दिल्लीवासियों
ने राहत की सांस ली होगी कि अंतत आप पार्टी ने पिछले एक पखवाड़े से जो सस्पेंस बनाया
हुआ था कि सरकार बनाएंगे या नहीं वह समाप्त हो गया। अब घोषणा हो गई है कि आप पार्टी
दिल्ली में सरकार बना रही है। आप पार्टी की राजनीतिक मामलों की सोमवार को एक बैठक हुई
जिसमें जनमत संग्रह के नतीजों को देखते हुए सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला
किया गया। पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल उपराज्यपाल नजीब जंग से मिले और उन्हें
सरकार बनाने का दावा करने संबंधी पत्र सौंपा। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के नए मुख्यमंत्री
होंगे। जो रामलीला मैदान में सार्वजनिक तौर पर शपथ लेंगे। हम आप पार्टी और अरविंद केजरीवाल
को बधाई देना चाहते हैं। खंडित जनादेश में यह तो होना ही था जब भाजपा ने सबसे बड़ी
पार्टी होने के बाद सरकार बनाने से मना कर दिया था। उस सूरत में दो ही विकल्प बचते
थे ः एक राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए, दूसरा
आप पार्टी सरकार बनाए। हां फिर चुनाव कराना तो विकल्प था ही। अगर राष्ट्रपति शासन लगता
तो घूम-फिर कर कांग्रेस का ही शासन होता क्योंकि केंद्रीय गृह
मंत्रालय सर्वेसर्वा होता। अब भी सत्ता की बागडोर एक तरह से कांग्रेस के हाथों में
है। उसके आठ विधायकों के दम-खम पर ही यह सरकार चलेगी और कांग्रेसी
नेता अब यह कहने लगे हैं कि हमने बिना शर्त समर्थन नहीं दिया, मुद्दों पर समर्थन दिया है। इसी लाइन से आप पार्टी की सरकार के भविष्य पर थोड़ी
अनिश्चितता बनी हुई है कि पता नहीं कांग्रेस इस सरकार को कितने दिन चलने देगी?
इसमें कोई शक नहीं कि केजरीवाल को थूक कर चाटना पड़ा है। केजरीवाल ने
यहां तक कह दिया था कि मैं अपने बच्चों की कसम खाता हूं कि मैं कांग्रेस का समर्थन
नहीं लूंगा। जनता में इस बात को लेकर भी आशंका है कि जो वादे आप पार्टी ने जनता से
किए हैं बिजली, पानी, भ्रष्टाचार रोकने,
घोटालों की जांच करवाना, लाल बत्ती संस्कृति खत्म
करना, मोहल्ला कमेटियों में सीधा पैसा बांटना इत्यादि-इत्यादि उन 18 वादों में से कितने पूरा कर सकेंगे। मुझे
लगता है कि इनमें से अधिक मुद्दे आप पार्टी पूरा कर लेगी। हो सकता है कि 50
प्रतिशत बिजली के बिल और 700 लीटर फ्री पानी इस
हद तक न पूरा हो सके, कम रहे पर तब भी जनता को बहुत राहत मिलेगी।
सबसे बड़ी बात यह होगी कि भारत की गिरती सियासत के स्तर पर रोक लगेगी। राजनीति में
थोड़ी स्वच्छता जरूर आएगी। भारत की सियासत के शुद्धिकरण की दिशा में एक सही कदम जरूर
होगा और यह दूसरे दलों को भी बदलने के लिए मजबूर करेगी। आप पार्टी और कांग्रेस में
फ्लैश प्वाइंट तब आ सकता है जब केजरीवाल कांग्रेस शासन के दौरान घोटालों की जांच करती
है और जैसा कि दो दिन पहले केजरीवाल ने खुद कहा कि मैं भ्रष्ट कांग्रेसी नेताओं को
जेल भेजूंगा। अगर उन्होंने ऐसा किया तो निश्चित रूप से कांग्रेस जवाबी कार्रवाई करेगी।
हालांकि कुछ लोगों का दावा है कि कांग्रेस और केजरीवाल में गुप्त डील हो चुकी है कि
वह शीला दीक्षित शासन की जांचें नहीं करवाएंगे। भाजपा बेशक आज यह कहे कि आप ने जनता
से धोखा किया और उसने उसी कांग्रेस से हाथ मिला लिया जिसके खिलाफ चुनाव लड़े थे पर
अपना मानना है कि और कोई विकल्प नहीं था, हमें दोबारा चुनाव से
बचना था। बचे हैं या नहीं यह तो आप सरकार के शुरुआती 15 दिनों
में पता चल जाएगा। पता चल जाएगा कि यह सरकार लम्बी पारी खेलेगी या नहीं? पर फिलहाल अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को हमारी शुभकामनाएं और हम चाहते
हैं कि सारे विरोधाभास के बावजूद सरकार चले।
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