Wednesday, 8 November 2017

सुप्रीम कोर्ट के फाइनल फैसले से पहले आधार लिंक न हों

आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि मोबाइल और बैंक खातों को आधार से लिंक करने से पहले यह देखना होगा कि कहीं यह निजता के अधिकार का उल्लंघन का मामला तो नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि इस मामले में अंतरिम रोक लगाने से यह कहकर इंकार कर दिया कि इस मामले को संवैधानिक बैंच देख रही है और सुनवाई नवम्बर के आखिरी हफ्ते में होगी। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार पहले ही आधार लिंक करने की समय सीमा बढ़ा चुकी है। बैंक और मोबाइल कंपनियां ग्राहकों को मैसेज भेजकर पैनिक क्रिएट न करें। बैंक और टेलीकॉम कंपनियां ग्राहकों को जो मैसेज भेज रही हैं उनसे बताएं कि अकाउंट और मोबाइल नम्बर से आधार जोड़ने की आखिरी तारीख क्रमश 31 दिसम्बर 2017 और छह फरवरी 2018 होगी। जस्टिस एके सीकरी ने तो यहां तक कहा कि मैं कहना नहीं चाहता, लेकिन टेलीकॉम कंपनियों और बैंकों की ओर से ऐसे मैसेज मुझे भी आ रहे हैं। लोगों को लगातार फोन मैसेज आ रहे हैं। इसमें बैंक और मोबाइल कंपनियों की खुद की गलती नहीं है क्योंकि उनको सरकार की तरफ से आदेश आए होंगे और वो उसका पालन कर रही हैं। लेकिन सरकार का आदेश देना सही है या गलत उस पर कोर्ट में सीनियर वकील आनंद ग्रोवर ने सवाल उठाया था। यह सही सवाल भी है कि बैंक या मोबाइल कंपनियां जिस तरह से धमकी भरे लहजे में आपको मैसेज और कॉल कर रही हैं कि आपका बैंक अकाउंट सीज हो जाएगा या मोबाइल बंद हो जाएगा, ऐसा अधिकार तो सरकार को भी नहीं है। मोबाइल के मसले पर थोड़ी बदमाशी भी हुई है कि वो आदेश उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के नाम से निकाला। उन्होंने यह कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, इसलिए हम इसे अनिवार्य कर रहे हैं। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने केवल इतना ही कहा था कि हर एक मोबाइल नम्बर का वेरिफिकेशन करें, किसी न किसी तरह से। आदेश को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। यह तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना है। अदालत ने कहा था कि आधार को अनिवार्य कहीं भी नहीं बना सकते। केवल छह योजनाओं के लिए इसे स्वेच्छापूर्वक इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई थी। आधार को अनिवार्य बनाने की वजह से कई परेशानियां हो रही हैं। इसके बाद से कहीं पर आधार नम्बर डीएक्टिवेट होने तो कहीं पर फिंगर प्रिंट का सत्यापन नहीं हो पा रहा। झारखंड में एक परिवार का राशन कार्ड केवल इसलिए काट दिया गया क्योंकि वह आधार से लिंक नहीं था। देवधर में रूपाली मरांडी ने लिंक किया था लेकिन फिंगर प्रिंट नहीं  ले रहा था तो दो महीने राशन नहीं ले पाए। उनकी मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को फटकारने के बावजूद आधार कार्ड पर संदेह की राजनीति गहराती जा रही है। भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आधार को तबाही वाली योजना बताते हुए भारत के विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को ही खत्म करने की सलाह देकर इस योजना की कमजोरी और व्यापक रूप से ध्यान आकर्षित किया है। स्वामी ने याद दिलाया कि 2014 के चुनाव में जब मौजूदा केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार आधार योजना के जनक नंदन नीलेकणी के विरुद्ध बेंगलुरु दक्षिण से चुनाव लड़ रहे थे तब वहां पर आधार कार्ड मुद्दा बना था। स्वामी ने नीलेकणी को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया था और अनंत कुमार विजयी हुए थे। इसके बावजूद अगर एनडीए सरकार ने आधार अधिनियम पारित करके इसे समाज कल्याण की योजनाओं से ही नहीं लोगों के बैंक खातों और फोन नम्बरों से जोड़ना अनिवार्य कर दिया है। आधार के साथ एक बड़ी दिक्कत बायोमेट्रिक के निशान के बदल जाने और कई बार पहचान न हो पाने की भी है पर इससे भी गंभीर समस्या आंकड़ों और पहचान के चोरी होने और सरकार की निगरानी के मोर्चे पर है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने सर्वाधिक महत्वपूर्ण फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है। ऐसे में आधार अनिवार्य बनाए जाने पर सवाल उठने स्वाभाविक ही हैं।

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