कांग्रेस
अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष
राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ताजा भाषणों से तो यह साफ लगता है कि कांग्रेस
अब भी अपनी करारी चुनावी हार के असली कारणों को स्वीकार करने को या तो कतई तैयार नहीं
है या फिर जानबूझकर इन कारणों को स्वीकार नहीं करना चाहती। दरअसल इस देश की राजनीति
का सियासी स्वरूप ही पूरी तरह बदल गया है जिसकी कल्पना कभी महात्मा गांधी ने नहीं की
थी। अब पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे कमाने का चलन आम हो गया है। कांग्रेसी रणनीतिकार
यह मानकर चल रहे थे कि भ्रष्टाचार, महंगाई, घोटाले अब कोई मुद्दा नहीं रहे। वोट बैंक की राजनीति करके समाज को बांटकर सत्ता
में बना रहना अब स्वीकार्य
नहीं। ऐसे में जब आम आदमी पार्टी के नेतागण राजनीति को एक बार फिर गांधी युग में ले
जाने का प्रयास कर रहे हैं तो उसे अव्यावहारिक प्रयास बताकर परंपरागत दलों के अनेक
नेता टीवी चैनलों पर बैठकर आप का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आए। अनेक चुनावी सर्वेक्षणों
और चौक-चौराहों पर आमजन की बातों से यह साफ है कि हाल के वर्षों
के अनेक घोटालों व उन पर केंद्र सरकार के रुख के कारण आम जनता में कांग्रेस के प्रति
गुस्सा पैदा हुआ। इन घोटालों को महंगाई से सीधा जोड़कर जनता ने अपना इरादा साफ कर दिया
है। दुःखद यह है कि घोटालेबाजों के खिलाफ अदालती फैसलों के बावजूद भी कोई कार्रवाई
नहीं हो पा रही है। महंगाई जन-असंतोष का दूसरा बड़ा कारण है जो
मुख्यत सरकारी भ्रष्टाचार की ही उपज है। जरूरत तो इस बात की थी कि कांग्रेस नेतृत्व
यह स्वीकार करता कि भ्रष्टाचार और घोटालों की वजह से उसको हार का मुंह देखना पड़ा पर
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में कहती हैं कि पार्टी
की पराजय के लिए अनुशासन व एकता का अभाव भी एक कारण रहा। उन्होंने कुछ अन्य कारण भी
गिनाए पर भ्रष्टाचार और महंगाई का जिक्र तक नहीं किया। याद रहे कि अनेक निष्पक्ष विश्लेषकों
के अनुसार हाल के वर्षों में केंद्र सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों व महंगाई रोकने
में सरकारी विफलता के कारण ही कांग्रेस हारी है। अगर कांग्रेस यह स्वीकार कर लेती कि
भ्रष्टाचार व महंगाई के कारण ही उसकी हार हुई है तो उसे इन समस्याओं पर काबू पाने का
भरोसा भी देना पड़ता। इस दिशा में प्रभावी कदम भी उठाने पड़ते। प्रधानमंत्री कहते हैं
कि सीबीआई, सीवीसी जैसी जांच एजेंसियों की वजह से नौकरशाह नीतिगत
फैसले नहीं कर पा रहे हैं इसका विपरीत असर देश पर पड़ा। उन्होंने यह नहीं बताया कि किस नीतिगत फैसले को लेकर
सीबीआई या सीवीसी ने अफसरों को परेशान किया, किस फैसले से देश
का विकास हो रहा था जिस काम में जांच एजेंसियों ने रोड़े अटका दिए? क्या देश ने यह नहीं देखा कि बड़े पैमाने पर कोयला आवंटन से पहले केंद्र सरकार
द्वारा जानबूझकर कोई पारदर्शी फैसला नहीं किया था। इसके परिणामस्वरूप बड़े घोटाले सामने
आए। सुप्रीम कोर्ट को मजबूर होकर सौ से अधिक आवंटनों को रद्द करना पड़ा। चुनाव परिणाम
के बाद कांग्रेस में जवाबदेही का वही हाल है जैसे पहले था। इक्का-दुक्का प्रदेशाध्यक्षों को बदलने से कोई फर्प आने वाला नहीं। जब तक कांग्रेस
गंभीरता से आत्ममंथन नहीं करती तब तक उसकी भविष्य में भी हालत सुधरने वाले नहीं। राहुल
गांधी कमान संभालने का प्रयास कर रहे हैं पर फायदे से ज्यादा नुकसानदेह बयान दे रहे
हैं। अपनी ही सरकार, मुख्यमंत्रियों को कठघरे में खड़ा करने से
शायद ही पार्टी को कोई सियासी लाभ हो।
-अनिल नरेन्द्र
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