Tuesday, 7 November 2017

नोटबंदी का एक साल : क्या खोया क्या पाया?

आठ नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य रात्रि से 500 और 1000 के नोट बंद करने की घोषणा की। इसके बाद पीएम मोदी ने मुश्किल झेलते लोगों को भरोसा दिलाया कि 50 दिनों की दिक्कत के बाद एक नया भारत बनेगा। लोगों ने इसे समर्थन भी दिया लेकिन क्या नोटबंदी से जो अपेक्षाएं सरकार को थीं और आम जनता ने उम्मीदें बांधी उस पर यह फैसला खरा उतरा? नोटबंदी को एक साल पूरा हो रहा है। चलिए इसमें उपलब्धियों और कमियों पर एक नजर डालें। नोटबंदी के बाद रिजर्व बैंक ने लंबे इंतजार के बाद जब आंकड़ा जारी किया तो पता लगा कि सारी राशि बैंकिंग सिस्टम में लौटी। यह सरकार की अपेक्षा के विपरीत थी। लेकिन नोटबंदी से कम से कम अधिकतम करेंसी सिस्टम में लौटने का लाभ हुआ कि अब सरकार इस राशि को नए सिरे से ट्रैक कर सकती है। सरकार का दावा रहा कि नोटबंदी के कारण ब्लैकमनी और भ्रष्टाचार पर रोक लगी। इस फैसले के कारण सरकार का दावा है कि टेरर फंडिंग में रोक लगी है। बेशक यह कुछ हद तक सही होगा। पर आतंकवाद पहले से ज्यादा उग्र भी हुआ है। पिछले एक साल में जितने हमारे जवान मरे हैं इतने पहले किसी साल में शहीद नहीं हुए। जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है न तो उसमें कमी आई है और न ही वह दूर हो सका। हां इसका स्वरूप जरूर बदल गया है। दरअसल यह नोटबंदी नहीं थी यह करेंसी बदलने की योजना थी। लोगों ने अपनी काली कमाई जो पुराने नोटों में दबी थी उसे नए नोटों में बदल लिया और आज भी ब्लैक इकोनॉमी फल-फूल रही है। नोटबंदी का एक बड़ा असर बेरजोगारी पर पड़ा। जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव ने हाल ही में कहा कि नोटबंदी के कारण छोटे उद्योगों के बंद होने से देश में तीन करोड़ लोग बेरोजगार हो गए तथा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में दो प्रतिशत की गिरावट आई है। शरद यादव ने कहा कि नोटबंदी की घोषणा का दिन आठ नवम्बर काला दिवस के समान था। वह दिन भी हम कभी नहीं भूल सकते जब 100 से अधिक लोग एटीएम के बाहर घंटों की इंतजार के बाद दम तोड़ गए। नोटबंदी का असर अभी भी जारी है। एटीएम और बैंकों की लाइन में लगने वाले लोग धन्ना सेठ नहीं थे वह छोटे तबके के लोग थे जिन्होंने अपनी मेहनत से कमाया रुपया किसी आपात स्थिति के लिए बचाकर रखा था। धन्ना सेठों ने तो अपना काला धन पहले ही खपा  लिया था या बदलवा लिया था। नोटबंदी के बाद जीडीपी ग्रोथ छह प्रतिशत से नीचे आ गया। इस तरह आर्थिक वृद्धि को नोटबंदी के फैसले ने जरूर नुकसान पहुंचाया और अभी तक इसका असर देखा जा रहा है। हालांकि सरकार का दावा है कि नोटबंदी के बाद जो प्रतिकूल प्रभाव था वह एक साल बाद खत्म हो चुका है और आने वाले दिन बेहतर होने वाले हैं। अच्छे दिन आने वाले हैं।

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