Wednesday 27 February 2019

लाखों आदिवासियों-वनवासियों पर लटका संकट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से देश में करीब 12 लाख आदिवासियों और वनवासियों को अपने घरों से बेदखल होना पड़ सकता है। दरअसल शीर्ष अदालत ने 16 राज्यों के करीब 11.8 लाख आदिवासियों के जमीन पर कब्जे के दावों को खारिज करते हुए सरकारों को आदेश दिया है कि वह अपने कानूनों के मुताबिक जमीनें खाली कराएं। जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने 16 राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश दिया है कि वह 12 जुलाई से पहले एफिडेबिट जमा कराकर बताएं कि तय समय में जमीन खाली क्यों नहीं कराई गई? दरअसल शीर्ष अदालत ने इन आदिवासियों और वनवासियों के दावों को इसलिए भी खारिज किया क्योंकि लाखों हेक्टेयर जमीन पर इन्होंने अवैध कब्जा कर रखा है। यह फैसला आदिवासियों और वनवासियों के लिए झटका तो है ही, यह वंचितों के हक की लड़ाई के मामले में हमारे दयनीय रिकार्ड का एक और उदाहरण भी है। करीब 80 साल बाद 2006 में आदिवासियों और वनवासियों को वनाधिकार अधिनियम के तौर पर ऐसा कानून मिला था जो उन्होंने जंगलों में रहने का हक प्रदान करता था। उस कानून को स्वाभाविक ही संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची का विस्तार माना गया था, जिनमें आदिवासियों के हित सुरक्षित हैं। जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार 30 नवम्बर 2018 तक देशभर में 19.39 लाख दावों को खारिज कर दिया गया था। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद करीब 20 लाख आदिवासी और वनवासियों को जंगल की जमीन से बेदखल किया जा सकता है। आखिर ऐसा क्या हो गया है कि सर्वोच्च न्यायालय को लाखों परिवारों को वनभूमि से बाहर निकालने का सख्त आदेश पारित करना पड़ा है, जिस पर अमल हुआ तो बड़ी संख्या में लोगों को वनभूमि से बाहर होना पड़ेगा? दरअसल उस कानून के पारित होने के साथ ही उन तत्वों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था, जिनके हित उससे प्रभावित होने वाले थे। जरूरी तो यह है कि जंगलों में जो माफियाओं का कब्जा है उन्हें हटाया जाए, बनिस्पत लाखों परिवारों को। यह गलत सोच है कि वनभूमि में रहने वाले जंगल का विनाश करते हैं, बल्कि देश-दुनिया का अनुभव बताता है कि वह ही जंगल की रक्षा करते हैं। हमारे यहां नक्सल समस्या की एक वजह जंगलों के बारे में हमारा यह अज्ञान ही है। केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकारों द्वारा वनभूमियों से निकालने वाले लोगों के आंकड़े मिलने पर वह कदम उठाएगी। उसे जल्दी ही इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए, क्योंकि इस मामले में ढिलाई से उन आदिवासियों व वनवासियों को व्यापक विस्थापन का सामना करना पड़ेगा, जिनके पुनर्वास के मामले में हमारा रिकार्ड पहले से ही बहुत खराब है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि देशभर में 10 लाख से अधिक आदिवासियों और वनवासियों को जमीन से बेदखल करने के मुद्दे को सहानुभूतिपूर्वक देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पुनर्विचार याचिका दायर करने को कहा है।

No comments:

Post a Comment