देश के बारे में बहुत कम जानकारियां बाहर निकलकर आती हैं। उत्तर कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रम में लगातार विस्तार कर रहा है जिसके चलते उसे कई आर्थिक प्रतिबंध झेलने पड़ रहे हैं। अमेरिका उत्तर कोरिया को वैश्विक समुदाय से अलग-थलग कर देना चाहता है। ऐसे में वहां के नागfिरकों के क्या विचार हैं और वहां की जिंदगी के रंग कैसे हैं, यह जानना हमेशा ही दिलचस्प रहता है। एक युवक ने कहा कि मैं भारत और अमेरिका के बारे में सोचता हूं, मैंने भारतीय फिल्मों में देखा है कि उनमें बहुत ज्यादा डांस करते है। वह सब मुझे कूल लगता है। मुझे उन लोगों से जलन
होती है।

-अनिल नरेन्द्र

मैं शिव भक्त हूं, सच्चाई में यकीन करता हूं

गुजरात विधानसभा  चुनाव में अन्य राज्यों की तरह ही सत्ता की चाबी युवाओं के हाथ में है। यही वजह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही उन्हें अपने खेमे में लाने की रणनीति अपना रहे हैं। बेशक अगर युवाओं में उनकी पसंद के नेता की बात करें तो अब भी एक दशक तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे और अब देश के प्रधानमंत्री मोदी का पलड़ा भारी नजर आता हैं। वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मेहनत रंग लाती दिख रही है और राज्य के युवाओं में उनके प्रति आकर्षण बढ़ा है। पिछले कुछ समय से राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी है और वह बातें भी बहुत ढंग की कर रहे हैं। गुजरात के पालनपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं से राहुल ने एक बड़ी अच्छी बात कही। उन्होंने कार्यकर्ताओं को समझाया कि बीजेपी और नरेन्द्र मोदी से हमारे मतभेद हैं इसलिए हम उनका विरोध करेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री पद का अनादर नहीं करेंगे। इससे पहले भी कांग्रेस की एक सभा में नरेन्द्र मोदी मुर्दाबाद का नारा लगाने पर वह लोगों को रोक चुके हैं। उनका कहना था कि मोदी हमारे राजनीतिक विरोधी हैं। इसलिए हम उनसे लड़ेंगे और उन्हें हराएंगे, लेकिन मुर्दाबाद जैसे शब्द हम किसी के लिए नहीं कहेंगे। लंबे अर्से बाद देश की राजनीति में किसी ने ऐसी बात कही है। यूं कहें कि ऐसी बात कहने की जरूरत हुई है। वरना देश में विरोधियों का सम्मान करने की राजनीतिक संस्कृति हमेशा रही है। कांग्रेस की ही नेता इंदिरा गांधी के शासन-काल में विरोधी राजनीतिक नेताओं को जेल तक भेज दिया गया था। इसके बावजूद चुनाव लड़ने और जीतने के बाद भी किसी बड़े नेता ने इंदिरा जी के लिए अशोभनीय बातें नहीं कहीं। मगर पिछले कुछ समय से देश में ही नहीं वैश्विक स्तर पर आक्रामक बयानों वाली राजनीति का चलन बढ़ता जा रहा है। इसके प्रभाव में विरोधियों के प्रति तीखी और सस्ती टिप्पणियों को अच्छी बात के रूप में लिया जाने लगा है। माना जाता है कि आम जनता में ऐसे नेता की जल्दी धाक बन जाती है। हालांकि ऐसे नेता की धाक उतरते भी ज्यादा वक्त नहीं लगता। कांग्रेस में भी ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो ऐसी भाषा के इस्तेमाल के लिए जाने जाते हैं। अक्सर वे ऐसे बयानों से राजनीति का ताप बढ़ाते भी रहे हैं। मगर राहुल गांधी ने अब अपना निश्चित स्टैंड बताकर न केवल अपनी पार्टी के ऐसे नेताओं को आगाह किया है बल्कि देश की राजनीतिक संस्कृति में भी सुधार की एक महत्वपूर्ण पहल की है। उधर मंदिरों में दर्शन से जुड़े बीजेपी के सवालों पर राहुल गांधी ने कहा कि वह शिव भक्त हैं और सच्चाई में यकीन करते हैं। बीजेपी जो भी बोले में सच्चाई में विश्वास करता हूं। गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी के लगातार मंदिर जाने पर बीजेपी ने सवाल उठाए हैं।

Wednesday, 15 November 2017

अपने-अपने सर्वेक्षणों में जीत का दावा

हिमाचल में मतदान के  बाद और गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार तेज हो गया है। अपने-अपने सर्वेक्षणों में दोनों प्रमुख पार्टियां अपनी जीत का दावा कर रही हैं। गुजरात भाजपा जनसम्पर्क के जरिये मतदाताओं तक पूरे गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश पहुंचा रही है, वहीं कांग्रेस 14 नवम्बर से जनसम्पर्क शुरू कर एक करोड़ मतदाताओं को जोड़ने की योजना बना रही है। चुनावी दंगल में दोनों ही दल जीत का दावा कर रहे हैं। भाजपा के आंतरिक सर्वे में पार्टी को 120 से 130 और कांग्रेस को 50-60 सीटें मिलने का दावा किया जा रहा है। जबकि कांग्रेस के सर्वे में भाजपा को 60-70 और पार्टी को 110 से 120 सीटें मिलने का बात कही गई है। एक ताजा स्वतंत्र सर्वे में भाजपा को 121 और कांग्रेस को 58 सीटें मिलने का अनुमान व्यक्त किया गया है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी की सभाओं और पाटीदारों के समर्थन के ऐलान के बाद तस्वीर बदलेगी। कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया का कहना है कि भाजपा मीडिया में खूब प्रचार कर रही है, लेकिन जमीन पर कांग्रेस मजबूत है। कांग्रेस नेता राज्य में अब तक 275 छोटी-बड़ी सभाएं कर चुके हैं। ग्रामीण इलाकों के साथ इस बार कांग्रेस को अहमदाबाद व सूरत जैसे शहरों में भी अच्छी संख्या में सीटें मिलेंगी। मोढवाडिया का दावा है कि किसान, युवा, व्यापारी और महिलाएं कांग्रेस का समर्थन करेंगी, पार्टी को 110 से 120 सीटें मिल रही हैं। राहुल गांधी को मिल रहे जनसमर्थन से कांग्रेस उत्साहित है। वहीं गुजरात भाजपा के प्रवक्ता व पूर्व विधायक भरत पांडिया का कहना है कि केंद्र की संप्रग सरकार ने राज्य के साथ हमेशा अन्याय किया। मोदी सरकार ने जनधन, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, मुद्रा व उज्ज्वल योजना से करोड़ों महिलाओं व युवाओं का भाग्य बदल दिया है। डिजिटल लेनदेन से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है। कांग्रेस राज में 12 लाख करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए, लेकिन मोदी सरकार पर एक भी आरोप नहीं लगा है। महासम्पर्क अभियान से लोग खुद उत्साह से जुड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की सभाओं के बाद प्रदेश का माहौल बदलेगा। उधर सट्टेबाजों का अपना आकलन चल रहा है। पिछले गुजरात के चुनाव हों या फिर लोकसभा चुनाव सट्टेबाजों के भाव और दाव लगभग 90 प्रतिशत तक सही रहे हैं। राजनीतिक पंडित सट्टा बाजार के भाव को चुनाव का ट्रेंड सैंटर भी मानते हैं। गुजरात को लेकर स्थिति क्या रहेगी यह फिलहाल दावे से नहीं कहा जा सकता लेकिन सट्टा बाजार के खिलाड़ी मैदान में डट गए हैं और उनकी निगाह हर रोज डिब्बे से निकलने वाले भाव पर लगी रहती है। देशभर की नजरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात पर लगी हुई हैं। गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, कई केंद्रीय मंत्री चुनाव प्रचार में जुटे हैं। प्रधानमंत्री अब तक तीन बार दौरा कर चुके हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी लगातार सभाएं और रोड शो कर रहे हैं। ताज्जुब इस बात का है कि अभी चुनावी टिकटें तक घोषित नहीं हुईं लेकिन रविवार की रात डिब्बा खुलने पर पुंटरों ने कमल के फूल वाली भाजपा को 104-107 सीटें मिलने का भाव दिया है। जबकि दूसरी ओर पंजे वाली कांग्रेस को ़71-74 सीटों का भाव दिया गया है। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल द्वारा कांग्रेस के समर्थन में स्पष्ट रुख अपनाने से भी मतदाता दुविधा में नजर आता है। हिमाचल में मतदान के बाद पुंटरों ने भाजपा के खाते में 48 से 50 सीटें और कांग्रेस के खाते में 16 से 18 सीटों का अनुमान लगाया है। पर अभी मतदान में कई दिन बचे हैं, स्थिति में परिवर्तन भी आ सकता है। वैसे बता दें कि पिछले गुजरात के चुनाव हों या फिर लोकसभा चुनाव सट्टेबाजों के भाव व दाव लगभग 90 प्रतिशत तक सही रहे। राजनीतिक पंडित सट्टा बाजार के भाव को चुनावों का ट्रेंड सैंटर भी मानते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

हिमाचल में बम्पर वोटिंग किसके हक में जाएगी

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए इस बार बम्पर वोटिंग हुई है। खासकर सूबे की 20 सीटों पर। इन वीआईपी सीटों पर भारी मतदान से क्षत्रपों की धुकधुकी बढ़ गई है। कांटे की टक्कर वाली इन सीटों पर 2012 के चुनाव से ज्यादा मतदान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। मतदाताओं ने दिग्गजों के साथ सियासी पंडितों को भी असमंजस में जरूर डाल दिया है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह की सीट शिमला ग्रामीण में इस बार रिकार्ड 13 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग हुई है। पहली बार चुनावी मैदान में उतरे विक्रमादित्य का मुकाबला वीरभद्र सिंह के खासमखास रहे प्रमोद शर्मा से है। वीरभद्र और प्रेम कुमार धूमल की सीटों पर भी मतदान प्रतिशत का आंकड़ा बढ़ा है। दोनों नेता नई सीटों से उतरे हैं। मंत्री सुधीर शर्मा, जीएस बाली, मुकेश अग्निहोत्री और कौल सिंह ठाकुर की सीटों पर इस बार ज्यादा मतदान हुआ है। बिलासपुर, मंडी, जोगिन्दर नगर, शाहपुर, नादौन, शिमला शहर और नाहन में भी पहले से ज्यादा वोट पड़े हैं। इनमें कांटे की टक्कर मानी जा रही है। उधर पालमपुर, सिराज, बंजार, ठियोग और सोलन भी प्रदेश की हॉट सीटों में शुमार रही हैं लेकिन इन सीटों पर मतदान पहले से कम हुआ है। क्या हिमाचल में कांग्रेस वर्ष 2012 के अपने प्रदर्शन को दोहराएगी या भाजपा सत्ता पर सवार होगी? रिकार्डतोड़ मतदान के बाद भाजपा 50 से अधिक सीटों पर जीत का दावा कर रही है, वहीं कांग्रेस अपने रैंक में बदलाव करने के लिए मिशन रिपीट का राग अलाप रही है। दोनों भाजपा और कांग्रेस पार्टियों में से कोई भी वर्ष 1990 से लेकर अब तक प्रदेश में दोबारा सत्ता पर काबिज नहीं हुई है। चुनावी थकान के बावजूद जहां प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का आकलन लगाने में व्यस्त हैं और मतदान के आंकड़े जुटा रहे हैं। हिमाचल में रिकार्डतोड़ मतदान होने से कई दिग्गजों की लाज दांव पर लगी हुई है। वैसे तो इस बार समूचे प्रदेश में ही भारी मतदान दर्ज किया गया है लेकिन इसके बावजूद 20 विधानसभा सीटों पर बम्पर वोटिंग हुई है। इन सीटों पर अधिक वोटिंग सरकार के पक्ष में जाएगी या फिर विरोध में यह तो आने वाली 18 दिसम्बर को मशीनों की सील टूटने के बाद ही पता चल पाएगा। बम्पर वोटिंग मोदी लहर के पक्ष में है या मोदी लहर के विरोध में यह पता चलेगा अगले महीने। भाजपा हिमाचल में 50 सीटें हासिल करने का दावा कर रही है। पिछले आंकड़े बता रहे हैं कि भाजपा इससे पहले कभी भी 50 सीटें हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाई थी। वोट अब मतदाता पेटी में बंद हैं और 18 दिसम्बर तक के लंबे इंतजार के बाद पता चलेगा कि कौन जीता और कौन हारा है।

Tuesday, 14 November 2017

कौन-सा देश कितना धार्मिक है

दुनिया की सबसे बड़ी आबादी ईसाई धर्म को मानती है। इस्लाम इस मामले में दूसरे नम्बर पर है। कोई भी धर्म न मानने वाले तीसरे नम्बर पर हैं। लेकिन आधिकारिक तौर पर दुनिया में सबसे ज्यादा देशों का धर्म इस्लाम है। यह जानकारी प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा 199 देशों के धर्म के आधार पर किए गए अध्ययन से सामने आई है। इसमें इन देशों के संविधान और कानूनों का अध्ययन किया गया है। इनमें धर्म को लेकर प्रावधान, धर्म को मानने वाले, समर्थक या धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रों का विश्लेषण किया गया है। इसके मुताबिक दुनिया में 43 देश ऐसे हैं जिन्होंने आधिकारिक तौर पर खुद को धार्मिक देश घोषित किया है। इनमें से 27 ने खुद को इस्लामिक और 13 ने ईसाई देश बताया है। खुद को धार्मिक घोषित कर चुके 43 देशों के अलावा 50 देश ऐसे भी हैं जिनका संविधान धर्म को मान्यता नहीं देता, पर समर्थन जरूर करता है। इनमें ईसाई धर्म के देशों की संख्या ज्यादा है। भारत-नेपाल समेत 106 देशों ने खुद को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया है। दुनिया में ईसाइयों की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन धार्मिक देशों में इस्लाम से पीछे हैं। इस्लामिक राष्ट्रों की संख्या ईसाई राष्ट्रों से दोगुना है। इनमें सुन्नी, शिया इस्लाम या सिर्फ इस्लाम मानने वाले शामिल हैं। अन्य धर्मों से भेदभाव करने वाले देशों में ज्यादातर इस्लामिक हैं। कोमोरोस, मालदीव, मॉरीतनिया में नागरिकों के लिए इस्लाम का पालन अनिवार्य है। लीपटेस्टीन, माल्टा और मोनाको ईसाई हैं, लेकिन अन्य धर्मों को भी सभी सरकारी फायदे मिलते हैं। जॉर्डन इस्लामी देश है। यहां अन्य धर्मों के लोगों को सरकारी योजनाओं के फायदे नहीं मिलते। गैर-मुस्लिमों को प्रॉपर्टी से लेकर शादी तक की जानकारी सरकार को देनी पड़ती है। इस्लाम छोड़कर दूसरा धर्म अपनाने वालों पर निगरानी होती है। चीन, क्यूबा, उत्तर कोरिया का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है, लेकिन सख्ती है। इनमें वियतनाम, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान भी हैं। यहां धार्मिक आयोजन पर कड़े नियंत्रण हैं। चीन में सिर्फ पांच संगठनों को धार्मिक गतिविधियों की अनुमति है। भूटान और कंबोडिया ने खुद को आधिकारिक तौर पर बौद्ध राष्ट्र घोषित कर रखा है। लेकिन लाओस बौद्ध धर्म का इनसे बड़ा समर्थक है। इसके संविधान में लिखा है, राज्य बौद्ध धर्म और अन्य धर्मों की वैध गतिविधियों का सम्मान और सुरक्षा करता है। गृहयुद्ध झेल रहा सीरिया इस्लाम बहुल तो है लेकिन आधिकारिक तौर पर वह इस्लामिक देश नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

सम-विषम शर्तों के साथ लागू करना मुश्किल

ऑड-ईवन लागू करने की अनुमति दी जाए या नहीं, इस मामले में सुनवाई करने के दौरान एनजीटी के अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार ने शनिवार सुबह दिल्ली सरकार पर कई सवाल दागे। सरकार जिरह के दौरान बैकफुट पर नजर आई। एनजीटी ने पूछा कि क्या एलजी की अनुमति ली है? आप दोपहिया वाहनों को छूट दे रहे हैं, क्या आपको पता है कि अगर 500 कारों को हटा दिया जाए और 1000 दोपहिया वाहनों को छूट दे दी जाए तो कार से ज्यादा प्रदूषण दोपहियों से होगा। एनजीटी ने सवाल किया कि आपने दोपहिया को किस आधार पर छूट दी है? आंकड़े बताते हैं कि दोपहिया से 30 प्रतिशत प्रदूषण होता है। आप  बताएं योजना के दौरान कितनी डीटीसी बसें सड़कों पर होंगी और कितनी बसें डिपो में खराब पड़ी हैं। एनजीटी ने दिल्ली सरकार से पूछा कि आपने अब तक हेलीकॉप्टर से बारिश क्यों नहीं कराई? जब कहा जाता है तभी सोचते हो। दिल्ली सरकार पार्किंग शुल्क बढ़ाने संबंधी निर्णय (चार गुना) पर पुनर्विचार करे। पैसे बढ़ाने से पर्यावरण समस्या का समाधान नहीं होगा। केवल लोगों पर आर्थिक बोझ ही पड़ेगा। एनजीटी ने पूछा कि इतने समय से प्रदूषण था, आपने क्या किया? एनजीटी ने कड़ी शर्तें दिल्ली सरकार के समक्ष रखीं। यह थीं शर्तेंöसरकार योजना लागू करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन वायु प्रदूषण की आपात स्थिति के दौरान इसे कई तरह की छूट के साथ लागू नहीं किया जा सकता। सम-विषम व्यवस्था के दायरे में दोपहिया, महिला चालक, वीवीआईपी वाले समेत अन्य सभी वाहनों को भी इस दायरे में लाया जाए। सरकार इस शर्त को पूरा कर सकती है तो सम-विषम व्यवस्था लागू की जा सकती है। एनजीटी की कड़ी शर्तों को दिल्ली सरकार पूरा नहीं कर पाती इसलिए उसने अपना फैसला वापस ले लिया। कारण कई थेöमहिला सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। दिल्ली में 1.06 करोड़ वाहन हैं। अभी 25 से अधिक कैटेगरी में छूट देने के बाद करीब 25 लाख वाहन सम-विषम के दायरे में आ रहे थे। सम-विषम से करीब 12.50 लाख वाहन सड़क से हटते, लेकिन शर्त मानी तो 25 लाख के साथ 60 लाख दोपहिया वाहन भी जद में आएंगे। यानी रोजाना 30 लाख दोपहिए हटेंगे। इससे निपटने के लिए परिवहन व्यवस्था नहीं है। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन की हालत खराब है। 10 हजार से ज्यादा बसें कम हैं। मेट्रो किराया बढ़ने और पार्किंग शुल्क चार गुना होने से मेट्रो की राइडरशिप घट रही है। ऐसे में केवल सार्वजनिक परिवहन के सहारे सम-विषम योजना को लागू नहीं किया जा सकता। दिल्ली में 60 लाख से ज्यादा दोपहिया वाहन हैं। एक करोड़ से ज्यादा कुल वाहन हैं। इसी वजह से दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन का फैसला वापस लिया।