Friday, 3 November 2017

टीपू सुल्तान हीरो था या विलेन?

टीपू सुल्तान की जयंती को लेकर जहां एक तरफ भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने हैं। वहीं दूसरी ओर इसे लेकर साहित्य समाज भी बंटा हुआ है। साहित्यकार भी इस मामले में अलग-अलग राय दे रहे हैं। बता दें कि कौन था टीपू सुल्तान? टीपू सुल्तान भारत के तत्कालीन मैसूर राज्य के शासक थे जिनका जन्म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली में हुआ था। टीपू सुल्तान का पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। उनके पिता हैदर अली मैसूर राज्य के सेनापति थे जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने। योग्य शासक के अलावा टीपू सुल्तान एक विद्वान, कुशल व्यक्ति और कवि भी थे। ताजा विवाद क्या है? दरअसल कर्नाटक सरकार 11 नवम्बर को टीपू सुल्तान की जयंती मनाने जा रही है। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने केंद्रीय कौशल विकास राज्यमंत्री अनंत कुमार हेगड़े को आमंत्रित किया था। इसके जवाब में हेगड़े ने कहा कि वह इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे क्योंकि टीपू सुल्तान हत्यारा, बर्बर और बलात्कारी था। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि टीपू सुल्तान हिन्दू विरोधी था। हेगड़े के इस बयान को लेकर राजनीति से लेकर साहित्य तक सभी में हलचल मच गई। लेखक डॉ. एच. बालसुब्रह्मण्यम कहते हैं कि टीपू सुल्तान बर्बर और अत्याचारी था। वह हिन्दुओं पर बेहद अत्याचार करता था। उसने अपने साम्राज्य में हिन्दू मंदिरों को भले ही अनुदान दिया हो लेकिन केरल और तमिलनाडु के मंदिरों को उसने तोड़ने का काम किया। इतना ही नहीं केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में टीपू सुल्तान ने हिन्दुओं का तलवार के दम पर धर्म परिवर्तन करवाया, मुस्लिम बनवाया। यही कारण है कि आज भी केरल और तमिलनाडु के लोग टीपू सुल्तान के खिलाफ हैं। दूसरी ओर रंगकर्मी अरविन्द गौड़ कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियां सभी चीजों को सियासी रंग में रंग देती हैं। टीपू सुल्तान अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोलने में आगे थे और उन्होंने हमेशा अंग्रेजों का विरोध किया। रही बात हमारे देश के लोगों की तो हमारा देश विचारों और मजहबों का देश है। यहां सभी लोगों को अपनी स्वतंत्र राय रखने का हक है। कोई टीपू सुल्तान को हिन्दू विरोधी समझता है तो कोई बलात्कारी लेकिन सच्चाई तो यह है कि देश को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने में सबसे आगे टीपू सुल्तान थे। अब जब साहित्यकार ही टीपू सुल्तान पर अलग-अलग राय रखते हैं तो राजनीतिक पार्टियों का इस मुद्दे पर रोटियां सेंकना लाजिमी ही है।

-अनिल नरेन्द्र

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