Wednesday 26 September 2018

मोदी का अब तक का सबसे बड़ा सियासी दांव

हमारे देश में पब्लिक की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। जो सरकारी अस्पताल हैं उनकी सेवाओं का बुरा हाल सबको मालूम है और निजी अस्पतालों में इलाज कितना महंगा है इसके चलते गरीब आदमी वहां इलाज कराने की सोच भी नहीं सकता। छोटी से छोटी बीमारी के लिए लाखों का बिल बन जाता है। हर साल लाखों लोग असमय मौत के मुंह में इसी वजह से चले जाते हैं। इसी समस्या से पार पाने के लिए प्रधानमंत्री ने आयुष्मान भारत यानि जन आरोग्य की शुरुआत की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से औपचारिक शुरुआत के बाद मंगलवार यानि 25 सितम्बर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर देश के 25 राज्यों में यह योजना प्रभावी हो गई। योजना के अनुसार देश में 10 करोड़ परिवारों को पांच लाख रुपए का बीमा सरकार मुफ्त देगी और इसके बदले इलाज कैशलेस होगा। सरकार के अनुसार पूरे देश में 15 हजार से अधिक अस्पतालों ने आयुष्मान योजना से जुड़ने के लिए पैनल में शामिल होने के लिए आवेदन दिया है। सरकार का लक्ष्य है कि स्कीम लांच होने के एक हफ्ते के अंदर कम से कम एक करोड़ से अधिक परिवारों को बीमा कार्ड मिल जाए। इसके लिए परिवारों को चिन्हित करने का काम पूरा कर दिया गया है। मरीजों को कैशलेस सुविधा लेने में दिक्कत न पड़े, इसके लिए सभी जिलों में एक को-ऑर्डिनेंस कमेटी बनाने को कहा गया है जो मामले के निष्पादन को देखेगी। मरीज पूरे देश में कहीं भी अस्पताल की इस कैशलेस सुविधा से इलाज करा सकते हैं। प्रधानमंत्री ने इस योजना को गेम चेंजर बताया है। अगर यह सही से लागू हो जाती है तो इसका भाजपा को भारी लाभ होगा। पर यहां देखना यह भी होगा कि निजी अस्पताल असलियत में गरीबों का मुफ्त इलाज करते भी हैं या नहीं? दूसरी बात यह जो बीमा कंपनियां हैं यह क्लेम सैटल करने में ईमानदार भी हैं या नहीं? आमतौर पर तो क्लेम सैटल करते वक्त यह बीमा कंपनियां उसे सैटल न करने के बहाने बनाती रहती हैं। फिर राज्यों की इसकी सफलता में बहुत बड़ी भूमिका होगी। इस योजना पर मौजूदा वित्त वर्ष में करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए का बोझ पड़ने का अनुमान है। इसके लिए केंद्र सरकार 60 प्रतिशत और राज्य सरकारें 40 प्रतिशत धन मुहैया कराएंगी। स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी ऐसी योजनाओं के लक्ष्य तक न पहुंचने की एक बड़ी वजह यह भी रही है कि राज्य सरकारें अपने हिस्से का धन उपलब्ध नहीं करा पातीं और न ही योजना को ठीक से लागू करा पाने की दिशा में गंभीरता दिखाती हैं। इसलिए इस दिशा में राज्य सरकारों की मुस्तैदी भी बहुत जरूरी है। मोदी सरकार और भाजपा 2019 के आम चुनावों से पहले इस योजना को गेम चेंजर के रूप में देख रही है। यही वजह है कि मोदी ने पार्टी और सभी भाजपा सरकारों को अगले कुछ महीनों तक पूरा फोकस इस योजना के बेहतर क्रियान्वयन पर ही रखने को कहा है।

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