Tuesday, 12 February 2019

मूर्तियों पर अदालती टिप्पणी से मायावती की बढ़ी मुश्किलें

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार में बने स्मारकों में लगी मूर्तियों पर हुए खर्च को सरकारी खजाने से जमा कराने की टिप्पणी ने बसपा अध्यक्ष मायावती के पीएम बनने के सपने पर मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बसपा सरकार में लखनऊ, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बने स्मारकों में मायावती, डॉ. अम्बेडकर, कांशीराम और बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी से मिलती बड़ी तादाद में मूर्तियां लगाई हैं। इन मूर्तियों के निर्माण पर 5919 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर 2009 में रविकांत की दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने सुनवाई के दौरान कहाöहमारा ऐसा विचार है कि मायावती को अपनी और अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह की मूर्तियां बनवाने पर खर्च हुआ सार्वजनिक धन सरकारी खजाने में वापस जमा करना होगा। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों ने मायावती के वकील सतीश चन्द्र मिश्र द्वारा प्रकरण की अगली सुनवाई मई 2019 के बाद करने के आग्रह को ठुकरा दिया और कहा कि अब सुनवाई दो अप्रैल को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सतीश मिश्र को आगे कहा कि आप अपनी क्लाइंट को बता दें कि उन्हें मूर्तियों पर खर्च पैसे को प्रदेश के सरकारी खजाने में वापस जमा कराना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मिश्र से कहा कि हमारा प्रारंभिक विचार है कि मैडम मायावती को मूर्तियों का सारा पैसा अपनी जेब से सरकारी खजाने को भुगतान करना चाहिए। सुनवाई में श्री गोगोई ने कहा कि हमें कुछ और कहने के लिए मजबूर न करें। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी तमाम राजनीतिक पार्टियों के लिए सबक बन सकता है। आखिर हर सरकार अपनी पार्टी के नायकों, नेताओं और प्रतीकों की मूर्तियां लगाने की होड़ में रहती है। इससे कोई पार्टी अछूती नहीं है। अपनी सरकार में अपने हिसाब से मूर्तियां लगवाने का सिलसिला बहरहाल कोई नया नहीं है बल्कि आजादी के कुछ वक्त बाद से ही शुरू हो गया था। हालांकि उस दौर में गांधी जी की मूर्तियां ज्यादा लगाई गई थीं। विडंबना यह भी है कि हर सरकार जोरशोर से यह काम करती है लेकिन जब वह विपक्ष में होती है तो इस काम का विरोध करती है। बता दें कि मुख्यमंत्री मायावती के बनाए स्मारकों में लगी मूर्तियों, हाथियों और पार्कों की मरम्मत पर ही पिछले पांच वर्षों में करीब 30 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। सपा सरकार में जहां स्मारक व मूर्तियां बदहाली में थे, वहीं 2007 में बसपा सरकार बनने के बाद इनके रखरखाव का काम शुरू हुआ। स्मारकों की देखरेख करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने करीब 100 करोड़ रुपए का अलग फंड बनाया था। इसके ब्याज से स्मारकों का रखरखाव किए जाने का प्रावधान था, लेकिन वर्ष 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद स्मारकों के मेंटीनेंस का बजट रोक दिया गया था। हमारा मानना है कि आम नागरिकों का पैसा विकास कार्यों के अलावा कहीं और खर्च नहीं होना चाहिए। अगर वह खर्च होता है तो यह एक नैतिक अपराध है। अपने देश का आम आदमी कोई बेहतर हाल में नहीं है। सड़क, बिजली, पानी, यातायात, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर पर अभी यूपी में बहुत काम होना बाकी है। आम आदमी के लिए अब भी अपना इलाज करा पाना आसान नहीं है। शुक्रवार को अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई वाली बेंच ने यह भी कहा कि स्मारकों पर हुआ खर्च सरकारी खजाने में लौटाना चाहिए, पर यह सिर्प उनका विचार है, अभी आदेश नहीं दिया जा रहा है।

-अनिल नरेन्द्र

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