Saturday 15 September 2018

एनपीए महाघोटाला ः इस हमाम में सभी नंगे हैं

बैंकों का कर्ज क्यों डूबता चला गया और वह कैसे बदहाल होते गए, इसका ताजा खुलासा रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने किया है। राजन ने संसद की प्रॉक्कलन समिति के जवाब में बताया है कि किस तरह उदारता बरती गई, वहीं भारी पड़ी। एनपीए के मसले पर जो खुलासा रघुराम राजन ने अब किया है वह कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं। एनपीए की समस्या ने बैंकिंग प्रणाली के खोखलेपन को उजागर करके रख दिया है। इससे यह पता चलता है कि बैंकों की अंदरूनी प्रबंध तंत्र किस तरह से संचालित होता है और होता रहा है। राजन के खुलासों से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू होना स्वाभाविक ही था। यूपीए और एनडीए दोनों ही आज की स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। बैंकों के डूबे कर्ज यानि एनपीए को लेकर जहां राजन ने यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया वहीं उन्होंने यह भी खुलासा किया कि बैंकों की धोखाधड़ी से जुड़े हाई-प्रोफाइल मामलों के खिलाफ साझा कार्रवाई के लिए इसकी सूची प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेज दी गई थी। हालांकि राजन ने यह नहीं बताया कि किस पीएमओ को यह सूची भेजी गई थी? यूपीए के पीएमओ को या एनडीए के पीएमओ को? पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2016 में एनडीए की सरकार थी इसलिए यह सूची मोदी जी के पीएमओ को भेजी गई होगी। प्रॉक्कलन समिति के अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी को भेजे नोट में राजन ने कहा कि सरकारी बैंकों की बैंकिंग प्रणाली में धोखाधड़ी के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं लेकिन यह डूबे हुए कर्ज (एनपीए) की राशि के मुकाबले अब भी कम है। उन्होंने बताया कि मैंने एक धोखाधड़ी निगरानी समिति गठित की थी ताकि जांच एजेंसियों तक शुरू में ही इन मामलों की जानकारी पहुंच जाए। मैंने हाई-प्रोफाइल मामलों की एक सूची पीएमओ को भेजकर अपील की थी कि कम से कम एक या दो आरोपियों पर मुकदमा दर्ज कर साझा कार्रवाई की जाए। मुझे इस बारे में न तो कोई जवाब मिला और जाहिर है कि न ही कोई ठोस कार्रवाई हुई? सरकार एक भी हाई-प्रोफाइल धोखेबाज के खिलाफ मुकदमा चलाने को लेकर बेपरवाह रही। बैंक अधिकारी जानते थे कि जब किसी लेनदेन को धोखाधड़ी माना जाएगा तो जांच एजेंसियां असली गुनाहगारों को पकड़ने के बजाय उन्हें ही प्रताड़ित करेंगी। लिहाजा उन्होंने अपना काम धीमा रखा। बैंकों के डूबे कर्ज यानि एनपीए को  लेकर राजन ने यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया, जिसके बाद कांग्रेस ने सफाई दी कि एनपीए के लिए भाजपा सरकार  भी जिम्मेदार है। वहीं भाजपा ने कहा कि यूपीए सरकार के समय माफिया राज था। कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि 2014 में जब यूपीए सत्ता से बाहर हुई, तब तक कुल एनपीए 2.83 लाख करोड़ था। एनडीए की सरकार आने के बाद बीते चार सालों में 10 लाख 30 हजार करोड़ हो गया। बेशक दो लाख 83 हजार करोड़ के एनपीए की हमारी जिम्मेदारी बनती है, लेकिन मोदी सरकार के चार सालों में 10 लाख 30 हजार करोड़ का एनपीए है, इसका जिम्मेदार कौन है? वहीं इस मुद्दे पर भाजपा की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहाöराजन ने जो कहा है वह तथ्य सिर्प कांग्रेस सरकार द्वारा राजनीति में माफिया राज को ही नहीं बताता है, बल्कि बताता है कि यूपीए सरकार ने देश को उन चुनौतियों से लड़ने के लिए छोड़ दिया है। क्या यह गंभीर बात नहीं है कि बुनियादी परियोजनाओं के लिए हजारों करोड़ का कर्ज देते वक्त बैंक यह सुनिश्चित क्यों नहीं कर पाए कि इन मोटे कर्जों की वापसी कैसे होगी? एक तरह से यह खुले हाथ पैसा लुटाने जैसी बात हुई। कई मामलों में तो बैंकों ने कर्ज देने के लिए प्रवर्तक के निवेशक बैंक की रिपोर्ट के आधार पर ही करार कर लिया और अपनी ओर से जांच-पड़ताल जरा भी जरूरी नहीं समझी। दुनिया में शायद ही कोई कर्जदाता ऐसा होता होगा जो उसकी वापसी के तरीके सुनिश्चित नहीं करता है। लेकिन भारत के व्यावसायिक बैंकों ने इसमें घोर लापरवाही बरती। ऐसे में क्या यह मानना गलत होगा कि भारत में बैंकिंग प्रणाली बिल्कुल ठप हालत में है? रघुराम राजन ने अपने लिखित बयान में जो कहा है उसकी सच्चाई पर कोई प्रश्न भी नहीं उठा सकता है। इससे कांग्रेस और भाजपा दोनों कठघरे में खड़े होते हैं। हालांकि अर्थव्यवस्था और बैंकिंग व्यवस्था पर नजर रखने वालों के लिए इसमें कुछ भी नया नहीं है। राजन के कहने से उन सारी बातों की पुष्टि हो जाती है जो एनपीए के सन्दर्भ में कही जा रही थीं। एनपीए के बोझ से हमारी बैंकिंग प्रणाली चरमरा रही है और नरेंद्र मोदी सरकार को अब उन्हें बचाने के लिए मोटी रकम लगानी पड़ रही है। बैंकों का कर्ज देने में उत्साह तो साफ दिखता है किन्तु इसका कारण क्या हो सकता है यह जानने की जरूरत भी है। क्या सरकार की ओर से बैंकों को इसके लिए संकेत दिए जाते थे और दिए जा रहे हैं? बैंक अपने जोखिम पर इतने सारे कर्ज दे देंगे यह सामान्य समझ से परे है। इसमें बैंक अधिकारियों का भ्रष्टाचार भी एक बड़ा कारण है। आरोप यह भी है कि बैंक अधिकारियों द्वारा कर्ज की याद दिलाने पर उन्हें धमकी तक मिलती थी। ऐसा वातावरण आखिर क्यों बन गया था इसकी तो जांच होनी ही चाहिए। कांग्रेस के यह कहने से उसका दोष कम नहीं हो जाता कि जब हम गए तो एनपीए केवल दो लाख करोड़ था और आज नौ लाख करोड़ हो गया। यह इसलिए हो गया कि वर्तमान सरकार ने पूरे एनपीए को सामने लाने की कोशिश की है ताकि बैंकिंग प्रणाली की असल स्थिति समझी जा सके। हकीकत तो यह है कि कोई भी सरकार रही हो अगर वह समय पर उचित नीतिगत फैसले नहीं ले पाती है तो उसके गंभीर नतीजे भुगतने पड़ते हैं। एनपीए की वजह से कंगाली की कगार पर आए बैंकों की फौरी खुराक के तौर पर पैकेज तो दिए गए हैं, लेकिन मूल बीमारी जस की तस बनी हुई है। एनपीए का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है और आज यह 10 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। रघुराम राजन ने संकेत दिए हैं कि यह आंकड़ा और आगे बढ़ सकता है। इससे यह भी पता चलता है कि चाहे वह यूपीए की सरकार हो चाहे एनडीए सरकार की हो, दोनों ने ही व्यावसायिक बैंकों की लापरवाही पर किस कदर आंखें मूंदी रखीं। अगर रिजर्व बैंक भी शुरू से व्यावसायिक बैंकों के परिचालन और लेनदेन पर कड़ी नजर रखता तो नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या जैसे बड़े घोटालेबाजों से बैंकों और देश को बचाया जा सकता था। एनपीए पर हल्ला मचने के बाद सरकार और आरबीआई भले ठोस कदम उठाने के दावे करें लेकिन हालात उम्मीदों के बजाय आशंका को ही जन्म देते हैं। हमारा तो यही मानना है कि इस एनपीए महाघोटाले में इस हमाम में सभी नंगे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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