Sunday 26 November 2017

देश में मनहूस मधुमेह तेजी से बढ़ रही है

हृदय रोग के बाद मधुमेह यानी डायबिटीज तेजी से भारत में बढ़ रही है। भारत में छह करोड़ 68 लाख से ज्यादा मधुमेह रोगी हैं और सात करोड़ के करीब प्री-डायबिटिक यानी खतरे के निशान पर हैं। सबसे बड़ी चिन्ता यह है कि यह मनहूस बीमारी अब छोटे बच्चों में भी बढ़ रही है। देश में यह माना जाता है कि मधुमेह टाइप-2 बड़ों की बीमारी है और बच्चों व कम उम्र में मधुमेह टाइप-1 की बीमारी होती है, लेकिन अब खानपान और जीवनशैली में बदलाव के कारण देश में मधुमेह का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। बच्चों व कम उम्र के लोग भी मधुमेह टाइप-2 की बीमारी से पीड़ित होने लगे हैं और ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि हृदय रोगियों की बढ़ी हुई संख्या की एक प्रमुख वजह भी मधुमेह ही है। आज के मधुमेह रोगी के, कल के हृदय रोगी बनने की बहुत ज्यादा आशंका है। यूं तो इस रोग से पीड़ित लोग पूरी दुनिया में हैं लेकिन चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा मधुमेह रोगियों का देश बन चुका है। एक गैर सरकारी अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि मधुमेह रोगियों द्वारा इंजेक्शन के जरिये  लिए जाने वाली इंसुलिन की बिक्री में पिछले नौ साल में पांच गुना तथा मुंह से निगलने वाली दवाओं की खरीद में चार साल में ढाई गुना बढ़ोतरी हुई है। और भी चिन्ता की बात यह है कि अब यह रोग उम्र भी नहीं देख रहा है। युवा और किशोर तक इसकी चपेट में आ रहे हैं। मधुमेह बेशक खतरनाक बीमारी है, लेकिन खानपान और जीवनशैली में बदलाव लाकर इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। टाइप-1 के मरीज को इंसुलिन लेनी पड़ती है। लेकिन टाइप-2 के मरीज खानपान, एक्सरसाइज संबंधी अनुशासन को अपनाकर अपने शुगर लेवल के स्तर पर नियंत्रण रख सकते हैं। भारतीय खाद्य परंपरा में पहले बाजरा, ज्वार, लाल चावल, भूरा चावल आदि को प्रमुखता दी जाती थी, जो मधुमेह को पनपने से रोकते थे। लेकिन हरित क्रांति का जोर सिर्फ चावल और गेहूं की पैदावार पर रहा, जोकि ग्लूकोजयुक्त भोजन है। साथ ही पश्चिमी जीवनशैली, जंक फंड तथा फास्ट फूड ने कोढ़ में खाज का काम किया है। मिलावटखोरी भी इसमें सहायक हुई है। बढ़ते शहरीकरण की वजह से आम आदमी के लिए दिन और रात बराबर हो गए हैं। इससे काम करने का रंग-ढंग बदला है। शारीरिक श्रम की प्रवृत्ति भी घटी है। इन सब वजहों ने मिलकर मधुमेह को एक व्यापक संकट बना दिया है। जरूरत तो इस बात की है कि सरकार इससे निपटने के लिए व्यापक स्तर पर कार्यक्रम तैयार करे और संजीदगी से उस पर अमल करे। बच्चों के लिए मधुमेह की दवाएं मुफ्त दी जाएं ताकि इसकी रोकथाम हो सके।

-अनिल नरेन्द्र

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