Saturday, 14 December 2013

लाल-नीली बत्ती स्टेटस सिम्बल बन गई है

देश को आजाद हुए साढ़े छह दशक हो गए हैं लेकिन अंग्रेजों व सामंतशाही की लाल बत्ती के रुतबे का चलन आज भी चल रहा है। लाल या नीली बत्ती वाले वाहनों में चलना एक स्टेटस सिम्बल बन गया है जो हमें सामंती प्रवृत्ति की याद दिलाता है। यह खुशी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा आदेश दिया है जिससे आम नागरिकों को राहत और खुशी महसूस होगी। इस सामंती प्रवृत्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। वैसे यह पहला मौका नहीं है,  इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट दोनों केंद्र और राज्य सरकारों को लाल बत्ती और साइरन वाले वाहनों के दुरुपयोग पर फटकार लगाई है। अब उसने निर्देश दिए हैं कि वाहनों में लाल बत्ती का इस्तेमाल सिर्प संवैधानिक और उच्च पदों पर बैठे लोग ही करेंगे। इनमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री, कुछ वरिष्ठ अफसर और वरिष्ठ न्यायाधीश आते हैं। इस आदेश को सख्ती से लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सरकारें इस सूची में बदलाव नहीं कर सकतीं यानी मनमाने ढंग से लाल बत्ती नहीं बांट सकतीं। अब तक होता यह था कि हर राज्य सरकार इतनी उदारता से लाल बत्ती बांटती थी कि लगभग हर राजनीतिक रसूख वाला आदमी या छोटा-मोटा सरकारी अफसर लाल बत्ती की गाड़ी में घूमता था। दरअसल लाल या नीली बत्ती रसूख और रुतबे का प्रतीक बन गई है और ऐसे वाहनों में बैठे लोगों को इस बात की परवाह भी नहीं होती कि उनकी वजह से आम आदमी को परेशानी का कभी-कभी सामना भी करना पड़ता है। दिल्ली में तो अपेक्षाकृत थोड़ी सख्ती व डर है वरना राज्य और जिला स्तर पर किसी पार्टी का नगर अध्यक्ष और किसी जिले का डिप्टी कलेक्टर भी लाल बत्ती की गाड़ी का साइरन बजाते हुए सड़कों पर दिखाई दे जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने भी वही बात कही है जो इससे पहले भी कई बार कही जा चुकी है कि गाड़ी पर लाल बत्ती दरअसल एक स्टेटस सिम्बल बन गया  है और इसका इस्तेमाल लोग यह दिखाने के लिए करते हैं कि वे आम नहीं बल्कि खास आदमी हैं। अदालत ने यह टिप्पणी की कि यह अंग्रेजों के राज का बोझ है, जिसे हम आज तक ढो रहे हैं। भारत में कुप्रशासन की एक बड़ी वजह यह है कि आम आदमी और खास आदमी या वीआईपी के बीच बड़ा फर्प मौजूद है जो लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। वास्तव में इस व्यवस्था ने आजाद भारत में नागरिकों के दो वर्ग तैयार कर दिए हैं। हालांकि जब से यह मामला संज्ञान में आया है यह बहस भी चल रही है कि आखिर किन्हें वीआईपी या विशिष्ट जन माना जाए। संवैधानिक रूप से देखें तो यह दायरा काफी बड़ा हो जाता है क्योंकि इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, कैबिनेट मंत्री, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त और कैग सहित सभी संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुख आ जाते हैं। यही हाल नीली बत्ती वाले वाहनों का है, जिन्हें पुलिस, सेना और अग्निशमन सेवा से संबंधित वाहनों के लिए अधिकृत किया गया है पर इसका भी दुरुपयोग रोका नहीं जा सका है। जिस देश में यातायात नियमों को तोड़ने वाले 100-50 रुपए देकर छूट जाते हैं, वहां बहुत कुछ बदलने की जरूरत है। अब यह जरूरी है कि केंद्र सरकार, संवैधानिक संस्थाएं व तमाम राज्य सरकारें देश के हर हिस्से में सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का सख्ती से पालन करवाएं तभी भारत के लोकतंत्र से इस सामंती प्रवृत्ति को हटाया जा सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

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