Sunday, 19 November 2017

मुझे भगवान ही सत्ता से हटा सकते हैं?

2008 के चुनाव के वक्त जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे ने कहा था कि उन्हें भगवान ही सत्ता से हटा सकता है। उन्हीं मुगाबे का मंगलवार देर रात सेना ने तख्तापलट कर दिया। वे घर में अब नजरबंद हैं। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि दुनिया के सबसे उम्रदराज शासक मुगाबे का यह हश्र होगा। जिस देश पर वे 37 सालों से एकछत्र राज करते आ रहे थे वहां की सेना ने उन्हें नजरबंद कर दिया। जिम्बाब्वे पर अब वहां की सेना का राज है और राजधानी हरारे की सड़कों पर सेना के टैंक तैनात हैं। अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे की आजादी में बड़ी भूमिका निभाने वाले रॉबर्ट मुगाबे आज अगर अपने ही महल में नजरबंद हैं तो इसके लिए काफी हद तक वह खुद जिम्मेदार तो हैं ही, उनका यह हश्र नायक से खलनायक बने दुनिया की कई ऐसी ही दूसरी शख्सियतों की याद दिलाता है। स्थिति यह है कि आज जिम्बाब्वे के ज्यादातर लोग मुगाबे को उनके तानाशाही तौर-तरीकों के लिए ही जानते हैं। मुगाबे और जिम्बाब्वे के इस राजनीतिक संकट के लिए मुगाबे की पत्नी ग्रेसी को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है। इसकी शुरुआत एक हफ्ते पहले ही हुई थी। जब रॉबर्ट ने अपनी पार्टी जून-पीएफ के दूसरे बड़े नेता उपराष्ट्रपति इमर्सन, मनंगावा को बर्खास्त कर दिया था। दरअसल दिसम्बर में जून-पीएफ की सालाना कांग्रेस होने वाली थी। इसमें मुगाबे पत्नी ग्रेसी को उपराष्ट्रपति बनाने की घोषणा करने वाले थे। जिसे लेकर इमर्सन और पार्टी नेता सहमत नहीं थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुगाबे की 37 साल से चली आ रही सत्ता के अंत की पटकथा खुद ग्रेसी मुगाबे ने तैयार की। जुलाई 2018 में जिम्बाब्वे में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। इसे लेकर पिछले कुछ समय से देश में चर्चा शुरू हो गई थी कि 93 साल के रॉबर्ट मुगाबे का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा। मुगाबे के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थे उपराष्ट्रपति इमर्सन मनंगावा लेकिन मुगाबे अपनी पत्नी ग्रेसी को कमान सौंपना चाहते थे। यह इमर्सन को कैसे रास आ सकता था? इस नाराजगी और सेना द्वारा तख्तापलट के बीच क्या रिश्ता है और कैसे यह समीकरण बना इसकी कहानी कुछ दिनों में सामने आ जाएगी। यह भी सही है कि मुगाबे लंबे समय तक पश्चिमी देशों की निगाह में खटकते रहे हैं। पश्चिमी दुनिया उन्हें एक निरंकुश शासक के रूप में देखती आई है जिसने अर्थव्यवस्था को बर्बादी की राह पर धकेला और सत्ता में बने रहने के लिए बेहिचक हिंसा का सहारा लिया। यही वजह है कि सैन्य तख्ता पलट जैसी घटनाओं पर तीखी प्रतिक्रिया देने वाले पश्चिमी देश फिलहाल खामोश हैं। क्या राष्ट्रपति पद का अगला चुनाव जोकि अगले साल होना है अपने निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक होगा, कहा नहीं जा सकता।

-अनिल नरेन्द्र

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