Wednesday 19 February 2014

20 साल बाद एक बार फिर बने एलजी दिल्ली के सर्वेसर्वा

चलो जाते-जाते केजरीवाल एंड कंपनी दिल्ली के विधायकों का तो भला कर ही गई। अधर में लटके दिल्ली के तमाम विधायक जीतकर भी विधायक नहीं बन पा रहे थे। केजरीवाल ने सरकार बनाकर कम से कम इनका तो भला कर ही दिया। दिल्ली में आम आदमी पाटी की सरकार तो चली गई लेकिन चुने हुए 70 विधायकों को सरकार न रहने से कोई परेशानी नहीं आने वाली। उन्हें पहले की तरह ही विकास के लिए करोड़ों रुपए का फंड मिलेगा और वेतन भी बाकायदा बैंक खाते में आता रहेगा। खास बात यह है कि इस्तीफा देने के बाद अरविंद केजरीवाल तो अब मुख्यमंत्री नहीं रहे लेकिन उनकी पाटी के विधायक मनिंदर सिंह धीर फिलहाल विधानसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी पर कायम रहेंगे। सरकार के न रहने के बावजूद उनकी कुसी पर कोई आंच नहीं आएगी। दिल्ली विधानसभा के निलंबन के दौरान विधायकों को 54 हजार रुपए मासिक वेतन भत्ते मिलते रहेंगे। इसके अलावा 30 हजार रुपए दो डाटा एंट्री आपरेटर रखने के लिए दिए जाते हैं। विधानसभा भंग करने की बजाय निलंबित की जाती है तो उन्हें वेतन मिलता रहेगा। विधानसभा अध्यक्ष मनिंदर सिंह धीर को भी वेतन व भत्ता मिलता रहेगा। अब राजधानी में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद उपराज्यपाल नजीबजंग दिल्ली के सर्वेसर्वा हो गए हैं। अब दिल्ली राजनिवास से चलेगी। यह 20 साल में पहली बार है जब भाजपा या कांग्रेस को। पूर्ण बहुमत नहीं मिला। पहली विधानसभा में भाजपा को बहुमत मिला था और बाद के तीन चुनावों में कांग्रेस को पिछले साल हुए चुनावों में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी भी पाटी को बहुमत नहीं मिला। उपराज्यपाल के सामने तीन विकल्प थे। पहलाः विधानसभा भंग करें। राष्ट्रपति शासन लगाएं, जो छह महीने तक रह सकता है। लेकिन नए चुनाव इससे पहले भी हो सकते हैं। दूसराः विधानसभा को भंग करने के बजाय निलंबित रखा जाए और राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। इस बीच सरकार बनने की सम्भावना तलाशी जाए। तीसराः भाजपा को फिर से सरकार बनाने के लिए कहा जा सकता है। भाजपा अगर खुद दावा करे तो उसे सरकार बनाने के लिए कहा जा सकता है। आमतौर पर जब एक सरकार त्याग पत्र दे तो मुख्यमंत्री को कामचलाऊ मुख्यमंत्री बने रहने को कहा जाता है पर ऐसी कोई कानूनी पाबंदी नहीं। उपराज्यपाल ने अरविंद केजरीवाल को काम चलाऊ मुख्यमंत्री बनाना उचित नहीं समझा और न उनके विधान सभा भंग करने के पस्ताव को ही माना। उपराज्यपाल उनके पस्ताव को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। माननीय उपराज्यपाल नजीबजंग के सामने कई चुनौतियां हैं। मुख्य शासक के तौर पर दिल्ली के विकास और योजनाओं को वापस पटरी पर लाना होगा। संभावना है कि दिल्ली के सिस्टम को ट्रैक पर लाने के लिए वह सबसे पहले नौकरशाही में व्यापक बदलाव करेंगे। अन्य चुनौतियों में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने वर्ष 2014-15 का बजट विधानसभा में पेश नहीं किया। अब उपराज्यपाल की जिम्मेदारी बजट लेखानुदान तुरन्त पास कराने की है ताकि सरकार के पास सरकारी कर्मचारियों को वेतन तथा विकास कार्यों के लिए फंड उपलब्ध हो। एनटीपीसी ने बिजली वितरण कंपनियों को बकाया भुगतान का समय निर्धारित कर अल्टीमेटम दे रखा है। उन्हें वितरण कंपनियों को बकाया भुगतान कर दिल्लीवासियों को बिजली गुल होने के खतरे से उभारना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। पिछले छह महीने से दिल्ली जल बोर्ड के बड़े पोजेक्ट अधर में लटके हैं, क्योंकि विकास कार्यें की स्वीकृति नहीं मिल रही थी। जल बोर्ड को वापस लाइन पर लाना होगा। संगम विहार जैसी कालोनियों में पानी को लेकर हा-हाकार मचा हुआ है। वहां तुरन्त पानी उपलब्ध कराना अति आवश्यक है। दिल्ली विधानसभा के 28 कालेजों की गवर्निंग बाडी सदस्य केजरीवाल सरकार ने नहीं बनाए हैं। अब उपराज्यपाल को कालेज गवर्निंग बाडी के 140 सदस्यों की नियुक्ति तुरन्त करनी होगी। स्वराज विधेयक द्वारा विधायक फंड को मोहल्ला सभा में भेजने का केजरीवाल सरकार का निर्णय था। लेकिन स्वराज विधेयक पास नहीं हुआ। अब उपराज्यपाल को सभी विधायकों को विकास के लिए फंड निर्गत करने की चुनौती है। ट्रांस यमुना बोर्ड द्वारा दिल्ली के 20 विधानसभा क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्य ठप पड़े हैं। बोर्ड को पुनजीवित करना और ठप कार्यें को आगे बढ़ाना एक चुनौती यह भी होगी। दिल्ली की सभी आरडब्ल्यूए को भागीदारी निवास से फंड मिलना बंद हो चुका है। सभी आरडब्ल्यूए फंड के अभाव से ग्रस्त हैं जिससे वे विकास कार्य को गति दे सकें। हजारों कान्ट्रैक्टर कर्मचारी अपनी नौकरी पक्की कराना चाहते हैं  जिसके लिए वे धरना पदर्शन महीने भर से कर रहे हैं। उपराज्यपाल के सामने ये है कुछ पमुख चुनौतियां। देखें माननीय नजीब जंग इनसे कैसे निपटते हैं। अंत में केजरीवाल सरकार के कई फैसले छद्म विवादों में फंस गए हैं। इनका जिक मैं अलग से करूंगा।

ö अनिल नरेन्द्र

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