Sunday 22 December 2013

लवली ने ताज तो पहन लिया पर यह ताज कांटों भरा है

दिल्ली में विधानसभा चुनाव में करारी हार के लिए बलि का बकरा बनाया गया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल को। उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब यह कांटों भरा दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का ताज 46 वर्षीय अरविन्दर सिंह लवली के सिर पर डाला गया है। लवली न केवल सबसे कम उम्र के प्रदेशाध्यक्ष ही बने हैं बल्कि वह पहले सिख नेता हैं जिन्हें इस महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी दी गई है। गौरतलब है कि कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर युवा चेहरों को लाना राहुल गांधी की प्राथमिकताओं में शामिल रहा है। कांग्रेस हाई कमान ने अपने युवा विधायक लवली को सूबे की पार्टी कमान थमाकर साफ संकेत दे दिए हैं कि भले ही विधानसभा चुनाव में उसकी करारी पराजय हुई हो, लेकिन प्रतिद्वंद्वी दलों से टकराने का दम-खम उसमें अब भी बाकी है। लवली अपनी तेज-तर्रार छवि के लिए जाने जाते हैं। दिल्ली विधानसभा से लेकर सरकार तक में उनकी धमक महसूस की जाती रही है। यह दीगर बात है कि दिल्ली में 43 सीटों से घटकर महज आठ सीटों में सिमट गई कांग्रेस पार्टी को फिर से सत्ता के करीब पहुंचा पाना लवली के लिए आसान काम नहीं है। दिल्ली के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। इस समय यह कहना गलत नहीं होगा कि पार्टी पिछले 20 साल के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। भाजपा और आम आदमी पार्टी के बाद कांग्रेस विधानसभा में तीसरे नम्बर पर है और उसे विपक्ष की भूमिका भी नहीं मिली है। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भी कांग्रेस की स्थिति डांवाडोल है। इन परिस्थितियों में यह पद अरविन्दर सिंह लवली के लिए कांटों भरा ताज है। कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर पूर्वी दिल्ली के युवा विधायक अरविन्दर सिंह लवली को चुना है तो इसकी वजह है। दरअसल भाजपा ने पूर्वी दिल्ली की ही एक सीट कृष्णानगर से पार्टी के विधायक डॉ. हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया है। कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष लवली हर्षवर्धन को चुनौती देने की क्षमता भी रखते हैं। दूसरा कारण यह है कि लवली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के करीबी होने के साथ ही अजय माकन के भी खास मित्र हैं। 2013 की इस कांग्रेस विरोधी लहर में भी लवली का अपनी सीट पर जीतना यह दर्शाता है कि उनकी अपने क्षेत्र में पकड़ मजबूत है। सिख होने के नाते उन्हें दिल्ली का प्रभावशाली सिख समुदाय का भी समर्थन मिल सकता है। पार्टी के सामने अंदरुनी गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती है। एक-दूसरे की टांग खींचना, नीचा दिखाने की प्रवृत्ति को बदलना होगा। पार्टी के सामने अब न केवल भाजपा बल्कि आम आदमी पार्टी से भी मुकाबले की चुनौती है। ऐसे में पार्टी को प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर ऐसे नेता की जरूरत थी जो विरोधियों से खुलकर दो-दो हाथ कर सके। माना जा रहा है कि अरविन्दर सिंह लवली इस काम में माहिर हैं। लवली की छवि यूं तो बेदाग रही है लेकिन शराब व्यापारी पोंटी चड्ढा हत्याकांड के बाद उन्हें इस मामले में घसीटने की कोशिश जरूर की गई। हालांकि खुद लवली का कहना है कि यदि हत्या का आरोपी ही किसी व्यक्ति को ऐसे मामले में घसीटने की कोशिश करे तो उसकी विश्वसनीयता खुद व खुद संदिग्ध हो जाती है। हम अरविन्दर सिंह लवली को बधाई देना चाहते हैं साथ-साथ यह भी कहना चाहते हैं कि ताज तो उन्होंने पहन लिया पर सावधान रहें, क्योंकि यह ताज कांटों भरा है।

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