Friday 20 December 2013

अमेरिका की दादागीरी अब भारत को स्वीकार्य नहीं है

यह पहली घटना नहीं जब अमेरिका द्वारा किसी भारतीय को अपमानित किया गया हो। यह पहली बार भी नहीं जब अपने किसी राजनयिक के अस्वीकार्य आचरण की वजह से भारत को नीचा देखना पड़ा हो। न्यूयार्प में भारत की उप-महावाणिज्य दूत देवयानी खोबरागड़े पर आरोप हैं कि उन्होंने नौकरानी (घर पर सहायिका) के वीजा-आवेदन में धोखाधड़ी की और अमेरिकी कानून के मुताबिक वेतन भत्ते, छुट्टियां वगैरह न देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया पर इसके बाद जो हुआ वह न केवल अमानवीय था और भारत को अपमानित किया गया जो किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है। अपनी बच्ची को स्कूल छोड़ने जा रही 1999 बैच की अधिकारी देवयानी को अमेरिकी पुलिस ने पकड़ लिया और कपड़े उतरवाकर तलाशी ली। बदसलूकी का सिलसिला यहीं नहीं रुका। देवयानी को नशैड़ियों और खतरनाक कैदियों के साथ जेल में रखा गया। सेक्स वर्परों के साथ कतार में खड़ा किया गया। वह अपनी बच्ची को स्कूल से लाने की दुहाई देती रहीं मगर अमेरिकी पुलिस नहीं पसीजी। सवाल खड़ा होता है कि क्या भारत देश का प्रतिनिधित्व करने वाली किसी अधिकारी के साथ कानूनी कार्रवाई की यह प्रक्रिया जायज है? दूसरा सवाल मानवाधिकारों का झंडा उठाने का दावा करने वाले अमेरिका का यह अमानवीय कृत्य अंतर्राष्ट्रीय कानून के विरुद्ध नहीं है? बिना दूसरा पक्ष सुने सिर्प शक की बिनाह पर किसी दूसरे देश के अधिकारी को पकड़ कर उसके साथ खूंखार अपराधियों जैसा सलूक किया जाना क्या अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं? पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर अब्दुल कलाम को भी सुरक्षा के नाम पर अपमानित किया था। एनडीए शासन में जॉर्ज फर्नांडीज से भी बदतमीजी की गई थी। फिल्म अभिनेता शाहरुख खान को 2001 में महज अपने मुस्लिम नाम के कारण रोक लिया गया था। इससे ज्यादा विडम्बना और क्या होगी कि शाहरुख आतंकी घटना के बाद बनी अपनी फिल्म माई नेम इज खान के प्रमोशन के लिए वहां गए थे और भी कई केस हुए हैं। स्वाभाविक तौर पर भारत में इसकी गम्भीर प्रतिक्रिया होनी थी। पहले केसों में भारत ने पर्याप्त जवाब नहीं दिया पर इस बार भारत सरकार ने कारण कुछ भी रहे हों तय किया है कि अमेरिका को उसी की भाषा में जवाब दिया जाएगा जो वह समझता है। मंगलवार को भारत ने कड़ा एतराज जताते हुए अमेरिकी दूतावास और उसके अधिकारियों-कर्मचारियों पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी। विशेष छूट अब नहीं। अमेरिकी काउंसलेट के राजनयिक केंद्र सरकार की ओर से जारी आईडी कार्ड लौटाएं। अमेरिकी कर्मचारियों और परिजनों को देश के हवाई अड्डों से स्पेशल पास रद्द होंगे। अमेरिकी एम्बेसी काउंसलेट में तैनात भारतीय स्टाफ की सैलरी आदि की डिटेल मांगी गई है। यूएस राजनयिकों के घर की मेड और नौकरों के वेतन आदि की जानकारी देने को कहा गया है। इसके अलावा लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, राष्ट्रीय सलाहकार शिवशंकर मेनन समेत भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात करने से इंकार कर दिया। इन कदमों से भारत ने साफ संदेश दे दिया है कि भारतीय राजनयिकों के साथ अपमानजनक व्यवहार को अमेरिका हल्के में न ले। दुःखद बात यह है कि पहले अमेरिकी चोरी करे फिर सीना जोरी करे। अमेरिकी अधिकारी अब भी कह रहे हैं कि उन्होंने अमेरिकी कानूनी प्रक्रिया के तहत काम किया है। वीजा में गलती, नौकरानी को सही वेतन न देना इत्यादि के आरोपों में किसी महिला व राजनयिक महिला के कपड़े उतरवा कर, सड़क पर हथकड़ी लगाकर घुमाना कौन-सी कानूनी प्रक्रिया में लिखा हुआ है? चाहे वह लोकसभा चुनाव का दबाव रहा हो, चाहे वह भाजपा का दबाव, इस बार भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। हम इस रुख का स्वागत करते हैं। दुनिया के सबसे बड़े `दादा' समझे जाने वाले अमेरिका के खिलाफ इतनी जुर्रत करना, वाकई में कुछ-कुछ हैरान करने वाली बात जरूर है। ऐसा ही व्यवहार पड़ोसी देश पाकिस्तान भी भारतीय राजनयिकों से करता है। अमेरिका को कड़ा संदेश देने से शायद पाकिस्तान भी समझ जाए कि बस अब और नहीं। जिस तरह अमेरिका अपने कानूनों को गम्भीरता से लेता है, उसी तरह उसे कार्रवाई की मर्यादा का भी ध्यान रखना चाहिए। अमेरिका को बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए और कसूरवारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी।

-अनिल नरेन्द्र

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