Thursday, 28 February 2019

शहीदों की तेरहवीं से पहले घर में घुसकर बदला लिया

पुलवामा का बदला मांग रहे देशवासियों की मुराद शहीदों की तेरहवीं से पहले पूरी हो गई। भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान और उनके पालतू कुत्तों से ऐसा बदला लिया जिसे वह तमाम जिंदगी नहीं भूल सकते। भारतीय वायु सेना के मिराज बमबारों ने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान के अंदर बालाकोट में जैश--मोहम्मद के सबसे बड़े फाइव स्टार बेस कैंप को पूरी तरह तबाह कर दिया। भारतीय वायु सेना ने मंगलवार (जय बजरंग बली) 3.30 बजे, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) और खैबर पख्तूनख्वा पांत में अंदर घुसकर एयर स्ट्राइक की। भारत के 12 मिराज-2000 लड़ाकू विमान ने बालाकोट, मैकोटी और मुजफ्फराबाद में जैश--मोहम्मद के ठिकानों को 21 मिनट तक चले हमले में ध्वस्त कर दिया। सबसे अच्छी बात है कि हमारे सारे 12 विमान सुरक्षित कार्रवाई करके लौट आए। पाकिस्तान कई दिनों से यह बात कह रहा था कि हम हाई अलर्ट पर हैं और परिंदा भी पर नहीं मार सकता। पाक का अलर्ट धरा धराया रह गया। 1971 की जंग के बाद भारतीय वायुसेना का यह पहला अभियान याद रहेगा। सबसे अच्छी बात यह है कि हमने दुश्मन के घर में घुसकर मारा है। हमारी लड़ाई आतंकवाद से है न कि पाकिस्तान से। जो टारगेट चुने गए वह आतंकियों के गढ़ को, पाकिस्तान को उल्टा हमारा शुकिया अदा करना चाहिए कि हमने वह काम कर दिया जो उन्हें करना चाहिए था पर वह कर नहीं पा रहा था। यह साल 1971 के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सबसे बड़ी कार्रवाई थी। पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से भी 65 किलोमीटर अंदर जैश के इस कैंप में हमारे मिराजों ने 1000 किलो से ज्यादा के 6 बम गिराए। तड़के 3.30 बजे ऑपरेशन शुरू किया जो 21 मिनट में पूरा हो गया और सभी विमान सुरक्षित लौट आए। रक्षा सूत्रों का मानना है कि इसमें कम से कम 350 आतंकी और उनके ट्रेनर मारे गए। हमने पाकिस्तान की वह परमाणु बम से जवाबी कार्रवाई करने की कोरी धमकी को भी बेनकाब कर दिया। पाकिस्तान की सिक्योरिटी कमेटी की मीटिंग में पाक ने जरूर भारत से बदला लेने की धमकी दी। लेकिन जानकारों के अनुसार पाकिस्तान की जर्जर आर्थिक हालात ने भी किसी जवाबी कार्रवाई के उसके विकल्प बहुत सीमित कर दिए हैं। ऐसे में विकल्प के तहत पाकिस्तान ने मंगलवार को नियंत्रण रेखा (लाइन आफ कंट्रोल) पर गोलाबारी की जिसमें 5 भारतीय जवान घायल हुए। भारत ने न केवल सैनिक जवाब दिया है बल्कि पाकिस्तान को आज दुनिया में अलग-थलग कर दिया है। इस हमले के बाद कोई भी देश खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में नहीं आया। यहां तक कि चीन ने भी खुलकर पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया। पुलवामा हमले के जवाब में भारत की तरफ से की गई कार्रवाई के कुछ देर बाद ही देश के अंदर तमाम देशों के राजदूतों के संघ ने बयान जारी कर भारत के कदम को पूरी तरह से सपोर्ट किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अमेरिका, चीन, सिंगापुर, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अपने समकक्षों से बात की और इस सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में जानकारी दी। उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से जैश के fिठकानों पर कार्रवाई की जरूरत को विस्तार से बताया। साथ ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भी बात की और उन्हें आश्वस्त किया कि यह पूरी तरह से गैर सैन्य और आशंकाओं के मद्देनजर की गई कार्रवाई है। बालाकोट पाकिस्तान के सैन्य मुख्यालय रावलपिंडी से ज्यादा दूर नहीं, न ही एबटाबाद से ज्यादा दूर है जहां पर अमेरिकी सैनिकों ने ओसामा-बिन-लादेन को मार गिराया था। पाकिस्तान को यह समझ आ जाना चाहिए कि अगर भारत के लड़ाकू विमान बिना किसी बाधा बालाघाट तक पहुंच सकते हैं तो वे रावलपिंडी भी पहुंच सकते है। उसे यह भी समझ आना चाहिए कि परमाणु बम का इस्तेमाल करने की धमकी अब काम आने वाली नहीं है। बालाकोट में जैश के जिस आतंकी अड्डे को मटियामेट किया गया वैसे तमाम अड्डे पाकिस्तानी सेना के संरक्षण और समर्थन से ही चलते हैं। वायुसेना का हमला भारत के मजबूत कदम और यह वाकई मौजूदा भारतीय नेतृत्व की काबिलियत, ताकत, इच्छा शक्ति की सोच का जिंदा सुबूत और अपने शहीद जवानों का बदला है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि इस कदम को आखिरी न माना जाए। यानि पाकिस्तान आगे भी पुलवामा जैसी हरकत करने की जुर्रत करता है तो भारत की तरफ से ज्यादा संहारक तरीका अख्तियार किया जाएगा। भारत ने ताजा हमले से अमेरिका को भी यह संदेश दिया है कि वह पाकिस्तान की ज्यादा तरफदारी न करे, दोगली नीति न करे वरना भारत से उसके रिश्तों पर असर पड़ेगा। यह भारत भूला नहीं कि हर आतंकी हमले के बाद हमने अमेरिका को तमाम सुबूत दिए पर अमेरिका ने जवाब में सिर्प खानापूर्ति की। अब अमेरिका को भी समझ आ गया होगा कि अगर वह पाकिस्तान के खिलाफ सिर्प भाषणबाजी करेगा और कोई एक्शन नहीं लेगा तो भारत पाकिस्तान को करारा जवाब देने में सक्षम है। इस सटीक सैन्य कार्रवाई में अहम बात यह है कि भारत ने न तो पाकिस्तान के रिहायशी इलाकों में बम बरसाए और न ही उनके सैनिक पतिष्ठानों को निशाना बनाया। हमने केवल वही किया जो एक जवाबदेह संयुक्त राष्ट्र को करना चाहिए। पुलवामा हमले के बाद पाक की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक-2 के बाद पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आकमक नजर आए। आना भी था। उन्होंने वह कारनामा किया जिसकी देश को पिछले 14 फरवरी के पुलवामा हमले के बाद इंतजार था। पधानमंत्री इस बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने जबरदस्त इच्छा शक्ति व परिपक्व नेतृत्व का सुबूत दिया है। पूरे अभियान को मोदी देखते रहे, रातभर जागकर पूरे अभियान पर नजर रखे हुए थे और तभी आराम करने गए जब सभी मिराज विमान और पायलट सुरक्षित लौट आए। अब अगर पाकिस्तान भारत के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करेगा तो यह संदेश जाएगा कि वह आतंकवाद को न केवल पालता-पोषता हैं वरन उसे सरकारी संरक्षण भी देता है और उसका पालनहार है। यह बहुत संतोष की बात है कि पूरे देश के साथ-साथ पूरे विपक्ष ने भारतीय वायु सेना के इस बयान का समर्थन किया और सरकार को पूरी तरह से बैक किया है। 40 के बदले 400 मारे हैं। भारतीय वाय gसेना के जांबाज पायलटों को आज पूरा देश सलाम करता है। जय हिंद।

-अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 27 February 2019

आतंकी का सिर लाओ और वोट ले जाओ

किसी ने अपना पति खोया तो किसी ने अपना बेटा या पिता। जनाब हमने तो अपना वह जवान खो दिया जो हमारी सुरक्षा के लिए दिन-रात बार्डर पर तैनात था। कुछ इस तरह से तमाम देशवासियों का दर्द झलक रहा है। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही देश का बच्चा-बच्चा बदले की मांग कर रहा है। इसका एक नजारा इन दिनों हम जंतर-मंतर से लेकर इंडिया गेट तक देख रहे हैं। इतने दिन (15) दिन बीतने के बाद भी भारत की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई न होने से लोग इतने नाराज हैं कि वह कह रहे हैं कि आतंकी का सिर लाओ और बदले में वोट ले जाओ। लोगों के बढ़ते रोष से स्पष्ट है कि इस बार सिर्प सरकार के आश्वासनों से ही वह संतुष्ट होने वाले नहीं, इस बार सिर के बदले सिर चाहिए। वोट पाने हैं तो आतंकी का सिर लाना ही पड़ेगा। कहीं ऐसा न हो कि आने वाले लोकसभा चुनाव में वह मोदी सरकार के खिलाफ कहीं वोट न डाल दें या फिर नोटा का बटन दबा दें? हर बार हमारे जवानों पर ही आतंकी हमला क्यों? हर बार हमारे जवान ही शहीद क्यों हों? इस बार पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब का सही वक्त है। यह मौका सरकार को छोड़ने की उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। यदि सरकार अब भी लीपापोती करती रही, टालमटोल करती रही तो आने वाले लोकसभा चुनाव में जनता सरकार को सबक भी सिखा सकती है। महज आश्वासनों से या भाषणों से हमारे जवान वापस नहीं आएंगे और न ही हमारे खून के प्यासे यह आतंकी रुकने वाले हैं। अब तो केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में भी कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में चिन्ता जताई कि यदि पाकिस्तान से जल्द बदला नहीं लिया गया तो लोकसभा चुनाव में इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की हाल में हुई बैठक में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में कुछ मंत्रियों ने पीएम को आगाह किया कि पूरे देश में पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोश है। खुद प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में इसका जिक्र किया है। हर एक आंसू का बदला लिया जाएगा। हालांकि कुछ वरिष्ठ मंत्रियों ने मंत्रिमंडल की बैठक में आशंका जताई कि यदि जल्द ही पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो यह गुस्सा हताशा में बदल सकता है। इन मंत्रियों ने माना कि फिलहाल कांग्रेस सहित विपक्ष चुप है लेकिन चुनाव करीब आते ही वह सरकार  पर हमला बोलेंगी। वह पूछेंगी कि क्या यह सरकार के इंटेलीजेंस नेटवर्प की विफलता का नतीजा है? इतनी ज्यादा मात्रा में आरडीएक्स आतंकवादियों के पास कैसे पहुंचा? और सालभर में इतनी बड़ी तादाद में आतंकियों को घाटी में मारने के बाद भी आतंकवाद थम क्यों नहीं रहा? महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाकर भाजपा ने क्या हासिल किया? आतंकवाद को रोकने व कश्मीरी युवाओं को मेन स्ट्रीम में लाने के लिए क्या कदम उठाए? जैसे दवा की शीशियों पर मियाद दर्ज होती है पर तारीख गुजर जाए तो दवा भी जहर हो जाती है। यही बात लागू होती है पाकिस्तान के सामने भारत की धैर्य पर। इसकी मियाद गुजरे भी जमाना हो गया है। अब यह धैर्य जहर होता जा रहा है। हमें अब रक्षात्मक नहीं आक्रामक रुख अपनाना होगा। बस अब और नहीं।

-अनिल नरेन्द्र

लाखों आदिवासियों-वनवासियों पर लटका संकट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से देश में करीब 12 लाख आदिवासियों और वनवासियों को अपने घरों से बेदखल होना पड़ सकता है। दरअसल शीर्ष अदालत ने 16 राज्यों के करीब 11.8 लाख आदिवासियों के जमीन पर कब्जे के दावों को खारिज करते हुए सरकारों को आदेश दिया है कि वह अपने कानूनों के मुताबिक जमीनें खाली कराएं। जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने 16 राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश दिया है कि वह 12 जुलाई से पहले एफिडेबिट जमा कराकर बताएं कि तय समय में जमीन खाली क्यों नहीं कराई गई? दरअसल शीर्ष अदालत ने इन आदिवासियों और वनवासियों के दावों को इसलिए भी खारिज किया क्योंकि लाखों हेक्टेयर जमीन पर इन्होंने अवैध कब्जा कर रखा है। यह फैसला आदिवासियों और वनवासियों के लिए झटका तो है ही, यह वंचितों के हक की लड़ाई के मामले में हमारे दयनीय रिकार्ड का एक और उदाहरण भी है। करीब 80 साल बाद 2006 में आदिवासियों और वनवासियों को वनाधिकार अधिनियम के तौर पर ऐसा कानून मिला था जो उन्होंने जंगलों में रहने का हक प्रदान करता था। उस कानून को स्वाभाविक ही संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची का विस्तार माना गया था, जिनमें आदिवासियों के हित सुरक्षित हैं। जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार 30 नवम्बर 2018 तक देशभर में 19.39 लाख दावों को खारिज कर दिया गया था। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद करीब 20 लाख आदिवासी और वनवासियों को जंगल की जमीन से बेदखल किया जा सकता है। आखिर ऐसा क्या हो गया है कि सर्वोच्च न्यायालय को लाखों परिवारों को वनभूमि से बाहर निकालने का सख्त आदेश पारित करना पड़ा है, जिस पर अमल हुआ तो बड़ी संख्या में लोगों को वनभूमि से बाहर होना पड़ेगा? दरअसल उस कानून के पारित होने के साथ ही उन तत्वों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था, जिनके हित उससे प्रभावित होने वाले थे। जरूरी तो यह है कि जंगलों में जो माफियाओं का कब्जा है उन्हें हटाया जाए, बनिस्पत लाखों परिवारों को। यह गलत सोच है कि वनभूमि में रहने वाले जंगल का विनाश करते हैं, बल्कि देश-दुनिया का अनुभव बताता है कि वह ही जंगल की रक्षा करते हैं। हमारे यहां नक्सल समस्या की एक वजह जंगलों के बारे में हमारा यह अज्ञान ही है। केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकारों द्वारा वनभूमियों से निकालने वाले लोगों के आंकड़े मिलने पर वह कदम उठाएगी। उसे जल्दी ही इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए, क्योंकि इस मामले में ढिलाई से उन आदिवासियों व वनवासियों को व्यापक विस्थापन का सामना करना पड़ेगा, जिनके पुनर्वास के मामले में हमारा रिकार्ड पहले से ही बहुत खराब है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि देशभर में 10 लाख से अधिक आदिवासियों और वनवासियों को जमीन से बेदखल करने के मुद्दे को सहानुभूतिपूर्वक देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पुनर्विचार याचिका दायर करने को कहा है।

Tuesday, 26 February 2019

मुलायम सिंह यादव को गठबंधन पर गुस्सा क्यों आया?

भाजपा को उत्तर प्रदेश में मात देने के उद्देश्य से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने सीटों के बंटवारे में एक-दूसरे के असर का सम्मान करते हुए पूरी तरह से सामंजस्य बिठाने का प्रयास किया है। नम्बर दो वाली सीटों के फार्मूले को पूरी तरह लागू न करते हुए सीटों की अदला-बदली भी हुई है। कोशिश यह रही कि राज्य के चारों हिस्सों में दोनों दलों की दमदार मौजूदगी तो दिखी ही, साथ ही हर मंडल में सपा-बसपा दोनों के प्रत्याशी लड़ते  दिखे। किसी भी खास क्षेत्र में कोई भी पूरी तरह गैर-मौजूद न रहे। अब 38 सीटों पर बसपा व 37 सीटों पर सपा लड़ेगी। दो सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी गई हैं। इससे पहले बसपा के साथ गठबंधन से खफा सपा संरक्षक मुलायम Eिसह यादव ने उम्मीदवार तय नहीं होने पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को नसीहत दे डाली। उन्होंने यहां तक कह दिया कि अखिलेश आप अपनी ही पार्टी को खत्म कर रहे हैं। इसके महज एक घंटे बाद ही सपा-बसपा के बीच 75 सीटों का बंटवारा करते हुए सूची जारी कर दी। पांच सीटों का उल्लेख नहीं किया गया है। माना जा रहा है कि इनमें अमेठी और रायबरेली सीट कांग्रेस और बागपत, मुजफ्फरनगर व मथुरा सीट राष्ट्रीय लोक दल के लिए छोड़ी गई हैं। इसी के साथ प्रदेश में त्रिकोणीय चुनावी दंगल का स्टेज सज गया है। मुलायम ने कहा कि मायावती के साथ गठबंधन कर आधी सीटें क्यों दी गईं। हमारी पार्टी ज्यादा मजबूत है। हम आराम से 80 सीटों पर मजबूती से लड़ सकते थे लेकिन हमारे लोग ही पार्टी को कमजोर कर रहे हैं। एक वक्त तो हम अकेले लड़कर ही 39 लोकसभा सीटें जीत चुके हैं। मुलायम ने गुरुवार को सपा मुख्यालय में कार्यकर्ताओं के बीच यह सब बातें कहीं। मुलायम की इन खरी-खरी बातों से कार्यकर्ता उत्साहित दिखे। दिलचस्प यह रहा कि उससे कुछ ही देर पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जब हार्दिक पटेल के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे, तब ही मुलायम सिंह अचानक पार्टी के दफ्तर पहुंच गए। अखिलेश प्रेस कांफ्रेंस के बाद मुलायम सिंह के साथ ही कुर्सी पर बैठ गए। मुलायम ने माइक लेकर जैसे ही बोलना शुरू किया, अखिलेश स्थिति असहज होने पर वहां से उठकर चले गए। मुलायम ने कहा कि पार्टी ने तीन बार अकेले सरकार बनाई है, अकेले अपने दम पर यहां तो लड़ने से पहले ही आधी सीटें दे दी गई हैं। बता दें कि विधानसभा चुनाव 2017 तब हुए जब केंद्र में भाजपा की सरकार थी। सपा ने 311 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और बाकी सीटें कांग्रेस को दे दी थीं। सपा ने अपने बूते पर तो 47 विधायक बनाए लेकिन कांग्रेस के 114 सीटों पर सिर्प सात प्रत्याशी ही जीत सके। तब भी माना गया था कि सपा को कांग्रेस गठबंधन से फायदे के बजाय नुकसान हुआ है। सपा को इस चुनाव में कुल 28.32 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि बसपा विधानसभा चुनाव 2017 में 403 सीटों पर 19 प्रत्याशी ही जिता सकी थी। वोटिंग प्रतिशत भी सपा से कम 22-23 प्रतिशत था। मुस्लिम वोटरों की बहुलता वाली उत्तर प्रदेश की 25 सीटों में 13 बसपा के और 11 सपा के हिस्से में आई हैं, जबकि एक सीट मुजफ्फरनगर रालोद के कोटे में आई है। सपा को पूर्वांचल का बड़ा हिस्सा मिला है। देखना यह होगा कि कांग्रेस इस गठबंधन में फिट होती है या नहीं? या उसे अपने बूते पर चुनाव लड़ना पड़ेगा। खैर, अभी तो लोकसभा चुनाव है।
-अनिल नरेन्द्र



पूरा देश सदमे में था पीएम फिल्म की शूटिंग में थे व्यस्त

पुलवामा आतंकी हमले को लेकर राजनीतिक सवाल उठाने से बच रही कांग्रेस ने अब अपने तरकस से तीर चलाने शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस ने पीएम मोदी पर एक गंभीर आरोप लगाया है। सीधा और तीखा हमला करते हुए कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कहा कि जिस समय हमारे जवानों की शहादत से देश सदमे में था, उसी समय उत्तराखंड के जिम कार्बेट पार्प में पीएम मोदी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे। क्या दुनिया में ऐसा कोई पीएम है। सुरजेवाला ने कहा कि 14 फरवरी को दोपहर 3.10 बजे आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 40 जवान शहीद हो गए, कुछ देर में ही यह खबर पूरे देश में फैल गई लेकिन पीएम मोदी 6.45 तक कुछ नहीं बोले। सुरजेवाला ने कहा कि यह मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि मीडिया की मिनट-टू-मिनट रिपोर्टिंग बताती है। कांग्रेस ने कहा कि पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उसका सरकार को पूरा समर्थन है, लेकिन अगर प्रधानमंत्री शहीद जवानों को भूलकर फिल्म की शूटिंग या सैर करने के लिए विदेश जाएंगे तो वह अवश्य सवाल पूछेगी। पार्टी ने पुलवामा में खुफिया खामियों पर सवाल पूछते हुए आरोप लगाया कि सरकारी खर्च से राजनीतिक प्रचार करने के लिए इस घटना के बाद राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं किया गया। सुरजेवाला ने कहा कि शहीद जवानों को दिल्ली में श्रद्धांजलि देने के लिए प्रधानमंत्री विमान तल पर एक घंटे देर से इसलिए पहुंचे क्योंकि वह झांसी में राजनीतिक प्रचार करने के बाद अपने निवास पर गए। उन्होंने कहा कि पुलवामा घटना के बाद जब प्रधानमंत्री को सुरक्षा मामलों की कैबिनेट की बैठक करनी चाहिए थी, तब उन्होंने चार घंटे कार्बेट पार्प में डिस्कवरी चैनल की फिल्म की शूटिंग और राजनीतिक प्रचार व चाय सत्कार में बिताए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्राइम टाइम मिनिस्टर कहकर तंज कसा और कहा कि जब लोग पुलवामा के शहीदों पर आंसू बहा रहे थे, मोदी हंसते हुए फोटो शूट में व्यस्त थे। राहुल ने कहा कि पुलवामा में 40 जवानों के शहीद होने की खबर के तीन घंटे बाद भी प्राइम टाइम मिनिस्टर फिल्म की शूटिंग करते रहे। राहुल गांधी के इस ट्वीट के बाद कांग्रेस प्रवक्ता मनीश तिवारी ने पीएम पर हमला करने पर करते हुए सवाल उठाया कि मोदी पुलवामा हमले के तुरन्त बाद क्या कर रहे थे? उन्होंने सवाल किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमले के दो घंटे बाद उत्तराखंड के रूद्रपुर जिले में रैली को संबोधित करने के दौरान हमले व इसके पीड़ितों का उल्लेख करने में विफल क्यों रहे? हम प्रधानमंत्री से जानना चाहते हैं कि वह दोपहर 3.10 (जब पुलवामा में हमला हुआ) से 5.10 के बीच क्या कर रहे थे? 4.40 बजे उन्होंने मोबाइल फोन से एक रैली को संबोधित किया। कांग्रेस ने केंद्र सरकार से प्रश्न किया कि क्या पीएम, गृहमंत्री और एनएसए पुलवामा को खुफिया तंत्र की विफलता के रूप में स्वीकार करने का साहस दिखाएंगे? स्थानीय आतंकियों के पास इतनी बड़ी तादाद में विस्फोटक और रॉकेट लांचर जैसी सामग्री कैसे आ गई, क्या वाहनों को चैक करने के स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल का प्लान नहीं किया गया? क्यों घटना से पहले जारी किए गए जैश के वीडियो को नजरंदाज किया गया? क्या जे एंड के पुलिस ने आठ फरवरी को जो सूचना दी थी उसकी अनदेखी की गई? सरकार को यह जवाब देने होंगे।

Sunday, 24 February 2019

गांजा, भांग, चरस की लत में उड़ता भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को गुरु जमेश्वर विश्वविद्यालय (हिसार) में आयोजित ड्रग-फ्री इंडिया अभियान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि युवाओं को ड्रग्स के सेवन से दूर रहना चाहिए, क्योंकि ड्रग्स के सेवन से न केवल शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से खोखले हो जाते हैं बल्कि जाने-अनजाने में देशद्रोही ताकतों का सहयोग भी करते हैं। ड्रग्स की समस्या भयानक रूप लेती जा रही है। मादक पदार्थों के सेवन पर ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) की एक सर्वे रिपोर्ट में पंजाब ही नहीं, बल्कि पूरे देश की भयावह तस्वीर सामने आई है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि तीन करोड़ से ज्यादा लोग दिन में चार से छह बार भांग, चरस और गांजे का सेवन करते हैं, जबकि 16 करोड़ लोग शराब के आदी हैं। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और एम्स के संयुक्त तत्वावधान में तैयार इस रिपोर्ट को विभाग के मंत्री थावर चन्द गहलोत ने पेश किया। इस रिपोर्ट के आधार पर देश को नशामुक्त कराने के लिए केंद्र सभी राज्यों की सरकारों के साथ मिलकर एक्शन प्लान तैयार करेगा। ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि देश की कितनी बड़ी आबादी नशे की आदी हो चुकी है और यह तादाद बढ़ती ही जा रही है। डॉ. अतुल के अनुसार शराब के बाद भांग, गांजा और चरस का बड़े पैमाने पर सेवन किया जाता है। 10 वर्ष तक की आयु के मासूमों में भी इसकी लत बढ़ रही है। देश में तीन करोड़ 10 लाख लोग इसकी चपेट में हैं, जिनमें से 72 लाख लोगों को तुरन्त इलाज की जरूरत है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, सिक्किम और छत्तीसगढ़ के अलावा देश की राजधानी दिल्ली में इनका सेवन करने वाले सबसे ज्यादा लोग हैं। दिल्ली वाले अलग-अलग तरह के नशे की लत के शिकार हैं। दिल्ली वाले सबसे ज्यादा शराब पीते हैं। यहां 21 प्रतिशत लोग शराब पीने के शौकीन हैं, जो पूरे देश की तुलना में पांच प्रतिशत से ज्यादा है। शराब के बाद 3.5 प्रतिशत दिल्लीवासी चरस व गांजा की लत लगाए बैठे हैं। चिन्ता की बात यह है कि शराब की लत के शिकार छह प्रतिशत को तुरन्त इलाज की जरूरत है, लेकिन 38 में से सिर्प एक को इलाज मिल पाता है। उत्तर-पूर्व भारत में अफीम की गोलियों का ज्यादा सेवन किया जाता है। सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम सहित अन्य राज्यों में करीब दो करोड़ लोग अफीम, डोडा और हेरोइन जैसे मादक पदार्थ का सेवन कर रहे हैं। पिछले दिनों जहरीली शराब के सेवन से कई जिन्दगियां और परिवार तबाह हो गए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ड्रग्स के सेवन से आतंकवादियों के हाथ मजबूत होते हैं तथा नारकोटिक्स ट्रेड को देशद्रोही और असामाजिक गतिविधियों में प्रयोग किया जाता है। भारत सरकार द्वारा सीमा पार से नशे के अवैध व्यापार और ड्रग्स कारोबार को रोकने के लिए नेशनल एक्शन प्लान लागू किया जा चुका है। ड्रग्स एडिक्शन के विरुद्ध विस्तृत कार्ययोजना बनी है। प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की कि ड्रग्स के आदी लोगों को अपराधी की तरह न देखें और उनके प्रति संवेदनशील रवैया अपनाते हुए उन्हें नशे की आदत से छुटकारा दिलाने में सहयोग करें।

-अनिल नरेन्द्र

आतंक, कर्फ्यू, प्रदर्शनों ने तबाह की जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था

आतंकवाद ने जहां पूरे देश को प्रभावित किया है वहीं जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को तो बिल्कुल तबाह कर दिया है। पिछले 30 सालों में आतंकी गतिविधियों के चलते राज्य को 4.55 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। केंद्र सरकार देश की जीडीपी का 10 प्रतिशत हिस्सा यहां खर्च करती है। बावजूद इसके जे एंड के में आतंकवाद और बेरोजगारी दोनों बढ़ी हैं। ऐसा तब हुआ है जब पिछले 18 सालों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए केंद्र ने सहायता राशि में 55 प्रतिशत का इजाफा किया है। जम्मू-कश्मीर ही इकलौता ऐसा राज्य है जहां औसत 80 प्रतिशत से भी ज्यादा अनुदान केंद्र की तरफ से किसी राज्य को उसके विकास के लिए मिला है। बाकी राज्यों में 30 प्रतिशत का है। प्रति व्यक्ति के हिसाब से  बात करें तो जम्मू-कश्मीर के लोगों को केंद्र सरकार बाकी राज्यों की तुलना में आठ गुणा ज्यादा फंड देती है। जम्मू-कश्मीर में मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पांच लाख से अधिक सुरक्षा बल तैनात हैं। कुछ रक्षा विशेषज्ञों का दावा है कि इतनी सेना तैनात नहीं है, राज्य में सैनिकों की तादाद 2,10,800 बताते हैं। लगभग 31 साल के आतंक ने कश्मीर की अर्थव्यवस्था अलग से ध्वस्त कर दी है। इतना पैसा मिलने के बाद भी यहां बेरोजगारी बढ़ी है। उग्रवाद ने पर्यटन को तो तबाह ही कर दिया है। 1988 में सात लाख पर्यटक जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे। 1989 में हिंसा का दौर शुरू हुआ तो यह मुश्किल से पर्यटक संख्या 6,287 रह गई। बीच में जब स्थिति थोड़ी सुधरी तो 2007 में जो पर्यटक संख्या 27,356 थी वो 2012 में रिकॉर्ड 13 लाख पर्यटक तक पहुंच गई। 30 साल में कर्फ्यू, प्रदर्शन और हड़ताल से कश्मीर 1796 दिन बंद रहा है। 1991 में सबसे अधिक 207 दिन और 2011 में 130 दिन बंद रहा। इन बंदों से कश्मीर को 250 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। 2016 में 57]िदन के पूर्ण बंद से 10,500 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। जम्मू की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले टूरिज्म सेक्टर की भी हालत खराब हो चुकी है। जहां 1989 में आतंक के दौर से पहले राज्य की जीडीपी में टूरिज्म सेक्टर 10 प्रतिशत से ज्यादा योगदान देता था। पिछले 30 सालों में यह योगदान बढ़ने की जगह घटकर औसत छह प्रतिशत पर आ गया है। इसका कारण आतंक के चलते देशी और विदेशी दोनों ही  पर्यटकों का घाटी से मुंह मोड़ लेना है। जनवरी 2019 में जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर 21 प्रतिशत रही, जो देश में त्रिपुरा के बाद दूसरे नम्बर पर है। 18-29 आयु वर्ग में 24.6 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। राज्य में सालाना 2.74 प्रतिशत आबादी बढ़ रही है। 2007 में यह आंकड़ा 1.68 प्रतिशत था। जम्मू में नए बिजनेस शुरू नहीं हो पा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में सिर्प 86 बड़े और मध्यम दर्जे के उद्योग हैं। इससे 19,314 लोगों को ही रोजगार मिला हुआ है। घाटी में 30,120 छोटे उद्योग-धंधे हैं। इसमें 1,42,317 लोगों को रोजगार मिला हुआ है। लेकिन छोटे, मध्यम और बड़े उद्योग-धंधे ने बीते 10 साल में सिर्प पांच हजार रोजगार जोड़े हैं। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश और जम्मू-कश्मीर राज्य को आतंकवाद के चलते कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।

Saturday, 23 February 2019

प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की औपचारिकता की भारत यात्रा

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान की भारत यात्रा ऐसे समय हुई जब पूरा देश पुलवामा हमले को लेकर शोकाकुल था। संयोग से युवराज पहले पाकिस्तान गए थे लेकिन भारत की आपत्ति का ध्यान रखते हुए वह सीधे पाकिस्तान से भारत नहीं आए बल्कि अपने देश जाकर वापस आए। इससे इतना तो जाहिर होता ही है कि उन्हें भारत की भावनाओं का ध्यान है। दिल्ली में अपने वक्तव्य में प्रिंस मोहम्मद ने सीधे-सीधे पुलवामा हमले की निन्दा तो नहीं की, पर कहा कि चरमपंथी और आतंकवाद पर भारत और सऊदी अरब की चिन्ताएं समान हैं। प्रिंस ने आतंक के खिलाफ लड़ाई में साथ देने का वादा तो किया लेकिन पुलवामा हमले और पाकिस्तान के बारे में एक शब्द नहीं बोला। जबकि पुलवामा हमले के बाद भारत पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति पर काम कर रहा है। इसमें अब तक फ्रांस, अमेरिका, इजरायल, न्यूजीलैंड जैसे देश भारत का खुलकर समर्थन कर चुके हैं। दरअसल अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत की ईरान से बढ़ती नजदीकी सऊदी को रास नहीं आ रही है। लिहाजा भारत और सऊदी के बीच सामरिक साझेदारी के दावे और व्यापारिक संभावनाओं के बावजूद कुछ संवेदनशील कूटनीतिक मामलों पर विश्वास बहाली बाकी है। पाकिस्तान से परंपरागत संबंधों के मद्देनजर सऊदी अरब भारत के साथ पूंक-पूंक कर कदम रख रहा है। गौरतलब है कि भारत आने से पहले पाकिस्तान गए सऊदी प्रिंस ने 20 अरब डॉलर की मदद का वादा किया। भारत को इस मुगालते में कई नहीं रहना चाहिए कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने में सऊदी अरब उसकी मदद करेगा। सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की चार देशों की यात्रा का यह उद्देश्य है भी नहीं। प्रिंस सलमान के लिए इस समय पाकिस्तान के आतंकवाद के विरोध से कहीं ज्यादा अपनी ताजपोशी से पहले पड़ोसी देशों का समर्थन जुटाना है। पाकिस्तान के बाद अपनी दो दिनों की भारत और इसके बाद मलेशिया और इंडोनेशिया की यात्रा से प्रिंस वह समर्थन जरूर हासिल कर लेंगे, जिसकी अमेरिकी पत्रकार खाशोगी की इस्तांबुल में सऊदी दूतावास में हुई हत्या के बाद उनको सख्त जरूरत है। यह किसी से छिपा नहीं कि सऊदी अरब अपने वहाबी प्रभाव को फैलाने में सबसे आगे है। सऊदी अरब भारत के मदरसों में पैसे देने वाला व सबसे बड़ी मदद करने वाला देश है। यह अलग बात है कि भारत और सऊदी अरब के संबंध काफी पुराने और प्रगाढ़ हैं। हमारे 40 लाख लोग सऊदी अरब में काम करते हैं। प्रिंस सलमान की भी यही कोशिश है कि वह अपने मुल्क को मजहबी दायरे से आगे बढ़ाकर एक आधुनिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं। पाकिस्तान में यह बात आधिकारिक तौर पर भले ही न कही गई हो पर वहां एक तबके की राय यह जरूर है कि भारत-पाक रिश्तों को गर्त में जाने से बचाने का माद्दा अभी भी सऊदी अरब में ही है। हम सऊदी अरब से कारोबारी रिश्ते तो बढ़ा सकते हैं पर हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि सऊदी अरब पाकिस्तान को अलग-थलग करने में भारत की मदद करेगा।

-अनिल नरेन्द्र

पाक सेना, आईएसआई और आतंकी संगठनों की कठपुतली इमरान खान

पुलवामा में सीआरपीएफ के एक काफिले पर कायराना भीषण हमले के पांच दिन बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिस पर भरोसा किया जा सके या इसमें कुछ भी नया हो। पुरानी आदत के अनुसार उन्होंने रटा-रटाया बयान दिया। इमरान ने हमेशा की तरह पुलवामा हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता के सबूत मांग कर देश-दुनिया को गुमराह करने की ही कोशिश की। भारत की संभावित कार्रवाई से डरे इमरान खान ने युद्ध की धमकी दे डाली। उन्होंने कहा कि अगर भारत हमला करेगा तो पाक ऐसा पलटवार करेगा कि युद्ध रोकना मुश्किल हो जाएगा। इमरान खान पांच दिन बाद सफाई देने आए तो चेहरे पर घबराहट और खौफ साफ दिखा। रिकॉर्डिंग वीडियो बयान में सेना ने 35 जगह एडिटिंग की। 362 सैकेंट के वीडियो में पहली एडिटिंग 30वें और आखिरी एडिटिंग 356वें सैकेंड पर है। देश को संबोधित करते हुए इमरान ने कहा कि भारत बिना सबूत आरोप लगा रहा है। पहले कहा था कि इमरान देश को संबोधित करेंगे। हालांकि वीडियो में  लगे कट से पता चला कि यह पहले रिकॉर्ड था। इमरान खान के दावों को भारत ने खारिज ही किया था कि उनकी पूर्व पत्नी रेहम खान ने भी उनके झूठे बयान की परत दर परत खोलकर रख दी है। रेहम खान ने कहा कि इमरान खान पाकिस्तान सेना के हाथों में कठपुतली हैं। वह उतना ही कहते हैं और करते हैं जितना उन्हें सेना करने व कहने के लिए कहती है। रेहम खान ने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में इमरान खान की अपनी कोई हैसियत नहीं है। सत्ता के लिए इमरान खान ने अपने आधुनिक विचारों और सिद्धांतों से भी समझौता कर लिया। इमरान की पूर्व पत्नी ने कहा कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद इमरान खान बयान देने के लिए सेना के निर्दोशों का इंतजार करते रहे। पुलवामा पर इमरान ने जो कुछ भी कहा वह उनके अपने शब्द नहीं थे और साफ लगता था कि इसे किसी और ने तैयार किया था। सबसे दुखद बात यह थी कि इमरान ने अपने भाषण में कहीं भी भारत के 40 जवानों के मरने पर एक शब्द भी अफसोस का नहीं कहा। वहीं पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने पुलवामा हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराए जाने पर प्रधानमंत्री इमरान खान को घेरते हुए कहा कि वह दूसरे के कहने पर काम करते हैं और इसी वजह से पूरी स्थिति और खराब हुई है। उन्होंने कहा कि इमरान खान को अपरिपक्व बताते हुए कहा कि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के बारे में कुछ पता नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि मेरे कार्यकाल के दौरान मुंबई के ताज होटल पर हमला हुआ था, इस हमले का आरोप भी हमारे ऊपर लगाया गया, हालांकि हमने इस मामले को सही ढंग से निपटा दिया और भारत को पीछे हटने के लिए मजबूर किया और कूटनीतिक ढंग से हल किया था। पुलवामा हमले के सबूत मांग आतंकियों पर कार्रवाई की गारंटी लेने वाला पाकिस्तान पहले भी हजार बार ऐसे झूठ बोल चुका है। भारत सरकार पाकिस्तान को पहले ही मुंबई, पठानकोट, उरी हमले और संसद पर हमले के सबूत सौंप चुकी है। लेकिन दोषियों को सजा मिलना तो दूर उसकी सरपरस्ती में आतंकी भारत के खिलाफ लगातार आतंकी साजिशों को अंजाम दे रहे हैं। पाक आतंकवाद की धुरी है। कोई हैरानी नहीं कि इमरान ने हमले को आतंकी कार्रवाई मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने न तो इसकी निन्दा की और न ही शहीदों के परिजनों से सहानुभूति जताई। इमरान का रिकॉर्डिंग संदेश ही इस बात का सबूत है कि वह सेना, आईएसआई और आतंकी संगठनों के हाथों की कठपुतली हैं। यदि वाकई वह आतंकवाद को लेकर गंभीर होते तो जैश और लश्कर के खिलाफ ठोस कार्रवाई करते।

Friday, 22 February 2019

...और अब भाजपा शिवसेना के सामने झुकी

2019 के लोकसभा चुनाव में आ रहे विभिन्न सर्वेक्षणों का निष्कर्ष यही निकल रहा है कि अगली सरकार बनाने में गठबंधनों, महागठबंधनों की अहम भूमिका होगी। ऐसा कहा जा रहा है कि कोई भी अकेली पार्टी अपने दम-खम पर स्पष्ट बहुमत नहीं पा सकेगी और सरकार बनाने के लिए अपने गठबंधन साथियों का सहारा लेना पड़ेगा। यह बात भाजपा के लिए भी फिट बैठती दिखती है और कांग्रेस के लिए भी। इसीलिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के तालमेल में अपने सहयोगियों के प्रति काफी उदार रुख अपना रखा है। बिहार में जेडीयू के सामने पूरी तरह झुक जाने के बाद अब भाजपा ने अपने सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना से भी समझौता कर लिया है। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि भाजपा की नजर में 2019 का चुनाव 2014 से बिल्कुल अलग है। तालमेल के तहत शिवसेना को लोकसभा में 23 सीटें मिली हैं जबकि 2014 में उसे 22 सीटें मिली थीं। एक तरह से बिहार की तर्ज पर अपनी एक सीट कम कर अपने सहयोगी दल से समझौता किया है। राम मंदिर, राफेल सौदे जैसे मुद्दों पर बार-बार भाजपा पर हमला करने वाली शिवसेना ने भी साबित कर दिया कि पिछले चार-पांच साल से जो वह भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ जहर उगल रही थी वह केवल सीटों के लिए सौदेबाजी का हिस्सा था। क्या-क्या नहीं कहा शिवसेना ने प्रधानमंत्री के खिलाफ? भाजपा और शिवसेना के बीच पिछले दो दशक से ज्यादा का पुराना रिश्ता रहा है, सामाजिक आधार पर और वैचारिक धरातल पर दोनों में काफी साम्यता देखी जाती है, इसलिए इन दोनों का गठबंधन किसी को अस्वाभाविक नहीं लगता था। लेकिन जिस प्रकार पिछले कुछ वर्षों से भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में कड़वाहट देखी जा रही थी, उससे यह भी चर्चा होने लगी थी कि इस बार दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में दोनों के रिश्तों में तनाव और गठबंधन के कारणों पर भी चर्चा होना स्वाभाविक ही थी। इसमें कोई दो राय नहीं है यह सब गठबंधन राजनीति की मजबूरियों की खासियत है, जिसमें हरेक दल अपने हित में सौदेबाजी के लिए दबाव की रणनीति अपनाता है। यह कहना गलत न होगा कि भाजपा की आलोचना के पीछे शिवसेना की संभवत यही रणनीति रही हो ताकि उससे अपनी मांग मनवाई जा सके। अपने लिए हाशिये वाले राज्यों में भाजपा नए साथी खोज रही है। तमिलनाडु में वह एआईडीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी, जहां गठबंधन में उसे पांच सीटें मिलने की बात कही जा रही है। पिछले तीन राज्यों में सत्ता खोने के बाद पार्टी को लगने लगा है कि सिर्प मोदी के आकर्षण और अमित शाह के प्रबंधन पर निर्भर रहना चुनाव में भारी पड़ सकता है। वह देख रही है कि कांग्रेस किस तरह छोटे-छोटे राज्यों में गठबंधन पर जोर दे रही है। ऐसे में भाजपा की सोच यह लगती है कि ज्यादा से ज्यादा सीटें खुद लेकर हार जाने से बेहतर है कि काफी सीटें सहयोगियों को देकर जीतने पर जोर दिया जाए। अगर वह लोकसभा चुनाव में बहुमत से पिछड़ती है तो एनडीए के फार्मूले पर अगली सरकार बनाई जा सकती है। बिहार में इसी फार्मूले पर भाजपा ने कुल 13 सीटों का त्याग किया, जिसमें पांच उनके मौजूदा सीटिंग सांसद हैं। भाजपा के सहयोगी दल मनमाफिक सीटें अगर पा रहे हैं तो इसका कारण मोदी का लगातार ग्राफ गिरना और भाजपा की चुनावी हालत कमजोर होती जा रही है।

-अनिल नरेन्द्र

आतंकवाद पाकिस्तान सरकारी नीति का हिस्सा है

पुलवामा हमले से पाकिस्तान का आतंकी चेहरा एक बार फिर बेनकाब हुआ है। हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकी संगठन जैश--मोहम्मद ने ली है। इससे यह फिर साबित हो गया है कि पाकिस्तान आतंकी संगठनों का न सिर्प समर्थन करता है, बल्कि इनका गढ़ भी बना हुआ है। दुनिया के सामने दिखावे के लिए पाकिस्तान भले कुछ आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करता है, लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान की सरजमीं से खूंखार आतंकी संगठन खुलेआम अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। उन्हें न सिर्प सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराई गई है, बल्कि सरकारी तंत्र जिसमें पाक सेना, आईएसआई शामिल है जो इनकी हर संभव मदद करता है। पाकिस्तान भारत ही नहीं, बल्कि अपने सभी पड़ोसी देशों में आतंकी भेजकर वहां अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहा है। पुलवामा हमले से एक दिन पहले पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने ईरान के खास प्रशिक्षित बल रिवोल्यूशनरी गार्ड्स पर हमला करके 27 जवानों की हत्या कर दी थी। जांच से पता चला है कि आत्मघाती हमलावर पाकिस्तान से आया था और उसे वहां की खुफिया एजेंसी ने प्रशिक्षित किया था। बुधवार को इस हमले पर ईरान ने कहा है कि पाकिस्तान को इस हमले की भारी कीमत चुकानी होगी। ईरानी सत्ता में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स का खास रुतबा है। रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख मेजर जनरल मोहम्मद अली जाफरी ने आत्मघाती हमले के लिए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) समर्थित सुन्नी आतंकी संगठन को जिम्मेदार ठहराया है। कहा है कि पाकिस्तानी सेना और अन्य सुरक्षा बल इस तरह के संगठनों को क्यों पनाह देता है। पुलवामा हमले की साजिश में जैश--मोहम्मद के साथ पाकिस्तानी सेना भी पूरी तरह शामिल थी। इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि लगभग एक महीने पहले पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के साथ-साथ कश्मीर और पंजाब से जुड़ी सीमा पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी थी। पुलवामा हमले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पुलवामा हमले से पहले सैनिकों को तैनात करना पाक सेना द्वारा कोई बड़ी कार्रवाई की तैयारी का संकेत था। यही नहीं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के आकाओं के कुछ टेलीफोन भी इंटरसेप्ट किए गए थे, जिसमें बड़ी कार्रवाई का जिक्र किया जा रहा था। हमारी खुफिया एजेंसियों के पास टुकड़ों में तो हमले की भनक लग गई थी, लेकिन वह असली साजिश की तह तक पहुंचने में नाकाम रहे। पुलवामा आतंकी हमले को लेकर सरकार पर कार्रवाई करने के बढ़ते दबाव के बीच हमारे रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि दशकों से आतंकवाद को सरकारी नीति के रूप में इस्तेमाल करने वाले पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने के साथ सैन्य कदम उठाकर सबक सिखाने की जरूरत है। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि पुलवामा आतंकी हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गई। इसे अंजाम देने वालों को दंडित करना जरूरी है। राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाते हुए व्यवस्थित रणनीति के तहत कार्रवाई करने की सख्त जरूरत है। ईरानी सेना के मेजर जनरल मोहम्मद अली जाफरी ने आतंकी संगठन जैश-अल-अदल का जिक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तान की सरकार ऐसे आतंकियों को पनाह देती है, जो हमारी सेना और इस्लाम के लिए खतरा है। उसे पता है कि यह लोग कहां छिपे हैं और पाकिस्तानी सुरक्षा बल उन्हें समर्थन व पनाह दे रहे हैं। उन्होंने चेतावनी  देते हुए कहा कि यदि पाकिस्तान इन आतंकियों के खिलाफ एक्शन नहीं लेता है तो हम बदला लेंगे। पाकिस्तान को ऐसे तत्वों का समर्थन करने का परिणाम भुगतना होगा।

Thursday, 21 February 2019

फिल्म संगठनों ने पाक कलाकारों पर लगाई पाबंदी

पुलवामा में 14 फरवरी के आतंकी हमले के बाद पूरे देश में जबरदस्त आक्रोश देखने को मिल रहा है। बॉलीवुड के सेलेब्स भी अपने गुस्से का खुलकर इजहार कर रहे हैं। बीते दिनों हमले की निन्दा करते हुए जावेद अख्तर और शबाना आजमी ने अपना प्रस्तावित कराची दौरा रद्द कर दिया था। अब बॉलीवुड की मशहूर सिंगर रेखा भारद्वाज और सिंगर हर्षदीप कौर ने भी पाकिस्तान दौरा रद्दा कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक दोनों सिंगरों को एक संगीत कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए लाहौर जाना था। उन्हें 21 और 22 मार्च को लाहौर में होने जा रहे शान--पाकिस्तान नाम के कार्यक्रम में शामिल होना था लेकिन पुलवामा हमले के बाद दोनों सिंगरों ने नाराजगी जताते हुए अपने दौरे को कैंसिल कर दिया है। पुलवामा आतंकी हमले के विरोध में महानायक अमिताभ बच्चन की अगली फिल्म और क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग, वीवीएस लक्ष्मण, हरभजन सिंह और सुरेश रैना के एक विज्ञापन की शूटिंग रविवार को मुंबई में करीब दो घंटे के लिए रोक दी गई। दूसरी ओर फेडरेशन ऑफ वैस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज ने पाकिस्तानी कलाकारों पर पूरी तरह बैन लगाने का फैसला किया है। 24 फिल्म संगठनों ने गोरेगांव स्थित फिल्म सिटी में विरोध प्रदर्शन किया। सहवाग, हरभजन, रैना और लक्ष्मण सहित अन्य लोग फिल्म सिटी में एक विज्ञापन की शूटिंग कर रहे थे, लेकिन वह लोग सैनिकों के प्रति अपनी एकजुटता दिखाने के लिए शूटिंग रोक कर विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। सहवाग ने कहा कि हम जो भी कहें या करें वह सैनिकों और उनके योगदान के लिए शायद कम ही होगा। हम केवल उनका शुक्रिया अदा कर सकते हैं और उनकी मदद करने के लिए जो कुछ कर सकते हैं, हमें करना चाहिए। हम बहुत दुखी हैं लेकिन भविष्य में हम सभी के लिए एक बेहतर समय की आशा करते हैं। हरभजन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि शहीद हुए जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। फेडरेशन ऑफ वैस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज के अध्यक्ष बीएन तिवारी ने बताया कि सभी फिल्म संगठनों ने हिन्दी फिल्मों में काम करने वाले किसी भी पाकिस्तानी कलाकार का पूरी तरह से बहिष्कार करने का फैसला किया है। आरएफटीडीए के अध्यक्ष अशोक पंडित ने भी यही बात कही और कहा कि फिल्म संगठनों ने नवजोत सिंह सिद्धू का भी बहिष्कार करने का फैसला किया है। गौरतलब है कि सिद्धू ने हमले की निन्दा तो की थी लेकिन साथ में यह भी कहा था कि क्या कुछ लोगों की करतूत के लिए पूरे देश को दोषी ठहराया नहीं जा सकता है। फिल्मी सितारे पीड़ित परिवारों के लिए आर्थिक मदद करने में भी पीछे नहीं हटेंगे। अमिताभ बच्चन, सलमान खान, अक्षय कुमार व दलजीत दोसांझ ने भी आर्थिक सहायता दी है। उधर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने मुंबई के निजी एफएम चैनलों से कहा है कि वह पाकिस्तानी कलाकारों के गीत न बजाएं। राज ठाकरे की पार्टी के एक नेता ने परिधानों के अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों से भी कहा है कि वह पाकिस्तान में बने कपड़े नहीं बेचें। उन्होंने कहा कि अगर यह एफएम चैनल पाकिस्तानी कलाकारों का संगीत नहीं रोकते हैं तो इसका नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

दूसरी जवाबी कार्रवाई : हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा हटी

हुर्रियत कांफ्रेंस यह एक ऐसा संगठन है जो जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की विचारधारा को प्रोत्साहित करती है। साल 1987 में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने गठबंधन पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। घाटी में इसके खिलाफ बहुत विरोध भी हुआ। इस चुनाव में भारी बहुमत से जीतकर फारुक अब्दुल्ला ने राज्य में अपनी सरकार बनाई। इनके विरोध में खड़ी हुई विरोधी पार्टियों में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट को केवल चार सीटें मिलीं जबकि जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस को 40 और कांग्रेस को 26 सीटें मिलीं। इसके ही विरोध में घाटी में 13 जुलाई 1993 को ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस की नींव रखी गई। इसका सिर्प एक मकसद था...घाटी में अलगाववादी आंदोलन व गतिविधियों को गति प्रदान करना। भारत सरकार द्वारा पुलवामा हमले के  बाद दूसरा बड़ा कदम हुर्रियत कांफ्रेंस के छह अलगाववादी नेताओं को मिली सुरक्षा और सुविधाएं वापस लेना है। जम्मू-कश्मीर के एक अधिकारी ने बताया कि ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारुक, शब्बीर शाह, हाशिम कुरैशी, बिलाल लोन, फजल हक कुरैशी और अब्दुल गनी बट को अब किसी तरह का सुरक्षा कवर नहीं दिया जाएगा। न इन्हें सरकारी गाड़ियां दी जाएंगी। दूसरी दी जाने वाली सुविधाएं भी तुरन्त हटा ली जाएंगी। सरकार इन अलगाववादियों पर साल में करीब 14 करोड़ रुपए खर्च करती है। 11 करोड़ सुरक्षा, दो करोड़ विदेशी दौरे और 50 लाख गाड़ियों पर खर्च होते हैं। इनकी सुरक्षा में 600 जवान भी लगे हुए थे। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि ऐसे 50 के करीब कश्मीरी अलगाववादी नेता हैं जिन्हें राज्य सरकार ने केंद्रीय सरकार के आदेशों पर सरकारी सुरक्षा मुहैया करवा रखी है। पाठकों की जानकारी के लिए सर्वदलीय हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज मौलवी उमर फारुक को तो बाकायदा जैड प्लस की श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई है। हुर्रियत कांफ्रेंस के जिस महागठबंधन में पार्टियां शरीक हुई थीं वह चाहती हैं कि कश्मीरी आवाम में जनमत संग्रह कराकर उन्हें एक अलग पहचान दिलाना है। हालांकि इनके मंसूबे पाकिस्तान को लेकर काफी नरम रहे। यह सभी कई मौकों पर भारत की अपेक्षा पाक से अपनी नजदीकियां दिखाते रहे हैं। 90 के दशक में जब घाटी में आतंकवाद चरम पर था तब इन्होंने खुद को वहां एक राजनीतिक चेहरा बनाने की कोशिश की लेकिन लोगों ने इसे नकार दिया। मीरवाइज मौलवी उमर फारुक ने अलगाववादियों से सुरक्षा वापस लेने के फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह (सुरक्षा) हमारे लिए कोई मसला नहीं है। यह सरकार का निर्णय था कि इसे जारी रखा जाए या हटा दिया जाए। प्रो. अब्दुल गनी भट ने राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा वापस लिए जाने पर कहा कि हमने कभी सुरक्षा नहीं मांगी थी। अगर इसे हटाया जाता है तो हमें कोई फर्प नहीं पड़ता। इस सुरक्षा को भारतीय एजेंसियां कश्मीर की आजादी पसंद तंजीमों और उनके नेताओं को बदनाम करने के लिए ही इस्तेमाल करती हैं। इसके जरिये हमारी गतिविधियों की निगरानी की जाती थी। अच्छा हो गया है, अब हम आजादी से चल सकेंगे। सवाल यह उठता है कि अलगाव के साथ आतंक के समर्थक इन तथाकथित कश्मीरी नेताओं को आखिर सुरक्षा दी ही क्यों गई थी? क्या यह विचित्र नहीं कि एक ओर देश के खिलाफ बयानबाजी या नारेबाजी करने, पत्थरबाजों की सराहना करना अथवा सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखने पर तो देशद्रोह का मामला दर्ज हो जाता है, लेकिन पाकिस्तान के इशारे पर भारत के खिलाफ लगातार जहर उगलने, मजहबी उन्माद फैलाने, आतंकियों का गुणगान करने वाले हुर्रियत नेता बरसों से सरकारी सुरक्षा पर चल रहे थे? आखिर किस आधार पर इनसे उम्मीद की जा रही थी कि यह कश्मीर समस्या के समाधान में सहायक बन सकते हैं। चूंकि कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद बढ़ता जा रहा है और इन्हें धारा 370 के तहत कहीं अधिक अधिकार प्राप्त हैं इसलिए यह सही समय है जब इस धारा को खत्म करने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। यह धारा कश्मीर घाटी और शेष भारत के बीच एक खाई की तरह है। इसीलिए कश्मीरियों का एक तबका खुद को भारत से अलग मानता है। इसी मान्यता ने घाटी में अलगाव के बीज बोए।

Wednesday, 20 February 2019

गम, गुस्से और नम आंखों से 16 राज्यों के 40 शहीदों की अंतिम विदाई

गम, गुस्से और नम आंखों से 16 राज्यों में 40 शहीदों की अंतिम यात्रा पर लाखों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने निकले। शहीद सपूतों का शनिवार को नाम आंखों और भारी आक्रोश के बीच अंतिम संस्कार किया गया। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा सहित देश के 16 राज्यों में 40 सीआरपीएफ जवानों को अंतिम विदाई देने लोग तिरंगा लहराते हुए पहुंचे। पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों के शव जब अलग-अलग राज्यों में पहुंचे तो उनकी अंतिम यात्रा का दृश्य देखने वाला था। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर के रहने वाले शहीद वीरेंद्र सिंह राणा का पार्थिव शरीर जब खटीया पहुंचा तो श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया। वीरेंद्र सिंह के ढाई वर्ष के बेटे ने अपने पिता के शव को मुखाग्नि दी। वहीं शनिवार को देहरादून के शहीद हुए एएसआई रतूड़ी को उनकी बहादुर बेटी ने अपने पिता को सैल्यूट किया और एक टक देखती रही। प्रयागराज में जब शहीद हुए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवान महेश कुमार यादव का पार्थिव शरीर पहुंचा तो सीआरपीएफ के जवानों द्वारा सलामी गारद दिए जाने के बाद शहीद के पिता राज कुमार यादव ने मुखाग्नि दी। इधर शहीद हुए जवानों को अंतिम विदाई दी जा रही थी तभी एक खबर आई कि एलओसी के राजौरी के नौशेरा सेक्टर में बारूदी सुरंग धमाके में सेना के इंजीनियरिंग विभाग के मेजर चित्रेश सिंह बिष्ट शहीद हो गए। एक जवान भी घायल हुआ। वह एक आईईडी को डिफ्यूज कर रहे थे कि अचानक डिफ्यूज करते वक्त वह फट गया। बम निरोधक दस्ते का नेतृत्व कर रहे मेजर बिष्ट ने एक बारूदी सुरंग को सफलतापूर्वक निक्रिय कर दिया था। हालांकि दोपहर बाद करीब तीन बजे दूसरी आईईडी को निक्रिय करते वक्त बलास्ट हो गया। 31 साल के मेजर बिष्ट देहरादून के रहने वाले थे और अगले महीने सात मार्च को उनकी शादी होनी थी। शहीद होने वाले जवान पूरे देश के मूल निवासी थे। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और असम सभी राज्यों के शहीद हुए। शनिवार को जब उनका पार्थिव शरीर उनके यहां पहुंचा जहां उनका जन्म हुआ था, जहां वो पले-बढ़े थे तो इन शवों की हालत को देख लोगों के मन में घोर गुस्सा भरा था। हमले की चपेट में आए जवानों के शरीर का वो हाल हो चुका था जिसे बता पाना मुश्किल है। हमले के तुरन्त बाद आई तस्वीरें इसकी गवाही भी दे रही थीं। ब्लास्ट के बाद शवों को पहचानना कठिन हो गया। कहीं हाथ पड़ा था तो कहीं शरीर का दूसरा भाग बिखरा हुआ था। जवानों के बैग कहीं थे तो उनकी टोपी कहीं बिखरी हुई थी। हमले का यह इलाका युद्धभूमि जैसा दिख रहा था। शरीर के बाद इन अवशेष और सामानों को एक साथ इकट्ठा करके उनकी पहचान का काम शुरू हुआ। इस काम में जवानों के आधार कार्ड, आईडी कार्ड से बड़ी मदद मिली। जिन जवानों के सिर से आसपास चोट आई थी उनकी पहचान सिर्प आईडी कार्ड से हो सकी। शवों की शिनाख्त के कुछ मामले तो बेहद दर्द भरे थे। कई जवान घर जाने के लिए छुट्टी का आवेदन लिखकर आए थे। इस आवेदन को उन्होंने अपने बैग में या पॉकेट में रख रखा था, इसी के आधार पर उन्हें पहचाना जा सका। इस प्रचंड विस्फोट में कई जवानों के बैग उनसे अलग हो गए थे। ऐसे में उनकी पहचान उनकी कलाई में बंधी घड़ियों से हुई। सबसे दुखद बात यह है कि पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि देने जनसैलाब उमड़ा हुआ था वहीं निम्स यूनिवर्सिटी में कश्मीरी छात्र जश्न मना रहे थे और देश विरोधी नारे लगा रहे थे। कवि कुमार मनोज की पंक्तियां हैं-सुख भरपूर गया, मांग का सिन्दूर गया, नंगे नौनिहालों की लंगोटियां चली गईं। बाप की दवाई गई, भाई की पढ़ाई गई, छोटी-छोटी बेटियों की चोटियां चली गईं। ऐसा एक विस्फोट हुआ, जिस्म का पता नहीं, पूरे ही जिस्म की बोटियां चली गईं। आप के लिए तो एक आदमी मरा है साहब, किन्तु मेरे घर की तो रोटियां चली गईं। जी! एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों की शहादत के साथ मेहंदी वाले हाथों ने मंगल-सूत्र उतारे, बूढ़े मां-बाप का सहारा छिन गया, नन्हे-मुन्ने बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया और बहन की राखी चली गई। इस सबके बाद हाथ आया, तो हम बदला लेंगे और कार्रवाई करेंगे कि सिर्प बातें। लेकिन कब तक पता नहीं। हम हर बार यही करते आ रहे हैं और लगता है यही करते रहेंगे, क्योंकि मरने वाले सैनिक हमारे कुछ नहीं लगते। इसलिए उनके क्षत-विक्षत शव हमारे दिल को नहीं दहला सकते। हम कर सकते हैं, तो सिर्प श्रद्धांजलि कार्यक्रम और कुछ दे सकते हैं तो वही घिसे-पिटे बयान, जिसे सुन-सुनकर कान पक चुके हैं। सवाल हर बार की तरह इस बार भी यही है कि आखिर कब तक हम अपने सैनिकों को आतंक की भेंट करते रहेंगे? कब तक सैनिकों के परिवार बेसहारा और उनके पुत्र-पुत्रियां यतीम होते रहेंगे? क्या कारण है कि भारत आजादी के सात दशक बाद भी आतंक के खौफ के साये में जी रहे हैं? भले वह आंतरिक सुरक्षा हो या बाह्य सुरक्षा, दोनों ही भारत के सामने बड़ी समस्याएं बनी हुई हैं। एक ओर हम आतंकी वारदातों को रोकने में असफल हो रहे हैं और अपने सैनिकों को गंवा रहे हैं, तो दूसरी ओर देश के नौजवानों की आतंकी संगठनों में शामिल होने की खबरें हमारे लिए बेहद चिन्ताजनक हैं। क्या हालात इतने बिगड़ चुके हैं और इंसानियत के मानक इतने गिर चुके हैं कि एक पढ़े-लिखे युवा को आतंक की शरण में जाने के लिए विवश होना पड़े? क्या हमारे देश के होनहार इतने कमजोर हैं कि कोई भी उनका ब्रेनवाश कर सकता है? ऐसे कई सवाल हैं, जो देश में करोड़ों लोगों के दिल में कांटे की तरह चुभ रहे हैं। आखिर क्यों हम आतंक को रोक नहीं पा रहे हैं? ऐसे में भारत को अपना नरम रुख छोड़कर आतंकियों के साथ आतंकियों जैसा ही सलूक करना होगा। संधि और समझौते की बुनियाद पर शांति कायम करने का सालों का यत्न सिर्प कागजों में दिख रहा है। धरातल पर असर दिखे, ऐसी कार्रवाई करने की आज महत्ती आवश्यकता है। यह पत्र जालोर के देवेन्द्रराज सुथार ने लिखा है।
-अनिल नरेन्द्र


Tuesday, 19 February 2019

Biggest terrorist attack ever with Pakistan's help

The terror attack in Jammu and Kashmir on Thursday was biggest. More than 40 CRPF soldiers were martyred in this attack in Goripora near Awantipora on Jammu-Kashmir National Highway. More than 30 soldiers were injured. Most of them are in critical condition. The attack was carried by a local Kashmiri youth militant Adil Ahmed alias Bakas who belonged to the Pakistan operated Jaish-e-Mohammed’s Afzal Guru suicide bomber squad. He rammed his SUV scorpio laden with 320 kg explosives with a CRPF convoy bus full of  jawans. Other vehicles in the convoy also sustained severe damage. In the morning, there were 60 vehicles in the CRPF convoy travelling from Jammu with 2547 soldiers . At about three o'clock in the afternoon, as soon as the convoy reached Goripora (Avantipora) on Jammu-Kashmir highway a car rammed into a convoy and suddenly the suicide car driver hit the 54-vehicle bus of the CRPF. There was explosion after the collision and the bus turned in to a skeleton. The noise was heard miles away. Within minutes in span of 100 meters, there were corpse and body parts lying. After ramming the bus terrorists waiting started firing on the convoy. The jawans immediately counter fired but they managed to escape from the spot. Suicidal terrorist Adil was also killed. The car (USB) that collided was driven by militant Adil Ahmed Dar of  Jaish-e-Mohammed. The terrorist Adil Ahmed Dar was only 20 years old and he was resident of Kakapora in Kashmir Valley. He joined Jaish terrorist organization in March 2018. He was named Waqas in Jaish's team. His video and photos have come out immediately after the attack. In the video that has surfaced, terrorist Dar is seen armed with  sophisticated  weapons. After this attack, Jaish-e-Mohammed also released a 10-minute video of terrorist Dar. The cowardly act of terrorists is condemnable. This is also a matter of concern and this attack could have been be avoided?  The question is whether it was our intelligence failure? As a result of death of top commanders and their followers, especially close relatives of Masood Azhar by security forces operations, Jaish was plotting for dangerous revenge. Intelligence inputs were also received by the agencies that Jaish could execute the creepy attack. Jaish released a video a month ago. The experts are convinced that the attack was carried out on the lines of Afghanistan, Iraq and Syria infamous terrorist organization Islamic State. Its formal training has also been confirmed. An official said that this is not because of local terrorists, but a big conspiracy on the part of atronage by Pakistan. Security lapses were also there. A suicide bomber can’t be stopped but huge damage could have been avoided if there were not security lapses . For example, when the CRPF convoy was passing on the National Highway why was the movement of civilan vehicles not barred? If civilian traffic was closed at that time, it would not be so easy for Adil Dar to enter a convoy with his scorpio. Generally, when the convoy (2547 jawans) of so many jawan passes through any place, there is a sanitation of all the way. The soldiers are deployed at every 50 yards but it seems that it was not followed properly. The other details will be known only after the inquiry. The convoy of CRPF jawans in Pulwama, where the terrorists attacked, was also huge because the highway was closed for the last four days due to heavy snowfall and bad weather. Would it not be a better option to have airlifted  these jawans? This question also arises, how did the terrorists got information about the movements of the CRPF jawans? This information can be from any source. Was there any security personnel (people inside the CRPF or local police) spying for terrorists? Some experts also say that while the terrorists are adopting  new methods for the attack, the government still needs to take stringent steps. Officers also say that this loss occurred because of surgical strikes being applauded too much and now taking action immediately is difficult as no surprise is left. It is also reported that the Terrorist bosses have shifted their launch pads deeper into Pakistan. But now the new terrorists have come.  Surprises are very important for any strategy. Now, without a surprise, the government will face problems for taking immediate action. If the last time we had not lauded surgical strike too much then we could repeat such actions. Now the terrorists will move back from the border. Terrorist attacks have increased during the tenure of Modi Government. This is the 17th big attack in the last five years. Pakistan took the heads of Shaheed Mandeep and Shaheed Narendra Singh but Modi kept quiet. The ceasefire was violated more than 5000 times, but the government is silent . 448 jawans were martyred in the terrorist attack in Jammu and Kashmir, but we have not responded to any such action which would cut the roots of Pakistan and their supporters. The entire country and even the opposition are also demanding that the government take such a step which  prevent the sacrifice of our soldiers day after day. The entire opposition is to be appreciated as no one has politicised this issue, Rahul Gandhi's statement is commendable. We want this time to end the root cause of this problem. We must penetrate  Pakistan and kill Jaish-e-Mohammed and Lashkar-e-Taiba's Masood Azhar and Hafiz Saeed. I know this is not an easy task. Many of our soldiers may be martyred in this operation, but this is still happening. At least we will have the terror heads cut off and it will be an appropriate response.
Anil Narendra

राफेल के लिए पैसे हैं, लौटाने के लिए नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड के चेयरमैन अनिल अंबानी और दो अन्य के खिलाफ 550 करोड़ रुपए की बकाया राशि का भुगतान नहीं करने के कारण उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई के लिए एरिक्सन इंडिया की याचिका पर बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति विनीत शरण की पीठ ने संबंधित पक्षों को सुनने के बाद कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। रिलायंस टेलीकॉम लिमिटेड और रिलायंस इंफ्राटेल लिमिटेड की अध्यक्ष छाया वीरानी के साथ अनिल अंबानी सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद थे। सुप्रीम कोर्ट ने 28 अक्तूबर को आरकॉम को कहा था कि वह एरिक्सन कंपनी को 15 दिसम्बर तक 550 करोड़ रुपए की बकाया राशि जो उसे देनी है का भुगतान करे। अगर रकम चुकाने में देरी होती है तो सालाना 12 प्रतिशत ब्याज भी देना होगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पूरा करने में नाकाम रहने पर एरिक्सन कंपनी ने अनिल अंबानी की कंपनी पर अवमानना याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त याचिका पर अनिल अंबानी को नोटिस जारी कर उन्हें व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा था। जस्टिस नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने सात जनवरी को इस अवमानना याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अनिल अंबानी को निजी तौर पर कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जो आदेश अपलोड हुआ उसमें कहा गया था कि अवमाननाकर्ता (अनिल अंबानी) को अगली तारीख पर पेश होने की जरूरत नहीं है। बाद में अनिल अंबानी की पेशी से संबंधित बदला हुआ आदेश सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हुआ। उसमें कहा गया था कि अवमाननाकर्ता (अनिल अंबानी) की निजी पेशी को माफ नहीं किया गया है यानि उन्हें अगली तारीख पर निजी तौर पर कोर्ट में पेश होना होगा। एरिक्सन के वकील ने कोर्ट में इस मामले की शिकायत की, जिसके बाद मामले की जांच हुई। जांच में पता चला कि सहायक रजिस्ट्रार स्तर के दोनों आरोपित अधिकारियों ने जानबूझ कर छेड़छाड़ की। उन्होंने अनिल अंबानी की निजी पेशी का आदेश ही हटा दिया था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट नियमों में प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए दोनों अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान एरिक्सन के वकील ने अनिल अंबानी पर गंभीर आरोप लगाए। एरिक्सन के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि रिलायंस कम्युनिकेशन (आरकॉम) के चेयरमैन अनिल अंबानी ने कोर्ट से यह जानकारी छिपाई कि कंपनी को परिसम्पत्तियों की बिक्री से करीब 5000 करोड़ रुपए मिले। उन्होंने कहा कि यह राजाओं की तरह रहते हैं जैसा कि यह मानवता के लिए भगवान द्वारा दिए गए उपहार स्वरूप है। इनके पास राफेल में निवेश के लिए पैसा है लेकिन हमारा बकाया चुकाने के लिए पैसा नहीं है। दवे ने कहा कि अंबानी को पैसा तो देना ही चाहिए, इन्हें अवमानना की सजा भी मिलनी चाहिए। ऐसा कम देखने को मिला है कि देश के प्रमुख उद्योगपतियों के परिवार से संबंधित अनिल अंबानी इस तरह की धोखाधड़ी में शामिल हों। अब अनिल अंबानी बुरे फंसे हैं, पैसा तो लौटाना ही पड़ेगा, सजा अलग होने का खतरा है।

-अनिल नरेन्द्र

पहली जवाबी कार्रवाई ः पाकिस्तान से छिना तरजीही दर्जा

पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ पहली बड़ी कार्रवाई करते हुए भारत ने शुक्रवार को उससे सबसे तरजीही देश (मोस्ट फेवर्ड नेशनöएमएफएन) का दर्जा वापस ले लिया। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडल समिति (सीसीएस) की हुई बैठक में पुलवामा आतंकी हमले के कारण उत्पन्न वास्तविक स्थिति का आंकलन किया गया। बैठक में पाकिस्तान से एमएफएन दर्जा वापस लेने का फैसला किया गया। अर्थशास्त्राr प्रणब सेन ने कहा कि एमएफएन का दर्जा देने का मतलब होता है कि आयात-निर्यात पर लगने वाले शुल्क की दर दूसरे देशों के मुकाबले सबसे कम रखी जाती है। जानकारों के मुताबिक इससे पाक पर अधिक आर्थिक असर नहीं होगा। लेकिन दुनिया में कूटनीतिक स्तर पर बड़ा संदेश जाएगा। पाकिस्तान से सबसे तरजीही राष्ट्र का दर्जा वापस लेने के ऐलान के बाद वहां से आयात की जाने वाली वस्तुओं के कारोबार पर असर पड़ेगा। पाकिस्तान से जो चीजें आयात की जाती हैं, उनमें मुख्य रूप से फल, सीमेंट, पेट्रोलियम उत्पाद, खनिज संसाधन, लौह अयस्क और तैयार चमड़ा शामिल है। भारत ने पाकिस्तान को 1996 में यह दर्जा दिया था, लेकिन पाकिस्तान की ओर से भारत को ऐसा कोई दर्जा आज तक नहीं दिया गया। व्यापार एवं शुल्क पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के आम समझौते (जीएटीटी) के तहत यह एमएफएन का दर्जा दिया गया था। तरजीही राष्ट्र समझौते के तहत डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश अन्य व्यापारिक देशों के साथ गैर भेदभावपूर्ण तरीके का व्यापार करने के लिए बाध्य है। खासकर सीमा शुल्क और अन्य शुल्कों के मामले में, इस दर्जे को वापस लेने का अर्थ है कि अब पाकिस्तान से आने वाली वस्तुओं पर किसी भी स्तर तक सीमा शुल्क को बढ़ा सकता है। भारत-पाकिस्तान का कुल व्यापार 2016-17 में 2.27 अरब डॉलर से मामूली बढ़कर 2017-18 में 2.41 अरब डॉलर हो गया है। भारत ने 2017-18 में 48.8 करोड़ डॉलर का आयात किया था और 1.92 अरब डॉलर का निर्यात किया था। भारत मुख्य रूप से पाकिस्तान को कच्चा कपास, सूती धागे, डाई, रसायन, प्लास्टिक का निर्यात करता है। भारत और पाक का व्यापार भारत के लिए कुल व्यापार का 0.40 प्रतिशत ही है। पाक भारत के 10 प्रतिशत उत्पादों के आयात को मंजूरी देता है। जबकि भारत पाक के 99 प्रतिशत उत्पादों पर रोक नहीं लगाता। 2017-18 में पाक से 1.9 अरब डॉलर का निर्यात किया गया जबकि पाक से आयात 50 लाख डॉलर था। दरअसल एक दशक में संकट के वक्त पाकिस्तान ने भारत से आलू, प्याज, चीनी, टमाटर, चावल जैसे लगभग तमाम उत्पादों का आयात किया है। वाघा बॉर्डर के जरिये पाकिस्तान को यह सामान काफी सस्ता पड़ा था। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि पाक से एमएफएन का दर्जा छीनने से उसकी अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगेगा। वह पहले ही लड़खड़ा रही है। भारत की पाकिस्तान के बाजार पर निर्भरता नहीं है और आसानी से वह मध्य पूर्व के देशों का रुख कर सकता है।

Sunday, 17 February 2019

पाकिस्तान की शह पर जैश ने किया अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला

जम्मू-कश्मीर में गुरुवार को अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ। जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंतिपोरा के पास गोरीपोरा में हुए इस हमले में 40 से अधिक सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए। 30 से ज्यादा जवान जख्मी हो गए। इनमें से कई की हालत गंभीर है। हमले को पाकिस्तान से संचालित जैश--मोहम्मद के आत्मघाती दस्ते अफजल गुरु स्क्वाड के स्थानीय कश्मीरी युवक आतंकी आदिल अहमद उर्प बकास ने अंजाम दिया। उसने 320 किलो विस्फोटकों से लदी स्कॉर्पियो को सीआरपीएफ के काफिले में शामिल जवानों से भरी एक बस को टक्कर मारकर उड़ा दिया। काफिले में अन्य वाहनों को भी भारी क्षति पहुंची है। सुबह जम्मू से चले सीआरपीएफ के काफिले में 60 वाहन थे, जिनमें 2547 जवान थे। दोपहर करीब सवा तीन बजे जैसे ही काफिला जम्मू-कश्मीर हाइवे पर गोरीपोरा (अवंतिपोरा) के पास पहुंचा तभी अचानक एक कार तेजी से काफिले में घुसी और आत्मघाती कार चालक ने सीआरपीएफ की 54वीं वाहन की बस को टक्कर मार दी। टक्कर लगते ही धमाका हुआ और बस के परखच्चे उड़ गए। कई मील दूर तक आवाज सुनी गई। पलभर में 100 मीटर के दायरे में क्षत-विक्षत शव व शरीर के अंग पड़े हुए थे, तभी वहां पहले से बैठे (इंतजार कर रहे) आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। जवानों ने तुरन्त जवाबी फायरिंग की पर आतंकी मौके से भागने में सफल रहे। आत्मघाती आतंकी आदिल भी मारा गया। जिस कार (यूएसबी) ने टक्कर मारी थी उस गाड़ी को जैश--मोहम्मद का आतंकी आदिल अहमद डार चला रहा था। आतंकी आदिल अहमद डार की उम्र महज 20 साल थी और वह कश्मीर घाटी के ही काकापोरा का रहने वाला था। मार्च 2018 में आतंकी संगठन जैश में शामिल हुआ था। जैश की टीम में उसका नाम बकास हो गया था। उसका वीडियो और तस्वीरें हमले के बाद तुरन्त सामने आई हैं। जो वीडियो सामने आया है, उसमें आतंकी डार कई तरह के हथियारों से लैस दिखाई दे रहा है। इस हमले के बाद जैश--मोहम्मद ने भी आतंकी डार का 10 मिनट का वीडियो जारी किया। आतंकियों की इस कायराना हरकत की जितनी निन्दा की जाए कम है। चिन्ता का विषय यह भी है कि इस हमले को रोका भी जा सकता था। सवाल यह है कि क्या यह हमारी इंटेलीजेंस फेल्यर थी? सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में मारे गए टॉप के आतंकी कमांडरों व उनके चेलों खासतौर पर मसूद अजहर के नजदीकी रिश्तेदारों के मरने के बाद से ही जैश खतरनाक बदले की साजिश रच रहा था। खुफिया इनपुट भी एजेंसियों को मिली थी कि जैश खौफनाक हमले को अंजाम दे सकता है। हमले के लिए जैश ने एक महीने पहले एक वीडियो भी जारी किया था। जानकार मान रहे हैं कि यह हमला कुख्यात आतंकी संगठन आईएस द्वारा किए जा रहे अफगानिस्तान, इराक और सीरिया की तर्ज पर किया गया। इसकी बाकायदा ट्रेनिंग की भी पुष्टि हुई है। एक अधिकारी ने कहा कि यह स्थानीय आतंकियों का कारनामा नहीं बल्कि पाकिस्तान की शह पर एक बड़ी साजिश है। सुरक्षा में भी चूक हुई है। एक आत्मघाती हमलावर को रोका तो नहीं जा सकता पर इतने भारी नुकसान से बचा जा सकता था अगर सुरक्षा में इतनी चूक नहीं होती। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग होने के कारण जिस समय सीआरपीएफ का काफिला गुजर रहा था तो सामान्य वाहनों की आवाजाही को बंद क्यों नहीं किया गया? अगर सिविलियन ट्रैफिक उस समय बंद होता तो आदिल डार के लिए अपनी स्कॉर्पियो को लेकर काफिले में घुसना इतना आसान नहीं होता। आमतौर पर जब इतना बड़ा जवानों का काफिला (2547 जवान) कहीं से भी गुजरता है तो उस तमाम रास्ते का सैनिटेशन होता है। हर 50 गज पर सैनिक तैनात होते हैं पर लगता है कि इनमें चूक हुई है। बाकी डिटेल्स तो इंक्वायरी के बाद पता चलेगी। पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों के जिस काफिले पर आतंकी हमला हुआ उसमें जवानों की तादाद इसलिए भी ज्यादा थी क्योंकि भारी बर्पबारी और खराब मौसम के कारण पिछले चार दिनों से राजमार्ग बंद था। क्या इन जवानों को एयरलिफ्ट करना बेहतर होता? फिर सवाल यह भी उठता है कि सीआरपीएफ के जवानों की आवाजाही के बारे में आतंकवादियों को जानकारी कैसे मिली? यह सूचना किसी सूत्र से तो मिली ही होगी। क्या कोई सुरक्षा कर्मी (सीआरपीएफ के अंदर या स्थानीय पुलिस के लोग) आतंकियों की जासूसी कर रहे थे? कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि आतंकी जहां हमले के लिए नया तरीका अपना रहे हैं, वहीं सरकार को भी अब कड़े कदम उठाने की जरूरत है। ऑफिसर्स का यह भी कहना है कि सर्जिकल स्ट्राइक का हल्ला मचाने का यह नुकसान हुआ है और अब तुरन्त एक्शन लेने में दिक्कत हो सकती है। एक आर्मी ऑफिसर के मुताबिक सर्जिकल स्ट्राइक में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया था। मगर अब नए आतंकी आ गए हैं। सर्जिकल स्ट्राइक का इतना हल्ला मचा दिया गया कि अब कोई सरप्राइज नहीं बचा है हमारे लिए। किसी भी रणनीति के लिए सरप्राइज बेहद जरूरी होती है। अब सरप्राइज न रहने से तुरन्त एक्शन लेने में सरकार के लिए दिक्कत आएगी। अगर पिछली बार इतना हल्ला नहीं किया होता तो हम फिर जाकर कुछ कर सकते थे। अब तो आतंकी बॉर्डर से पीछे हट जाएंगे। मोदी सरकार के कार्यकाल में आतंकी हमले बढ़े हैं। पिछले पांच सालों में यह 17वां बड़ा हमला है। शहीद मनदीप और शहीद नरेंद्र Eिसह का सिर काटकर पाकिस्तानी ले गए, लेकिन मोदी चुप रहे। 5000 से अधिक बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया गया, लेकिन सरकार चुप रही। 448 जवान जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले में शहीद हुए पर हमने कोई जवाबी कार्रवाई ऐसी नहीं की जो पाकिस्तान और उनके समर्थकों की जड़ें काट दे। पूरा देश और यहां तक कि तमाम विपक्ष भी आज मांग कर रहा है कि सरकार कोई ऐसा कदम उठाए जिससे आए दिन हमारे जवानों की कुर्बानी रुके। पूरे विपक्ष की तारीफ करनी होगी कि संकट की इस बेला पर किसी ने राजनीति नहीं की, राहुल गांधी का बयान सराहनीय है। हम तो चाहते हैं कि इस बार इस समस्या की जड़ ही खत्म की जाए। हमें पाकिस्तान में घुसकर जैश--मोहम्मद के और लश्कर--तैयबा के मसूद अजहर और हाफिज सईद को मार डालना चाहिए। मैं मानता हूं कि यह काम आसान नहीं होगा। इस ऑपरेशन में हमारे कई जवान शहीद हो सकते हैं, पर यह तो अब भी हो रहा है। कम से कम आतंक की जड़ों पर तो प्रहार होगा?

-अनिल नरेन्द्र

Saturday, 16 February 2019

चंद्रबाबू ने अनशन कर दिखाई विपक्षी एकजुटता

आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सोमवार को दिल्ली स्थित आंध्र भवन में एक बार फिर अनशन के जरिये विपक्षी एकता दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि राज्य को विशेष दर्जा न देकर उन्होंने राज्य धर्म का पालन नहीं किया। चंद्रबाबू ने कहा कि हमें वह देने से इंकार किया जा रहा है जो जायज तौर पर हमारा है। बता दें कि आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर टीडीपी मार्च 2018 में एनडीए सरकार से अलग हो गया था। टीडीपी की मांग है कि केंद्र 2014 में विशेष दर्जे को लेकर किए  गए अपने वादे को पूरा करे। आगे नायडू ने केंद्र को चेतावनी दी कि उनके राज्य के लोगों के खिलाफ निजी हमले किए गए तो इसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। अगर कोई हमारे आत्मसम्मान पर हमला करेगा तो इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। उनकी पार्टी को संसद परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई इसलिए हम यहां आए हैं। अनशन पर नायडू का समर्थन करने पहुंचे विपक्षी नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, नेकां नेता फारुक अब्दुल्ला, राकांपा नेता माजिद मेमन, तृणूल नेता डेरेक ओ. ब्राइन, दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल, सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, द्रमुक की तिरची सिवा शामिल थे। बता दें कि पिछली बार विपक्षी नेताओं ने 19 जनवरी को अपनी एकजुटता दिखाई थी। 22 दलों के नेता सीबीआई के कदम के खिलाफ कोलकाता में सीएम ममता बनर्जी को समर्थन देने पहुंचे थे। नायडू के प्रति समर्थन जताने के लिए आंध्र भवन पहुंचे राहुल गांधी ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल प्रधानमंत्री को हराएंगे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को अपने वादे पर टिके रहना चाहिए। मैं आंध्र के लोगों के साथ खड़ा हूं। राहुल ने मोदी पर हर जगह झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए कहा कि वह आंध्रप्रदेश जाते हैं वहां झूठ बोलते हैं, वह पूर्वोत्तर जाते हैं वहां झूठ बोलते हैं और महाराष्ट्र जाते हैं वहां झूठ बोल आते हैं। अब दो महीने बचे हैं। विपक्षी दल दिखाएंगे कि प्रधानमंत्री की कोई विश्वसनीयता नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार को किए गए वादे के अनुसार विशेष राज्य का दर्जा देना चाहिए। सिंह ने कहा कि यदि संसद में मौका मिलता है तो वह आंध्रप्रदेश के लोगों के साथ खड़े होंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि नायडू के दिल्ली आकर प्रदर्शन करना संघीय ढांचे के लिए बड़ा सवाल पैदा करता है। उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार जो वादे करती है उसे कभी पूरा नहीं करती। हम केंद्र की मजबूरी को भी समझ सकते हैं। आंध्र को विशेष दर्जा न देने के पीछे केंद्र की अपनी दिक्कतें हैं। कई राज्य पहले से विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं। मसलन बिहार, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़। हालांकि आंध्र का मामला अलग है। तमाम तकनीकी बातें एक तरफ, लेकिन यह तय है कि नए सिरे से किसी राज्य का गठन आसान नहीं होता। वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आरोप लगाया कि आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने जनता का भरोसा तोड़ा है। उनकी छलावे की राजनीति अब समाप्त हो गई है। विशेष दर्जे की मांग को लेकर नायडू का अनशन दरअसल विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन भी करना था, जिसमें वह सफल रहे।
-अनिल नरेन्द्र


मुलायम के धोबी पछाड़ दांव के मायने

समाजवादी पार्टी के संरक्षक और पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव ने बुधवार को एक बार फिर चौंका दिया। 16वीं लोकसभा के आखिरी दिन सत्तापक्ष और विपक्ष अपने-अपने हथियार चुनावी संग्राम के लिए जहां सहेजते दिखे वहीं मुलायम सिंह यादव ने अप्रत्याशित रूप से यह कहकर सियासी हलकों में चर्चा गरम कर दी कि मैं नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना करता हूं। साथ ही यह कहकर महागठबंधन की कवायद पर भी सवाल खड़े कर दिए कि हम लोग तो इतना बहुमत ला नहीं सकते। मुलायम सिंह जब विदाई भाषण दे रहे थे तो यूपीए की मुखिया सोनिया गांधी उनके ठीक बगल में बैठी थीं। जैसे ही मुलायम सिंह ने मोदी की तारीफ की, वह असहज हो गईं। मुलायम ने कहाöमैं चाहता हूं कि सभी सदस्य फिर जीतकर आएं। इस पर पूरे सदन में तालियां बज गईं। आगे उन्होंने कहाöहम पीएम को धन्यवाद देना चाहते हैं कि आपने सबके साथ मिलकर काम किया। हम लोगों ने जब-जब आपसे किसी काम के लिए कहा, आपने उसी वक्त आदेश दिया। इसलिए हम आपका सम्मान करते हैं। इस पर पीएम ने हाथ जोड़कर आभार प्रकट किया और सदन ने मेज थपथपाकर सपा सांसद की बात का समर्थन किया। साथ ही जय श्रीराम के नारे भी लगे। सियासी हलकों में फिर चर्चाएं शुरू हो गईं कि पीएम पर फिर उमड़े प्रेम का राज क्या है? क्या वह सचमुच चाहते हैं कि मोदी दोबारा पीएम बनें या उनकी जुबान फिसल गई थी? मुलायम सिंह के करीबियों का दावा है कि वह सपा-बसपा गठबंधन से खुश नहीं हैं। वहीं विपक्षी महागठबंधन की कोशिशों में जिस तरह उन्हें किनारे किया गया है, उससे भी वह आहत हैं। लेकिन यह भी सच है कि वह बेटे अखिलेश को हारते हुए भी नहीं देखना चाहते हैं। बुधवार को संसद में दिए बयान के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है। वहीं जिस काम के लिए वह मोदी के शुक्रगुजार हैं, वह उनके खिलाफ सीबीआई में चल रहा आय से अधिक सम्पत्ति का मामला है, जो पिछले पांच सालों से ठंडे बस्ते में पड़ा है। सीबीआई ने 2000 से 2005 के बीच उनके परिवार के सभी सदस्यों को आयकर रिटर्न की जांच की और पाया कि उनकी घोषित आय से 2.68 करोड़ रुपए की सम्पत्ति ज्यादा पाई गई। भारत-अमेरिका परमाणु सौदे को लेकर वाम दलों ने 2008 में मनमोहन सरकार से जब समर्थन वापस लिया था तो उसे गिराने की कवायद को फेल करते हुए मुलायम ने ही बचाया था। माना जाता है कि अपकृत मनमोहन सरकार के इशारे पर सीबीआई ने 2014 तक डीए मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। मोदी सरकार ने भी यथास्थिति कायम रखी है। 10 सालों से सीबीआई ने इस मामले को बंद करने के लिए अदालत में दरख्वास्त भी नहीं दी यानि यादव परिवार पर कार्रवाई की तलवार लटकी हुई है। मुलायम के चाहे जो भी ऐसा करने के पीछे कारण रहे हों उन्होंने हमलावर विपक्ष को बैकफुट पर ला दिया है। मुलायम ने जब मोदी के दोबारा पीएम बनने की कामना की तो विपक्षी बैंचों पर सन्नाटा छा गया। कहा जा रहा है कि मुलायम के धोबी पछाड़ से उनके बेटे को ही फायदा हो सकता है। कहीं न कहीं मुलायम को लगता है कि 2019 चुनाव के लिए विपक्ष की तैयारी उतनी धारदार नहीं है। इसकी भी तमाम वजहें हो सकती हैं, जैसे गठबंधन का कोई नेता न होना और आए दिन अलग-अलग दलों में खींचतान होना, उनका उद्देश्य यह भी हो सकता है कि सपा अध्यक्ष और बेटे अखिलेश के प्रति भाजपा का रुख नरम हो और उन्हें सीबीआई से बचाते रहें। वैसे यह पहली बार नहीं जब मुलायम ने किसी पीएम की तारीफ की हो।

Friday, 15 February 2019

अल्पसंख्यक की परिभाषा तय होनी चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को जो निर्देश दिया है कि आबादी के आधार पर किसी समुदाय को अल्पसंख्यक परिभाषित करने के लिए दिशानिर्देश बनाने संबंधी प्रतिवेदन पर तीन महीने के भीतर निर्णय ले काफी महत्वपूर्ण है। याचिका में अपील की गई थी कि सर्वोच्च न्यायालय अल्पसंख्यक की परिभाषा नए सिरे से तय करे। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और संजीव खन्ना की पीठ ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि वह अल्पसंख्यक आयोग में फिर अपना प्रतिवेदन दाखिल करें। आयोग को तीन महीने के अंदर अपना मत देना होगा। हिन्दू राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक तो हैं। लेकिन कई राज्य हैं, जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। बावजूद इसके वहां उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा हासिल नहीं है। अदालत ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से कहा है कि वह पांच समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित करने की 1993 की अधिसूचना रद्द करने, अल्पसंख्यकों की परिभाषा व पहचान तय करने और जिन आठ राज्यों में हिन्दुओं की संख्या बहुत कम है, वहां हिन्दुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग पर तीन महीने में फैसला ले। इससे पहले अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वकील ने कोर्ट से कहा कि उन्होंने कोर्ट के 10 नवम्बर 2017 के आदेश के मुताबिक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को ज्ञापन दिया था, लेकिन आयोग ने आज तक उसका जवाब नहीं दिया। इसलिए उन्होंने यह नई याचिका दाखिल की है। दरअसल उपाध्याय ने 2017 में आठ राज्यों (2011 की जनसंख्या आंकड़े के मुताबिक (लक्षद्वीप, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बताते हुए राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग संबंधी याचिका दाखिल की थी। सच है कि 2011 की जनगणना के अनुसार इन आठ राज्यों में हिन्दू समुदाय अल्पसंख्यक हैं तो अगर राष्ट्रीय स्तर पर आबादी के अनुसार किसी को अल्पसंख्यक का दर्जा और संबंधित सारे लाभ मिलते हैं, तो राज्य स्तर पर यही उनके साथ होना चाहिए जो वहां अल्पसंख्यक हैं। इस संबंध में संविधान अलग से कुछ नहीं कहता। अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक की परिभाषा को लेकर हमारे देश में 1970 के दशक से ही बहस शुरू हो गई थी। किन्तु यह ऐसा विषय है जिस पर ज्यादातर सियासी दल कुछ भी बोलने से बचते रहे हैं। भाजपा ने इस पर मुखर होकर बोला अवश्य पर उसकी नीति भी अन्य पार्टियों के समान ही रही। संसद ने भी इस पर कभी कोई निर्णय नहीं लिया। वैसे बेहतर तो यह होता कि संसद ही इस पर अपना निर्णय दे देती। इसके लिए अगर हमें संविधान में संशोधन भी करना पड़ता तो वह भी किया जा सकता है। पर कटु सत्य तो यह है कि यह सियासी दल अपनी वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखते हुए इससे बचने की कोशिश करते रहे हैं और इससे लगता है कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे का फैसला या तो राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग करे या फिर अदालत। अब दोनों की ही भूमिका सामने आ गई है। उम्मीद करनी चाहिए कि सालों से लटके इस मुद्दे का अब समाधान हो सकेगा। यदि इन राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिल जाता है तो उन्हें संविधान में प्रदत्त विशेष संरक्षण और अधिकार मिल जाएंगे, जो हम समझते हैं कि जरूरी भी है और उनका हक भी।

-अनिल नरेन्द्र

बेइमान बनाम ईमानदार पर लड़ा जाएगा लोकसभा चुनाव

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गुरुवार को संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे लंबा भाषण दिया। वह करीब एक घंटा 40 मिनट तक लोकसभा में बोले। माना जा रहा है कि यह संसद में सबसे लंबा भाषण है। इससे पहले पिछले साल राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर पीएम मोदी ने एक घंटा 31 मिनट का भाषण दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी एक शानदार वक्ता के तौर पर जाने जाते थे। उन्होंने 27 मई 1996 को संसद में एक घंटा 30 मिनट का भाषण दिया था। अपने इस सबसे लंबे भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ संकेत दिया है कि 2019 लोकसभा चुनाव को भाजपा बेइमान बनाम ईमानदार की लड़ाई के रूप में पेश करेगी। घोटालों के जरिये विपक्ष पर तीखे हमले किए जाएंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने 55 सालों के शासन को बर्बाद कर दिया, क्योंकि न तो उसकी नीयत थी और न ही विजन। जो काम दो दशकों में होना चाहिए था, उसे अब उन्हें सत्ता में आने के बाद करना पड़ रहा है। मोदी ने यह भी साफ कर दिया है कि वह राफेल पर विपक्ष के सवालों पर जवाब नहीं देंगे। लोकसभा में उन्होंने कहा कि इस मामले में रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण पहले ही साफ कर चुकी हैं। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राफेल को कांग्रेस का प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं। राहुल गांधी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक बार फिर तीखा हमला बोला और दावा किया कि मोदी ने सुप्रीम कोर्ट से सबूत छिपाया और अब वह जनता की अदालत से बच नहीं सकते। गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि इस विमान सौदे को लेकर मोदी ने फ्रांस के साथ समानांतर बातचीत कर रक्षा मंत्रालय के पक्ष को कमजोर किया और पूरी प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए अपने मित्र अनिल अंबानी को 30 हजार करोड़ रुपए का कांट्रेक्ट दिलवाया। गांधी ने कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाताओं से कहा कि हम यह एक साल से कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री राफेल घोटाले में सीधे तौर पर शामिल हैं। मैं देश के युवाओं और रक्षा बलों से कहना चाहता हूं कि अब साफ हो चुका है कि प्रधानमंत्री ने प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए 30 हजार करोड़ रुपए चुराए और अपने मित्र अनिल अंबानी को दे दिए। रॉबर्ट वाड्रा से धनशोधन मामले में ईडी की पूछताछ को लेकर भाजपा के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस अध्यक्ष ने कहाöजिसके खिलाफ आप कार्रवाई करना चाहते हो करो क्योंकि आप सरकार में हो लेकिन राफेल की कार्रवाई भी करो। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि मोदी और शाह की जोड़ी देश के लिए खतरनाक है। पिछले पांच सालों में मोदी-शाह ने जितना देश का बेड़ागर्प किया है, 70 साल में यह किसी ने नहीं किया। अगर 2019 लोकसभा के चुनाव में मोदी और अमित शाह जीत गए तो लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा। 2019 लोकसभा चुनाव के मुद्दे सेट होते जा रहे हैं। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन-सी पार्टी कौन-कौन से मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी।

Thursday, 14 February 2019

क्या राहुल-पियंका की जोड़ी यूपी में पासा पलट देगी?

हाल में उत्तर पदेश के पभारी बनाए गए दोनों महासचिवों पियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोमवार को पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ लखनऊ में एक रोड शो करके पार्टी की राज्य में चुनावी अभियान की विधिवत शुरुआत की। लखनऊ आने से ठीक एक दिन पहले पियंका गांधी और सिंधिया ने एक ऑडियो संदेश जारी किया। करीब आधा मिनट के अपने ऑडियो संदेश में पियंका ने कहा ः मैं पियंका गांधी वाड्रा बोल रही हूं। आप सबसे मिलने के लिए लखनऊ आ रही हूं। मेरे दिल में आशा है कि हम सब मिलकर एक नई राजनीति की शुरुआत करेंगे। एक ऐसी राजनीति जिसमें आप सब भागीदार होंगे। मेरे युवा दोस्त, मेरी बहनें और सबसे कमजोर व्यक्ति की आवाज सुनाई देगी। आइए मेरे साथ मिलकर इस नए भविष्य और एक नई राजनीति का निर्माण करें। पियंका ने सोमवार को लखनऊ में तकरीबन पांच घंटे रोड शो किया। पियंका और राहुल गांधी का यह रोड शो तकरीबन 15 किलोमीटर का था और शहर के कई अहम इलाकों से होकर गुजरा। यूपी में खोई हुई राजनीतिक जमीन फिर हासिल करने के लिए अब पियंका गांधी मैदान में उतरी हैं। यूपी में विनाश हो चुकी कांग्रेस को मुख्यधारा में लाने के लिए पियंका गांधी वाड्रा ने यहां की सख्त जमीन पर अपने पांव रख दिए हैं। पियंका का लखनऊ में कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त स्वागत किया। रोड शो करीब 37 जगहों पर रुका जहां नेताओं का स्वागत हुआ। जिस बस पर पियंका गांधी, राहुल गांधी समेत अन्य नेता सवार थे, वहां से ही राहुल ने पियंका के साथ राफेल विमान की डमी लोगों को दिखाई। मालूम हो कि राफेल विमान सौदे को लेकर राहुल गांधी काफी समय से पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरते रहे हैं। रायबरेली के पार्टी कार्यकर्ता 51 किलो की माला लेकर पहुंचे। रथ के ऊपर से ही पियंका गांधी ने माला स्वीकार की। नवनियुक्त कांग्रेस महासचिव और पूर्वी यूपी की पभारी पियंका गांधी के मेगा रोड शो में कार्यकर्ताओं का जनसैलाब उमड़ा। रोड शो के दौरान अलग-अलग बैनर और तख्तियों के साथ कार्यकर्ता पियंका गांधी के साथ चल रहे थे। इसी कम में कुछ कार्यकर्ताओं का एक ऐसा समूह भी दिखा जिसने अपने शरीर पर पेंट करवा रखा था। जिसमें लिखा था चौकीदार चोर है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रोड शो को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी पार्टी का लक्ष्य लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में पार्टी की सरकार बनाने का है। विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि अगर इस देश का कोई दिल है तो उत्तर पदेश में है अब मैंने पियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया जी को यहां महासचिव बनाया है। मैंने  कहा है कि यूपी में जो सालों से अन्याय हो रहा है। उसके खिलाफ इन दोनों को लड़ना है और उत्तर पदेश में न्याय वाली सरकार लानी है। इनका लक्ष्य लोकसभा जरूर है, मगर इनका बड़ा लक्ष्य विधानसभा में कांग्रेस की सरकार बनाने का है। हम यहां पर पंट पर खेलेंगे। बैक फुट पर भी खेलने वाले हैं। जब तक यहां कांग्रेस पार्टी की विचारधारा की सरकार नहीं बनती तब तक सिंधिया जी, पियंका जी और मैं चैन से नहीं बैठूंगा। हम उत्तर पदेश में युवाओं, गरीबों और किसानों की सरकार लाएंगे। राहुल ने कहा कि सपा पमुख अखिलेश यादव का बहुत सम्मान करते हैं लेकिन कांग्रेस पूरी ताकत से लड़ेगी। उत्तर पदेश की राजनीति में पियंका गांधी की धमाकेदार एंट्री से जहां ठंडे पड़े कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में नई जान आ गई वहीं सपा-बसपा गठबंधन भी बैकफुट पर आ गया। राज्य की राजनीति में पंट फुट पर खेलने के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयानों ने जहां भाजपा के रणनीतिकारों के चेहरे पर परेशानी की लकीरें खींचने का काम किया है, वहीं राज्य की राजनीति के दो धुरंधर दलों के गठबंधन की परेशानी पर भी बल डाल दिया है। राज्य में मोदी व शाह के विजय रथ को रोकने के नाम पर कांग्रेस को गठबंधन से दरकिनार करने वाली सपा-बसपा  को तेजी से बदल रही सियासी फिजा में यह चिंता सताने लगी है कि कहीं पियंका फैक्टर उनके गठबंधन की उम्मीदों पर पानी न फिर दे। युवाओं में पियंका के जादू और उनकी राजनीतिक रैली से एक बात साफ है कि उत्तर पदेश की राजनीति में उनकी मौजूदगी न केवल कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में संजीवनी का काम करेगी, बल्कि एक बड़े वोट बैंक को कांग्रेस की झोली में डालने में भी मददगार होगी। अगर सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें न मिलीं तो सूबे में जो लड़ाई दो धुवीय नजर आ रही थी, पियंका के आने के बाद यह त्रिकोणीय बन जाएगी जिसका फायदा सबसे ज्यादा भाजपा को होगा। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि पियंका के लिए यूपी में मिशन 2019 आसान नहीं है। यूपी में पिछले 20 सालों से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। कांग्रेस के पदेश में सिर्प दो सांसद हैं, मां सोनिया और बेटा राहुल गांधी। 403 विधानसभा वाली यूपी में पार्टी के सिर्प सात विधायक हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव (21 सीटों) के मुकाबले 2014 में कांग्रेस 7.5 पतिशत वोटों के साथ दो सीटों पर सिमट गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल ने सपा के साथ चुनाव लड़ा, लेकिन सीटें और वोट पतिशत दोनों ही गिर गए। तस्वीर साफ है कि पियंका को यूपी में कांग्रेस को खड़ा करने के लिए करिश्मा ही दिखाना होगा वरना यूपी के भरोसे भाई की राह आसान नहीं होने वाली। राजीव गांधी सरकार में देश में संचार कांति करने वाले सैम पित्रोदा हालांकि दावा कर रहे हैं कि भाई-बहन की जोड़ी लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए पासा पलटने वाली साबित होगी क्योंकि देश को युवा टीम की जरूरत है। फिलहाल तो कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बूथ स्तर पर ढांचा खड़ा करने की होगी, क्योंकि कई जिलों में संगठन सिर्प कागजों पर चल रहा है और इसे ठोस शक्ल देने के लिए बमुश्किल तीन महीने ही उन्हें मिल पाएंगे। देखें, पियंका फैक्टर उत्तर पदेश की राजनीति में क्या असर दिखाता है?

-अनिल नरेन्द्र