Sunday 2 February 2014

आंध्र पदेश के विभाजन का मामला नए टकराव की ओर बढ़ रहा है

आंध्र पदेश विधान सभा ने तेलंगाना के गठन से संबंधित बिल को ध्वनिमत से खारिज कर कांग्रेस नेतृत्व के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है। पदेश के दोनों सदनों ने आंध्र पदेश पुनर्गठन विधेयक 2013 को खारिज कर दिया और इस संबंध में पेश पस्ताव को ध्वनिमत से स्वीकार कर लिया। एक नाटकीय घटनाकम के बीच विधानसभा अध्यक्ष ने राज्य के मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डी की ओर से पेश सरकार के पस्ताव को पेश किया जिसमें विधेयक को खारिज करने की बात कही गई थी। इस पस्ताव को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इस मसले के लंबे समय तक झूलने के बाद कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने राज्य गठन बिल को सीधे संसद में लाकर समस्या का स्थायी समाधान ढूंढ़ने की कोशिश की थी पर उसे शायद ही अंदाजा रहा होगा कि राज्य का सियासी समीकरण इस तरह पलटा खाएगा। आंध्र पदेश के मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने राष्ट्रपति पणब मुखजी से विधेयक को संसद में न भेजे जाने का अनुरोध भी किया था। पस्ताव में कहा गया है कि राज्य का विभाजन बिना किसी सहमति और बिना किसी ठोस वजह से किया जा रहा है और ऐसा करते हुए भाषागत और सांस्कृतिक समरूपता तथा आर्थिक और पशासनिक व्यावहारिकता जैसे पहलुओं की अनदेखी की गई है। असल में सीएम के सामने कोई और रास्ता भी नहीं था क्योंकि 157 विधायकों ने पहले ही हल्फनामा दे रखा था कि वे आंध्र पदेश बंटवारे के खिलाफ हैं। केन्द्र सरकार चाहती थी कि यह बिल फरवरी में होने वाले संसद सत्र में पारित हो जाए। इसके पीछे कांग्रेस की मंशा तेलंगाना राज्य के गठन को आम चुनाव में भुनाने की थी। लेकिन अपनी ही राज्य सरकार ने उसके किए-कराए पर पानी फेर दिया है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने इस बात से इंकार किया कि आंध्र पदेश विधानसभा की ओर से पस्ताव को खारिज करने से नए राज्य के गठन का मामला अधर में लटक जाएगा। उन्होंने कहा कि यह (विधेयक) खारिज नहीं हुआ है। तेलंगाना विधेयक पर (विधानसभा में) मुख्यमंत्री की ओर से पेश किया गया एक पस्ताव ध्वनिमत से पारित हुआ है। विधेयक पर वोट नहीं हुआ है। यह दो अलग-अलग चीजें हैं। राष्ट्रपति की ओर से यह विधेयक उसे भेजा गया था और गुरुवार को यह विधेयक राष्ट्रपति को लौटाया जाएगा। इससे आंध्र पदेश विधानसभा से टिप्पणी पाप्त करने की संवैधानिक बाध्यता पूरी हो गई है। अब यह भारत सरकार पर निर्भर है कि वह विधानसभा की ओर से की गई सिफारिशों और सुझावों पर कैबिनेट के गौर करने के बाद इसे संसद में पेश करे। ऐसे में जो लोग तेलंगाना राज्य के गठन की आस लगाए थे उन्हें अपनी मंजिल दूर सरकती नजर आ रही है। डर तो इस बात का है कि इस चुनावी माहौल में आने वाले दिनों में कहीं राज्य विभाजन के समर्थकों और विरोधियों में टकराव का एक नया दौर न शुरू हो जाए।

-अनिल नरेन्द्र

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