Thursday, 19 December 2013

उलेमाओं का आतंक व दहशतगदी के खिलाफ स्वागतयोग्य फतवा

हम जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द द्वारा बुलाए गए तीन दिवसीय विश्व शांति सम्मेलन की सराहना करते हैं। रामलीला मैदान में आयोजित समापन समारोह में सबसे ज्यादा पतिनिधि पाकिस्तान से आए थे। दूसरे नंबर पर बांग्लादेश, इंग्लैंड, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव,म्यांमार के पतिनिधि मौजूद थे। शुरुआत के दो दिन तक यह सम्मेलन दारुल उलूम देवबंद में हुआ और रविवार को समापन दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ। समापन के दिन कई सर्वसम्मति से पस्ताव पारित हुए। मगर सबसे खास था। आतंकवाद की जमकर निंदा करना और उसके खिलाफ एक सुर में फतवा जारी करना। यह पहला मौका है जब भारत और उसके आस पड़ोस के देशें के इस्लामिक विद्वान आतंक और दहशतगदी के खिलाफ एक मंच पर जमा होकर एक राय पर आ टिके हैं। सम्मेलन की अध्यक्षता बांग्लादेश के मोहम्मद सैयद उस्मान मंसूर पुरी ने की और संचालन उलेमा हिंद के पूर्व सांसद मौलाना महमूद असद मदनी ने किया। फतवा जारी करते हुए कहा गया कि आतंकवाद और दहशतगदी से न केवल बर्बादी हो रही है बल्कि यह पूरी तरह से इस्लाम के खिलाफ है। पाकिस्तान जमीयत उलेमा इस्लाम के पभारी मो. फजलुर रहमान ने कहा कि हमें जंग से परहेज करना चाहिए और दोनों देशों के राजनेताओं को चाहिए कि वे बातचीत के जरिए कश्मीर के मसले का हल करें ताकि अमन कायम हो सके। श्रीलंका के  मुफ्ति रियाजी साहब ने कहा कि आतंक की वजह से तरक्की रुक रही है। कई वक्ताओं ने कहा कि इस समय यह दुनिया एक तरह से ग्लोबल विलेज बन चुका है जिसमें छोटी-छोटी बातों से दुश्मनी बढ़ती है और यदि उसमें बातचीत की गुंजाइश हो तो दुश्मनी को समाप्त भी किया जा सकता है। इसी तरह नेपाल से मो. खालिद सिद्दीकी, मालदीव से शेख फहमी व म्यांमार से मो. नूर मोहम्मद ने भी आतंकवाद के कारणों का पता लगाने की आवश्यकता पर बल दिया। सम्मेलन में मुजफ्फरनगर के दंगों पर पाकिस्तान सहित लगभग सभी देशों से आए उलेमाओं ने न केवल अफसोस जाहिर किया बल्कि दंगों के लिए उत्तरपदेश सरकार की जमकर खिंचाई की। एक वर्ष पहले दारुल उलूम देवबंद ने दहशतगदी के खिलाफ पस्ताव पारित किया था जिसमें करीब आठ सौ उलेमाओं ने हिस्सा लिया था लेकिन पस्ताव को सख्ती से लागू करने के लिए ही इस सम्मेलन को बुलाया गया था। हम दारुल उलूम देवबंद का इस सफल आयोजन और उसमें पारित पस्ताव का स्वागत करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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