गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार
नरेंद्र मोदी व अन्य 63 लोगों
के खिलाफ 2002 के गुजरात दंगा मामले में विशेष जांच दल
(एसआईटी) द्वारा दाखिल क्लोजर रिपोर्ट को गुजरात
की एक अदालत ने सही ठहराकर न केवल मोदी को ही भाजपा को भी एक बड़ी राहत प्रदान की है।
दंगों के बाद से ही मोदी के खिलाफ गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार का मुद्दा जीवित रखकर कांग्रेस
ने उन्हें एक दिन चैन की नींद नहीं सोने दिया। हम नरेंद्र मोदी का दुख समझ सकते हैं।
देश की आजादी के बाद मोदी एक मात्र ऐसे मुख्यमंत्री होंगे जिनको एक मामले में ही पहले
गुजरात पुलिस ने, फिर सीबीआई ने और उसके बाद एसआईटी ने और न्यायालय
मित्र (एमाइशंसक्यूटी) ने क्लीन चिट दी।
फिर भी कांग्रेस के कुछ मित्र कथाकथित स्पूडो सेक्यूलरिस्ट, कुछ
मुस्लिम नेता इस मामले को लेकर उनकी छवि को खराब करने में जुटे हुए हैं। एक दशक तक
मोदी के खिलाफ प्रोपेगंडा फैलाने में कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पार्टी राजनीतिक
लड़ाई तो लड़ नहीं सकी, इसलिए सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों
के सहारे परोक्ष तरीके से लड़ाई लड़ रही है। दंगों के बाद खुद गुजरात की जनता ने दो
बार लगातार चुनाव करके यह संदेश दे दिया कि नरेंद्र मोदी का दंगों में कोई हाथ नहीं
था। फैसले के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग में दिल की पीड़ा को पहली बार बयान किया
है। दंगे के दौरान गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार में 68 लोगों की मौत
की उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त जांच पैनल से मिली क्लीन चिट पर मजिस्ट्रेट की अदालत
से मुहर लगने के अगले दिन मोदी ने कहा कि वह इस फैसले को निजी जीत या हार के रूप में
नहीं देखते। उन्होंने यह कहते हुए अपनी बात यूं कही ः मैं राष्ट्र के साथ अपने अंदरूनी
विचारों और भावनाओं को साझा करना महत्वपूर्ण समझता हूं। उसके बाद उन्होंने राज्य में
जानमाल की भारी तबाही मचाने वाले 2001 के विनाशकारी भूकंप की
चर्चा के बाद कहा कि मैं दुख, उदासी, कष्ट,
पीड़ा, वंदना, संताप जैसे
शब्द उस पूर्ण खोखलेपन की व्याख्या नहीं कर सकते जो किसी ने इतनी बड़ी अमानवीय त्रासदी
देखकर महसूस की। मोदी ने कहा कि एक तरफ भूकंप पीड़ितों का दर्द था तो दूसरी तरफ दंगा
प्रभावितों की पीड़ा। उन्होंने कहा कि इस भयंकर बवंडर का निर्भीकता से मुकाबला करते
हुए मुझे ईश्वर ने जो भी ताकत दी उसे पूरी तरह शांति, न्याय और
पुनर्वास पर लगाना था तथा मुझे व्यक्तिगत दर्द और संताप हुआ था, उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ा था। मैं निजी स्तर पर जिन पीड़ाजनक स्थितियों से
गुजरा उसे मैं पहली बार इन शब्दों में साझा कर रहा हूं। गुरुवार शाम 4 बजे मजिस्ट्रेट बीजे गगात्रा ने फैसला सुनाते हुए, जाकिया
की सारी दलीलें खारिज करते हुए एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को वाजिब ठहराया।
2002 में गुलबर्ग सोसायटी दंगे में जाकिया के पति एहसान जाफरी को जिंदा
जला दिया गया था। जाकिया का आरोप है कि मोदी ने अपने मंत्रियों, अफसरों और पुलिस वालों के साथ मिलकर दंगों को अंजाम दिया था। अपनी याचिका में
जाकिया ने जो दलीलें दीं वह कुछ इस प्रकार थीं ः गोधरा कांड के बाद मोदी ने अफसरों
को निर्देश दिया था कि पुलिस हिन्दुओं को गुस्सा निकालने से न रोके। मोदी ने भड़काऊ
भाषण दिए। इससे माहौल और खराब हुआ। कई मंत्रियों ने पुलिस के कामकाज में दखल दिया।
मोदी ने संघ के लोगों के साथ बैठकें कीं। गोधरा कांड में कारसेवकों के शव अहमदाबाद
लाकर माहौल बिगाड़ा। दूसरी ओर एसआईटी के सफल तर्पöजांच में कोई
सबूत नहीं मिला, जिससे लगे कि मोदी ने दंगाइयों को न रोकने संबंधी
हिदायत पुलिस को दी। मंत्रियों के दंगाइयों के सम्पर्प में रहने और पुलिस के कामकाज
में दखल देने के भी कोई सबूत नहीं मिले। मुख्यमंत्री की संघ के लोगों से गोधरा में
मुलाकात हुई, इसका न तो कोई सबूत है और न ही गवाह मिला। मजिस्ट्रेट
महोदय ने इन आधारों को क्लीन चिट बनाया। नरेंद्र मोदी ने इस मामले में जानबूझकर अपनी
जिम्मेदारी नहीं निभाई, ऐसा साबित नहीं होता। मोदी ने दोनों समुदाय
से आक्रामक न होने के लिए अपील की थी। इसे टीवी पर भी प्रसारित किया गया था। यह भी
साबित होता है कि मोदी ने कानून व्यवस्था बनाए रखने और शांति के लिए जरूरी कदम उठाए
थे। संजीव भट्ट व श्री कुमार के बयान भरोसेमंद नहीं दिख रहे। दस्तावेज, बयानों को सही नहीं ठहराया जा सकता। हमारी राय में तो मजिस्ट्रेट महोदय ने
अपने इस ऐतिहासिक फैसले में मोदी के खिलाफ सभी दलीलों को तर्कों से खारिज कर दिया है
और अब मोदी के खिलाफ
कोई केस नहीं है पर हमें संदेह है कि इससे भी जाकिया व कांग्रेस और यह स्पूडो सेक्यूलरिस्ट
व कुछ मुस्लिम नेता चुप बैठेंगे। कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी की प्रतिक्रिया
से यह साफ हो जाता है। उन्होंने कहा कि इस आदेश को चुनौती देने की जाकिया हकदार हैं।
भाजपा या मोदी को इस फैसले को न्यायिक तथ्यों पर आखिरी शब्द मानना गलत होगा और पूरी
तरह से दिग्भ्रमित करने वाला है। मोदी को ज्यादा से ज्यादा अस्थायी राहत मिली है। मोदी
के खिलाफ कांग्रेस 2014 लोकसभा चुनाव तक आग यहूं ही उगलती रहेगी
पर जैसा अरुण जेटली ने कहाöफर्जी बयानबाजी सबूत नहीं बन सकते
हैं। असत्य और सत्य के बीच एक बुनियादी फर्प यह होता है कि सत्य के साथ सभी तथ्य एक
साथ रहते हैं जबकि असत्य बिखर जाता है।
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