Thursday, 23 November 2017

ईरान और सउदी अरब में 36 का आंकड़ा

ईरान और सउदी अरब के बीच 36 का आंकड़ा है। ईरान और सउदी लंबे वक्त से एक-दूसरे के दुश्मन हैं। लेकिन हाल ही में इन दोनों देशों के बीच तनातनी ज्यादा बढ़ने लगी है। सुन्नी प्रमुख वाला सउदी अरब इस्लाम का जन्म स्थल है और इस्लामिक दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण जगहें में शामिल है। यह दुनिया के शुमार सबसे बड़े तेल निर्यातकों और धनी देशों में से एक है। सउदी अरब को डर है कि ईरान मध्य-पूर्व पर हावी होना चाहता है और इसलिए वह शिया नेतृत्व में बढ़ती भागीदारी और प्रभाव वाले क्षेत्र की शक्ति का विरोध करता है।  युवा एवं शfिक्तशाली क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पड़ोसी यमन में हुई विद्रोहियों के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ रहे है। सउदी का कहना है कि विद्रोहियों को ईरान से समर्थन मिल रहा है लेकिन ईरान ने इस दावे को खारिज किया है। सउदी अरब भी उसके जवाब में विद्रोह करता है और सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को हटाना चाहता है, जो ईरान का मुख्य शिया सहयोगी है। सउदी अरब के पास सबसे अच्छे हथियार से लैस फौज है जो दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है। इसके पास दो लाख से ज्यादा सैनिक हैं। ईरान 1979 में एक इस्लामिक गणराज्य बना। उस समय वहां राजतंत्र को हटाकर आयतुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में राजनीतिक ताकत ने अपनी पकड़ मजबूत की। ईरान की आठ करोड़ आबादी में शिया मुसलमान बहुसंख्यक हैं। पिछले कुछ दशकों में इराक में सद्दाम हुसैन का दौर गुजर जाने के बाद मध्य-पूर्व इलाके में ईरान ने अपना प्रभुत्व तेज कर लिया। ईरान ने इस्लामिक स्टेट (आईएस) से लड़ने में सीरिया और इराक में सुन्नी जेहादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। ईरान का यह भी मानना है कि सउदी अरब लेबनान को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है। यहां ईरान एक शिया अभियान fिहजबुल्लाह का समर्थन कर रहा है।  ईरान अमेरिका को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है। ईरान में सेना और आईआरजीसी के जवानों को मिलाकर कुल 5 लाख 34 हजार जवान मौजूद हैं। दूसरी तरफ सउदी अरब के अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ईरान विरोधी रवैए के बाद यह रिश्ते और बेहतर हुए हैं। ट्रंप प्रशासन ने कभी भी सउदी अरब में कट्टरपंथी इस्लाम की वैसी आलोचना नहीं की जैसी वे ईरान में करते हैं। रूस के संबंध सउदी अरब और ईरान दोनों के साथ हैं। उसके दोनों  ही देशों के साथ आर्थिक गठजोड़ हैं। वह इन दोनों देशों को आधुनिक हथियार बेचता है। मध्य-पूर्व में वर्चस्व की इस लड़ाई में जीत किसी होगी?

-अनिल नरेन्द्र

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