Tuesday 3 December 2013

पहले छत्तीसगढ़, फिर मध्यप्रदेश और अब राजस्थान में रिकार्ड मतदान

पहले छत्तीसगढ़, फिर मध्यप्रदेश और रविवार को राजस्थान में रिकार्ड मतदान हुआ है। राजस्थान की अगली सरकार के लिए रविवार को 74 फीसद से ज्यादा मतदान हुआ। प्रदेश की छिटपुट घटनाओं को छोड़ मतदान शांतिपूर्ण रहा। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अशोक जैन ने बताया कि प्रदेश की 14वीं विधानसभा के गठन के लिए दो सौ में से 199 विधानसभा सीटों के लिए कुल 74.38 फीसद मतदान हुआ। चूरू विधानसभा सीट से बसपा उम्मीदवार की मृत्यु होने के कारण वहां 13 दिसम्बर को मतदान होगा। जब छत्तीसगढ़ में भारी मतदान हुआ तो कांग्रेस खुश हो गई कि भारी वोट जरूर सत्तारूढ़ रमन सिंह की भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इन्कैम्बेंसी वोट है और कांग्रेस जीत गई। आमतौर पर माना भी यही जाता है कि अगर वोट प्रतिशत ज्यादा हो तो वह सत्तारूढ़ के खिलाफ जाता है पर ऐसा जरूरी नहीं। कभी-कभी यह वोट विकास पर भी अधिक पड़ता है। वर्तमान सरकार से संतुष्टि का भी परिचायक होता है पर जब यही ट्रेंड मध्यप्रदेश में दिखा तो भाजपा ने इसे अपनी जीत में इंटरप्रेट कर लिया क्योंकि तमाम सर्वे यही दर्शा रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान चुनाव जीत रहे हैं। अब राजस्थान में भी भारी मतदान क्या दर्शाता है? क्या यह सत्तारूढ़ अशोक गहलोत के लिए पाजिटिव वोट है या फिर एंटी इन्कैम्बेंसी का परिचायक? वसुंधरा राजे कैम्प तो यही मान रहा है। भाजपा तो अब खुलकर कह रही है कि राजस्थान में सत्ता पलट होगा। वैसे भी राजस्थान का यह 1998 से ट्रेंड रहा है। वहां हर पांच साल में सरकार बदलती है। राजस्थान के गोपालगढ़ में एक घटना घटी थी जब पुलिस ने एक मस्जिद में कुछ अल्पसंख्यकों को मारा था। अल्पसंख्यक में एक वर्ग तब से गहलोत सरकार के खिलाफ चल रहा है। इसी तरह से गुर्जर भी गहलोत सरकार के खिलाफ हैं क्योंकि वह मानते हैं कि इस सरकार ने उनके लिए आरक्षण मुद्दे पर कुछ नहीं किया। अशोक गहलोत बेशक एक स्वच्छ छवि के नेता हैं जिन्हें राजस्थान का चाणक्य भी कहा जाता है पर प्रशासन और अपने मंत्रियों पर उनकी कमजोर पकड़ रही। भ्रष्टाचार और घोटालों से भरा रहा उनका कार्यकाल। फिर बात आती है मोदी फैक्टर की। भाजपा का कहना है कि मतदान में जो अधिक प्रतिशत वोट पड़े हैं यह नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और उनके समर्थन हेतु पड़े हैं। युवा वर्ग में नरेन्द्र मोदी का जादू चल रहा है। बेशक यह सही हो सकता है पर इससे लोकल मुद्दों पर थोड़ा ही फर्प पड़ेगा। मंत्रियों और विधायकों की निजी कारगुजारी, छवि भी मतदाता जरूर देखेगा। जिस व्यक्ति ने काम किया है, विकास करवाया है, जनता के दुख-दर्द में साथ दिया है वह कोई लहर नहीं देखता। वैसे भी किसी प्रकार की लहर ने तो सत्तारूढ़ दल के लिए और न ही विपक्ष के लिए देखने को मिली है। भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि भारी मतदान का यह सिलसिला दिल्ली में भी जारी रहेगा। अरविन्द केजरीवाल ने तो खुद को दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री भी घोषित कर दिया है। एक न्यूज पोर्टल द्वारा हाल ही में कुछ नेताओं के खिलाफ किए गए स्टिंग ऑपरेशन के बावजूद आम आदमी पार्टी (आप) ने दावा किया है कि चार दिसम्बर को दिल्ली विधानसभा चुनावों में उसे 38 से 50 सीटें हासिल होंगी। जाने-माने चुनाव विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने दावा किया कि आप के पक्ष में लहर चल रही है। योगेन्द्र यादव ने इस दावे से अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। आज शायद ही कोई उनके दावे से सहमत हो पर अब ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। आठ तारीख को दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा, यह भी पता चल जाएगा कि वोटों की वृद्धि का कारण क्या है?

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