Friday 3 November 2017

एक बार फिर गरमाया श्रीराम जन्मभूमि का मुद्दा

जैसे-जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा गरमा रहा है। भाजपा का प्रयास होगा कि एक बार फिर राम मंदिर का मुद्दा उसके लिए जिताऊ ब्रह्मास्त्र बने। सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास आरंभ हो गए हैं। पहले कई प्रयास हो चुके हैं। ताजा प्रयास श्री श्री रविशंकर का है। आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन ने कहा है कि उसके संस्थापक श्री श्री रविशंकर राम मंदिर विवाद का कोर्ट से बाहर समाधान करने में मध्यस्थता करने को तैयार हैं। इस संबंध में श्री श्री रविशंकर निर्मोही अखाड़ा के आचार्य रामदास सहित कई इमामों और हिन्दू धर्म गुरुओं के सम्पर्क में हैं। हालांकि फाउंडेशन ने यह भी स्पष्ट किया कि इस विषय में फिलहाल कोई निष्कर्ष निकालना बहुत जल्दी होगी। पहले चन्द्रास्वामी और बीच-बीच में कई अन्य के प्रयासों के बाद अब श्री श्री बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद निपटाने के लिए आगे आए हैं। पर मुस्लिम लॉ बोर्ड ने इसका विरोध किया है। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य डॉ. राम विलास वेदांती ने कहा है कि अयोध्या विवाद के हल के लिए श्री श्री रविशंकर की मध्यस्थता किसी भी हालत में स्वीकार नहीं की जाएगी। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को अदालत से बाहर बातचीत के जरिये सुलझाने के लिए आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की ओर से मध्यस्थता की पेशकश किए जाने पर ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड ने रविवार को कहा कि कोई ठोस फार्मूला आने पर ही वह इस मामले पर बातचीत की दिशा में आगे बढ़ेगा। लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना खलीलुर्रहमान सज्जाद नोमानी ने कहा कि कई बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। हम हवा में कोई बातचीत नहीं करना चाहते। अगर हमारे सामने आधिकारिक रूप पर कोई ठोस फार्मूला पेश किया जाता है तो बोर्ड बातचीत को लेकर गौर करेगा। हम यह नहीं कह रहे कि हम बातचीत नहीं करना चाहते, लेकिन कोई ठोस फार्मूला हो तो हम कुछ कहें। आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के बयान के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि हम सिर्फ यह कहना चाहते हैं कि अगर किसी के पास न्यायसंगत और ठोस फार्मूला है तो वह बोर्ड के पास भेजे। उसके बाद हम विचार करेंगे। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व संघ परिवार अयोध्या विवाद सुलझाने तथा सरयू के पार मस्जिद निर्माण की मुहर लगवाने के प्रस्ताव का दांव खेलने की फिराक में है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर मंदिर का मामला शांतिपूर्वक सुलझाने में मोदी व योगी की टोली सफल रही तो 2014 की तर्ज पर 2019 के चुनाव में भी भाजपा-राजग नया इतिहास रच सकती है। हाल ही में दीपावली पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्नाथ द्वारा अयोध्या में दीपावली पर 1,83,216 दीपक जलाने का जो नया रिकार्ड बनाया उससे योगी के प्रति संतों में उम्मीद बनी है कि राम लला को पक्की छत व मोहक चबूतरे में ले जाने में अब ज्यादा विलंब नहीं होगा। राम मंदिर हिन्दुओं के लिए आज भी आस्था का भरपूर मुद्दा है। योगी आदित्यनाथ भी राम मंदिर आंदोलन के सिपाही बने थे। केंद्र में आसीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राम मंदिर निर्माण के रथ यात्री रहे हैं। आम जनता का यदि मंदिर निर्माण का वादा पूरा नहीं हुआ तो मोदी व योगी दोनों से आम जन रूठ जाएगा। सिंहासन भी संकट में पड़ सकता है। संभवत इसीलिए मोदी तथा योगी मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना के जरिये हिन्दू समाज के प्रति संदेश दे रहे हैं कि वे हिन्दुत्व की पताका को उचित स्थान देने को कटिबद्ध हैं। संघ व संतों के मध्य दोनों नेता अयोध्या को प्राथमिकता देंगे। बेशक इस विवाद को सुलझाने के कई प्रयास हुए पर भूतपूर्व प्रधानमंत्री चन्द्र शेखर के छोटे से कार्यकाल में बातचीत से मसला सुलझाने का सबसे ज्यादा प्रयास हुआ। लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला। दोनों में से कोई पक्ष अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं तो फिर किसी बातचीत का रास्ता कैसे निकल सकता है? बहुसंख्यक हिन्दू मानते हैं कि अयोध्या में श्रीराम का जन्म हुआ और उनका मंदिर वहीं बनना चाहिए, जहां मुस्लिम बाबरी मस्जिद होने का उसी स्थान पर दावा करते हैं। इस भावना के खिलाफ रविशंकर भी शायद ही जा सकें। न ही सरकार या कोई अन्य जा सकता है। इसी कारण तो इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला भी स्वीकार नहीं हुआ। अदालत ने माना कि हिन्दू स्थल को तोड़कर मस्जिद बनवाई गई थी। लेकिन दोनों समुदायों के बीच सद्भाव बनाए रखने के लिए तीन भाग में एक भाग मुसलमानों को भी दे दिया जाए। राम जन्मभूमि न्यास या मुकदमों में वादी हिन्दू महासभा और राम लला विराजमान भी उन्हें मांगेगी इसमें संदेह है। अब केंद्र पहल करे तो बातचीत हो सकती है, लेकिन मामला ऐसी अवस्था में पहुंच चुका है जहां कोर्ट के फैसले से ही इस महाविवाद का निदान होगा। कम से कम सुप्रीम कोर्ट की निष्पक्षता पर किसी को संदेह नहीं है। हां इस मसले का निपटारा राम मंदिर आंदोलन से जुड़े संत व मुस्लिम धर्मगुरु कर सकते हैं। देश की एकता के लिए यह जरूरी भी है।

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