Tuesday, 11 February 2014

असीमानंद का कथित बयान और इशरत जहां फजी मुठभेड़

गत सप्ताह दो ऐसी खबरें आईं जिन पर बहुत चर्चा हो रही है और दोनों जबरदस्त बहस का मुद्दा बनीं। दोनों ही भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से एक तरह से संबंधित हैं। पहली घटना समझौता एक्सपेस समेत कुछ अन्य ब्लास्ट के आरोपी स्वामी असीमानंद के कथित साक्षात्कार की है। दूसरी घटना इशरत जहां फजी एनकाउंटर से सबंधित है। पहले स्वामी असीमानंद के तथाकथित साक्षात्कार की बात करते हैं। समझौता एक्सपेस धमाकों सहित कुछ अन्य मामलों के अभियुक्त स्वामी असीमानंद अंबाला जेल में बंद हैं। एक पत्रिका कैरावन ने जेल के अंदर स्वामी जी का इंटरव्यू करने का दावा किया। एक पमुख अंग्रेजी अखबार ने इस इंटरव्यू की खबर विस्तार से छापी। छपी खबर में कहा गया कि संघ पमुख मोहन भागवत ने स्वामी असीमानंद को इन विस्फोटों की पेरणा दी थी और कहा था कि मुस्लिम समाज को इन धमाकों से स्वामी जी कोई कड़ा संदेश दे सकते हैं तो यह बहुत अच्छा होगा। इस सनसनीखेज खुलासे से सियासत गरमा गई। कांग्रेस, बीएसपी और सपा ने गुरुवार को आरएसएस पर जोरदार हमला बोला। कैरवान मैगजीन ने मालेगांव और समझौता एक्सपेस ब्लास्ट में आरोपित स्वामी असीमानंद का तथाकथित हवाला देते हुए दावा किया था कि संघ पमुख मोहन भागवत को धमाकों की जानकारी थी और उसे बाकायदा उनका आशीर्वाद हासिल था। मैगजीन ने असीमानंद की बातचीत के टेप भी जारी किए। स्वामी असीमानंद पर साल 2006 से 2008 के बीच समझौता एक्सपेस धमाका (फरवरी 2007), हैदराबाद, मक्का मस्जिद धमाका (मई 2007), अजमेर दरगाह (अक्टूबर 2007) और मालेगांव में दो धमाके (सितम्बर 2006 और सितम्बर 2008) के आरोप हैं। इन धमाकों में कुल 119 लोग मारे गए थे। इस खबर पर रिएक्ट करते हुए केन्द्राrय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे जैसे जिम्मेदार व्यक्ति ने भी कह दिया कि असीमानंद ने अगर संघ पमुख मोहन भागवत के बारे में कुछ कहा है तो वह सही ही होगा। केन्द्राrय मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा कि यह गम्भीर मुद्दा है और गृह मंत्रालय को इस बारे में संज्ञान लेना चाहिए। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पवक्ता राम माधव ने कहा कि इस इंटरव्यू की पामाणिकता और इसके आडियो को लेकर कई सवाल हैं। असीमानंद तो खुद मजिस्ट्रेट के सामने कह चुके हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। संघ के पचारक एमजी वैद्य का कहना है कि झूठे पचार से कांग्रेस को फायदा नहीं मिलेगा। भाजपा नेता रविशंकर पसाद ने कहा कि असीमानंद के आरोप निराधार हैं। उनके वकील भी इसका खण्डन कर चुके हैं। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में सुरक्षा एजेंसियों ने कई लोगों पर ऐसा दबाव बनाया। खुद स्वामी असीमानंद ने इस खबर को झूठा और बनावटी बताया है। शुकवार को असीमानंद का एक नोट सामने आया जिसमें लिखा गया है कि असीमानंद रिपोर्टर से मिले जरूर हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा कोई इंटरव्यू नहीं दिया है, पत्रिका की रिपोर्टर उनसे एक वकील के भेष में मिली थी। असीमानंद ने पत्रिका पर मुकदमा करने की भी चेतावनी दी है। अपनी चिट्ठी में असीमानंद ने यह माना है कि उन्होंने रिपोर्टर से कई बार सुनवाई के दौरान मुलाकात की। उनका दावा है कि उनकी रिपोर्टर से सिर्फ सामाजिक कार्यें को लेकर बातचीत हुई है। इधर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने शुकवार को इस मुद्दे से दूरी बनाते हुए कहा कि असीमानंद के कथित इंटरव्यू के पकाशन में न तो उसकी कोई भूमिका है और न ही वह कथित आरोपों को गम्भीरता से लेती है। एजेंसी ने एक बयान में कहा नम कुमार उर्फ स्वामी असीमानंद के एक पत्रिका के फरवरी 2014 के अंक में छपे कथित इंटरव्यू के संदर्भ में एनआईए की स्थिति पर मीडिया की अलग-अलग तरह की खबरें हैं। एनआईए स्पष्ट करती है कि ये खबरें महज अटकलबाजियां हैं और किसी भी तरह एनआईए की आधिकारिक स्थिति नहीं बदली है। असीमानंद के वकील ने आरोप लगाया था कि यह साक्षात्कार एजेंसी द्वारा की गई हेर-फेर का नतीजा है। कुल मिलाकर यही लगता है कि पत्रिका का यह दावा कि स्वामी असीमानंद ने संघ पमुख का नाम लिया है बेबुनियाद आरोप है और उसमें कोई दम नहीं है। अब आते हैं इशरत जहां फजी मुठभेड़ पर। सीबीआई ने इशरत जहां फजी मुठभेड़ मामले में गुरुवार को दूसरा आरोप पत्र दायर कर दिया। इसमें खुफिया ब्यूरो (आईबी) के पूर्व विशेष निर्देशक राजिंदर कुमार सहित तीन अन्य अधिकारियों को हत्या एवं अपराधिक साजिश का आरोपी बनाया गया है। राजिंदर कुमार के खिलाफ शस्त्र कानून के तहत अतिरिक्त आरोप लगाया गया है। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि कुमार ने मुठभेड़ को एक दिन पहले 13 जून, 2004 को आरोपियों को हथियार मुहैया कराए थे। सीबीआई ने आरोप लगाया कि कुमार ने गुजरात पुलिस के अधिकारी जी सिंघल को हथियार और गोला-बारूद सौंपा। इनका इस्तेमाल मुठभेड़ को अंजाम देने में किया गया। उल्लेखनीय है कि 14 जून 2004 को पूवी अहमदाबाद में काइम ब्रांच के साथ मुठभेड़ में मुंबई निवासी इशरत जहां सहित चार लोग मारे गए थे। बताया गया है कि ये आतंकी थे और नरेन्द्र मोदी की हत्या करने आए थे, बाद में मुठभेड़ फजी बताई गई। इस केस में तीन पमुख मुद्दे थे। पहला कि क्या यह मुठभेड़ फजी थी? दूसरा क्या गुजरात के पूर्व गृह राज्यमंत्री अमित शाह इसमें शामिल थे? तीसरा क्या इशरत जहां और उसके तीन अन्य साथी आतंकी थे? दूसरी चार्जशीट से यह तो स्थापित हो गया है कि मुठभेड़ फजी थी? दूसरा इसमें अमित शाह शामिल नहीं थे। कम से कम अब तक दर्ज की गई दो एफआईआर में अमित शाह का नाम नहीं है। तीसरे मुद्दे का जवाब अभी तक नहीं मिला वह यह है कि क्या इशरत जहां और उसके साथी आतंकी थे? चूंकि अमित शाह का नाम इतना उछाला गया कि अब तो खुद सीबीआई पमुख रंजीत सिंहा ने कहा कि अगर इशरत जहां मामले से जुड़े आरोप पत्र में भाजपा नेता अमित शाह का नाम होता तब संपग सरकार खुश होती। फजी मुठभेड़ मामले में एजेंसी ने शाह से दो बार पूछताछ की थी, लेकिन उनका नाम आरोप पत्र में आरोपी के रूप में शामिल नहीं किया गया है। सिन्हा के हवाले से कहा गया कि राजनीतिक उम्मीदें थीं- संपग सरकार खुश होती अगर हमने अमित शाह को आरोपित किया होता, लेकिन हम पूरी तरह से साक्ष्य के आधार पर बढ़ रहे हैं और यह पाया कि शाह के खिलाफ अभियोग चलाने लायक साक्ष्य नहीं हैं। भाजपा सीबीआई पर कांग्रेस से साठगांठ का आरोप लगाती रही है और पाटी पवक्ता निर्मला सीतारमण ने कहा कि सीबीआई निदेशक की ओर से यह महत्वपूर्ण बयान आया है। सोहराबुद्दीन मामले में भी तीन वर्ष पहले अभियोग चलाने लायक साक्ष्य नहीं थे। सीबीआई ने भाजपा पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर निशाना साधने का पयास करके कांग्रेस नीत संपग सरकार को उपकृत किया।

-अनिल नरेन्द्र

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