जम्मू-कश्मीर में गुरुवार को अब तक का सबसे
बड़ा आतंकी हमला हुआ। जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंतिपोरा
के पास गोरीपोरा में हुए इस हमले में 40 से अधिक सीआरपीएफ के
जवान शहीद हो गए। 30 से ज्यादा जवान जख्मी हो गए। इनमें से कई
की हालत गंभीर है। हमले को पाकिस्तान से संचालित जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती दस्ते अफजल गुरु स्क्वाड के स्थानीय कश्मीरी युवक आतंकी
आदिल अहमद उर्प बकास ने अंजाम दिया। उसने 320 किलो विस्फोटकों
से लदी स्कॉर्पियो को सीआरपीएफ के काफिले में शामिल जवानों से भरी एक बस को टक्कर मारकर
उड़ा दिया। काफिले में अन्य वाहनों को भी भारी क्षति पहुंची है। सुबह जम्मू से चले
सीआरपीएफ के काफिले में 60 वाहन थे, जिनमें
2547 जवान थे। दोपहर करीब सवा तीन बजे जैसे ही काफिला जम्मू-कश्मीर हाइवे पर गोरीपोरा (अवंतिपोरा) के पास पहुंचा तभी अचानक एक कार तेजी से काफिले में घुसी और आत्मघाती कार चालक
ने सीआरपीएफ की 54वीं वाहन की बस को टक्कर मार दी। टक्कर लगते
ही धमाका हुआ और बस के परखच्चे उड़ गए। कई मील दूर तक आवाज सुनी गई। पलभर में 100
मीटर के दायरे में क्षत-विक्षत शव व शरीर के अंग
पड़े हुए थे, तभी वहां पहले से बैठे (इंतजार
कर रहे) आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। जवानों ने तुरन्त जवाबी
फायरिंग की पर आतंकी मौके से भागने में सफल रहे। आत्मघाती आतंकी आदिल भी मारा गया।
जिस कार (यूएसबी) ने टक्कर मारी थी उस गाड़ी
को जैश-ए-मोहम्मद का आतंकी आदिल अहमद डार
चला रहा था। आतंकी आदिल अहमद डार की उम्र महज 20 साल थी और वह
कश्मीर घाटी के ही काकापोरा का रहने वाला था। मार्च 2018 में
आतंकी संगठन जैश में शामिल हुआ था। जैश की टीम में उसका नाम बकास हो गया था। उसका वीडियो
और तस्वीरें हमले के बाद तुरन्त सामने आई हैं। जो वीडियो सामने आया है, उसमें आतंकी डार कई तरह के हथियारों से लैस दिखाई दे रहा है। इस हमले के बाद
जैश-ए-मोहम्मद ने भी आतंकी डार का 10
मिनट का वीडियो जारी किया। आतंकियों की इस कायराना हरकत की जितनी निन्दा
की जाए कम है। चिन्ता का विषय यह भी है कि इस हमले को रोका भी जा सकता था। सवाल यह
है कि क्या यह हमारी इंटेलीजेंस फेल्यर थी? सुरक्षा बलों के ऑपरेशन
में मारे गए टॉप के आतंकी कमांडरों व उनके चेलों खासतौर पर मसूद अजहर के नजदीकी रिश्तेदारों
के मरने के बाद से ही जैश खतरनाक बदले की साजिश रच रहा था। खुफिया इनपुट भी एजेंसियों
को मिली थी कि जैश खौफनाक हमले को अंजाम दे सकता है। हमले के लिए जैश ने एक महीने पहले
एक वीडियो भी जारी किया था। जानकार मान रहे हैं कि यह हमला कुख्यात आतंकी संगठन आईएस
द्वारा किए जा रहे अफगानिस्तान, इराक और सीरिया की तर्ज पर किया
गया। इसकी बाकायदा ट्रेनिंग की भी पुष्टि हुई है। एक अधिकारी ने कहा कि यह स्थानीय
आतंकियों का कारनामा नहीं बल्कि पाकिस्तान की शह पर एक बड़ी साजिश है। सुरक्षा में
भी चूक हुई है। एक आत्मघाती हमलावर को रोका तो नहीं जा सकता पर इतने भारी नुकसान से
बचा जा सकता था अगर सुरक्षा में इतनी चूक नहीं होती। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग
होने के कारण जिस समय सीआरपीएफ का काफिला गुजर रहा था तो सामान्य वाहनों की आवाजाही
को बंद क्यों नहीं किया गया? अगर सिविलियन ट्रैफिक उस समय बंद
होता तो आदिल डार के लिए अपनी स्कॉर्पियो को लेकर काफिले में घुसना इतना आसान नहीं
होता। आमतौर पर जब इतना बड़ा जवानों का काफिला (2547 जवान)
कहीं से भी गुजरता है तो उस तमाम रास्ते का सैनिटेशन होता है। हर 50
गज पर सैनिक तैनात होते हैं पर लगता है कि इनमें चूक हुई है। बाकी डिटेल्स
तो इंक्वायरी के बाद पता चलेगी। पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों के जिस काफिले पर आतंकी
हमला हुआ उसमें जवानों की तादाद इसलिए भी ज्यादा थी क्योंकि भारी बर्पबारी और खराब
मौसम के कारण पिछले चार दिनों से राजमार्ग बंद था। क्या इन जवानों को एयरलिफ्ट करना
बेहतर होता? फिर सवाल यह भी उठता है कि सीआरपीएफ के जवानों की
आवाजाही के बारे में आतंकवादियों को जानकारी कैसे मिली? यह सूचना
किसी सूत्र से तो मिली ही होगी। क्या कोई सुरक्षा कर्मी (सीआरपीएफ
के अंदर या स्थानीय पुलिस के लोग) आतंकियों की जासूसी कर रहे
थे? कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि आतंकी जहां हमले के लिए
नया तरीका अपना रहे हैं, वहीं सरकार को भी अब कड़े कदम उठाने
की जरूरत है। ऑफिसर्स का यह भी कहना है कि सर्जिकल स्ट्राइक का हल्ला मचाने का यह नुकसान
हुआ है और अब तुरन्त एक्शन लेने में दिक्कत हो सकती है। एक आर्मी ऑफिसर के मुताबिक
सर्जिकल स्ट्राइक में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया था। मगर अब नए आतंकी आ गए
हैं। सर्जिकल स्ट्राइक का इतना हल्ला मचा दिया गया कि अब कोई सरप्राइज नहीं बचा है
हमारे लिए। किसी भी रणनीति के लिए सरप्राइज बेहद जरूरी होती है। अब सरप्राइज न रहने
से तुरन्त एक्शन लेने में सरकार के लिए दिक्कत आएगी। अगर पिछली बार इतना हल्ला नहीं
किया होता तो हम फिर जाकर कुछ कर सकते थे। अब तो आतंकी बॉर्डर से पीछे हट जाएंगे। मोदी
सरकार के कार्यकाल में आतंकी हमले बढ़े हैं। पिछले पांच सालों में यह 17वां बड़ा हमला है। शहीद मनदीप और शहीद नरेंद्र Eिसह का
सिर काटकर पाकिस्तानी ले गए, लेकिन मोदी चुप रहे। 5000
से अधिक बार संघर्षविराम का उल्लंघन किया गया, लेकिन सरकार चुप रही। 448 जवान जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले में शहीद हुए पर हमने कोई जवाबी कार्रवाई ऐसी नहीं की
जो पाकिस्तान और उनके समर्थकों की जड़ें काट दे। पूरा देश और यहां तक कि तमाम विपक्ष
भी आज मांग कर रहा है कि सरकार कोई ऐसा कदम उठाए जिससे आए दिन हमारे जवानों की कुर्बानी
रुके। पूरे विपक्ष की तारीफ करनी होगी कि संकट की इस बेला पर किसी ने राजनीति नहीं
की, राहुल गांधी का बयान सराहनीय है। हम तो चाहते हैं कि इस बार
इस समस्या की जड़ ही खत्म की जाए। हमें पाकिस्तान में घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के और लश्कर-ए-तैयबा के मसूद अजहर और हाफिज सईद को मार डालना चाहिए। मैं मानता हूं कि यह
काम आसान नहीं होगा। इस ऑपरेशन में हमारे कई जवान शहीद हो सकते हैं, पर यह तो अब भी हो रहा है। कम से कम आतंक की जड़ों पर तो प्रहार होगा?
-अनिल नरेन्द्र
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