नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा पश्चिम बंगाल में स्वयं के
उभार को तेज करने में लगी है तो ममता बनर्जी अपने गढ़ को बचाते हुए खुद को प्रधानमंत्री
पद के दावेदार में पेश करना चाहती हैं। यह है सार सीबीआई और पश्चिम बंगाल सरकार के
बीच दांव-पेंच का सिलसिला। भाजपा के नेतृत्व
में काम कर रही केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य पुलिस द्वारा सीबीआई अफसरों को गिरफ्तार
करने की घटना असाधारण है और यह केंद्र-राज्य संबंधों के बीच एक
असहज स्थिति है। ममता बनर्जी 13 साल बाद मेट्रो चैनल पर अनशन
करने गईं इस उम्मीद से कि वह राज्य में भाजपा के पक्ष में हो रहे ध्रुवीकरण को रोक
सकें। यह सभी जानते हैं कि इस पूरी लड़ाई को कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाले अंदाज में ही देखा जाएगा। पश्चिम बंगाल में इस समय जो
हो रहा है, उसे आगामी आम चुनाव से जोड़कर न देखा जाए,
यह हो ही नहीं सकता। इसलिए वहां जो भी हो रहा है, उसके पीछे राजनीतिक निहितार्थ तलाशे जाएंगे। यह किसी से छिपा नहीं है कि पिछले
कुछ सप्ताह से भाजपा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के बीच रार गहराती जा रही है।
इस समय पश्चिम बंगाल कुछ उन राज्यों में से एक है, जिसके बारे
में भाजपा को लगता है कि वहां एक बड़ी चुनावी जीत दर्ज करा सकती है। इसलिए उसने अपनी
सक्रियता वहां तेजी से बढ़ाई है। दूसरी तरफ ममता ने भी उसे कड़ी टक्कर देने की ठान
रखी है। पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को पश्चिम बंगाल में रथयात्रा की अनुमति नहीं
दी गई। रविवार को जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभा को संबोधित करने
पश्चिम बंगाल पहुंचे तो उनके हेलीकॉप्टर को वहां उतरने की इजाजत नहीं दी गई। उसी शाम
को सीबीआई के 40 अधिकारी कोलकाता के पुलिस कमिश्नर के घर शारदा
चिट फंड घोटाले के बारे में पूछताछ करने के लिए जा पहुंचे। हमें पता नहीं है कि योगी
आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टर को उतरने की इजाजत न देना और सीबीआई अधिकारियों का पुलिस कमिश्नर
के घर पहुंचना, दोनों जुड़े मामले हैं या नहीं, लेकिन जिस तरह की राजनीति चल रही है, उसमें इन्हें जोड़कर
देखा जाना ही था। भाजपा नेताओं के भी तरकश में बहुत से तीर आ गए। खुद प्रधानमंत्री
ने अपनी जनसभाओं में ममता पर हमले तेज करने शुरू कर दिए। शायद भाजपा ने सोचा हो कि
वह केंद्रीय बजट पर चर्चाओं से आम चुनाव के अभियान का श्रीगणेश करेगी, लेकिन चुनाव अभियान पश्चिम बंगाल से शुरू हो चुका है। सत्ता की इस जंग में
एक तीर से कई शिकार करना चाह रही हैं दीदी। बेशक सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह उनके
हक में नहीं आया हो पर इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ममता मोदी विरोधी राजनीति
का केंद्र बनने की कोशिश में बहुत हद तक कामयाब
हो रही हैं। आलम यह है कि देश की तमाम भाजपा विरोधी पार्टियां चाहे-अनचाहे ढंग से ममता को समर्थन देने के लिए मजबूर हुई हैं। डीएमके की कनिमोझी
से लेकर आरजेडी के तेजस्वी यादव और फिर आंध्रप्रदेश के चन्द्रबाबू नायडू सरीखे नेता
कोलकाता पहुंचकर ममता को केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए अपना समर्थन देने
को मजबूर हुए। जाहिर है कि ममता मोदी विरोधी राजनीति का ध्रुव बन पाने में तेजी से
कामयाब हो रही हैं। अमित शाह का हेलीकॉप्टर लैंड न होने देना, योगी की सभा करने से रोकना यह मैसेज देने में कामयाब रहीं कि भाजपा को रोकने
के लिए वो हर रास्ता अख्तियार कर सकती हैं। इससे भाजपा विरोधी ताकतों को गोलबंद करने
में उनकी भूमिका अहम नजर आने लगी है और वो ड्राइविंग सीट पर नजर आती हैं। वहीं राज्य
में सीपीएम भी उनके निशाने पर है। भाजपा के अलावा उनके निशाने पर रविवार को कोलकाता
में हुई वाम मोर्चे की विशाल रैली भी थी। इसीलिए वाम मोर्चे के लोग अनौपचारिक तौर पर
कह रहे हैं कि यह तो भाजपा और तृणमूल की नूराकुश्ती है ताकि पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा
का उभार रोका जा सके। आगामी लोकसभा चुनाव ममता बनाम भाजपा होगा और ऐसा मैसेज देने में
कुछ हद तक कामयाब हो रहीं ममता लेफ्ट और कांग्रेस की राजनीति पर पलीता लगाने में कामयाब
नजर आ रही हैं और कांग्रेस, लेफ्ट की हैसियत फिलहाल ममता बनर्जी
के सामने बौनी नजर आ रही है। वहीं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने शारदा चिट फंड घोटाले
में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की कार्रवाई
को संघीय ढांचे पर हमला करार देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में तृणमूल कांग्रेस
और भाजपा दोनों कठघरे में खड़ी हैं। उन्होंने कहा कि शारदा चिट फंड के आरोपियों को
भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है लेकिन इस पूरे प्रकरण में मीडिया ने सही
तस्वीर पेश नहीं की है और यह केंद्र तथा राज्य के बीच के टकराव का कारण बना है। कुछ
विशेषज्ञों का मानना है कि ममता बनर्जी ने केंद्रीय जांच एजेंसी की सत्ता को चुनौती
देकर ठीक नहीं किया है। अगर ममता का कारनामा दूसरे राज्यों के लिए नजीर बन जाता है
तो सीबीआई किसी भी राज्य के भ्रष्ट मंत्रियों, अधिकारियों और
अपराधियों पर हाथ नहीं डाल सकेगी। पिछले दिनों सीबीआई के अंदर जिस तरह की उठापटक का
खेल हुआ उसका संकेत यही था कि भाजपा के शासन में इस केंद्रीय जांच एजेंसी की प्रतिष्ठा
व विश्वसनीयता को धक्का लगा है। वास्तव में अगर भाजपा ने सीबीआई को कमजोर किया है तो
ममता ने भी लोकतंत्र को मजबूती नहीं दी है। कटु सत्य तो यह है कि राजनीतिक फायदे के
लिए संवैधानिक स्थितियों और विधिक व्यवस्थाओं का माखौल दोनों ने ही उड़ाया है। केंद्र-राज्य के इन चुनावी पैंतरों से अलग संविधान और उसकी संस्थाओं का सवाल भी प्रमुख
है। जरूरत यह है कि संस्थाओं के संतुलन को बनाए रखते हुए उनके चुनावी दुरुपयोग को रोका
जाए। (समाप्त)
-अनिल नरेन्द्र
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