Wednesday 11 December 2013

दिलचस्प झलकियां 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों की

दिल्ली में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न देकर दिल्ली के मतदाताओं ने इस ऐतिहासिक चुनाव का मजा थोड़ा किरकिरा जरूर कर दिया है। जरूरत तो इस बात की थी कि या तो भाजपा की सीटें बढ़ा देते या फिर आप पार्टी की ही बढ़ा देते। अब किसी को स्पष्ट बहुमत न मिल पाने के कारण त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति हो गई है। तीनों प्रमुख पार्टियों में से कोई किसी को समर्थन देने को तैयार नहीं है। सरकार बनाने के लिए सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा को चार और दूसरे नम्बर पर आई आप को आठ विधायकों का समर्थन चाहिए। यह दोनों के लिए आसान नहीं है। ऐसे में क्या हो सकते हैं विकल्पöपहलाöसबसे बड़ी पार्टी के नाते भाजपा सरकार बनाने का दावा करे या फिर इंतजार करे कि उपराज्यपाल नजीब जंग डॉ. हर्षवर्धन को निमंत्रण दें,  दूसराöभाजपा को निमंत्रण दें और एक निश्चित समय के अन्दर सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने को कहें। भाजपा स्वीकार कर भी लेती है तो बहुमत साबित करना आसान नहीं होगा। यह तभी सम्भव है जब कांग्रेस में टूट हो जाए और उसके दो-तिहाई विधायक समर्थन दें। उपराज्यपाल भाजपा के इंकार करने पर आप पार्टी को आमंत्रित कर सकते हैं और सशर्त सरकार बनाने का आमंत्रण दे सकते हैं पर वही बात आएगी बहुमत सिद्ध कैसे करेगी? भाजपा या कांग्रेस में से एक को इस सरकार का समर्थन करना पड़ेगा, अंतिम विकल्प है राष्ट्रपति  शासन लगेगा और विधानसभा को लम्बित करके प्रतीक्षा करें या फिर भंग करके नए सिरे से चुनाव हों। इस विधानसभा चुनाव में कई दिलचस्प चीजें निकलकर आई हैं। न तो इनमें ग्लैमर चला, न जात-पात कार्ड, न बुजुर्गी। इन चुनावों में सोशल मीडिया का भी अहम रोल रहा। पहले बात करते हैं ग्लैमर न चलने की। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों में सफलता की गारंटी रहा ग्लैमरस चेहरों का जादू दिल्ली के दंगल में नहीं चला। न केवल ग्लैमर का तड़का नहीं लग पाया बल्कि राजनीति की नर्सरी (डूसू चुनावों) के जरिये विधानसभा में आने वाले उम्मीदवारों की आस भी टूट गई। जिसमें कांग्रेस की रागिनी नायक, अमृता धवन तो वहीं आप की शाजिया इल्मी। शाजिया इल्मी की हार पर थोड़ा दुख जरूर है, क्योंकि वह कुल 326 वोटों से हारीं जबकि इससे ज्यादा उनके विधानसभा मतदान में नोटा पर बटन दबे यानि नोटा ने उन्हें हरा दिया। 528 मतदाताओं ने यहां नोटा पर बटन दबाया। अंतिम क्षणों में स्टिंग ऑपरेशन ने भी शाजिया को हराया। नोटा की बात करें तो सभी विधानसभा क्षेत्रों में इसका प्रयोग हुआ। अनुमान है कि 50,000 से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया। सर्वाधिक चर्चित नई दिल्ली विधानसभा सीट रही जहां से शीला दीक्षित और अरविन्द केजरीवाल चुनाव मैदान में आमने-सामने थे वहां पर 460 मतदाताओं ने सभी उम्मीदवारों को नकार दिया। नोटा ने कुछ उम्मीदवारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। विकासपुरी विधानसभा सीट पर जहां हार-जीत के बीच अन्तर महज 405 मतों का रहा वहीं नोटा को 1426 वोट मिले। वहीं आरकेपुरम में 528 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया जबकि हार-जीत का अन्तर महज 326 वोट का ही रहा। दिल्ली विधानसभा चुनाव के सबसे बुजुर्ग (80 साल) प्रत्याशी और गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में लगातार जीत के रिकार्डधारी चौधरी प्रेम सिंह भी इस बार अपनी सीट नहीं बचा पाए। 1958 से लगातार जीतने वाले चौधरी प्रेम सिंह की सीट आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अशोक कुमार ने जीत ली। अगर हम छोटी पार्टियों की बात करें तो जहां अकाली दल ने भाजपा के साथ गठबंधन करके अपने कोटे की चार सीटों में से तीन पर जोरदार जीत हासिल करके अपना दम दिखाया वहीं बसपा और सपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई। अकाली दल के सबसे कमजोर उम्मीदवार माने जा रहे हरमीत सिंह कालका ने कालका जी सीट पर भाजपा के कमल चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़कर जीत हासिल कर सबको चौंका दिया। शाहदरा सीट पर कमल चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे जतिन्दर सिंह शंटी ने डाक्टर नरेन्द्र नाथ जैसे कर्मठ कांग्रेसी नेता को पछाड़ दिया। दिल्ली की आरक्षित सीटों के मतदाताओं पर आप का जादू सिर चढ़कर इस बार बोला। 2008 में बदरपुर और गोकुलपुर सीटें जीत कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले हाथी को झाड़ू ने इस बार साफ कर दिया। इतना ही नहीं, कई सीटों पर वह एक हजार से कम वोटों पर ही सिमट गई। दिल्ली कैंट, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा, कस्तूरबा नगर सहित अन्य सीटें ऐसी रहीं कि बसपा उम्मीदवार मात्र एक हजार वोटों पर ही सिमट गए। कई मायनों में असल जीत आप पार्टी की हुई है। जिन सीटों पर  सबसे ज्यादा मतदान हुआ है उनमें से अधिकतर जगहों पर आप पार्टी ने बाजी मारी है। कुल 25 सीटों पर 65 फीसदी से अधिक मतदान हुआ जिनमें आप को 13 सीटें, भाजपा को 9 सीटें और कांग्रेस को तीन सीटें मिलीं। इससे यह भी साबित होता है कि मत प्रतिशत बढ़ने से सबसे ज्यादा फायदा आप को हुआ न कि भाजपा को जैसा कहा जा रहा था। भाजपा यह चुनाव जीत सकती थी। 800 वोटों के अन्तर ने बीजेपी को बहुमत से दूर कर दिया। जरा-सी हार के अन्तर ने भाजपा को बना दिया सत्ता से कोसों दूर। दरअसल बीजेपी को चार सीटों पर 800 से भी कम वोटों के अन्तर से हार का मुंह देखना पड़ा है। दिल्ली की 70 सीटों में से 5 सीटें ऐसी हैं जहां पर जीत और हार का अन्तर बहुत कम रहा। दिल्ली में 28 सीटों पर कब्जा करने के साथ आम आदमी पार्टी 19 सीटों पर दूसरे नम्बर पर रही। इस प्रकार आप 17 सीटों पर तीसरे नम्बर पर रही। वहीं आप की तुलना में कांग्रेस आप के मुकाबले दूसरे नम्बर पर भी नहीं रह पाई। कांग्रेस सिर्प 16 सीटों पर दूसरे नम्बर पर अपना स्थान बचा पाई बाकी 28 जगहों पर भाजपा दूसरे नम्बर पर रही। अगर हम दिल्ली में कांग्रेसी सांसदों की बात करें तो दो लोकसभा क्षेत्रों में तो कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया है। नई दिल्ली और पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में तो कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला। सबसे बुरा हाल पूर्वी दिल्ली में सांसद संदीप दीक्षित के क्षेत्र का है। यह पूरा एरिया कांग्रेस का गढ़ माना जा रहा था। यहां से कांग्रेस ने काफी भरोसेमंद प्रत्याशियों को उम्मीदवार बनाया था। यहां से अरविन्दर सिंह लवली, डॉ. एके वालिया, डॉ. नरेन्द्र नाथ, नसीब सिंह और अमरीश गौतम जैसे नेताओं को मैदान में उतारा था। यहां लवली को छोड़कर बाकी सभी हार गए। ऐसे में शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित की क्षमता पर एक बार फिर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। वहीं नई दिल्ली में सांसद अजय माकन के क्षेत्र का हाल और बुरा है। नई दिल्ली एरिया में तो कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन की सफलता का एक बड़ा कारण सोशल मीडिया था। ठीक यही प्रयोग अरविन्द केजरीवाल की टीम ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनाया। ट्विटर हो या फेसबुक या फिर मैसेज या ब्लॉग आप की सफलता में सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभाई।

-अनिल नरेन्द्र

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